बापू सूरत सिंह, ७५० दिनों से ज्यादा तक भूख हडताल पर हैं लेकिन सरकार अभी भी इनकी मांग की तरफ ध्यान नही दे रही.



हमारे देश के राष्टपिता महात्मा गांधी अहिंसा का पैगाम देते हैं, अक्सर इनकी आजादी के संघर्ष में आमरण अशन, एक अहसिंक हथियार की तरह इस्तेमाल किया गया जहाँ गांधी जी भोजन का त्याग कर, अंग्रेज सरकार के खिलाफ विद्रोह का आगाज करते थे, आजादी का इतिहास गवाह हैं कई बार गांधी जी अंतकाल तक आमरण अशन भी किया हैं मसलन जहाँ इस तरह के अशन की कोई समय सीमा नहीं होती और इस तरह का अशन तभी खत्म किया जायेगा जब अंग्रेज सरकार गांधी जी की मांगे मान लेगी.

आजादी के बाद देश में कई विद्रोह हुये जहाँ भारत की लोकतांत्रिक सरकार और भारतीय नागरिक आमने सामने थे लेकिन यहाँ अहिंसा का पैमाना नहीं था, लेकिन, अहिंसा की ताकत एक बार फिर आजाद भारत की आजाद पींडी ने देखी जब लोकपाल आंदोलन में गांधीवादी नेता अन्ना जी ने जंतर-मंतर पर आमरण अशन किया. यहाँ, भी जन सैलाब उमड़ आया था, मीडिया की कलम और कैमरा इस आंदोलन की पल-पल की जानकारी एक आम भारतीय नागरिक तक पहुँचा रहा था. यहाँ, इस आंदोलन से एक आम भारतीय नागरिक में ये उम्मीद जन्म ले रही थी की आमरण अशन से या अहिंसा के माध्यम से आप सोई हुई व्यवस्था को जगा सकते हैं. लेकिन, इसके पश्चात पंजाब के एक गांव में एक आमरण अशन हुआ, जहाँ मैन स्ट्रीम मीडिया भी ना मौजूद रही और इसी सिलसिले में सरकार ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया.

उम्र अंदाज बापू सूरत सिंह, तारीख १६-जनवरी-२०१५ से आमरण अशन पर हैं, उन्होने भोजन का पूरी तरह से त्याग कर रखा हैं, आज भी, क़रीबन २ साल या यु कहैं की ७५०+ दिन के बाद भी इनका ये आमरण अशन जारी हैं. इनकी मांग, हैं की भारतीय और पंजाब सरकार उन लोगो को फौरन जेल से रिहा करे जो भारतीय अदालत द्वारा दी गयी सजा पूरी कर चुके हैं. ये कथा कथित, जेल कैदी, किसी ना किसी रूप में पंजाब के काले दोर के दौरान से संबधित गुनाह में जेल में बंद हैं. लेकिन, क्या ये मांग जायज़ नहीं, की आज जब पंजाब के हालत समान्य हो चुके हैं और सबसे जरूरी कथन की ये सारे कैदी अपनी-अपनी सजा पूरी कर चुके हैं, तो क्यों नहीं इन्हें सरकार द्वारा रिहा कर देना चाहिये. लेकिन, इसके विपरीत सरकार बापू सूरज सिंह का अशन छुड़वाने की नाकामयाब कोशिश करती रही हैं.

इस संघर्ष को नाकामयाब करने के लिये २०१५ और २०१६ में पंजाब सरकार द्वारा कई बार बापू सूरत सिंह को हिरासत में लेकर जबरन अस्पताल में भर्ती करवाया गया , इसी बीच बापू सूरत सिंह की मांग से समर्थन में कई आम नागरिक भी सरकार के खिलाफ अह्सिंक तरीके से अपना-अपना विरोध जता रहे थे कही ये सरकार की घेराबंधी किसी मोरचे के माध्यम से कर रहे थे तो कही शांतिमयी मार्च के तहत, लेकिन हर बार सरकार अपना बल प्रयोग करने में पीछे नहीं हटी. और यहाँ हर नागरिक को फिर वह चाहे महिला हो या उमरदराज नागरिक इन्हें पहले हिरासत में लिया जाता और बाद में छोड़ दिया जाता था. इसी बीच बापू सुरत सिंह के जमाई की अमेरिका में कुछ अज्ञात लोगो ने इन्हें गोली मार कर हत्या कर दी, पहली नजर में ये हत्याकांड लूट पाट का मामला ही लगता हैं लेकिन जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी की इनके आरोपी अमेरिकन पुलिस द्वारा पकड़े गये हैं या नहीं.



