सोशल मीडिया पर हर तस्वीर आप को प्रभावित करती है, क्रोधित भी और एक पक्ष मे खड़े होने को मजबूर भी. बचके यहाँ सब कुछ सच नही दिखाया जाता #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans

संवाद, अक्सर इसे हम यही मानते हैं की इसे बोल कर या शब्दों को लिखकर ही किया जा सकता हैं लेकिन आज के इस डिजिटल युग में, कुछ ऐसी भी चीजें हैं जो तस्वीरो के माध्यम से हमसे संवाद करती हैं और हमारी मानसिकता पर भी इसका प्रभाव पड़ता हैं. मसलन, अक जगह लिखा हैं की “यहाँ कचरा ना फैके, अन्यथा क़ानूनी कार्यवाही की जायेगी.” फिर भी लोग इसे बिना कुछ समझे यहाँ आते-जाते कचरा फैक देते हैं. लेकिन उसी जगह, एक कैमरा की तस्वीर लगाई गयी हैं और उसके नीचे, अगल, बगल कुछ भी नही लिखा गया. इसके चलते, अमूमन लोग वह कचरा फैकना तो दूर लेकिन खड़े भी नही होते. कैमरा की ये तस्वीर, इस सवांद को जन्म दे रही हैं की यहाँ पर होने वाली हरेक प्रकार की गति विधि इस कैमरा में रिकॉर्ड हो रही हैं और इसी रिकार्डिंग के तहत किसी पर भी क़ानूनी कार्यवाही की जा सकती हैं. लेकिन, हकीकत में ये कोई दिलचस्पी नही रखता की वहा कोई कैमरा हैं भी या नहीं ? इसी तरह, के सवांद वह हर अनजान तस्वीर हम से करती हैं जो कही-कही से होती हुई हमारे सोशल मीडिया पेज पर आ गयी, अब ये संवाद की रूप रेखा में क्या कह रही हैं ? क्या ये हकीकत हैं ? इसका अवलोकन करना जरूरी हैं.



मसलन ये ऊपर की तस्वीर, यहाँ अक बच्चा हाथ जोड़कर खड़ा हैं और स्कूल की वर्दी में हैं. इसके जेब में, एक रोटी हैं जिसे ध्यान से देखा जाये तो उस रोटी की एक बुर्की पहले खा ली गयी हैं. अब इस में कयी चीजें अवलोकन करने वाली हैं, जिस तरह स्कूल की वर्दी, तो स्कूल में या तो प्रार्थना होती हैं या फिर राष्ट्रगान. लेकिन राष्ट्रगान में, अमूमन हमें सावधान खड़ा होना सिखाया जाता हैं, लेकिन प्रार्थना, में आप हाथ जोड़ सकते हैं. प्रार्थना भी यहाँ किसी रूप में भगवान को याद करती हैं या फिर देश भक्ति की रूप रेखा में ही होती हैं. लेकिन अगर इसे एक प्रार्थना के रूप में ले, तो यहाँ कहा जा रहा हैं, प्रार्थना में एक बच्चा अपनी आधी रोटी छोड़कर खड़ा हो गया, तो बाकी सब लोग युवा, पुरुष, महिला, बुजुर्ग, इत्यादि, की जवाब देही तो कही ज्यादा बनती हैं. लेकिन, इसी तस्वीर में किसी भी तरह इस बच्चे का चेहरा साफ़-साफ़ नही दिखाया गया, ना ही किसी और बच्चे का. इसी तरह, कोई भी ऐसा चिन्ह नही हैं की ये तस्वीर कहा से ली गयी हैं मसलन यूनिफार्म पर कही भी कोई भी स्कूल का बेज नजर नही आ रहा. उसी तरह, जमीन भी छुपा ली गयी हैं.



सोशल मीडिया पर इस तरह की तस्वीरों का आज खूब चलन हैं तो राजनीति भी किस तरह इससे अछूत रह सकती हैं, मसलन ऊपर की तस्वीरों में चेक दिखाया गया हैं, जिसमें पे टू में अक पार्टी का नाम लिखा हुआ हैं और नीचे अमाउंट लिखी गयी हैं. और यहाँ भुगतान करने वाले के दस्तकार भी मौजूद हैं. अब इस तस्वीर के जरिये ये बताया जा रहा हैं की इतनी बड़ी रकम इस पार्टी को चंदै के रूप में दी जा रही हैं और इसे काले धन और उसी के मध्यनजर इसे नोट बंदी की रूप रेखा में दिखाया जा रहा हैं की ये राजनीति पार्टी किस तरह काले को सफेद धन में बदल रही हैं. लेकिन, यहाँ ग़ोर करने लायक कुछ बातें हैं की इस चेक में से तारीख कही भी लिखी नही गयी. चेक का भुगतान करने के समय, बैंक की स्लिप भी भरी जाती हैं जहाँ पूरी जानकारी दी जाती हैं की ये चेक कहा जमा करवाना हैं. लेकिन वह स्लिप यहाँ नदागर हैं. सिर्फ और सिर्फ भुगतान करने वाले का बैंक अकाउंट का नंबर ही यहाँ मौजूद हैं. अगर कहीं भी एक चेक के रूप में किसी को भुगतान किया जा रहा हैं, तो ये अपराध अमूमन नही हैं. अगर हैं तो सरकार की नजर में आ जायेगा. लेकिन कही भी किसी भी तरह की खबर नही आई की ये इस तरह का कोई अपराध में ये पार्टी की मौजूदगी पाई गयी हैं. व्यक्तिगत रूप से में इस तस्वीर से सहमत नही हु.



लेकिन कुछ तस्वीर इस से भी भयानक रूप ले लेती हैं और अक्सर इन्ही के चलते समाज का में दंगे फसाद भी होने की संभावना बन जाती हैं. मसलन, भारत देश में गाय के बछड़े, बड़े बेल, को बैच दिया जाता हैं, और सरकार की अनुमति से पूरे देश में कई ऐसे कारखाने चल रहे हैं जहाँ इनका कत्ल करके, इनके मास को आगे बेचा जाता हैं. लेकिन जब इनकी कत्ल होने की तस्वीर सोशल मीडिया पर आती हैं तो ये भ्रम पैदा होता हैं की ये गाय को कत्ल किया जा रहा हैं. गाय, आर्य समाज के तहत एक पवित्र हैं और कही भी इसके कत्ल को परवानगी नही हैं. इससे सामाजिक दंगे होने की संभावना बन जाती हैं. अब ये समझना जरूरी हैं, की ये कत्ल सरकार की परवानगी से ही हो रहें हैं तो सवाल सरकार से क्यों न पूछा जाये ? बजाय, सडक पर हथियारों की नुमाइश की जाये.

कुछ विडियो भी अपलोड होते हैं जो तस्वीरों से ज्यादा खतरनाक प्रभाव करते हैं. मसलन किसी भी सोशल मीडिया पर अगर आप कोई आर्टिकल या किसी और साइट का लिंक डाल दे तो यह सारी सोशल मीडिया साइट्स, आप को क्लिक पर वह पेज खोल देगी लेकिन अपने ब्राउज़र के भीतर. मतलब, कही भी ये आपको उस साईट पर ना तो सीधे तोर पर ट्रांसफ़र करेगी और ना ही उनका लिंक दिखाया जायेगा. ताकि सोशल मीडिया का यूजर इसी पे बना रहे और वह अपना रुख सोशल मीडिया से हटाकर किसी और साईट पर ना ले जाये. अब, इसका भी एक फायदा हैं, मसलन कोई आपत्तिजनक आर्टिकल लिखा गया और इसमें कई तस्वीर दिखाई भी गयी और यहाँ विडियो भी मौजूद हैं. मसलन, यूजर सोशल मीडिया से होते हुये आप की साईट पर आयेगा और इसे देखेगा भी और प्रभावित भी होगा. लेकिन अगर कानून की नजर आप पर पड़ गयी, तो आप अपनी साईट से वह सारे आपत्तिजनक सामग्री हटाकर अपराध मुक्त हो सकते हैं. कहने का तात्पर्य सोशल मीडिया पर अपराध जल्दी पकड़ में नही आते.

लेकिन इस तरह के सवांद से और तस्वीरों या विडियो के प्रभाव से बचने का एक ही तरीका हैं, वह हैं यूजर की मुस्तैदी, देखे और अवलोकन करे, प्रभावित ना हो, गहराई में देखे तो इन तस्वीरों से हो रहे छल को देख पायेगे. ध्यान रखिये, सोशल मीडिया, आखो को धोखा देता हैं और हमारे बुजुर्ग पहले ही कह गये हैं की हर दिखने वाली वस्तु असली नही होती. जय हिंद.

सोशल मीडिया ट्रोल, कमेंट करने वाला यूजर असली हैं या फेंक ? चेक किया ? #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans


आज नवजात के जन्म लेते ही, उसकी तस्वीर परिवार के किसी नजदीकी रिश्तेदार या दोस्त द्वारा, अगले ५ मिनट में सोशल मीडिया पर अपलोड कर दी जाती हैं और दूर बैठे सारे रिश्तेदार और दोस्तों के बधाई संदेश मिलने शुरू हो जाते हैं. और उन सब संदेशो को पड़ते हुये नवजात के माता-पिता एक सुखद एहसास भी कर रहे होते हैं और दबी ज़ुबान में ही सही, सोशल मीडिया का धन्यवाद भी कर रहे होते हैं की इसके जरिये, कुछ ही पल में हम हमारी खुसिया सभी से साँझा कर सकते हैं. इस मानसिकता के अनुसार सोशल मीडिया एक बेहतरीन माध्यम हैं. लेकिन इसका एक और पहलू भी हैं. आज जब सोशल मीडिया के पेज पर जाते हैं तो कई तस्वीर, संदेश, या इन्ही संदेशो में हो रही बहस और इसी बहस में उलझ कर, इसी बहस की एक रुख को अपनाते हुये, एक आम इंसान या यूजर भी इस पर अपना कमेंट कर देता हैं. लेकिन कोई भी इस जगह दिलचस्पी नही ले रहा की ये बहस कहा से शुरू हुई हैं और ये किस तरह की मानसिकता को जन्म दे रही हैं, सबसे महत्वपूर्ण की इस बहस को जन्म देनेवाली मानसिकता का उद्देश क्या हैं ? अवलोकन करना जरूरी हैं.

