सिर्फ कागज और छपाई बदल जाने से क्या काले धन पर रोक लगाई जा सकती हैं ? #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans

  


बैंक ऑफ़ इंग्लैंड ने ये सार्वजनिक किया हैं की नये ५ पौंड के नोट में पशु की चर्बी को भी मिलाया गया हैं. इस नोट में प्लास्टिक पोल्य्मोरे का इस्तेमाल किया गया हैं जिसमें पशु के मास से बनाया गया तेल को शामिलकिया गया हैं. प्लास्टिक के नोट पहले भी चलन में थे लेकिन इनमें पशु चर्बी तेल का इस्तेमाल शायद पहली बार किया गया हैं.बैंक की दलील हैं की इससे ये नोट को आसानी से फाड़ा नहीं जायेगा और इस पर पानी के गिरने से यहाँ तक अगर वाशिंग मशीन में इसे धो भी दिया जाये तभी इसे सुखा कर फिर से कार्य रूप लाया जा सकता हैं. इसका विरोध करने पर ये कहा जा रहा हैं की आज अमूमन हर चीज़ में जिसे हम उपयोग कर रहे हैं फिर चाहे वह बटुआ हो या प्लास्टिक हर चीज़ में कही ना कही पशु की चर्बी का इस्तेमाल तो हो ही रहा हैं तो फिर इसका उपयोग एक नोट में करने से किसी को कोई आपत्ति नही होनी चाहिये.

इसी संदर्भ में जब जानना चाहा तो पता चला को आज प्लास्टिक बैंक नोट का चलन काफी प्रफुलित हो रहा हैं कुल मिलाकर २० से ज्यादा देश इस तरह के नोटों को चलन में ला चुके हैं और इनमें नेपाल और मालदीव जैसे देश भी शामिल हैं. इनकी दलील हैं की ये कागज के नोट से ज्यादा चलते हैं, इनकी नष्ट होने की संभावना काफी कम होती हैं और शायद इसलिये इनकी बनावट पर लागत भी बहुत कम आती हैं. एक दलील और भी हैं की कागज के नोट बंद करने से कही ना कही वनस्पतियों और वातावरण को बचाया भी जा रहा हैं. अब ये कहना तो मुश्किल हैं की इस सब देशों के नोटों में पशु की चर्बी का उपयोग हैं या नही, अगर हैं तो एक तरफ जीव हत्या का अपराध हैं लेकिन दूसरी तरफ वातावरण को बचाने की भी सोच हैं, खासकर जब आज हम ग्लोबल वार्मिंग का खतरा हमारे घर के दरवाजे तक पहुंच चूका हैं.

प्लास्टिक के नोट में वह सारे सुरक्षा के उपाय तो हैं ही जो की कागज के नोट पे आप कर सकते हैं उदाहरण के लिये वॉटरमार्क लेकिन इसके सिवा भी कई और नये तरीके ईजाद किये गये हैं जिससे प्लास्टिक के नोट को बड़ी आसानी से ट्रैक किया जा सकता हैं जिस तरह इन्ताग्लियो ये एक प्रिंट करने की तकनीक हैं जो की आम प्रिंट से बिलकुल उल्ट हैं. इसे बड़ी आसानी से धारक पहचान सकता हैं. इसमें नोट की प्रिंटिंग को ट्रांसपेरेंट बनाया जा सकता हैं और एक ही चिन्ह को नोटके आगे और पीछे से देखने पर अलग अलग रंगों को दिखाया जा सकता हैं.. इस तरह की बनावट से नकली नोटों के चलन को भी रोका जा सकता हैं और इससे होने वाले अपराध फिर चाहे आतंकवाद ही क्यों ना हो उन पर भी किसी हद तक लगाम लगाई जा सकती हैं. और सरकारी समय और खर्च जो की इस तरह के अपराधी की छान बीन पर होता हैं, वह भी काफी हद तक कम की जा सकती हैं. इस तरह के नोट को इस्तेमाल करने में बस एक ही दिक्कत हैं की ये आसानी से मोडा नही जा सकता या इसकी तह नही लगाई जा सकती, तो आप को इसे रखने के लिये हो सकता हैं एक लम्बा सा बटुआ लेना पड़ जाये.

प्लास्टिक नोट में सिक्योरिटी चिप्स लगाने के बारे में भी क़यास लगाये जा रहे हैं. अगर ये वास्तव में मुमकिन हो गया तो इससे काले धन पर काफी हद तक रोक लगायी जा पायेगी. नोट जो की चलन में हैं और जो चलन में नहीं भी हैं उनका डाटा भी इकट्ठा किया जा सकता हैं. और इसी तरह अगर नोटों को विदेश में किसी बैंक में चोरी से भिजवाया गया हैं तभी इनकी जानकारी इक्कठी की जा सकती हैं. जिस तरह से आज टेलिफोन की सिम को ट्रैक कर हमारी पुलिस काफी तरह के अपराध को सुलझाने में कामयाब रही हैं जिसकी परिकल्पना मोबाइल फोन के आने पर किसी ने भी ना की होगी इसी तरह नोट में सिक्योरिटी चिप्स या RFID आ जाने से कई इस तरह के अपराध पर अंकुश लगाया जा पायेगा जिस की परिकल्पना भी अभी नही की जा सकती हैं. शायद इस तरह के प्रयोगों से इमानदार वास्तव में बच जायेगे और बेईमान के लिये शिकंजा और बड़ा हो जायेगा. ध्यान रहे इस तरह की सिक्योरिटी चिप्स कागज के नोट में लगाना वास्तव में काफी मुश्किल हैं अगर लगा भी दिया तो इससे छेड़ छाड़ होने की आकांक्षा हमेशा बनी रहेगी.

अब अगर इस तरह के नोटों का प्रयोग हमारे देश में करना हो तो कितना मुश्किल हैं. सबसे पहले हमारे लिये धर्म सबसे बड़ा हैं और इसके सामने इंसानी जिंदगी या वातावरण कोई मायने नही रखता. तो प्लास्टिक के नोट में किसी भी तरह की पशु मास या तेल को मिलाना तो यहाँ नामुमकिन हैं. और इसके सिवा भी अगर सिर्फ प्लास्टिक के नोटों का इस्तेमाल करना हो तो शायद इसे किसी भी विरोध के बिना अपनाया जा सकता हैं. लेकिन इनकी लागत इतनी होती हैं की ये सिर्फ ५००, १००० या २००० के नोटों को ही छापा जा पायेगा. लेकिन अगर कही सिक्योरिटी मापदंड अपनाने हो तो सिर्फ १००० और २००० के नोटों तक ही सीमित हो पायेगा. शायद नोट बंदी के पहले इन सब विकल्पों पर विचारा जाता तो एक आम नागरिक ये समझ सकता था की नोटबंदी से काले धन और आतंकवाद पर अंकुश लगाया जा सकता हैं लेकिन सिर्फ नोटों की छपाई को बदल देना और कहना की इससे ज्यादातर अपराध खत्म हो जायेगे इसे कही ना कही हमारा नागरिक स्वीकार नही कर पा रहा हैं और यही कारण हैं की नोटबंदी के पक्ष में और अपक्ष में आज दो तरह के भारत खड़े दिखाई दे रहे हैं. अब वक्त ही बतायेगा की नोटबंदी का फैसला कितना सही था या इसमें समय रहते और भी खामिया पूरी की जा सकती थी. जय हिंद.



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