गुरमेहर कौर के बचाव में आरएसएस क्यों आया ?



कई दिनों पहले रामजस कॉलेज में हुयी हुल्लड़ बाजी और इसी के विरोध का चेहरा बनी गुरमेहर कौर, जो की अब इस कैम्पेन से अलग होने का ऐलान भी कर चुकी हैं लेकिन वह आज भी खबर की सुर्खियों में बनी हुयी हैं. मसलन, अब आरएसएस के पंजाब  प्रांत संघचालक बृजभूषण सिंह बेदी, ने एक बयान में कहा हैं की गुरमेहर कौर को सोशल मीडिया पर धमकी देने वालों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही होनी चाहिये, फिर वह चाहे किसी भी संगठन से क्यों ना जुडे हो.”, अब ये बयान आज कई अखबारों में और टीवी न्यूज मीडिया पर दिखाया गया हैं, बेदी जी का ये बयान कितना कारगर साबित हो सकता हैं ये तो आने वाला समय ही बतायेगा, लेकिन यहाँ इस बयान के सिलसिले में प्रवक्ता, जगह, संस्था और बयान के शब्दों का विश्लेषण करना जरूरी हैं.

रामजस, कॉलेज दिल्ली में हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी के अधीन आता हैं, यहाँ गुरमेहर कॉलेज जो की इसी दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं, इन्होने दिल्ली में रहते हुये, रामजस कॉलेज में हुई हुल्लड़ बाजी के खिलाफ सोशल मीडिया पर विधार्थियों को एक जुट करने के लिये अभियान चलाया था लेकिन उसके पश्चात जिस तरह से इन्हें सोशल मीडिया पर निशाना बनाया गया और इसी के चलते अपनी सुरक्षा के मध्य नजर ये अपने शहर जालंधर, पंजाब  वापस चली गयी. अब, ये जो आरएसएस का बयान आया हैं, इसे भी शहर जालंधर में स्थित आरएसएस कार्यालय से, जारी किया गया हैं. क्या यही बयान, आरएसएस की दिल्ली की मुख्य शाखा झंडेवाला से जारी नहीं किया जा सकता था ? खासकर जब, रामजस में हुई हुल्लड़ बाजी दिल्ली शहर में हुयी हो. अगर, यही बयान, संघ अपने मुख्य कार्यालय नागपुर से जारी करता तो कही भी किसी को इस बयान की इमानदारी पर शंका नहीं होती और संघ भी इमानदारी के साथ अपनी उपस्थिति गुरमेहर कौर के साथ करवा सकता था.

लेकिन, यहाँ जालंधर से इस बयान को जारी करना, इसके कई मायने हो जाते हैं मसलन आज गुरमेहर कौर भी इसी शहर में हैं और ये जग जाहिर हैं की रामजस कॉलेज में जिस विद्यार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, पर पत्थर बाजी का आरोप  हैं, वह आरएसएस के ही अधीन हैं. तो क्या, आरएसएस ने गुरमेहर कौर के बचाव में जालंधर से बयान जारी कर, अपनी यहाँ भी  उपस्थिति का इजहार किया हैं. मेरा यहाँ व्यक्तिगत मानना हैं की यहाँ से बयान दर्ज कर गुरमेहर कौर के साथ खड़ा होना तो कम दिखाई दे रहा हैं लेकिन इसी के तहत कौर और उनके परिवार पर दबाव बढ़ाने की मानसिकता का परिचय भी हो सकता हैं.

यहाँ, समझने की जरूरत हैं की इस बयान से पहले कई सिख संगठन गुरमेहर कौर के पक्ष में अपनी मौजूदगी दर्ज करवा चुके थे और उसके बाद आरएसएस का ये बयान आया हैं जहाँ इस बयान के प्रवक्ता श्री बृजभूषण सिंह बेदी जी पर ध्यान दे तो ये उमरदराज सिख की छवि में नजर आ रहे हैं. मसलन, यहाँ आरएसएस अपनी सिख समाज के भीतर मौजूदगी का एहसास करवाने की छवि को भी उभार रहा हैं. लेकिन, आरएसएस अपनी हिंदू धर्म की पैरवी करने की छवि को किस तरह से धुंधला कर सकता हैं ?. मसलन, श्री बेदी जी अपने कई हस्ताक्षर में ये सार्वजनिक रूप से कह चुके हैं की सिख, हिंदू सभ्यता का ही एक हिस्सा हैं. वही, ये दशहरा पर आरएसएस द्वारा शस्त्र की पूजा करने की पैरवी भी करते हैं. और  पंजाब के कई विवादित डैरो के साथ अपनी निकटता को भी मानते हैं खासकर जिन डैरो पर सिख धर्म के विपरीत प्रचार करने के आरोप लगते रहते हैं. अब, यहाँ बेदी जी एक सिख की छवि में तो नजर आते हैं लेकिन मानसिकता आरएसएस की ही हैं, जिस के तहत व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना हैं की इनके बयान पर इमानदारी की मोहर नही लगाई जा सकती.