सोशल मीडिया, यहाँ इसी रुपरेखा में आप किसी भी सोशल मीडिया की साईट पर चले जाये आप को लॉग इन करने के लिये एक इमेल आईडी की जरूरत हैं जो पहले सोशल मीडिया की साईट पर पंजीकृत ना हो. तो ईमेल आई डी कैसे बनाये ? एक आम और ईमानदार यूजर के लिये सारे फ्री ईमेल साइट्स पर ये बनाई जा सकती हैं जिस तरह जीमेल, याहू, इत्यादि. लेकिन अगर एक इंसान को या यूजर को एक से ज्यादा अमूमन कुछ हजार या लाख ईमेल आईडी बनानी हो तो क्या ? तो एक साईट या डोमेन को पहले बनाया जायेगा जिस तरह harbansgushtakh.com, साईट पंजीकृत आज बड़ी कम लागत में हो जाता हैं. आप गूगल कीजिये, कई आप्शन आपको मिल जायेगे कुछ तो पूरे साल का बस कुछ हजार रुपये में इसे पंजीकृत कर देते हैं. अब इस साईट या डोमेन पर ईमेल आईडी बनाने के लिये आपको एक ईमेल सरवर चाहिये, कई सारी कंपनियां आपको साईट / डोमेन के साथ साथ ईमेल सरवर भी मुहिया करवा देती हैं बस कुछ लागत बड़ जाती हैं. इसी के तहत आप को एक ऐसा इंटरफ़ेस मिल जाता है जहा आप ईमेल आईडीस बना सकते है. अब आप इसी के जरिये कुछ हजार या लाख ईमेल आईडी बना सकते हैं जितनी लिमिट आपको आपका ईमेल सरवर देता हैं. मसलन harbans1@ harbansgushtakh.com से harbans1000000@harbansgushtakh.com . मतलब आप अब इन ईमेल आईडी के जरिये सोशल मीडिया पर लॉग इन बना सकते हैं. सोशल मीडिया की लगभग सारी साइट्स आज भी ईमेल आईडी ही क्रॉस चेक करती हैं की ये ईमेल आई डी पहले सोशल मीडिया साईट पर रजिस्टर नही होना चाहिये. यहाँ फोन नंबर ज्यादा क्रॉस चेक नही होता, आप को इसका एक उदाहरण भी दूँगा की अगर आप का व्हाट्स एप्प, जब आप इसे इनस्टॉल करते हैं ये नंबर चेक करने के लिये एक कोड नंबर sms करता हैं और उसे खुद ही पड़ कर इसे पंजीकृत कर देता हैं. लेकिन ये फोन नंबर अगर पहले किसी और यूजर का था तो क्या ? इसका अनुभव आप खुद कीजिये, इसे फिर से डिलीट कर और इनस्टॉल कीजिये , ये आप को पुरानी हिस्ट्री भी लाकर दे सकता हैं. चलिये मुद्दे से भटकते नही हैं. कहने का अर्थ यही था की सोशल मीडिया पर रजिस्टर होने की सामग्री सिर्फ और सिर्फ ईमेल आईडी ही हैं. तो जब कच्चा माल तैयार हैं तो सोशल मीडिया की फैक्ट्री में इसे आगे की रूप रेखा दी जा सकती हैं.

अब जब आप इन सारी ईमेल आईडी को अपना कर सोशल मीडिया की अलग अलग साईट पर रजिस्टर करने के उपरांत, आज  इंटरनेट के इस दोर में तस्वीर मिल जाती है तो कुछ ऐसी ही तस्वीर की रूप रेखा में कुछ यूजर को एक मर्द की तस्वीर लगाते हैं, कुछ को औरत की, बच्चे की, इसी की रुपरेखा में कुछ धार्मिक चेहरे हो सकते हैं जो भ्रम पैदा करे की वह किसी धर्म से जुड़े हुये हैं या उनकी श्रद्धा उस समुदाय या धर्म में हैं. फिर अनजान लोगो को फ्रैंड request भेज कर आप अपने मित्रों की संख्या बड़ा सकते हैं. इस तरह के फेंक आईडी की पर्सनल इनफ्रामेंशन आप सोशल साइड से हाईड कर सकते हैं ताकि कोई और यूजर आपकी पहचान ना देख पाये. फिर जब कुछ समय के बाद ये सारे फेंक सोशल मीडिया यूजर अपनी अपनी पहचान सोशल मीडिया पर बना ले. तो कोई एक पोस्ट कीजिये, इस पर बाकी के फेंक यूजर से लाइक कीजिये और कमेंट कीजिये. कमेंट दो हिस्सों में बटा हो ताकि की किसी और तीसरे यूजर को इसमें अपना मत दिखाई दे और ये भी इस पर अपना कमेंट कर दे. जितनी बार आप का पोस्ट लाइक होगा या इस पर कमेंट आयेगा उसी तरह इसकी पोजीशन सोशल मीडिया के पेज पर ऊपर आती जायेगी. मसलन आप के सारे मित्र देख पायेगे की आप इस पर अपनी राय रख रहे हैं और किसी ना किसी रूप रेखा में वह भी इस पर अपनी राय बनायेगे.


शायद कुछ इसी तरह सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग होता होगा. अमूमन इस तरह के मसले कानून की नजरो से दूर ही रहते हैं या लोग इसे साइबर लॉ के तहत अपराध ना समझ कर भूलने में ही यकीन करते हैं. अगर ये फेक आईडी पकड़ी भी जाये मुझे नही लगता की कोई अपराध की रूप रेखा में कोई सजा हो सकती हैं. में या आप सोशल मीडिया पर कई सारे यूजर बना सकते हैं, बस हमारी पोस्ट में कोई आपत्तिजनक कमेंट नही होने चाहिये, ध्यान दीजियेगा जो लोग ट्रॉल्लिंग करते हैं उनकी पोस्ट में किसी भी तरह की आपत्तिजनक शब्दावली नही होती लेकिन शब्दों को तोड़ मरोड़ कर कई अर्थ निकाले जाते हैं. तो इस पर आप को ही मुस्तैदी दिखानी होगी, जिस तरह ऐसा कोई भी पोस्ट आये तो चेक करे की कहा से आया हैं अगर हो सके तो उनकी पर्सनल इनफ्रामेंशन देखे, गूगल पर सर्च करे. उस पोस्ट पर जो कमेंट कर रहे हैं उन यूजर को भी क्रॉस चेक करे. किसी भी भ्रम से बचने ले लिये, किसी भी अनजान पोस्ट पर कमेंट करने से पहले सोचे. किसी अनजान की फ्रेंड request को स्वीकार ना करे. अपनी इनफ्रामेंशन भी प्राइवेट रखे और खास कर फोटो को तो जरूरी समान्य पब्लिक ना रखे, की कोई भी देख सके. थोड़ी सी बुद्धिमानी हमें इस तरह के ट्रोल से बचा सकती हैं. ध्यान रखिये, सोशल मीडिया पर हर चीज असली नही होती. जय हिंद.

हम बस लिफ्ट के भीतर जा ही रहे थे के बाहर आती बहन जी ने हमें कहा “भईया”, #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans

हम बस लिफ्ट के भीतर जा ही रहे थे के बाहर आती बहन जी ने हमें कहा “भईया”,
सुन कर हमारे कान खड़े हो गये, हम तुम कह रहे हैं बहन जी और आप बस कहती हैं “भईया”,
बहन जी, थोड़ी तो तमीज़ से हमें सम्मानित कीजिये, कहिये “भईया जी”, “भाई जी”, नाकि बस “भईया”,
बस हम यहाँ कोई ज्ञान नही बाट रहे हैं, गुनगुना भी नही रहे हैं, बस इस मानसिकता पर कटाक्ष कर रहे हैं,
 जो हर गरीब को, मजदूर को, नौकर को, लाचार को, भिखारी को, मरीज को, निराश को, बस कहती हैं “भईया”
वैसे भईया भी एक सम्मानित शब्द हैं, लेकिन पता नहीं सिर्फ भारत के गरीब नागरिक को ही क्यों पुकारा जाता हैं “भईया”,
हरबंश, इस तरह की मानसिकता को तब तक क़बूल ना करेगा जब तक आप बहन जी, कार में बैठे इंसान को ना कहेगी “भईया”,
अगर कहेगी, तो किसी को कोई आपत्ति नही हैं, फिर हम भी हैं भईया, इस तरह हम सम्मानित महसूस कर रहे हैं, हम हैं “भईया”,
#हवाबदलीसीहै #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba

अगर हमारी तरह थोड़ा से आप भी गुनगुना लेंगे,
यकीन मानिये, आपके अंदर जल रही अहंकार की दीपमाला को, बुझा देंगे,
समझ रहे हैं, बजा देंगे, #हवाबदलीसीहै #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba


Social Media is an illusion of Human Frustration.
Don’t be afraid.
Some one has made billions by decorating this fiction sweet world.
#हवा बदली सी है #हरबंश #जनाब #harbans

People at Social Media hide their presence but would like to see every thing. Its like a hide and seek game. What does this mean if we talk about their mentality ? They like to hear and see you but would not show their presence by click on Like Button.
Moral: Believe me you have some frustration. Better to leave this, Don’t curse some one, Appreciate your self and others as well. #हवा बदली सी है #हरबंश #जनाब #harbans


जिंदगी अस्पताल मे दम तोड़ रही थी, 
बस कम्बख्त उंगलिया ऑनलाइन थी,
यहां बात इंसान की नही मानसिकता की हो रही थी,
हरबंश, रिश्ते नाकामयाब हो गये, लाश ऑनलाइन निकल रही थी.

सारांश: थोड़ी सी जिंदगी 1960 की भी जीनी चाहिये. 

#हवाबदलीसीहै #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba

हमने कहा ऊपरवाले से, चाहे मार दे, अस्पताल में दाखिल कर दे,
हमने कभी कुछ कहा हैं, बस, जिंदगी तेरी थी तू चाहे तो वापस रख ले,
लेकिन गुस्ताखी, हरबंश की इतनी माफ़ कर देना,
सोशल मीडिया पर मेरा स्टेटस ऑनलाइन था, हैं, और ऑनलाइन ही दिखता रहे
सारांश: बस युही, गुन गुना रहे हैं, समझा रहे हैं, कुछ आज की मानसिकता पर कटाक्ष कर रहे हैं.

Moral: God, Either I may live or not, My Social Media Status must be online, keep always.

