साल, २००७ आते-आते नरेंद्र भाई मोदी जी का मतलब गुजरात हो गया था.




साल २००२, में गुजरात रज्य चुनाव में भाजपा अपनी जीत दर्ज करवा चुकी थी और यहाँ बिना किसी चुनौती के नरेंद्र भाई मोदी जी, गुजरात के मुख्यमंत्री बनने जा रहे थे, इन चुनावों में गुजरात राज्य चुनाव में भाजपा से बड़ा मोदी जी का व्यक्तिगत चेहरा हो गया था, ये गुजरात की राजीनीत में पहली बार था की किसी भी पार्टी से संबधित व्यक्ति, उस पार्टी से बड़ा बन गया हो, यही से क़यास शुरू हो गये थे जहाँ मोदी जी मतलब गुजरात और गुजरात मतलब मोदी जी, लेकिन, २००२ के दंगे में तो जज्बात मत में बदल दिये गये, यहाँ इतने सवाल भी नहीं उठे क्युकी गुजरात राज्य और केंद्र में भाजपा की ही सरकार थी, लेकिन २००७ के अगले चुनाव में, जीत कैसे दर्ज करवानी हैं इसके क़यास शायद मोदी जी ने अब से ही लगाने शुरू कर दिये थे.

अगर यहाँ, थोड़ा सा विषय से हट कर बात की जाये, तो साल १९८४ में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद भी, कांग्रेस की तरफ लोगो का जुझार नहीं बन रहा था अगर अगले लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंद्रा गांधी जी कांग्रेस का चेहरा होती तो शायद कांग्रेस के लिये परिणाम इतने अच्छे ना होते क्युकी इंद्रा गांधी के राज्य समय काल में एक मतदाता उनसे सहमत भी था और विरोध में भी था और यहाँ ऑपरेशन ब्लू स्टार, मतदाता के इस विचार को नहीं बदल पा रहा था लेकिन श्रीमती इंद्रा गांधी की हत्या के पश्चात हुये सिख विरोधी दंगे से एक आम जन मानुष के जज्बात कब मत में बदल गये इसका एहसास शायद  लोगो को भी नहीं हुआ होगा और इसी के तहत श्री राजीव गांधी ने आजाद भारत की सबसे बड़ी जीत को यहाँ दर्ज करवाई थी लेकिन अगले ५ साल के बाद १९८९ के चुनाव में इनकी इतनी ही बड़ी हार हुयी और ये संसद के विपक्ष के नेता के रूप में विराजमान हो गये थे.

इसी तरह, मोदी जी को भी एहसास था की साल २००२ के एक आम गुजराती नागरिक के जज्बात २००७ तक आते, बदल भी सकते हैं और इसी के अधीन अपनी कार्यसेली को लोगो के सामने रखना होगा जहाँ राज्य सरकार के कार्य के साथ-साथ समय-समय पर राज्य के नागरिक के जज्बात से भी जुड़ा जाये. लेकिन, सबसे पहले, मोदी जी को गुजरात राज्य की भाजपा की इकाई से उन चेहरों को दूर करना था जो आज भी नरेंद्र भाई मोदी को चुनौती दे सकते हैं, लेकिन ऐसे कम ही लोग थे. राजनीति में स्थिति के अनुसार निर्णय लिये जाते हैं और बहुताय गुजरात भाजपा के नेता गण को इसकी भनक लग गयी थी की मोदी जी को गुजरात की सत्ता से सिर्फ और सिर्फ मोदी जी ही दूर कर सकते हैं और कोई नहीं, इसी समझदारी के तहत बहुत से ऐसे नेता जो पहले केशुभाई पटेल के लिये पार्टी में दम भरते थे अब मोदी जी के साथ जुड़ गये थे.

इसी समय दौरान, मोदी जी के विश्वास मयी श्री अमित शाह का गुजरात की राजनीति में उदय हो रहा था वही मोदी के विरोधी श्री हरेन पंडया का, राजनीतिक जीवन फर्श पर था, हरेन पंडया उन नेता में शुमार थे जिन्होंने भाजपा की नींव गुजरात में रखी थी और इन्होने ही १९९५, में एलिस ब्रिज विधानसभा से अपनी पहली जीत दर्ज करवा कर भाजपा को जश्न मनाने का मौका दिया था. और इनके राजनीति कद का अंदाजा इस से लगाया जा सकता हैं की ये २००१ में पंडया जी केशु भाई पटेल के मंत्रिमंडल में गृह मंत्री थे लेकिन इन्हें २००२ के विधानसभा चुनाव में भाजपा का टिकट नही दिया गया. कहा ये भी जाता हैं की वाजपयी, आडवाणी, संघ ने भी मोदी जी पर जोर डाला लेकिन इन्होने पंडया जी को टिकट ना देकर, अस्पताल में दाखिल हो गये थे. यहाँ, शारीरिक बीमार मोदी जी पर कैसे दबाव डाला जा सकता था और इन्होने पंडया का टिकट काट कर भाविन शाह को दे दिया गया.  इसी बीच, अफवाह का दोर था, की हरेन पंडया, भाजपा की केंद्र इकाई से दिल्ली में जुड़ सकते हैं लेकिन उससे पहले ही तारीख २६-मार्च-२००३ की सुबह को इनकी हत्या कर दी गयी बाद में हत्या का आरोप असग़र अली पर लगा और इन्हें कोर्ट ने ता उम्र केद की सजा सुना दी.

