मैं बस एक खबर था और शीर्षक था कार्ड चार चार (कविता) #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans


बड़े रुआब से बटुआ खोल कर दिखाते थे, की हमारे पास हैं
एटीएम के कार्ड चार चार,
आज जब बैंक से एक भी पैसा ना निकला तो ताने कस रहे थे हम पर क्या करने हैं
कार्ड चार चार,
घर गया बीवी बोली पैसे ले आये, मेरे सर हिलाने पर फिर बोली, क्या करने हैं तुम्हारे
कार्ड चार चार,
मैं फिर गया, मशीन को प्रणाम किया, अगरबत्ती भी जलाई, अंदर से आवाज़ आयी बेकार हैं तुम्हारे
कार्ड चार चार,
इतने में एक मैसेज आया, कैश लेस बनिये, मानो कह रहा हो अब किसी काम के नही आप के
कार्ड चार चार,
इतने में सामने एक बोर्ड पर लिखा था, डिजिटल इंडिया, उभरता इंडिया, कह रहा था अब तो फैक दे ये तेरे
कार्ड चार चार,
आँखों से आंसू बहने ही वाला था, एक और कोहराम होने ही वाला था, की सामने कैमरा वाली खड़ी थी, और मेरे हाथ में थे कार्ड चार चार,
बस फिर क्या था, में टीवी पर था, कैमरा मुझ पर था, और कहा था दिखाओ कहा हैं तुम्हारे
कार्ड चार चार,
कैमरे वाली कह रही थी ब्रेकिंग न्यूज हैं, सनसनी खबर हैं, पैसा नहीं हैं, फिर भी क्यों हैं इसके पास हैं
कार्ड चार चार,
मैं खुद को हीरो समझ रहा था, गलतफहमी का असर हो रहा था, मैं बस एक खबर था और शीर्षक था
कार्ड चार चार,
रात को प्राइम टाइम पर था, ऐंकर सवाल कर रहा था जवाब भी खुद दे रहा था, में बस सर हिलाकर कह रहा था
कार्ड चार चार,
अगली सुबह खबर अमेरिका के अखबार में लग गयी, मानो देल्ही हिल गयी, गली में गली खबर घूम रही थी, डुडो उसे जिसके पास हैं कार्ड चार चार,
बड़े अफसर ने गले से पकड़ लिया, बड़ी आवाज में मुझ से पूछ ही लिया, कैसे हो सकता हैं कि पैसे ना हो और फिर भी हो कार्ड कार्ड चार चार,
तूने षड्यंत्र किया हैं, देश का नाम बदनाम किया हैं, 7% जीडीपी विकास हैं, और तू कहता हैं पैसा नहीं बस हैं खाली कार्ड चार चार,
चल तुझे जाने दूँगा, बस बतादे की तेरे पीछे किसकी ताकत हैं, वादा रहा नाम बता दे, ना तुझे कुछ कहूंगा ना रखूँगा ये तेरे कार्ड चार चार,
अब मैं एक भारतीय बन, लाचार हो इस व्यवस्था के सामने रो ही दिया, हाथ जोड़ कर कहने लगा, रखो तुम ये
कार्ड चार चार,
रोज सुबह उड़ता हु, जिन्दा होता हूं, मेहनत करता हु, फिर भी डरा डरा सा रहता हूं, में कमजोर हु, ये ताकत नही बस ये हैं कार्ड चार चार,
में कोई सुपरमैन नहीं, की हवा में हाथ घुमाकर पैसे ले आऊंगा, अब तो बैंक भी गरीब हो गयी हैं, तुम रख लो ये
कार्ड चार चार,
बतादो मेरी गलती क्या हैं, मेरा बैंक, मेरे पैसे, मेरा कार्ड, फिर भी लाचार क्यों हु, अब जला दो ये
कार्ड चार चार,
सामान्य नागरिक को गुस्से में देख, अफसर भाग गया, मैं फिर से घर आया, बीवी बोली जला दो, आग लगा दो, अब नही चाहिये ये कार्ड चार चार,
अब मैं बेबस था, फ्रेम के अंदर रख दिया कार्डो को, श्रद्धांजलि भी दी, और मुस्कराकर कहा, तुम थे हरबंश के सचै दोस्त, तुम थे कार्ड चार चार.
बस इतनी सी कहानी हैं, नोटबंदी में हम हुये पानी पानी हैं, अब अंत में याद आते हैं, हरबंश के वो
कार्ड चार चार.
जय हिंद.

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