#हवाबदलीसीहै #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba

सिटी बजाती हुई ट्रेन गुजर रही थी, १९४७ मॉडल के इंजन की आवाज लोड ले रही थी, लेकिन पीछे ऐसी डिब्बे में नेता गर्ण  की चर्चा हो रही थी, भारतीय ट्रेन ५०० किलोमीटर की गति से क्यों ना दोड रही थी ? कुछ दिमाग लगाया गया, सोच इंजन को बदल रही थी. नया इंजन लगाया गया, हरबंश, अब ये छुक-छुक नही झु-झु बोल रही थी, बस दूर १०० किलोमीटर जाकर अभी, गति ३०० की हुई थी, पता चला ट्रेन पटड़ी से नीचे उत्तर कर दुर्घटना ग्रस्त हो गई थी.

सारांश: ट्रेन हमारा लोकतंत्र हैं, नेता मालिक हैं, इंजन व्यवस्था का हिस्सा हैं. अगर बदलना हैं तो इंजन के साथ-साथ पटड़ी और भी चीजों को बदलना होगा. व्यवस्था को बदलना हैं तो सब कुछ बदलना होगा, और शरुआत हमारे घर से होगी. #हवाबदलीसीहै. #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba

 #हवाबदलीसीहै. #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba

नोटबंदी का ना पैमाना था, दुल्हा पहले ही कह रहा था, दहेज के बिना ही दुल्हन को लाना था, शर्त ये रखी गयी की, दहेज का नाम भी ना शादी में लेना था. शादी हो गयी, अब जब दुल्हन को विदा होना था, दुल्हन घर के दरवाजे से पीछे भाग कर गई, हरबंश, इससे सब को संदेह तो होना ही था, दुल्हन वापस आई पापा से उसे बस इतना ही कहना था. पापा, फोन तो लेकर जाऊगी, पेमेंट अब नकदी में नहीं, फ़ोन से जो करना था.

सारांश: समझ रहे हैं, भारत बदल रहा हैं, आप अभी वही बैंक की कतार में खड़े हैं. फ़ोन से पेमेंट कीजिये, जिओ जो फ्री नेट दे रहा हैं. बस उस गरीब को ये मजाक लगेगा, जिसका घर नकदी पर ही चलता हैं.  #हवाबदलीसीहै. #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba

शाम होने को हैं, क्या सोच रहे हैं,
कदम मैह्खाने की तरफ हो रहे हैं,
सोचिये, घर पर बच्चे इंतजार कर रहे हैं,
अगर लड़ खड़ातै हुये गये, तो नजरों से गिर जायेगे,
संभल जाना, बचपन से ही, विद्रोह जन्म ले रहे हैं,
 #हवाबदलीसीहै. #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba


हरबंश जी, आज अपने चेहरे पे छपवा रहे हैं, हम लुचे लफंगे हैं,
आज, हमारे घर में, बेटी पर बलात्कार, सिर्फ शरीफ तो करते हैं,
यहाँ, मामा, चाचा, ताया, फूफा, इत्यादि सब रिश्ते नंगे हैं,
आज, माँ अक्सर जवान बेटी से कहती हैं,
आदमी की नियत का पता नही, सबसे दूर रहना, ये बेटी में भी कामवासना देखते हैं,

सारांश: पाप मन करता हैं और अपराध शरीर, अगर मन के पाप की व्यथा कानून की पक्कड में होती तो शायद कोई रिश्ता महफूज ना होता. #हवाबदलीसीहै. #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba

सब धोखा हैं,
आँख जो देखे, नजरे जो सेके, क़ुदरत कहैं, दुनिया खेल तमाशा हैं,
सब धोखा हैं,
आंदोलन, सत्याग्रह, आजादी के इस दोर में, सब वोट का धंधा हैं,
सब धोखा हैं,
सीमा पर आज भी फौजी ही खड़ा हैं, बस देल्ही में देश बदल रहा हैं,
सब धोखा हैं,
मीडिया बट गई, राजनीति पार्टियों मे, कोई कहैं अच्छा, कोई कहैं सब गंदा हैं,
सब धोखा हैं,
हरबंश, तू क्यों इतना लिखता हैं, किसान मर रहा हैं, साहूकार का पेट मोटा हैं,
सब धोखा हैं,
सच का मुह काला, झूठ का बोल बाला हैं, बस इतना समझ लो, सब बिकता हैं,
इंग्लिश वाली गाली दो और फिर बोलो सब बिकता हैं, लोकतंत्र में सब बिकता है,

सब बिकता हैं, सब धोखा हैं, हां हां हां हां हां, सब धोखा हैं, सब धोखा हैं.

२०१४ में मोदी जी आ गये, लगा कुछ बदलेगा, लेकिन मुझसे देश, आज भक्ति का प्रमाण मांग रहा हैं ,
सब धोखा है ,
सिनेमा में, राष्ट्रगान चल रहा हैं, नागरिक सावधान खड़ा हैं, फिर क्यों बाहर सडक पर बच्चा भीख मांग रहा हैं ,
सब धोखा है ,
मंग्ल्यान, को माँ का दर्जा देने वालों, नजीब की माँ क्यों नही दिखती, देल्ही की सडक पर, एक आंदोलन चल रहा हैं ,
सब धोखा हैं ,
हरबंश तू क्यों लिखता हैं , भारत देश आजाद हैं , यहाँ ७० सालो से, चुनावो में, बस एक वजीर तो बदल रहा हैं ,
सब धोखा हैं ,
सच का मुँह काला, झूठ का बोल बाला हैं, बस इतना समझ लो, सब बिकता हैं ,
इंग्लिश वाली गाली दो और फिर बोलो सब बिकता हैं, लोकतंत्र में सब बिकता हैं ,
सब बिकता हैं, सब धोखा हैं, हां हां हां हां हां, सब धोखा हैं, सब धोखा हैं ,

इमारते और उच्ची हो रही हैं, ये आसमान को छू रही हैं, झोपडी, के गरीब का घाव, ना किसी ने देखा हैं ,
सब धोखा हैं ,
हमारे देश की सर्वोच्च पंचायत में, नेता करोडपति हैं, पेट भरा होता हैं, भूख का ना एहसास होता हैं, और गरीबी पर चर्चा करता हैं ,
 सब धोखा हैं ,
हरबंश तू क्यों लिखता हैं , सडक पर, भीख मांग रहे भिखारी को देख, अक्सर, नेता गाडी का कांच बंद कर लेता हैं,
सब धोखा हैं ,
अगर किसी को व्यक्तिगत लगे तो हमें खेद हैं, शब्दों को वापस लेते हैं, नेता अक्सर पंचायत में यही तो कहता हैं,
सच कहा हैं, अगर बुरा लगे तो भी सुनना, अब किसी से उम्मीद ना करना, लोकतंत्र में आंदोलन घर से शुरू होता हैं,
खुद पहल करे, खुद को बदले, देश बदल जायेगा, लोकतंत्र में जब एक इंसान को पहचाना जायेगा,
इसी तरह हरबंश भारत को जमीन पर देखना चाहता हैं, तब तक वह यही कहता हैं, लोकतंत्र नही, सब धोखा हैं,
सब बिकता हैं, सब धोखा हैं, हां हां हां हां हां, सब धोखा हैं, सब धोखा हैं ,

दुखो की टोकरी, सर से उठाकर, फुटबॉल बनाकर, बस किक मारी ही थी, के सामने से आवाज आई,
बस रहने दे भाई,
ज़ुबान को साफ़ कर, शरीफो की गली को गाली दी ही थी, के सामने से आवाज आई,
बस रहने दे भाई,
अब नजरों में ना हरबंश के, किसी की बाकी शर्म रही थी, के सामने से आवाज आई,
बस रहने दे भाई,
दीवार से बॉल लग कर उसी गति से वापस आयी, न्यूटन, ने ये बात बताई थी, आज हस्ते हैं तो सब साथ हैं, जब रोते थे, तो बस थी तनहाई, के सामने से आवाज आई,
बस रहने दे भाई,
और कहैं, ना कहते हैं, अर सुनो तो सही, बस रहने दे भाई, के सामने से आवाज आई,
बस रहने दे भाई, #हवाबदलीसीहै #हरबंश #जनाब #harbans #YQbaba

किसान दिवस जो मुझे अनुमन कभी याद नही रहता और ना ही मेरे गाव के किसान का दर्द, जिसकी नजरों में भी अब निराशा ने जन्म ले लिया हैं. (भाग 1) #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



तारीख २३-१२-२०१६ यानी के किसान दिवस के दिन, जो अमूमन मुझे कभी याद नही रहता लेकिन उसी दिन इसी के संदर्भ में एक चित्र फेसबुक पर उड़ता उड़ता आ गिरा और जिसने हमें ज्ञात करवाया की आज किसान दिवस हैं. लेकिन इसका शुक्रिया करने की बजाय हम गलती निकाल रहे थे और अपने मित्र से कह बैठे की इस चित्र में किसान एक महिला के रूप में क्यों दिखाई गयी हैं ? हमारा मित्र भारत देश के दूसरे प्रांत से हैं और हम दूसरे प्रांत से. लेकिन इतना सुनकर ही हमारा मित्र ने बड़े तल्ख़ रूप को अपनाते हुये हमसे पूछा की क्यों किसान एक महिला नही हो सकती ?” सवाल बड़ा गहरा था और अनजाने में ही सही हम अपराधी बन चुके थे तो अपराध को स्वीकार कर सबसे पहले उसी दिन घर जाकर अपने पत्नी के पैर छुये और जब अपराध मुक्त हो गये तब अपने मित्र से फोन पर बात की और अपना पक्ष पूरी इमानदारी से रखा. में एक किसान हु, हाँ थोड़ा पड़ लिख गया शिक्षा की लकीरों को तो आज में खेती के व्यवसाय में नही हु लेकिन इसके दर्द को भली भाती जानता हु. मेरे लिये खेती या किसान का मतलब बेरोजगारी, आत्म हत्या, खेती के औज़ार से कटे हुये हाथ और पाव, बिजली के करंट और खेती के औज़ार से हो रही खेतों में मोत. मेरे घर में और कही भी खेती के काम में महिला को अनुमति नही हैं और मेरे लिये किसान का मतलब आदमी, यहाँ पुरुष प्रधान का ताना मत मारना. खेती किसान का मतलब दर्द, निराश हो रही नजरे और ना उम्मीद चेहरे, समाज की प्रतिष्ठा में पिछड़ रहा परिवार और खेती छिड़काव की दवाई को पीकर आत्महत्या कर रहा किसान. में आज कुछ इसी तरह के हादसों को आप से साँझा कर दोष मुक्त हो जाऊँगा लेकिन आप पर दोष बना रहेगा जिन्होंने मुझे अपने प्रांत के किसान की पीड़ा से अवगत नही करवाया फिर वह चाहे महिला हो या आदमी, हमें किसान को किसान के दर्द से ही समझना चाहिये.

