नोटबंदी के चलते छोटू नै अपने गोल्फ के शोकिन मालिक को जेल भेज दिया. कैसे पड़ीये मेरी इस काल्पनिक कहानी मे. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans





भारतीय समाज मे जहा उम्मीद इतनी होती है कि जमीन मे से भी सोना निकाल लिया जाये, लेकिन ये हकीकत से कोसो दूर रहती है. इसको समझने के लिये उस इंसान को समझने की जरूरत है जो रोज सुबह उठता है और जिंदगी से दो दो हाथ कर अपने लक्ष की तरफ दौड़ता है यहाँ लक्ष रोटी , कपड़ा और मकान से ज्यादा कुछ नही होता. लेकिन इस मानसिकता नै भी जीवन की हर तकलीफ को अपने अनुरूप ढालना सिख लिया है और इसी तरह ये माहिर हो गया है कि किस तरह हर किसम की परिस्थति को अपने अनुसार परिवर्तित कर लिया जाये. इसी के संदर्भ मे अपनी कल्पना के अनुसार एक कहानी कहने जा रहा हु, उम्मीद है आप को पसंद आयेगी.

इस कहानी के दो पात्र है, मालिक और छोटू, मैंने इससे ज्यादा इनका नाम नही लिखा क्युकि इससे ये किसी धर्म, जात-पात, समाज, समुदाय, इत्यादि की छवि को जन्म नही देते. आपको आज़ादी है कि आप  इन दोनों पात्रों को अपने अनुरूप नाम दे सकते है और यकीन मानिये ये दोनों पात्र आप के जीवन के आस पास कही भृमण करते दिख जायेगे.

छोटू, एक आनाथ है लेकिन जिंदगी से ना उम्मीद नहीं. वही मालिक जमीन से उठकर यहाँ तक पोहचा है लेकिन आज अहंकार इसमे कूट कूट कर भर दिया गया है. मालिक के यहाँ 300 लोग काम करते है. कुछ ६-७ साल पहले हालात इस तरह बन गये की छोटू मालिक के यहाँ काम करना शुरू कर दिया. तब छोटू की उम्र रही होगी ७-८ साल की, और आज छोटू मालिक के बूट पोलिश से लेकर उनकी गाडी भी चलाता है.

मालिक तो छोटू के लिये सिर्फ मालिक है लेकिन मालकिन को छोटू माँ से ज्यादा सम्मान देता है और हो भी क्यों ना, मालकिन को अपने बच्चो की तरह छोटू से लगाव भी था और छोटू के खाने पीने मे मालकिन कोई भेदभाव नही करती थी, जो खाना मालकिन अपने बच्चो को देती थी इसी के समान थाली छोटू को दी जाती थी. इसके विपरीत मालिक को पीने का और बाजार के कुछ मौज शोक थे जिसे सभ्य समाज पसंद नही करता. मालकिन को ये पता था लेकिन ये सिसकियों से ज्यादा कुछ और बयान नही करती थी. मालिक नशे मे छोटू को गालियां भी देता था और कभी कभी पैरो से मारता भी था.

कही ना कही छोटू के मन मे विद्रोह जन्म ले रहा था कि मालिक के अहंकार को चोट मारी जाय ना की मालिक को. कई प्रकार के कयास किये लेकिन नाकामयाबी ही हाथ लग रही थी. लेकिन इसके चलते छोटू के मन मे विद्रोह और ज्यादा प्रबल हो रहा था. मालिक के पास काला पैसा बहुत था लेकिन ये राज किसी को ना पता था कि ये धन कहा रखा है. इसी बीच देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी नै नोटबंदी को घोषणा कर दी, अब छोटू इस प्रयास मे था कि नोटबंदी के चलते किस तरह मालिक के अहंकार को चोट मारी जाय?

छोटू नै, किसी तरह से एक इनकम टेकस ऑफिसर से सम्पर्क बनाया और तय ये हुआ की छोटू को सबूत के तौर पर एक पुराना नोट मालिक से निकलवाना है और बाकि का काम अफसर कर लेगा. छोटू को एक बात का पता था कि मालिक डरपोक है सही भी है क्युकि अहंकार अक्सर कमजोर मे ही प्रबलित होता है. और एक बात की मालिक को गोल्फ खेलने का बहुत शौक था. तो छोटू नै प्लान बनाया की सुबह सुबह जब मालिक दफ्तर आयेगा तब गोल्फ के नाम से कुछ करामात की जाये. और फिर जो हुआ वह नीचे बयान किया है.

