मई २०१४, के आखिर में श्री नरेंद्र
भाई मोदी जी भारत देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ले रहे थे, ये शपथ समारोह अपने आप में विशेष था जहाँ ये राष्ट्रपति भवन के खुले मैंदान
में आयोजित की गया था वही इस समारोह में भारत देश की जानी मानी हस्तियों के साथ
साथ, भारत देश के सभी पडोसी देश के शीर्ष नेता गण जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री नवाज शरीफ भी शामिल हुये, इसे मोदी जी की नयी विदेश नीति के आगाज की रुप रेखा में देखा जा रहा था. इसके
पश्चात मोदी जी ने भारत देश के प्रधानमंत्री रूप में विश्व यात्रा के मध्यनजर
अमेरिका, इंग्लैण्ड, कनाडा, आस्ट्रेलिया, इत्यादि देश का दौरा किया, जहाँ-जहाँ भी मोदी जी जा रहे थे वहां-वहां मोदी
जी के नाम से नारे लगना एक चलन की तरह हो गया था और इसका सीधा प्रसारण भारत देश का टीवी मीडिया कर रहा था, यहाँ व्यक्तिगत रूप से, मुझे भी उम्मीद लग रही थी की भारत की विदेशों
में बन रही ये नयी छवि के मध्यनजर मोदी जी का विकास, सही मायनों में भारत को भी खुशहाल कर देगा.
यहाँ, मेड इन इंडिया, का नारे के तहत विदेशी निवेश को भारत में लाने के लिये हर तरह से प्रलोभन किया
जा रहा था, स्वच्छ भारत अभियान के तहत कई नामी गिरामी हस्तियों द्वारा
इसका प्रचार मीडिया द्वारा किया गया, स्मार्ट सिटी की भी नींव रखी गयी वही गंगा नदी
को साफ़ सुथरा रखने के लिये राष्ट्रीय मिशन के तहत कार्यगुजारी करने की शुरुआत हुई, मोदी जी के शुरूआती ६ महीने के कार्यकाल मैं ऐसी कई लोक लुभावनी योजनाओं को
उत्साह के साथ शुरू किया गया. वही, सुरक्षा और व्यवस्था के माध्यम से मोदी जी
दिल्ली की सत्ता पर अपने पैर जमाने में लगे हुये थे.
लेकिन, २०१४ के लोकसभा चुनाव में
मोदी जी भारतीय नागरिक से प्रचार के माध्यम से इस तरह जुड़ गये थे की एक भारतीय
नागरिक ये मानने लगा था की नजदीकी समय में भारत की छवि बदलने वाली हैं और यहाँ
मोदी जी के अच्छे दिन, हमारी खुशहाली लाने का वादा कर रहे हैं, इस प्रचार से भारतीय आम नागरिक इतना प्रोत्साहित था की उसे यकीन था की अब
सुरक्षा, शिक्षा, रोजगार, इत्यादि रूप से समाज की
नई नींव रखी जायेगी और अब नागरिक एक नंबर ना रहकर, उसकी पहचान एक नागरिक के
रूप में हर सरकारी मंत्रालय में होगी, यहाँ देश से मतलब व्यवस्था और समाज में बदलाव
के संकेत समझे जा रहे थे. यहाँ, नागरिक इतना उत्साहित था की उसे मोदी जी से
जल्दी से जल्दी परिणाम की अपेक्षा होनी लाजिमी थी. और मोदी प्रशासन के ६ महीने बीत
जाने के बाद भी,
सारी योजना कागज पर ही लिखी जा रही थी लेकिन जमीन
पर कही भी भारत या देश बदल नहीं रहा था. यहाँ, कही भी रोजगार के नये अवसर, शिक्षा के नये संस्थान, महिला सुरक्षा, इत्यादि विकास के कार्य देखने को नहीं मिले. ना ही कोई विदेशी पूंजी निवेश में बढ़ोतरी होने के अनुमान थे.
यहाँ, गुजरात और भारत देश में
जमीन आसमान का फर्क था जहाँ गुजरात राज्य में रोजगार की भरपाई थी वही मोदी जी यहाँ
सुरक्षा और व्यवस्था के रूप में कामयाब भी थे, वही भारत के कई ऐसे
प्रांत थे जहाँ पानी का सुखा, खेती को मार कर रहा था, गरीबी का स्तर इतना गंभीर हैं की कुपोषण का आंकड़ा एक भयंकर समस्या बनकर समाज
के सामने खड़ा हैं,
सुरक्षा के मसले जहाँ गुजरात में रात को भी एक
अकेली औरत सडक पर घूम फिर सकती हैं वही भारत देश में इसके विपरीत हालात हैं जहाँ
दिन में भी औरतों के साथ ज़ुल्म होना एक आम सी खबर हैं, बेरोजगार, ये समस्या इतनी गंभीर हैं जहाँ हर साल लाखों की संख्या में
विद्यार्थी यूनिवर्सिटी से पास होकर रोजगार की तलाश में आ रहे हैं वही इन्हें यहाँ
अक्सर ठोकर मार कर काम देने से मनाही की जाती हैं, अगर रोजगार मिलता भी हैं
तो यहाँ विद्यार्थी की शिक्षा के तुलना में मिला रोजगार काफी छोटे स्तर का होता
हैं.
अब, मोदी सरकार से आम नागरिक
सवाल कर रहा था,
की अच्छे दिन कहा हैं ? यहाँ ये नागरिक, मोदी जी के चुनाव प्रचार से खुद को ठगा हुआ
महसूस कर रहा था वही इसकी निराशा अपनी चरण सीमा पर आ गयी थी, उसे इस बात का एहसास हो रहा था की हमने २०१४ में सिर्फ और सिर्फ वजीर ही बदला
हैं, ना की किसी तरह से व्यवस्था में किसी तरह का बदलाव आया है.