गर्मी की छुटियो में अक्सर अपने गाव पंजाब जाया करते थे तो कभी मामा के यहाँ तो कभी मासी के यहाँ, सभी परिवार खेती के व्यवसाय से ही जुड़े हुये थे और कही निकट हो कर बचपन से में इन परिवारों के दर्द को सुनता भी आ रहा हु और महसूस भी कर रहा हु. खेती मतलब पानी और पानी मतलब खूह (कुँआ) जिसके बिना चावल की खेती नही हो सकती और चावल की बुनाई के समय खेत अक्सर पानी से लबा-लब भरे होते हैं. सन ८०-९० के बीच जो खेती के खूह (कुँआ) २०-३० फिट की गहराई पर था वह सन ९०-९२ के बीच कही ५०-५५ फिट गहरा हो गया था. एक बार नीचे रखा पंप हवा ले गया तो मामा का लड़का जो हमसे ८ महीने छोटा था उस समय उसकी उम्र रही होगी १५-१६ साल, नीचे खूह मे उतर गया, ये इतना गहरा था की नीचे से हमें बस उसकी आवाज सुनाई दे रही थी वह कही भी दिख नही रहा था. बस नजरे एक काले अंधेरे पर जाकर खत्म हो रही थी. बस सोच ही रहा था की ये खुही कितनों को निगल सकती हैं. थोड़े ही दिनों बाद जब में अपने ताई जी के मायके गया हुआ था तो वहा मेरा मामा दौड़ता हुआ आया और ट्रेक्टर लेकर पीछे रेती को खींचने की मशीन बाँध कर ले गया, मेरी ताई जी ने बताया की पास के गाव में दो मजदूर और मिस्त्री खुह को और गहरा कर रहे थे की आस पास की मिट्टी उन पर गिर गयी मतलब खुही भर गयी. सोचिये, ५० फिट नीचे मट्टी में दबा हुआ किसान या मजदूर जिंदा निकल पायेगा. इस तरह की मोत का चलन आम था. आप गूगल करिये, बहुत कुछ मिलेगा. में अपनी व्यथा बता देता हु, ताई जी का भाई और मेरा मामा, उनकी मोत ५० फ़िट की खुही में गिरने से हुई थी. उनको गुमशुदा मान कर कई दिनों तक छान बीन की गयी लेकिन कुछ पता नही चला, फिर किसी ने बताया की उनकी मोत बगल के खेत के कुये में गिरने से हुई हैं. उस समय उनके दो छोटे बेटे और एक बेटी थी. अभी वह स्कूल ही जाते थे. लेकिन २००० के आते सबमर्सिबल पंप चल पड़े जिनके चलते अब कुआँ नही करना पड़ता था. कुरूक्षेत्र में प्रिंस कुछ इसी तरह के बोर की पाइप में गिरा था. अभी दर्द यहाँ खत्म नही हुआ, मेरी ताई जी के पांच भाई थे, एक की मोत का दर्द यहाँ आप से साँझा कर चूका हु और बाकी दो भाई भी अपनी आर्थिक मदहाली के चलते खेती रक्षक दवाई पी कर अपनी जीवन लीला खत्म कर चुके हैं.

आज की खेती मतलब बिजली, जितने भी सुब्मेसिब्ल पंप हैं वह या तो बिजली पर चलते हैं यहाँ बिजली के जनरेटर पर चलते हैं. हमारे गाव में हर ४-५ एकड़ जमीन छोड़कर एक पंप हैं. तो आप सोच सकते हैं की बिजली की आपूर्ति की कितनी मांग भी हैं और इसके चलते कई हादसे और मोत भी हुई होगी. मेरे मासी जी के एक रिश्तेदार का लड़का इसी व्यवसाय से जुड़ा हुआ था. बिजली के कर्मचारी जब किसी नये बिजली का कनेक्शन करने जाते तो वह उन्हें खम्बे भी लगाने पड़ते थे और एक गहरा खड़ा भी खोदना पड़ता था ताकि अर्थिंग की जा सके. और इस तरह के काम के लीये वह चुनिंदा लोगो को अपने साथ ले जाते थे. बस अभी इस लडके नै खड्डा खोदा ही था की की पता नहीं किस तरह बिजली की तार खम्बे से खुलकर नीचे गिर गई और सीधा इसी लड़के पर लगी. और हाई वोल्टेज से कोई किस्मत वाला ही बच सकता हैं. यकीनन मोत तो होनी ही थी. लेकिन गाव के खेतों में बिजली से और भी कई हादसे होते हैं जो कही भी किसी भी अखबार की सुखिया नही बनती. अगर खबर आती भी हैं तो वह पीड़ित परिवार की बिनती होती हैं की इस दिन उस किसान की मोत का भोग हैं और नीचे अपना पता दिया होता हैं.


मेरे रिश्तेदारों में, गाव में, पडोस में, हर कोई खेती के व्यवसाय से जुड़ा हुआ हैं. और इसी तरह ये हादसे भी कुछ शब्दों में नही लिखे जा सकते आगे भी आप को इस तरह के हादसों से अवगत करवाऊंगा. शायद में इन सभी का दर्द आप से सांझा करके दोष मुक्त हो जाऊ लेकिन आप पर दोष होने का अपराध बना रहेगा की आपने आप के प्रांत के किसान का दर्द शब्दों में बाटा नही, अगर दर्द, दर्द की भाषा समझेगा शायद तभी हम किसी तरह व्यवस्था को बदल सकते हैं जहां किसान की स्थिति इतनी दयनीय ना हो. जय हिंद.

किसान दिवस जो मुझे अनुमन कभी याद नही रहता और ना ही मेरे गाव के किसान का दर्द, जिसकी नजरों में भी अब निराशा ने जन्म ले लिया हैं. (भाग 2) #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



इतवार का दिन मतलब परिवार को समर्पित, इसी दिन शायद में जज्बातों को जिंदा रख, जी पाता हु फिर वह चाहे बच्चो के साथ खेलना हो या पत्नी जी के काम में हाथ बटाना, इसी के तहत बगल के रिटेल स्टोर में महीने का समाना लेने चले गये जहां अनाज को एक शानदार पैकिंग करके बेचा जाता हैं. यहाँ अनाज की रुपरेखा बाजार के मार्केटिंग ने ले रखी होती हैं. में यही द्रश्य हर बार देखता था लेकिन इस बार शायद मेरी नजर उसी द्रश्य को किसी और रूप रेखा देखना चाहती थी. इसका एक कारण भी था क्युकी उसी समय गाँव से मेरे एक रिश्तेदार का फ़ोन आया था जो एक किसान हैं और उसका पूरा एक हाथ खेतों में गेहूँ का दाना निकालते हुये मशीन में आ गया था. लेकिन किसान का ये दर्द यहाँ कही भी मार्केटिंग किये हुये अनाज में नहीं दिख रहा था. तो आज अपना फ़र्ज समझ कर यहाँ लिख रहा हु, कुछ ऐसे दुखांत जो मेरे जहन में हैं. आज आप से साँझा करना चाहता हु, शायद इसी से हम किसान की दयनीय दशा को समझकर कोई उपाय कर पाये जिससे हमारे देश के किसान के हलात सुधर सके.

गर्मियों की छुट्टी में अक्सर पंजाब जाना, इसका एक अपना ही आनंद होता था और मेरे सामने के घर से तीसरा घर का तारी चाचाअक्सर आते जाते हमें सत श्री अकालबुलाकर जाते थे. और इनके जाने के बाद अक्सर दादी कहा करती थी देखो इतना गबरु जवान लड़का हैं लेकिन खेती ने इसका जीवन बर्बाद कर दिया.शायद ये दुखांत तब का हैं जब मैने अभी होश भी नही सँभाला था और अपने बचपन में ही था. ८० का दशक, ये ऐसा दोर था जब खेती के व्यवसाय में मशीन और मशीनी के औजार ने अपनी एक जगह बनानी शुरू कर दी थी. इसके तहत ट्रेक्टर, गेहूँ के बीज निकालने का ह्डम्बा आज घर घर में मौजूद था. ह्डम्बा, इसमें एक तरफ गेहूँ की बल्ली (गेहूँ का झाड़) डाला जाता हैं और ये अपनी उपयोगिता के तहत इस झाड़ को काटकर नीचे गेहूँ के दाने निकाल देता हैं और दूसरी तरफ गेहूँ के झाड़ को टोका कर इसे तुड़ी बना देता हैं. ये तुड़ी आगे पशुयो के आहार में दी जाती हैं. बस कुछ ऐसा ही द्रश्य होगा, खेत में ह्डम्बा लगा था और ऊपर बैठ कर तारी चाचा इसमें गेहूँ के झाड़ को अंदर डाल रहा था और बाकी किसान गेहूँ के झाड़ को खेत में से उठाकर तारी चाचा के पास ला रहे थे. आखरी गेहूँ की भरी थी, शायद पता नहीं क्या हुआ चाचा अपने पैर से इसे आगे थोड़ा सा ही खिसकाया था लेकिन ह्डम्बा इतनी जोर से चलता हैं की अपने पास आ रहे झाड़ को अपने भीतर जोर से खींच लेता हैं. इसी के तहत तारी चाचा का पैर घुटने तक इसके अंदर चला गया और बाद में डॉक्टर ने ऑपरेशन के दौरान इसे काट दिया. आज नकली पैर लगाकर चाचा चल फिर तो लेता हैं लेकिन एक ६.५ फिट से भी ज्यादा लम्बा इंसान जो शायद फौज में जाना चाह रहा था, शायद आज बाघा बॉर्डर पर परेड कर रहा होता लेकिन आज अंगहीन हैं. कुछ इसी तरह बस ४-५ साल पहले मेरे एक रिश्तेदार का हाथ इसी ह्डम्बा में आ गया था. जिसे बाद में डॉक्टर ने ऑपरेशन के दौरान काट दिया. यह भी ७ फीट के आस पास लम्बा पूरा जवान इंसान हैं लेकिन आज अंगहीन होने के बावजूद खेती के व्यवसाय में हैं और एक हाथ से ही आज बाइक, कार, ट्रेक्टर सब चला कर अपने जीवन का निर्वाह कर रहे हैं. एक और रिश्तेदार हैं जिनकी हाथ की उंगलियां पशुयो को चारा काटने वाली  मशीन में चारा कुतरते हुये आ गयी थी. इस तरह के दुखांत पंजाब के हर इंसान के जहन से जुड़े हुये हैं. और आज भी बदस्तूर जारी हैं.

