NDTV पर बैन के सही मायने कही उत्तर प्रदेश के चुनाव तो नही #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans

NDTV पै बैंन, आज पूरा भारत मानो इस मसले पर अपनी राय सोशल मीडिया पर दे रहा है, कई देशभक्त इसे अदालत का फैसला बताने से भी नही चुके रहे. आखिर ये मसला है क्या? इसके साथ साथ दो और पहलुयों को समझना होगा एक NDTV की वोह सारी रिपोर्टिंग जो देश की सरकार से सवाल करती है और दूसरा सबसे बड़ा पहलु उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव.

अगर इस रिपोर्ट पे नजर मारे  तो NDTV पे बैन का फैसला पूर्णता सरकार का किसी भी अदालत के फैसले के तेहत नही. जनुअरी मैं हुये हमले की सजा आखीर नवम्बर में क्यों ? मोदी जी का विकास का रथ आखिर इतना धीमा क्यों है? ईमानदारी से अगर ये फैसला देश की सुरक्षा की दृष्टि से लिया गया है तो शायद इस फैसले का इतनी देर से आना कही ना कही सरकारी लापरवाही भी बयां करता है. कही मोदी जी कमजोर तो नही हो गये ?. २०१४ मैं मोदी जी नै बड़ी ही नम्रता से और भाव भीन होकर कश्मीर के लोगो के साथ दिवाली मनायी थी लेकिन २०१६ के आते आते उनकी ये दिवाली अपरोक्ष रूप से सेना के नाम रही, इस बार दिवाली पे मोदी जी का एक मास मैसेज देशवासियों के नाम भी जिसमे सेना के नाम देशवासियों को दिवाली की शुभकामना देने के लिये कहा गया था. लेकिन ईनही 2 सालो मे कश्मीर में हालात नाजुक हो गये और कश्मीरियो को मोदीं जी का साथ नही मिला जिस तरह उन्हे वाजपेयी जी का समर्थन मिला था. और इसी दौरान, कश्मीर की जमीनी हकीकत को NDTV अपने चैनल पर पूरी ईमानदारी से दिखा रहा था.

इस बैन के संदर्भ मे इस समय को भी देखना होगा जहां आने वाले कुछ महीनो मे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने जा रहे है. राजनीती गलियारों म येें कहावत है की देल्ही की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है. और इसी दौरान राहुल गांधी अपना रोड शो ख़त्म कर चुके है, समाजवादी अखिलेश यादव अपना चुनावी रथ पर सवार हो चुके है और भारतीय जनता पार्टी ने भी अपना चुनाव प्रचार शुरू कर दिया है. न्यूज़ मीडिया चुनाव प्रचार का सबसे बड़ा और कामयाब माध्यम है. अगर 2014 के केंद्र सरकार के चुनाव के संदर्भ में इस रिपोर्ट पै नजर मारे जिसमे बताया गया हैं की २०१४ के चुनावो मैं न्यूज मीडिया ने अपने टेलीकास्ट मैं सबसे ज्यादा  ३३.२१% मोदी जी को दिखाया है, १०.३१% अरविन्द केजेरिवाल और ४.३३% राहुल गांधी को दिखाया हैं. और चुनावी नतीजे भी कुछ इसी तरह से आये की भाजपा ३१% मतों के अनुपात के साथ २८२ सीटो पर विजय हुई वही कांग्रेस १९.३% मतों के अनुपात के साथ ४४ सीटो पर सिमट कर रेह गयी. आम आदमी पार्टी भी ४ सीटो पर विजय हुई. क्या इस बैन से सारे न्यूज़ चैनलों को ये सन्देश तो नही की उत्तर प्रदेश के चुनावो मे बस मोदी जी ही चुनावी चेहरा हो ?

2014 मैं मोदीं जी के प्रधान मंत्री बनने के बाद NDTV की उस रिपोर्टिंग पै भी एक नजर मारनी होगी जो इस चैनेल नै कवर की है. 2015 के देल्ही विधानसभा चुनावों में NDTV ने अरविन्द केजरीवाल को भी उतनी ही प्राथमिकता दी जितनी भारतीय जनता पार्टी की मुख्यमंत्री उम्मीदवार किरण बेदी को. और इसी साल NDTV का एंकर रविश कुमार बिहार के विधानसभा चुनावो मे बिहार की उस हर गली और गाँव से न्यूज़ रिपोर्टिंग कर रहा था जहाँ की खस्ता हालत हमारी केंद्र सरकार के विकास के दावों को झुठला रही थी. और ईनही चुनावो मे भारतीय जनता पार्टी की करारी हार हुई.  और सबसे जरूरी, NDTV उत्तर प्रदेश के कैरना की जमीनी हकीकत भी तलाश रहा था जिसके बारे में भारतीय जनता पार्टी के हुक्म सिंह प्रचार कर रहे थे की यहाँ से कई हिन्दू परिवारों को जबरन माइग्रेट करना पड़ा है लेकिन NDTV इस दावे को झुठला रहा था. यहाँ NDTV लोगो की साम्प्रदायिक भावनाओ को भड़काने के खिलाफ एक ढाल बनकर खड़ा हो गया था.

देश की सुरक्षा के लिहाज से NDTV को बैन करना, सरकार के इस फैसले को मैं चुनोती नही दूंगा. लेकिन आप से कुछ सवाल जरूर करूँगा. क्या न्यूज़ वो है जो हकीकत को बयां करती है या नकली रूप रेखा दे कर बनाई जाती है ? क्या न्यूज़ वो है जो भारत के नागरिक और संविधान के प्रति वफादार होती है या सरकार के प्रति? अगर आप NDTV के संदर्भ मे इन दोनों तथ्यों को खंगालेगै तो आप खुद तय कर पायेगे की NDTV को एक दिन के लिये बैन करना सही है या नही. जय हिंद.

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