यहाँ, आम नागरिक के सवाल को किस तरह दबाया जाये, ये एक अहम मुद्दा था, मोदी सरकार ने २०१५ के मध्य में म्यांमार की
सीमा के भीतर जाकर फौजी ऑपरेशन को अंजाम दिया और इसी के तहत सरकार ने दावा किया की
कई आतंकवादी इस ऑपरेशन के तहत मारे गये. इस पूरे ऑपरेशन को टीवी मीडिया और सरकार
द्वारा राष्ट्र प्रेम की रूप रेखा में इस तरह प्रसारित किया गया की भारतीय समाज का
बहुताय हिस्सा यहाँ राष्ट्रप्रेम के तहत मोदी सरकार की वाह वाही कर रहा था. यहाँ, राष्ट्रप्रेम एक ऐसे प्रयोग की तरह किया गया की इसकी सहमति में खड़ा हुआ नागरिक
समाज के उस वर्ग से अपनी असहमति प्रकट कर रहा था, जो मोदी सरकार से अच्छे
दिनों की मांग कर रहे थे. यहाँ, भाजपा का मुख्य वोट बैंक हिंदू समाज, अपने नाम से राष्ट्रभक्त होने का मान हासिल कर रहा था वही समाज के अल्पसख्यंक समुदाय से ओझल तरीके से
राष्ट्रीयता साबित करने की मांग की जा रही थी.
राष्ट प्रेम, इसे आगे भी भुनाने की
कोशिश लगातार जारी रही फिर वह चाहे २०१६ फरवरी में जे.ऐन.यु. के भीतर राष्ट्र
विरोधी नारे लगाने का भ्रम या दावा किया गया वही उरी आतंकवादी हमले के विरोध में
पाकिस्तान के खिलाफ की गयी सर्जिकल स्ट्राइक हो या नोटबंदी की घोषणा, ये सोशल मीडिया पर ट्रोल की रूप रेखा में भी दिख रहा था आमिर खान का बयान, सैफ अली खान के बेटे का नामकरण, क्रिकेटर शमी की पत्नी के पहनावे पर या गुरमेहर
कौर द्वारा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के खिलाफ एकजुट होने की गयी अपील के
विरोध में, मोदी सरकार के इस दोर में राष्टप्रेम रोटी, शिक्षा, सुरक्षा, इत्यादि समाज के मूलभूत प्रश्नों से भी बड़ा
मुद्दा बन गया हैं. सीमा पर खड़ा जवान और उस से सारे राष्ट्र को भक्ति के आह्वान से
जोड़ना और इसके पीछे २०१४ चुनाव प्रचार में
मोदी जी द्वारा दिये गये विकास के नारे को ओझल कर देना, अगर इसे राजनीति कहा जाये तो हो सकता हैं की मेरे राष्ट्रप्रेम पर ही सवाल खड़ा
कर दिया जाये.
लेकिन, सीमा पर राष्ट्रप्रेम की
सोच समझ आती हैं और इसी सिलसिले में सिपाही की हमेशा से भारतीय समाज में उच्ची
प्रतिष्ठा बनी रही हैं, इसमें इतनी मर्यादा हैं की कभी भी इस पर
राजनीति नहीं हुई,
लेकिन भारतीय सीमा के अंदर जो आम मानुष की
तये कलीफ हैं या समस्या हैं, उसे भुला कर सारे देश का ध्यान राष्ट्रप्रेम की
और मोड़ देना ये कही ना कही मोदी सरकार के
कार्यकाल के दौरान ही देखने को मिल रहा हैं. मतलब आज जब युद्ध मिसाइल या विज्ञान
के माध्यम से लड़ने की बात की जाती हैं वही मोदी सरकार इन सब को झुठलातै हुये, खुद सीमा की रक्षा करने में यकीन रखती हैं वही सीमा के भीतर जो देश हैं, उसे बचाने की कवायद ही मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि हैं. अब जब देश को
दुश्मनों से बचाया जायेगा तभी तो भारत देश के अच्छे और विकसित दिन आयेंगे.
मोदी जी के लगभग इन तीन साल के कार्यकाल में
राष्ट्रप्रेम को इतना बल दिया गया की मोदी जी ने व्यवस्था पर हर तरीके से अपनी पकड़
बना ली हैं फिर वह चाहे सिनेमा ही क्यों ना हो. लेकिन, सीमा को सुरक्षित करते हुये मोदी जी भारत देश के भीतर ध्यान नहीं दे रहे की
यहाँ दिल्ली से नजीब को गायब हुये महीने हो गये, बच्चियों के साथ बलात्कार
की खबर अब आम हो गयी हैं, उच्च विधालयो में विद्यार्थी की आत्म दाह के
आकड़े ज्यादा हो रहे हैं, बेरोजगारी , कुपोषण, इत्यादि समस्या जो २०१४ के पहले थी जस की तस हैं. अंत, में मोदी सरकार से एक बिनती करके अपना लेख पूरा करूंगा की देश की रक्षा सीमा
पर भी होनी चाहिये और देश के भीतर भी, मोदी जी का राष्ट्रप्रेम इतना बड़ा ना हो जाये
की देश की सीमा तो सुरक्षित रहे लेकिन इसके भीतर जो समाज देश की रूप रेखा में रहता
हैं उसके जज्बात कही इस तरह से दफन हो जाये की उसका लोकतंत्र और अपनी आजादी पर
सवालिया चिन्ह लग जाये और ये जज्बात इतने आहत ना हो जाये की इनका पूर्ण जीवित होने
की गुंजाइश भी खत्म हो जाये. धन्यवाद.
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