लेकिन खेती के औजार से किसी भी तरह की दुर्घटना होने का अंदेशा बना रहता हैं और ये इतना भयंकर रूप धारण कर सकता हैं की किसी की जान भी जा सकती हैं. ट्रेक्टर, ये अलग अलग ताक़तवर काम के लिये अलग अलग इंजन की रूप रेखा में आते हैं अमुमन पिस्टन जो हर तरह की गाडी के इंजन में होता हैं और गाडी को धकलने का काम यही करता हैं. इसी की ताकत से आप की गाडी की, स्कूटर की, रेलवे इंजन की, हवाई जहाज के इंजन की ताकत निर्धारित होती हैं. इसी की रुपरेखा में एक ट्रेक्टर आया जिसे गाव की भाषा में आशानाम दिया गया, इसका एक पिस्टन हैं लेकिन बड़ा होने के कारण ये ट्रक जितना बोझ खींच लेता हैं लेकिन इसकी एक तकलीफ हैं अगर ये बोझ को खींचने में नाकामयाब रहे तो इसके आगे वाले टायर हवा में उछल जाते हैं और उलटकर, पीछे बंधी ट्राली के साथ टकरा सकते हैं. नतीजन ट्रेक्टर पर बैठे किसी भी इंसान के साथ हादसा हो सकता हैं. ९० के शुरूआती दशक में, दादी के एक रिश्तेदार के यहाँ अफ़सोस करने गये थे, तब कुछ ज्यादा पता नही चलता था लेकिन यहाँ एक १८ साल के नोजवान की मोत इसी तरह आशा ट्रेक्टर से हुई थी. रेती को ट्राली में भरा हुआ था और ट्रेक्टर इसे खींचकर चल भी रहा था, पता नही रास्ते में क्या हुआ की ट्रेक्टर के आगे के टायर हवा में उछल कर ट्राली के साथ टकरा गये और नोजवान की वही मोत हो गयी. ये दो भाई थे, और बड़ा होने के कारण इनके पिता जी की इनसे बहुत ज्यादा उम्मीद थी. छोटा भाई अभी ८-१० साल का ही था. उस दिन एक नोजवान के साथ साथ अगर कहा जाये की एक परिवार की मोत हुई हैं तो कही भी गलत ना होगा. आज भी इस तरह की दुर्घटना पंजाब के किसान के जीवन की एक आम सी बात हैं. इस तरह के हादसे आज भी जारी है.



आज खेती के काम में मशीन ने अपनी ही एक जगह बना ली हैं और इससे हादसे भी होते हैं, मेरी मासी अक्सर कहा करती थी की किसान को शारीरिक ताकत के साथ मानसिक रूप से भी बहादुर होना चाहिये क्युकी खेतों में ना जाने कब साँप निकल आये और किसान को किसी भी हालत में अपना खेत छोड़कर भागना मंजूर नही होता. किसान के लिये खेत का दर्जा शायद माँ से भी कही ज्यादा हैं, लेकिन मेरी वही मासी कही चिंता में डूब जाती थी जब मासी का लड़का जो की खेतों में गया हुआ हैं जरा सा भी देरी से घर पोहचता था. मेरे गाव में, पंजाब में आज भी ऐसे दुखांत दिन प्रतिदिन होते हैं लेकिन कही भी ये खबरों में ना लिखे गये हैं और ना ही लिखे जायेगे. लेकिन में आपको यहाँ पर इनसे अवगत करवाता रहूंगा और आप से भी बिनती हैं की आप भी लिखे आप के प्रांत के किसान की दुर्दशा तभी शायद हम मिलकर एक नई सुबह को अंजाम दे सके अन्यथा किसी और से कोई भी उम्मीद करनी बेईमानी सी होगी, हमें पहल करनी होगी. जाते जाते एक द्रश्य को बयाँ करके जाता हु, मेंने देखा हैं किसान को, जो नीचे जमीन पर हाथ जोड़े बैठा था और चारपाई पर एक दूकानदार जिसके यहाँ से किसान ने खेती किट नाशक दवाई ली थी लेकिन उसके पैसे वह नही दे पाया था. सोचिये आज किसान किस दयनीय स्थिति में हैं और किस तरह ये अन्नदाता अपने परिवार का निर्वाह कर रहा होगा. जय हिंद.

किसान दिवस जो मुझे अनुमन कभी याद नही रहता और ना ही मेरे गाव के किसान का दर्द, जिसकी नजरों में भी अब निराशा ने जन्म ले लिया हैं. (भाग 3, आखरी) #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



आज जब भारत की रोनक इसके शहर में ही दिखाई देती हैं, विदेशी सैलानी भी, इसे ही देखकर भारत को एक उभरती हुई विश्व की ताकत बता रहे हैं, तो अमूमन भारत, एक देश की मानसिकता के रूप में जो की इसकी व्यवस्था से होकर गुजरती हैं वह कही इसी शहर के इर्द गिर्द घूमती हुई दिखाई देती हैं फिर वह चाहे राष्ट्रीय मीडिया हो या डिस्को पब में थिरकता हुआ युवा. शायद यहाँ एक किसान को समझना मुश्किल हैं अगर कोई दबी ज़ुबान में किसान की परिभाषा करता होगा भी तो अनपढ़, ग्वार जैसे शब्दों में ही उलझा होगा. लेकिन मेरे पंजाब के गाव में भी जशन होता हैं जब खेत के कुये यानी की मोटर पर बिजली आती हैं. ये अमूमन दिन में ४-६-८ घंटे के लिये ही होती हैं खासकर जब इसकी जरूरत चावल की खेती में हो तब ये ज्यादातर गुमशुदा ही रहती हैं अगर कभी ये ८ घंटे से ज्यादा मिल भी जाये तो किसान एक सवाल जरूर करता हैं आज उपरवाले को क्या हो गया, इतनी मेहरबानी हम पर कैसे हो सकती हैं ?”. ये बिजली २४ घंटे में कभी भी आ सकती हैं सर्दी के दिनों में जब गेहूँ की फसल, जिसे कम, लेकिन कुछ अंतराल में पानी ज़रुर चाहिये तब सर्द की किसी रात में अमूमन पूरा गाव खेतों में पानी लगा रहा होता हैं क्युकी बिजली जो रात को आयी हैं. लेकिन यहाँ किसान के चेहरे पर रोनक होती हैं. ऐसे तो में किसान की तकलीफों पर पूरी एक किताब लिख सकता हु लेकिन आज किसान की तकलीफों का ये मेरा आखरी आर्टिकल हैं और यहाँ में किसान की मानसिकता और निराशा की ही बात करूंगा जो हमारी व्यवस्था की देन हैं और इसके जख़्म, शारीरिक जख्मो से कही गहरी ज्यादा सवेदना में हैं.


आज भी गेहूँ की फसल हाथों से ही काटी जाती हैं, अगर मशीन से कटवानी हैं तो गेहूँ के फसल की तुड़ी नही बन सकती, अगर फिर तुड़ी वाली मशीन से इसे कटवाना भी हैं तभी तुड़ी ५०% तक कम निकलती हैं, किसान इस नुकसान को स्वीकार नही कर सकता इसलिये हाथों से फसल काटने में ही यकीन रखता हैं. इस समय इसके हाथ देखियेगा काले रंग की गहरी लकीरे जख़्म के रूप में खिंची होती हैं कही कही खून भी सीम रहा होता हैं लेकिन ये हाथ पर सरसों का तेल लगाकर, घर में रखा कपड़ा बांधकर दूसरी सुबह फिर खेत में कटाई कर रहा होता हैं. इतनी मुश्किल से पैदा की फसल, जिसे खुले में हर मौसम में उपरवाले, पर भरोसा कर पैदा की, वह कई दिनों तक मंडी में धुल चाट रही होती हैं. मंडी, जहाँ फसल की बोली लगती हैं या यु कहूं की बिकती हैं. मंडी में फसल के साथ साथ किसान परिवार के एक सदस्य की उपस्थिति दिन-रात वही होती हैं. खाना पीना सब घर से जाता हैं, कहूं तो मेला लगा होता हैं.जहाँ सरकारी अफसर इसकी बोली लगाता हैं, किसान यहाँ या तो आढ़तिया या सरकारी अफसर के अधीन होता हैं. ये अन्नदाता हैं. मेरी गुस्ताखी माफ़ करना पर अमूमन एक छोटा और मध्मवर्गी किसान हाथ जोड़े ही खड़ा होता हैं. मेरी मासी का लड़का बिजली के करंट लगने से १० फ़िट उची कोठरी से गिर गया था तो डॉक्टर वहा भगवान था. मोटर का पावर बढाना हैं तो बिजली घर में रिश्वत के रेट फ़िक्स हैं, मैने २००३ में खुद २२०० रुपये दिये हैं और आज भी लोग दे रहे हैं. बैंक से कर्जा मिलता हैं लेकिन प्रक्रिया बहुत जटिल हैं, पटवारी से जमीन के कागज़ निकालने में रिश्वत दी जाती हैं, बैंक के मैनेजर की भी यही मांग हैं. सरकारी व्यवस्था हर जगह मुँह फाड़ के किसान को निगलने में कोई शर्म महसूस नही करती. यहाँ आप उस निराशा को समझ सकते हैं जो अनाज को पैदा कर रही हैं लेकिन व्यवस्था के अधीन हैं. मुझे नही लगता व्यवस्था की तरफ से कोई भी ऐसी पहल हो जिससे किसान को कोई उम्मीद दिख रही हो.