छोटू: मालिक अब गोल्फ खेलने कब जा रहे है ?

मालिक: २-३ दिन बाद (फिर रुआब से) काहै, तुम पूछ रहे हो अपने काम पर ध्यान दो इधर-उधर कम झाँका करो, नही तो परिणाम अच्छा नही होगा, कह देते है.

छोटू: नही मालिक, बस इस बार जाये तो साथ मे एक बांस का डंडा ले जाना ?

मालिक: काहै ?

छोटू: अरे नोटबंदी के चलते वह सब सेठ पगलवा गया है ना, तो सार्वजनिक तो कहते है कि सब ठीक है हम नोटबंदी का समर्थन करते है. लेकिन गोल्फ जहा कोई देख नहीं सकता, वहां पगला जाते है. अब, इनका काला धन तो सफेद नही हो सकता, तो यहाँ गधे की तरह लड़ते है, लात भी मारते है. अगर यकीन नहीं आता तो अपने साथी से पूछ लो.

छोटू, अब बड़ा हो गया था और अपने विद्रोह को सच करने के लीये रात मे ही सही किसी के पीछे जाकर एक गोल्फ की स्टिक तो मार ही सकता है. अब इतना सुनने पर, मालिक नै अपने साथी को फ़ोन लगाया.

मालिक (फ़ोन पर) : हेल्लो, कैसे हो.
साथी (फ़ोन पर) : ठीक नहीं हु, कल किसी नै गोल्फ की स्टिक मार दी. मे बाद मे बात करता हु अभी डॉक्टर नै मना किया है ज्यादा बात करने के लीये.

ना ही इस सवांद मे, मालिक नै पुछा की स्टिक किस ने और कब मारी है और ना ही साथी ने बताया. वैसे भी हम अक्सर सवांद आधा ही करते है. अगर पूरी बात जानना हो तो सवाल करना पड़ता है जो अनुमन हमारे देश मे कबूल नहीं होता. अब मालिक, को आज गोल्फ के मैदान पर चमैली से मिलना था. चमेली ये वही चरित्र है जिसे हमारा समाज कुछ ही नजरो मे औरत को परिभाषित करता है. मे इस पर कुछ नही कहूँगा आप इसका अंदाजा लगा सकते है की चमेली कौन थी ? मालिक दबे पाँव अपनी ऑफिस के एक कोने मे गया जहा किसी को आने की इज्जात नहीं थी लेकिन इस बार छोटू भी चुपके से पीछे हो लिया. मालिक नै अलमारी मे से एक पुराना १००० का नोट निकाला और फिर इसे लॉक लगा दिया. काला धन अक्सर कैमरे से छुपा कर रखा जाता है. तो छोटू यहाँ पर आया था इसका पता ता उम्र किसी को नही लगेगा. और मालिक बाहर आया और ये भ्रम करने की कोशिश कर रहा था की सब कुछ समान्य है. बाहर आकर:

मालिक: अरे तूने पहले नही बताया, ले 1000 का नोट लेकर जा और बांस का डंडा लेकर आ.

छोटू: अरे मालिक ये तो बंद हो गया.

मालिक: अब यही है, हम जायेगे ही नहीं. तू कुछ भी कर ये नॉट चला और बांस का डंडा लाकर दे, आज शाम तो गोल्फ खेलनी ही है, चाहे कुछ भी हो जाये.

फिर क्या मालिक का पुराना नोट छोटू अफसर के पास ले गया और २ घंटे बाद मालिक के यहाँ इनकम टैक्स की रेड पड़ गयी. और बाहर बैठा छोटू आइस क्रीम खा रहा था. छोटू को जो सरकार की तरफ से १०% का इनाम मिला वह उसने मालकिन को दे दिया जिससे मालिक के बच्चों की परवरिश मे कोई कमी ना आये. यकीनन मालिक के अहंकार को चोट मारकर अब छोटू को ख़ुशी भी है और संतोष भी. लेकिन अभी भी छोटू अक्सर मालिक से मिलने जेल भी जाता है.


सारांश: मालिक के हमेशा 2 चहरे होते है. दीवार के पीछे वाला चेहरा देखै, मोदी जी के अति सरहानीय नोट बंदी के फैसले को इनकम टैक्स मे रिपोर्ट करके सफल बनाये. आज देश को आपकी जरूरत है, अपना फर्ज निभाये. #हवाबदलीसीहै #नोटबंदी #राजनीती #देशभक्ति #हरबंश

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