आरएसएस, इस संस्था की विचार धारा से एक आम भारतीय नागरिक परिचित हैं ये कई जन कल्याण के कार्य का दावा करते हैं वही इनके द्वारा पूरे देश में शिक्षा के अंतर्गत विद्यालय भी चलाये जा रहे हैं, लेकिन अक्सर संघ पर हिंदू धर्म की पैरवी करने का आरोप भी लगता रहा हैं वही ये भी कहा जाता हैं की संघ के संचालन का अधिकार अक्सर हिंदू धर्म के उच्च जाती के लोगो के पास ही रहता हैं. जहाँ, संघ अपनी शाखा में शस्त्र विधा का परीक्षण भी देता हैं वही ये राष्ट्र के प्रति खुद के समर्पित होने की पैरवी भी करता हैं, लेकिन संघ पर ये आरोप लगते रहे हैं की ये धार्मिक अल्पसख्यंक समुदाय मुसलमान, सिख, ईसाई, इत्यादि और हिंदू धर्म के छोटी जाती के नागरिको का अधिकार हनन करता  हैं वही संघ पर समाज में साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने का भी आरोप लगता रहा हैं, इसी के चलते संघ गुरमेहर कौर के बचाव में अगर खड़ा भी होता हैं तब भी इस पर यकीन करना मुश्किल हैं.

अब, अगर अंत में इस बयान के शब्दों पर ध्यान दे तो ये अति समान्य शब्द हैं लेकिन, ध्यान से देखे तो बड़ी ही चतुरता से यहाँ शब्दों को चुना गया हैं और कड़े शब्दों का इस्तेमाल करने की एक तरह से कोताही बरती गयी हैं  यहाँ बयान देने के बाद कही भी संघ द्वारा किसी भी रणनीति का ऐलान नहीं किया गया जिसके तहत अगर इनके बयान की पूर्ति सरकार द्वारा नहीं की गयी तो ये किस तरह सरकार का विरोध करेंगे. वैसे, आज तक का इतिहास रहा हैं की परोक्ष रूप से संघ ने किसी भी सरकार का विरोध नहीं किया लेकिन ये अपरोक्ष रूप से किस तरह सरकार का विरोध करते हैं, ये कही भी लिखने या बताने की जरूरत नहीं हैं. मसलन ये बयान सिर्फ और सिर्फ अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने का ही एक मापदंड हैं इस से ज्यादा कुछ नहीं.

हमें ये कही कहने की या लिखने की जरूरत नहीं, की सरकार का दायित्व क्या हैं ? इसी के तहत, एक आम भारतीय नागरिक की सुरक्षा की जवाब देही के प्रति सरकार ही जवाब देह हैं, अगर यहाँ सरकार ने इमानदारी से कोशिश की होती तो हो सकता था की गुरमेहर कौर को दिल्ली छोड़कर अपने शहर जालंधर, पंजाब ना जाना पड़ता. लेकिन, गुरमेहर कौर के बचाव में इतने लोगो के आने के बाद भी हो सकता हैं की उन लोगो की पहचान ना हो सके जिन्होंने गुरमेहर कौर को सोशल मीडिया पर धमकिया दी थी और समय गुज़रते ये खबर भी पुरानी हो जाये, हम भी अपने-अपने जीवन में मसरुफ हो जाये लेकिन ये पूरा घटना कर्म पर की गयी राजनीति और बयान बाजी, ने भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय तो ज़रुर लिख दिया हैं की हम महिला की सुरक्षा के लिये वचन बंध तो हैं लेकिन समय आने पर और परिस्थिति के अनुसार इस वचन को तोड़ा भी जा सकता हैं. धन्यवाद.

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