अब इतनी कठोर मेहनत, इसका उदाहरण भी दूँगा जब पानी, खेतों के नाले से होकर गुज़रता हैं तब इसका रुख मोडने के लिये मट्टी की बाड़ करनी पड़ती हैं, यह मट्टी गीली हैं और जब इसे आप कसिये से काटकर एक जगह से उठाकर दूसरी जगह रखते हैं तब आप की शारीरिक ताकत की परीक्षा होती हैं. इतनी कठोर मेहनत जहाँ किसान की शारीरिक शक्ति दम तोड़ रही होती हैं. में ये कल्पना के माध्यम से नही कह रहा, खुद किया भी हैं देखा भी हैं. इसी के तहत, नशा जीवन में आ ही जाता हैं. यहाँ किसान एक दलील देता हैं, की मेरा शरीर एक मशीन हैं और उसे खोराक की जरूरत हैं अन्यथा मुझसे काम नही होगा. शराब, यहाँ हर घर में प्रचलित हैं. कोई यकीन माने या ना माने, शराब हर घर में खुद की ही निकाली जाती हैं या दो तीन पांच लोग मिलकर इसमें अपना अपना हिस्सा डाल लेते हैं. शराब, हर तरह के खेती के काम के बाद हर मजदूर को खेतों में परोशी जाती हैं फिर वह चाहे फसल की लगाई हो या कटाई. कटाई के समय, कुछ और नशे भी इसमें शामिल होते हैं अफीम, भूकी, इत्यादि. ये आम हैं, किसान या खेत का मजदूर इसे सेवन करने में कोई कोताही नही करता, अगर आप कोई नसीयत देना चाहे तो एक बार हाथ में दाँती लेकर गेहूँ की कटाई ज़रुर करे. मेरी यहाँ एक व्यक्तिगत सोच हैं, और मुझे हक दिया जाना चाहिये की में अपनी बात रख सकू, जिस तरह से इस तरह के नशो का प्रचलन आम हैं. वहा शायद ही कोई और नशे के खिलाफ कोई रोका टोकी हो और इसी के चलते आज हेरोइन, मैडिकल दवाई, इत्यादि नशे आम प्रचलित हैं. हर गाव में अगर आबादी १००० के आस पास भी हैं तभी १-२ मैडिकल स्टोर तो होगे ही. और इन मैडिकल स्टोर का पता हमारी व्यवस्था को नही होगा ये कहना मुश्किल हैं. जनाब, ये उड़ता पंजाब नही हैं, ये वह रुका हुआ पंजाब हैं जिसने पीछे अँधेरा देखा हैं और आगे भी कोई उम्मीद नही हैं. लेकिन खुद को बचाने के लिये आज ये उड़ना चाहता हैं. इस व्यवस्था से दूर भागना चाहता हैं. इसी के चलते, आज किसान अपनी आने वाली पींडी को खेती से दूर रखना चाह रहा हैं फिर उसे चाहे जमीन को ही क्यों ना बेचना पड़ जाये लेकिन एजेंट को पैसे देकर अपने बेटे को विदेश भेजना इसका मक़सद बन गया हैं. मेरे ही गाव में, किसानों के कई घर हैं जहाँ विदेश जाने के तहत अब ताला लगा हुआ हैं. ये तादाद बड़ रही हैं, मेरा यकीन मानिये, कोई विदेश जाकर वापस अपने गाव खेती करने नहीं आयेगा.


मेरे गाव में अगर कहूं तो २-३ किसान ही ऐसे होंगे जिनके पास जमीन ज्यादा होने से वह खेती के व्यवसाय को आज मुनाफे के रूप में देख रहे हैं अन्यथा बाकी सारे किसान कोई अन्य रोजगार के उपाय करने में ही बुद्धिमानी समझ रहे हैं. मेरे पंजाब को देखते हुये कह सकता हु के वह दिन दूर नही जब गाव के बहुताय घरों में ताले लगे होंगे और सुखी जमीन हमारी व्यवस्था को मुँह चिड़ा रही होगी. इसी के तहत, व्यवस्था भूखे पेट की दुहाई भी ना दे पायेगी क्युकी उसने ना ही किसान को प्रोत्साहित किया और ना ही कोई सहारा दिया. शायद ये लाचार और शर्म से मुँह झुका कर खड़ी होगी. लेकिन इसमें मैं भी और आप भी गुन्हेगार हैं, जिसने व्यक्तिगत कोशिश नही की किसान की व्यथा बताने की, में कुछ कह चूका हु और अब आपकी बारी हैं. लिखिये और हमें बताइये अपने प्रांत में किसान के हलात क्या हैं ? जब मिलकर आवाज उठायेगे तभी कोशिश कामयाब होगी. अन्यथा, गुन गुनाइये, सांसे चल रही हैं, हम जिंदा हैं. व्यवस्था सुन रही हो, हम जिंदा हैं. जय हिंद.





मेरे लिये भारत देश एक पिता की रूप रेखा में मौजूद हैं माँ की नहीं ? #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



अक्सर जब भी, हमारे देश के तिरंगे को हवा में मस्त और जलाल से झूमता हुआ देखता हु तब अक्सर मुझे इसकी और मेरी आजादी का अनुभव होता हैं, इस अनुभव को और भी नजदीक से जान सका जब एक बार बाघा बॉर्डर पर शाम की परेड देखने गये थे जहां जमीनी तोर पर हमारे देश की सीमा ख़त्म हो रही थी. उस तरफ पाकिस्तान शुरू हो रहा था और इस तरफ भारत था. में यहाँ भारत की ताकत को देख भी रहा था और महसूस भी हो रही थी. तब से मैने हमारे देश को पिता जी कहकर सम्मानित करना शुरू कर दिया और अक्सर इन्हें पिता जी कहकर ही प्रणाम करता हु. लेकिन आज जब बच्चो को स्कूल छोड़ कर वापस आ रहा था तो राष्ट्रगान के चलते सभी खड़े थे और मेरे पैर भी रुक गये, यहाँ मेरी मानसिकता अपने जीवन में उलझी हुई थी कही भी मेरे साथ मौजूद नही थी लेकिन आज सभी खड़े हैं तो में भी रुक गया. राष्ट्रगान खत्म होने के बाद बच्चो द्वारा ही स्कूल में भारत माता की जय का नारा लग रहा था और इसके बाद हर क्लास रूम से इसे दोहराया भी जा रहा था. अब बचपन से ही नारे के संवाद के जरिये हमारे बच्चो की मानसिकता इस तरह कर दी जायेगी की देश एक माँ हैं. लेकिन इस मानसिकता का अवलोकन करना मेरे लिये आज जरूरी हो रहा हैं.

माँ ये शब्द हमारे समाज में एक अनोखी पहचान रखता हैं. इस रिश्ते को बिना किसी शक के रिश्तो की लकीर में सर्वोच्च मान लिया गया हैं. हर बच्चे के लिये माँ का शब्द भावनाओं से लिपटा हुआ हैं. इस शब्द के तहत हर बच्चा अपने जन्म से लेकर जीवन के हर मोड़ पर जुड़ा हुआ हैं. एक बच्चे की मानसिकता की नजरिये से माँ का मतलब जिसने उसे जन्म दिया, अपना दूध पिलाया, हस समय बच्चे के साथ रही, उसे नहलाया, स्कूल भेजा, पडाया, खिलाया, रात को लोरी देकर सुलाया भी, इत्यादि.  अगर थोड़े शब्दों में कहा जाये तो माँ का अधिकार अपने बच्चे पर सबसे ज्यादा माना जाता हैं क्युकी यहाँ माँ एक जननी भी हैं, टीचर भी हैं, दोस्त भी हैं, आपका मार्ग दर्शक भी बनती हैं. माँ जो कह रही हैं अमूमन उसे बच्चे के लिये एक तरह से बिना किसी संदेह के स्वीकार होता हैं. तो इस रिश्ते के तहत कही भी माँ की प्रमाणिकता पर किसी भी प्रकार का सवाल किया जाना या शक होने की कोई गुंजाइश नही होती. अगर कोई सवाल करता भी हैं तो इसकी इज्जत हमारा सभ्य समाज नही देता. अब इसी नजरिये से जब हमारी मानसिकता में हमारा देश को एक माँ की हैसियत दी जा रही हैं तो कही भी इस पर सवाल करने की आजादी आप से बिना शर्त लैली जाती हैं. यहाँ, तस्वीरों में तो भारत माँ की तस्वीर को हमारे देश के नक्शे के साथ जोड़ कर दिखाया जाता हैं लेकिन असलियत में यहाँ मालिकाना हक हमारे देश को चलाने वाली व्यवस्था रखती हैं. थोड़े शब्दों में, आप हमारे देश की व्यवस्था से सवाल नही कर सकते हैं अगर करेंगे तो इसे एक गुन्हा की तरह देखा जाना लाजमी हैं.

लेकिन इस नजरिया का एक और पहलू भी हैं यहाँ माँ का मतलब एक औरत हैं और औरत हमारे सभ्य समाज में कितनी सुरक्षित हैं ये कही भी लिखने की जरूरत नहीं हैं. सरकारी रिपोर्ट हर साल यही कह रही हैं आये साल औरत पर होने वाले अपराधो की संख्या बडती जा रही हैं. यहाँ अपना एक व्यक्तिगत उदाहरण भी देना चाहता हु ताकी अपने तथ्य से इमानदारी कर सकू की मेरे लिये देश एक पिता क्यों हैं ? १९८६-८७ में इंद्रा गांधी की हत्या के बाद अक्सर हम पंजाब से बाहर सहमे रहते थे इसी के तहत पिता जी हमें यानी के मेरी माँ को और हम दोनों भाइयो को हमारे पंजाब के गाव में छोड़ गये थे. गाव के ही सरकारी स्कूल में दाखिला भी करवा दिया था. मेरे दादा-दादी उम्र लायक थे और घर पे रखी हुई भैसों का चारा खेतों से मेरी माँ ही लाया करती थी. अक्सर में भी मेरी माँ के साथ होता था और हमारे साथ हमारा सीरी चीना भी होता था. खेतों में जाते वक्त और आते वक्त माँ दाँती (जिस से खेतों में चारा काटा जाता हैं. ) उसे हाथ में इस तरह पकडती थी की हर किसी आने जाने वाले को इस बात के अंदेशा रहे की मेरी माँ के हाथ में दाँती हैं. तब में यही समझता था की मेरी माँ इसे चारा काटने के औज़ार के तरीके लेकर जाती थी लेकिन आज समझ पा रहा हु यहाँ ये एक सुरक्षा का हथियार था. लेकिन किससे सब तो अपने थे.