आज बापू सूरत सिंह अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को अनदेखा करके और सरकार द्वारा कई बार जबरन गिरफ्तार करने के बावजूद, अपने निर्णय पर कायम हैं, आज इनकी भूख हडताल तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुकी हैं लेकिन, कही भी इनकी सुध नहीं ली जा रही. इतने दीन तक, ८०+ साल से ज्यादा का बुजुर्ग व्यक्ति अपने धैर्य, संयम, संतोष का परिचय दे रहा, आज, हालात ये हैं, की शरीर पूरी तरह से कमजोर हो चूका हैं और बोलने में भी तकलीफ महसूस होती हैं, लेकिन इस सब के बावजूद बापू सूरत सिंह ने पंजाब राज्य सरकार के चुनाव में अपना मत अधिकार का उपयोग करके, समाज को ये संदेश दिया हैं भारत लोकतांत्रिक देश होने के नाते, यहाँ संविधान में उनका पूरा विश्वास हैं. ये, बहुत कम लोग जानते हैं की साल २०११, में अन्ना हजारे के लोकपाल कानून के समर्थन में भी बापू सूरत सिंह ने लुधियाना में भूख हडताल पर बैठ कर, अन्ना हजारे के साथ-साथ भारत के गणतंत्र का भी सम्मान किया था. उस समय कई मीडिया हाउस बापू सूरत सिंह को मैन स्ट्रीम मीडिया में दिखा रहे थे लेकिन आज जब वह उन कैदियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं जो अपनी कानून द्वारा दी गयी सजा पूरी कर चुके हैं लेकिन अभी भी जेलों में बंद हैं, क्या इस मुद्दे पर अह्सिक तरीके से अपनी मांग रखना एक आम भारतीय नागरिक का अधिकार नहीं लेकिन जिस तरह से सरकार इनकी अनदेखी कर रही हैं, वह तो यही संदेश दे रहा हैं, की आज भारतीय समाज में अहिंसक आंदोलन की कोई पैरवी नहीं.

बापू सूरत सिंह से पहले भी गुरबख्श सिंह भी २ बार इसी मुद्दे पर भूख हडताल कर चुके हैं लेकिन दोनों बार इनके  आंदोलन का अंत बेनतीजा ही रहा हैं. आज, उमरदराज बापू सूरत सिंह, अपने फैसले पर कायम हैं और अडिग इस पर चल रहे हैं, आज इन्हें सम्मान से लोग बापू जी कह कर पुकार रहे हैं, पंजाबी में बापू का मतलब पिता भी होता हैं, वही इसी नाम से आजादी की लड़ाई में गांधी जी को लोग बापू कहकर बुलाया करते थे, यहाँ भी बापू का महत्व पिता की तरह ही था. शायद, हम भारतीय होने के नाते भारत देश की उस नींव से अलग हो चुके हैं जिसकी बुनियाद गांधी जी ने अहिंसा के दम पर रखी थी. क्या आज अगर गांधी जी होते, तो इस भारतीय व्यवस्था को देखकर खुश हो सकते थे जहाँ न्याय के लिये २ साल से ज्यादा तक भूख हडताल करने की जरूरत होती हो और अभी भी न्याय की उम्मीद ओझल ही हो, शायद, नहीं.


आज, हमारी भारतीय व्यवस्था के सर्वोच्च पद अधिकारियों को गांधी जी की समाधि पर जाकर अहिंसा की शोध लेने की जरूरत हैं, शायद तभी ये बापू सूरत सिंह द्वारा की जा रही भूख हडताल के महत्व को समझ सकगे. आज, भी जन मानुष कई मायनों में भारतीय व्यवस्था के विरोध में खड़ा हैं, लेकिन अगर सरकार जनता द्वारा किये जा रहे अहिंसक आंदोलन पर ध्यान देकर इनकी समस्याओं को सुलझाने की इमानदारी से कोशिश करेगी तभी सही मायनों ये गांधी जी के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी. यहाँ, एक सवाल करके अपना ये लेख खत्म करूंगा की अगर आज व्यवस्था द्वारा अहिंसा की आवाज को अनसुना कर दिया गया  और इसी के कारण कोई भी नागरिक हिंसक आंदोलन को अपनाता हैं तो इसकी जवाब देही किसी की होगी ? धन्यवाद.

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