यहाँ, गुजरात को भी समझना होगा, गुजराती समाज व्यवसाय में यकीन करता हैं और यहाँ इसी सिलसिले में ज्यादातर नागरिक किसी ना किसी व्यापर से ही जुड़े हुये हैं. गुजरात, पहले से ही एक विकसित राज्य रहा हैं. यहाँ, की एक और खूबी हैं की व्यापर की दृष्टि से गुजरात का हर शहर समृद्ध फिर वह चाहे अहमदाबाद, बड़ोदरा, सूरत, राजकोट, इत्यादि लेकिन छोटे शहर कलोल, हालोल, अक्लेश्वर, वापी, कंडला, दहेज, इत्यादि कस्बो में भी निर्माण के बहुत से उद्योग हैं और इसी सिलसिले मैं रोजगार की भी भरमार हैं, यहाँ, अगर नागरिक के नजरिये से देखे तो उसे व्यवस्था से अच्छा प्रबंधन और सुरक्षा की जरूरत थी, जिसे मोदी जी भाप चुके थे.

यहाँ, २००२ में जीत के बाद सरकार की कार्य शेली में भी बदलाव था जो तंत्र केशुभाई के समय सुस्त होने का आरोप झेल रहा था, वहां अब चुस्ती आ गयी थी, सबसे पहले एक आम नागरिक होने के नाते व्यवस्था में बदलाव देखा वह था सफाई का, अब रोज सुबह सफाई कर्मचारी गलियों और सडको में सफाई के साथ-साथ, डीडीटी भी डालते हुये देखे जा सकते थे, मेरे घर की सामने वाली सडक भी बन रही थी और रसोई गैस के लिये पाइप लाइन बिछाने का प्रोजेक्ट भी शुरू होने की बात कही जा रही थी. इसी बीच सडको का भी निर्माण हुआ लेकिन साथ-साथ ही में ट्रोल टैक्स बड़ा दिये गये. लेकिन लग रहा था की व्यवस्था काम कर रही हैं.

लेकिन सुरक्षा, का क्या नजरिया हो सकता हैं जहाँ गुजराती नागरिक को सुरक्षित होने का एहसास करवाया जा सके. २००४, में केंद्र की सरकार बदल चुकी थी अब यहाँ कांग्रेस का अधि पत था. मोदी जी के इस कार्यकाल में कुल ११ लोगो का पुलिस द्वारा एनकाउंटर किया गया, यहाँ सोहराबुद्दीन शेख के एनकाउंटर पर  तथाकथित झूठा पुलिस मुकाबला होने के आरोप लगते रहे और इसी सिलसिले में लंबी अदालती कार्यवाही का अपना इतिहास हैं, वही इशरत जहाँ, के साथ और बाकी ओर तीन लोगो का पुलिस एनकाउंटर भी शक की निगाह में रहा, जहां ये सभी एनकाउंटर में मारे गये लोगो को आतंकवादी कहा जा रहा था वही खबर में ये भी बयान था की ये किस तरह गुजरात और इसकी जनता का नुकसान कर सकते थे. और यहाँ, इन आतंकवादी या अपराधी या बेकसूर, आप जो भी दलील रखे, एक आम नागरिक इन सभी एनकाउंटर से अपने आप को सुरक्षति महसूस कर रहा था और मोदी जी के गुण गान गा रहा था.


२००७, के चुनाव् आते-आते मोदी जी गुजरात में व्यवस्था द्वारा किये गये कार्य पर भी भाषण दे रहे थे वही सुरक्षा के भ्रम जाल को जज्बातों से जोड़ने के लिये, सोहराबुद्दीन शेख और अफजल गुरु इनके नाम भी अपनी चर्चा में शामिल कर रहे थे. यहाँ एक जगह, कांग्रेस की अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी द्वारा मोत के सौदागर शब्द का इस्तेमाल अपने भाषण में कर दिया और पूरा चुनाव इसी शब्द की चर्चा के बीच लड़ा गया, यहाँ एक आम नागरिक का मोत के सौदागर से मतलब नरेंद्र मोदी जी से निकाला जा रहा था और इसी शब्द के भीतर गुजरात की जनता को मोदी जी द्वारा दी जा रही सुरक्षा का एहसास करवाया गया. जज्बात, फिर मत में तबदील हो गये और इस बार भी भाजपा बहुमत से अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही लेकिन साल २००२ के मुकाबले साल २००७ में भाजपा को १० विधानसभा सीट का नुकसान उठाना पड़ा, यहाँ भाजपा द्वारा दर्ज कर वाई गयी ११७ विधानसभा सीट की संख्या उतनी ही थी जितनी १९९८ के राज्य चुनाव में केशुभाई पटेल द्वारा भाजपा को ११७ विधानसभा सीट पर जीत दर्ज करवाई थी, लेकिन २००७ में एक तबदीली आ गयी थी यहाँ नरेंद्र भाई मोदी जी का मतलब गुजरात था और गुजरात का मतलब मोदी जी से था, जो की कभी भी भारत के राज्य चुनाव के इतिहास में नहीं हुआ होगा. धन्यवाद.

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