इसी दौरान बगल के घर से अक्सर जोर जोर से चमकीले के गीत बजाये जाते थे. चमकीला, एक पंजाबी गीतकार था और उसके उन बोलो को यहाँ लिख रहा हु जिसे अक्सर पडोस में बजाया जाता था. साली, तेरी बहन कंडम हो गयीऔर इसी गीत मे आगे महिला गीतकार कहती हैं मार ना होर try वे हांडै जीजा” . १९८६ में जब भारत देश एक  सभ्य समाज की रूप रेखा में पहचाना जाता था, तब ये गीत हमारे पंजाबी समाज को मुँह चिड़ा रहा था. हमारे घर में मेरी माँ, हम दो बच्चे, बड़े दादा-दादी जी. और सुबह से शाम ये बजता हुआ गीत जो हमें ना चाहते हुये भी सुनना पड़ता था. हद तब हो गयी जब एक दिन पापा छुट्टी पर आये और वह भी पडोस में जाकर इसी गीत पर बहक रहे थे. कुछ समय बाद हम पंजाब से वापस अहमदाबाद आ गये. लेकिन यहाँ इतवार को जब पापा की छुट्टी होती थी तभी यही गीत हमारे घर में बजाया जाता था.


इसी गीत को एक परुष सुन भी रहा हैं और नाच भी रहा हैं और इसी के जरिये वह औरत को मानसिक रूप से परेशान कर रहा हैं. अब जब औरत फिर वह चाहे किसी भी रिश्ते के रूप में हो माँ, बहन, बेटी, पत्नी, दादी, इत्यादि लेकिन ना तो वह हमारे देश में, गाव में, शहर में और तो और घर में सुरक्षित ना थी और ना ही हैं  ये जमीनी हकीकत कल भी थी और आज भी हैं. लेकिन वही परुष को पूरी आजादी हैं. तो फिर देश एक ताक़तवर पुरुष की रूप रेखा में एक पिता ही होना चाहिये. ना की एक असुरक्षित औरत की रूप रेखा में माँ होना चाहिये. इसी संदर्भ में जब हम हमारे देश की व्यवस्था की बात करे तभी इस पर पुरुष प्रधान समाज का ही अधिकार हैं. फिर वह चाहे महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में लटका कर क्यों ना रखना हो. जब हमारा समाज और व्यवस्था एक पुरुष प्रधान हैं तब देश को पिता ही कह कर प्रणाम करना चाहिये ना की माँ की रूप रेखा में इसके चरण छुये जाने चाहिये. जय हिंद.

निर्भया के हत्याकांड के बाद कुछ बदला है ? व्यक्तिगत, विशेष व्यक्ति, गाव, शहर, समाज, सरकार, देश, इत्यादि इनकी मानसिकता कितनी बदली है या बदली भी है या नही ?. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



कितना आसान है बलात्कार को उचारित करना, कही भी इस शब्द के माध्यम से पीडिता के दर्द का एहसास नहीं होता. हिंदी भाषा मे बलात्कार का शाब्दिक अर्थ होता है  अत्याचार, अन्याय अर्थात अगर आप बलात्कार शब्द का संधि विच्छेद करे तो पाऐंगे कि बलपूर्वक या हठ से जो अन्याय या अत्याचार किया जाए.  अर्थात ये एक अपराध से ज्यादा कही भीतर पीडिता की आत्मा को छलनी कर देता है, ये वह एहसास है जिस के तहत सडक पर लड़की को छेड़ा जाता है, ऑफिस मे हाथ लगाकर बात की जाती है, भीड़ मे धक्का मारकर सॉरी कहा जाता है, इत्यादि. लेकिन देल्ही की सडक पर तारीख १६-१२-२०१२ को हुये इस दुखद हत्याकांड,  जिसे “निर्भया” अर्थात नीर-भय, भय रहित का नाम दिया गया इसके बारे मे जब मैं पड़ता हु, सुनता हु, सोचता हु या लिखता हु, तो मेरी रूह कांप जाती है एक अजीब सी कप-कपी सी झंझोड़ देती है. इस एहसास को कीस तरह परिभाषित करू, आसान से शब्दों मे “भय” कह सकता हु. शायद कुछ ऐसा ही अनुभव होगा की उस समय लोग सडको पर निकल आये थे, न्याय की मांग कर रहे थे. लग रहा था की भारत बदल जायेगा. लेकिन आज कुछ बर्षो के बाद व्यक्तिगत, विशेष व्यक्ति, गाव, शहर, समाज, सरकार, देश, इत्यादि इनकी मानसिकता कितनी बदली है या बदली भी है या नही ?. इस पर सोचना जरूरी है.

संगीत और फिल्म, आज हमारे जीवन का एक अभिनय अंग है. इसे गुनगनाते हुये या फिल्म के रूप मे देखते हुये, एक छुपे हुये सवांद के तहत ये हमारे जेहन मे एक मानसिकता को जन्म दे देता है, अगर इसे मनोरजन तक रखा जाये तो कुछ भी गलत नही है लेकिन अगर इसे जीवन की रूप रेखा दी जाये तो अपराध होना लाजमी है. निर्भया हत्याकांड के होने के कुछ दिन बाद ही एक फिल्म दबंग २ रिलीज़ होती है. इसके एक गीत की रूप रेखा मे एक लडकी, गाने के साथ साथ नाच भी रही होती है या यु कहै की झूम रही होती है. इस गीत के कुछ बोल यहाँ लिख रहा हु “उफ़ अंगडाइया लेती हु मे जब जोर जोर से, उह आह की आवाज़ है आती हर और से यहाँ उह आह का क्या मतलब निकाला जाये ? क्या इस तरह के आवाजो से इस गीत की नायिका अपनी सहमती दिखा रही है ? उसी तरह जब यही बोल एक लड़की के माध्यम से दिखाये जा रहे है तो इस मानसिकता का अनुसरण होना तो लाजमी है की बलात्कार कही भी एक अपराध नही है. बस लडकी पहले ना कहती है फिर मान जाती होगी. आज इस गीत को हम हमारे सभ्य समाज के हर पारिवारिक फंक्शन पर बड़ी शान से बजाते है, गाते भी है, नाचते भी है, कही भी कोई रोक टोक नहीं है. इसी तरह इस फिल्म का व्यवसाय कुछ २००-३०० करोड़ के आस पास था. तो सिनेमा हाल मे लाजमी सीटिया बजाई गयी होगी. बस अब ये सीटिया सिनेमा हाल से होकर रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, गली का नुक्क्ड, इत्यादि जगह पर जहा ३-४ लडके खडे है वहा से किसी लडकी के जाने पर या तो सिटी मारी जाती होगी या इस गीत को गुनगनाया जाता होगा. अफ़सोस की बात है की उन्ही रोज जब भारत का गुस्सा इसकी राजधानी की सडको पर निकल रहा था, वही इस फिल्म का व्यवसाय आसमान को छु रहा था. और आज भी इस तरह के आइटम गीतों की भरमार है हमारी फिल्मो मे फिर वह चाहे हिंदी भाषा मे हो या प्रादेशिक भाषा हर जगह मोजूद है. अर्थात यहाँ भी कुछ बदला नही है.

राजनैतिक गलियारों नै भी इस हत्याकांड पर बहस हुई, और इसके फलस्वरूप २०१३ मे बलात्कार के कानून को और अधिक सख्ती से लागु करने की बात कही गयी, इसके साथ साथ अपराधी को सजा ऐ मोत ऐलान करने का प्रावधान रखा गया. और भी कुछ अपराधो को इसके अंतर्गत लिया गया जिस तरह एसिड अटैक्स, योन उत्पीडन, इत्यादि. लेकिन जिस तरह होता आ रहा है हमारी ढीली ढाली व्यवस्था इसे कुछ अक्षरों मे लिखकर सविधान की रूप रेखा तो दे देती है लेकिन कही भी इस पर सख्ती से लागु कराने मे पूरी तरह नाकामयाब रहती है. शायद जो राजनैतिक नेता इसे लागु कर सकते है वह अति विशेष सुरक्षा कर्मचारियों के तहत सुरक्षा घेरे मे रहते है तो उन्हे किस तरह असुक्षित होने का आभास हो सकता है. शायद यही वजह है की आज सिर्फ देश की राजधानी देल्ही मे प्रतिदिन ओसतबलात्कार के ६ अपराध पंजीक्रत होते है. लेकिन शायद ये अपराध इससे कही ज्यादा होगे क्युकी सामाजिक मर्यादा के तहत आज भी पीडिता पुलिस तक पोहच नही कर पाती है. निर्भया ह्त्यांकांड के बाद और भी बलात्कार के अपराध पंजीकृत हुये और इनपर  कुछ राजनेताओ के ऐसे शर्मनाक बयाँ आये जो यहाँ लिखना अनुचित ही होगा. अर्थात यहाँ भी कुछ बदला नही है.

बलात्कार पर आज मीडिया इतना दिखा रहा है की ये बलात्कार आज अपने दर्द से ज्यादा एक बेचने वाली खबर के रूप मे देखा जा रहा है. इसी के तहत आज भारतीय नागरिक बलात्कार को अति सवेदनशील नही ले रहा, इसके विपरीत इस पर अपनी राय बना रहा है, जोक कर रहा है, व्हाट्स एप्प मेसेज कर रहा है “आई ऍम नोट क्राइंग लाइक ऐ रैप वुमन”. ये इस तरह से ज्ञान बाट रहा है की “बलात्कार एक अपराध नहीं है, अगर औरत कपडे छोटे पहने गी, लडको के साथ खिलखिलाकर बात करेगी, अकेली घर से बाहर आयेगी, इत्यादि तो बलात्कार होना तो लाजमी ही है ना.” आज भी हमारा सभ्य समाज का नागरिक चाहे वह गाव क हो या शहर का या किसी भी समुदाय से हो वह औरत को ही हिदायत देता है की किस तरह बलात्कार से बचाव हो सकता है. अर्थात यहाँ भी कुछ बदलाब नही हुआ है और अगर जमीनी हकीकत बयाँ करू तो उम्मीद नही है की कुछ बदलेगा अगर उम्मीद करना भी चाहू तो ये भी बेईमानी सा लग रहा है.

मे शुरआत से निर्भया बलात्कार को एक हत्याकांड के रूप मे ही बयाँ कर रहा हु क्युकी ये जुल्म सिर्फ शरीर तक सिमित नही था  जज्बात भी मारे गये थे कुचले गये थे, रूह भी घायल हुई थी. क्या अगर आज निर्भया जिंदा होती तो एक सामान्य जीवन का निर्भा कर सकती थी ? शायद नही. इस तरह का अपराध जीवन की रुची खत्म कर देता है. इसे रोकने के लीये हमारे नागरिक की मानसिकता को बदलने की जरूरत है शायद ये तभी बदली जा सकती है जब एक आम इंसान को बलात्कार के अपराध का ऐहसास होगा. मैने भी कुछ ऐसा ही किया अपनी कल्पना के माध्यम से अपनी सोच के भीतर खुद के हाथ पैर बांध कर खुद को अति कमजोर और दयनीय बना लिया. उस पर एक जंगली कुत्ता वही छोड़ दिया जो मुझे अपने पंजो से डरा रहा था, मुझे ,भोक कर डरा रहा था, अपने दांतों से मुझे नोचने बड ही रहा था की मे इस दर्द को और सह नही पाया. और हकीकत मे वापिस आ गया. हमे जब तक इस जंगली कुत्ते का ऐहसास नही होता जो बलात्कार के दर्द को बयाँ कर रहा है तब तक हमारी मानसिकता बदलना मुश्किल है. और ये तथ्य भी है के आज भी बलात्कार के अपराध दिन प्रति दिन बड रहे है और किसी की भी मानसिकता मे कोई बदलाब नही आया है. अगर सुरक्षा को समाज मे जीवित करना चाहते है तो हमे पहले हमारी मानसिकता बदल ने की जरूरत है. जय हिंद.



शराब बुराई है या अच्छाई है. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



शराब, ये गैर को अपना बना देती हैं, होश मैं मदहोश कर देती हैं.
ये विद्रोह की चिनगारी भी लगाती हैं और दुश्मन को दोस्त भी बना देती हैं.
क्रयी किसे, कहानियों, फ़लसफा हैं इसके, एक पल के लिये ही, गुलाम को बादशाह बना देती हैं,
हरबंश डरता हैं इसकी मदहोशी मैं डूबने से, क्योंकि ये नाम भी हैं और बदनाम भी बना देती हैं.

शराब, इस का नाम भी हैं और बदनाम भी हैं. मैं इसे पीता भी नहीं, लेकिन इससे नफरत भी नहीं करता की इमानदारी से इसके बारे मैं बात ना कर सकू. बचपन मैं, पिता जी काफी शौकीन थे शराब के. पिता जी के हलक के नीचे बस दो ही घुट जाती थी और ३ फिट की दीवार फाँद जाते थे, मुझे पता था की उनके कौन कौन से टिकाने होंगे और चल पड़ता था अपनी ताकत साइकिल को लेकर. लेकिन अब मैं इतना जरूर सोचता हु की लोग इससे क्यों पीते हैं ? क्या वजह हैं ?

एक बार मैं अचंभित रेह गया जब मेरे दो दोस्त जो अलग अलग धर्मो से तालुक रखते थे. लेकिन दोनों कट्टर धार्मिक विरोधियों को एक साथ बैठ के शराब को पीता हुआ देखा. और बड़ी जोर जोर से दोनों टह्कै लगा रहे थे. शायद उनकी अन्दर की ईर्षा और क्रोध को इस शराब ने शांत कर दिया था. क्या वजह थी ? मैं एक ही निष्कर्ष निकाल पाया की हमने जो मोखोटे अपने सार्वजनिक जीवन मैं पहन के रखते हैं जैसे की शराफ़त, धार्मिक , और भी बहुत से हैं, शराब की मदहोशी कही ना कही इससे हमें आजादी दिलाती हैं और आप को आप से मिलाती हैं चाहे फिर वोह समाज की नजरों मैं अच्छा हो या बुरा. एक बार और अचंभित रेह गया की जब मेरा एक बोस जो की एक सरवन जाती से था उस को, उसके ड्राइवर (जो की छोटी जाती का था) के साथ शराब पीता हुआ देखा. भाई, इस शराब ने तो सारी जात पात और धर्म के भेद भाव ही मिटा दिये. एक बार सफ़र मैं, मेरे एक दोस्त को एक अनजान हमसफ़र के साथ शराब को पीते हुये देखा. अब शराब की एक बात और भी अजीब हैं की इसे अकेला कोई पी नहीं सकता, भाई कोई ना कोई तो होना चाहिये इसके साथ टेहके लगाने के लिये. मतलब, मदहोशी के आलम मैं अकेलापन नहीं बर्दाश्त होता. इसे पीकर लोगो को नाचते हुये देखा, हंसते हुये देखा शायद नकार सकता हु की किसी को रोते हुये देखा हो. तो क्या शराब हँसना, गुनगुनाना , नाचना सिखाती हैं मानो जीना सिखाती हैं.

इसका एक और भी पहलू हैं जिस पे ध्यान देने की जरूरत हैं, की ऐसे कई कारजी पेशे हैं हमारे देश मैं जिसे जुड़ा हुआ लगभग हर मानुस शराब पिता हैं जैसे की पुलिस, वकील, सरकारी बाबू, राजनेता, ऐसे बहुत से और भी पेशे हैं की कोई शायद ही इससे जुड़ा हुआ शराब का शौकीन ना हो. अब क्या वजह हैं ? मेरे कई दोस्त हैं इन पेशो से हैं जीन से बात करने के बाद एक निष्कर्ष तो निकाल सकता हु की इंसान के अन्दर मानवता की रोशनी तो हमेशा रहती हैं बस इसकी लो कभी सूक्ष्म, मध्यम या अति उत्तेजित होती हैं, और इन तमाम पेशो मैं अधिकांश कही ना कही यहाँ पे इंसान दूसरे मानुस का परोक्ष या अपरोक्ष रूप से हनन करता हैं जैसे की रिश्वत, भ्रष्टाचार, अहंकार और जो दर्द बन जाते आम मानुष के. अब ये पेशो से जुड़े हुआ लगभग हर इंसान कही ना कही उस मानुष की पीड़ा या दर्द समझता हैं और मेहसूस करता हैं. कही ना कही खुद को दोषी भी मानता हैं, और इसी दोष को भुलाने के लिये शराब पिता हैं. कुछ थोड़े से ऐसे लोग भी इन पेशो से जुड़े हुये होगे जो की अहंकार मैं भी शराब पीते होगे. शायद ऐसे भी लोग होगे जो उचाईयो को छुना चाह्ते हो इसलीये शराब पीते होगे. कुछ कीसी और की खुशी की इर्षा मैं भी शराब पीते होगे. कई जगह शराब को रिश्वत की तरह देना और हर पारवारिक उत्सव मैं शराब को परोसना, ये भी कारन है शराब पीने के. मेरी शादी मैं, मैने मना किया था की शराब मत परशो लेकीन वहा मेरी माँ नै ही मुझे टोका था की समाज मैं क्या मुह दिखायेगे. मैं अचम्भीत था माँ का ये जवाब सुन कर, की आप अगर शराब ना भी पीते हो तो भी एक कारन बन जाते हो इसके सेवन को पर्चलीत करने का.

एक ओर भी दुनिया है हमारे यहाँ, जो खुद को हमसे अलग करती है और खुद को ज्यादा बुद्धिमान समझती है “अमीरों” की दुनिया, रोशनी से चमकती दुनिया, ना ही तो यहाँ कोई गम है और ना ही मधहोसी, फिर भी यहाँ लोग शराब पीते है क्योंकी इस दुनिया मैं शराब को एक शोंक माना जाता है. हां कुछ अकेलापन यहाँ भी होगा, कुछ शिकायते यहाँ भी होगी लेकिन ये एक सभ्य  समाज है और जहाँ जोर जोर से बोलने की, गुनगुनाने की, आज़ादी कही ना कही तहजीब के नीचे दम तोड़ देती है लेकिन यहाँ आप तैह्जीब से शराब पी सकते है. इसके बिलकुल उलट, अगर किसी मेरे गरीब भाई के पास कुछ १०-२० रुपये होगे तो वह खाना खाने की वजह शराब पीना ज्यादा वाहजीब समझेगा, आखिर क्यों शराब ना की खाना ? खास कर जब भूखा हो इंसान कई दिनों से ? इंसान के मन की एक चरणसीमा है जब तक वह अपने आप को दुखी, तनहा, अकेला और समाज के द्वारा त्याग दिया हुआ मेहसूस कर सकता है. जब ये चरणसीमा हद पार कर जाती है तो इसका दर्द उस भूख से कही गेहरा है. बस इसी मन के दर्द को शांत करने के लिये और चाहे कुछ ही पल के लिये क्यों ना हो वह मेरा भाई गरीब भी शराब पीता है, और फिर बादशाह होता है अपनी इस दुनिया का. शोक, अहंकार और अकेलापन (समाज से त्यागा हुआ इंसान) जब ये कारन बनते है शराब पीने के तब तब शराब जुर्म को जनम देती है फिर चाहे वह जुर्म कतल का हो या बलात्कार का.

अंत मैं एक किस्सा जरूर सुनाउगा (बस आप इसकी तेह तक छान बीन मत करने जाना), ऐक बार एक इंसान को ५०० रुपये की जरूरत थी और वह हर धार्मिक स्थान पे गया लेकीन निराश ही लोटा, जब शराब के ठेके से रोते हुये जा रहा था तभी ऐक आवाज इस ठेके से आयी और उसे अपने पास बुलाया, पुछा क्या गम है क्यों रो रहा है, जरूरतमंद ने सब अपना हाल बताया, और उस  ठेके वाले भाई ने जो की शराब पी रहा था तुरंत ५०० का नोट निकाल कर दे दिया. और कहा आसु पोछ लो. जरूरतमंद दोस्त शराब के  ठेके से बाहर आया और आसमान की तरफ देख कर कहा उपरवाले मुझे नहीं पता था की तू शराब के  ठेके पे भी मिलता है. मेरे इस आकलन से आप कतई ना समझे के शराब को बढावा दे रहा हु या नहीं. शराब पीना ना पीना ये आप का फैसला है, या यु कहू की आप का अधिकार है तो गलत ना होगा. बस अब चाहे शराब पीये या ना पीये, बस एक गुजारिश है की आप अपनी और शराब की गरीमा बनाये रखे. जय हिंद.