गुरमेहर कौर, पर आखिरकार राजनीति क्यों हो रही हैं ?



इसका अंदाजा शायद ही किसी को था की रामजस कॉलेज में हुआ हुल्लड़ इतनी सुखिया बटोरेगा लेकिन अब ये मसला रामजस कॉलेज के कैंपस से बाहर निकल आया हैं, ये कितने और मोड़ लेगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती, हो सकता हैं की ये किसी नयी कहानी की शरुआत करके, अपनी सुखिया किसी और के नाम कर दे, अक्सर यही होता आया हैं की एक विवाद दूसरे विवाद को जन्म देकर शांत हो जाता हैं. मैं, किसी मीडिया से तो नहीं जुड़ा हुआ लेकिन, इसकी कल्पना कर सकता हू की आज मीडिया स्टाफ मीटिंग में किस-किस खबर को तबज्जो दी जा रही होगी, रोज बदल रहे घटना कर्म से किस तरह यहाँ टीआरपी को बढ़ाने की रिवायत छिड़ गयी होगी और इसी तर्ज पर एक आम नागरिक भी इस पर अपनी एक राय बना रहा होगा.

रामजस कॉलेज विवाद से अगर सबसे बड़ा कोई नाम उभर कर आया हैं तो वह हैं गुरमेहर कौर का, लेकिन गुरमेहर द्वारा रखे गये अपने विचार दो तबको में बट गये हैं एक वह जो इस से सहमत हैं और दूसरे वह जो इसकी कड़ी निंदा करने के साथ देश द्रोही होने का इल्जाम भी लगा रहे हैं, इस पर एक नागरिक की अभिव्यक्ति की आजादी के साथ-साथ राजनीति भी शुरू हो गयी हैं, यहाँ इस पर कही दिल्ली के केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री श्री किरेन रिजीजू जो की पेशे से वकील हैं आये दिन अपना बयान दे रहे हैं वही इसी मुद्दे पर पंजाब की राजनीति भी नया मोड़ ले रही हैं.

जिस तरह से भाजपा सांसद और केंद्रीय ग्रह राज्य मंत्री किरेन रिजीजू इस पूरे मसले पर बयान बाजी कर रहे हैं उस से ये प्रतीत होता हैं की इन्होने इस मसले पर भाजपा की कमांड संभाल रखी हैं लेकिन मैने व्यक्तिगत रूप से इन्हें रामजस कॉलेज में हुये हुल्लड़ की कड़े शब्दों में निंदा करते हुये नहीं सुना अगर कुछ कहा भी होगा तो कुछ आम से ही शब्द होंगे. लेकिन ये गुरमेहर कौर पर शब्दों के कटाक्ष करते हुये ज़रुर नजर आ रहे हैं, इनका हालिया बयान काफी चर्चा में रहा जहाँ ये  गुरमेहर कौर पर सवाल कर रहे हैं की इनका दिमाग कोन खराब कर रहा हैं. अगर यहाँ थोड़ा सा इस बयान का विश्लेषण करे तो यहाँ ये आम आदमी पार्टी को क़सूरवार बता रहे हैं.

ये हम सब जानते हैं की २०१७ के पंजाब राज्य चुनाव में आम आदमी पार्टी की जन सभा  में जिस तरह से जन सैलाब उमड़ा हैं वह कही ना कही कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल बादल और भाजपा को चुनौती दे रहा हैं और इसी तर्ज पर आप ने गोवा में भी भाजपा को कड़ी चुनौती दी हैं. यहाँ, दिल्ली की राज्य सरकार जो की आप पार्टी की हैं और दिल्ली की सुरक्षा की जवाबदारी भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में होने से, अक्सर आप पार्टी के नेता भाजपा बहुमत वाली केंद्र सरकार पर तरह-तरह के आरोप लगाते रहते हैं और यही सिलसिला केंद्र सरकार की तरफ से भी रहा हैं.

यहाँ, इस तरह के बयान से किरेन रिजीजू जी, अपनी भाजपा के प्रति इमानदारी तो नहीं दिखा रहे ? अभी पिछले साल के अंत में ही रिजीजू जी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. नौबत यहाँ तक आ गयी थी की केंद्र में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने इनके इस्तीफे की भी मांग की थी. वही, अगर यहाँ दूसरे पहलू पर ध्यान दे तो रिजीजू जी केंद्रीय राज्य ग्रह मंत्री होने के नाते, दिल्ली की सुरक्षा की जवाब देही इनकी बनती हैं लेकिन इस पुरी प्रकरण में गुरमेहर कौर को दोषी साबित करके, इन्होने पूरा ध्यान अपने पर से हटा दिया, आज कही भी कोई पत्रकार या एक आम भारतीय नागरिक इनसे रामजस कॉलेज में हुई पत्थर और हुल्लड़ बाजी के संदर्भ में कोई सवाल नहीं कर रहा खासकर जब इस पूरी घटना कर्म के संदर्भ में दिल्ली पुलिस पर भी कोताही बरतने का और पत्थर बाजी कर रहे छात्रों को संरक्षण देने के गंभीर आरोप लगे हैं. सही मायनों में देखे तो यहाँ रिजीजू जी ने गुरमेहर कोर पर सवाल करके, अपनी बुद्धि, चतुराई और राजनीति का बहुत सुंदर परिचय दिया हैं.

दूसरी और अगर इस पूरे घटना कर्म के दरम्यान पंजाब की राजनीति पर ध्यान दे तो यहाँ भी कई बदलाव आये हैं, यहाँ आम आदमी पार्टी के कई नेता सोशल मीडिया पर गुरमेहर कौर के साथ खड़े होने का दम भर रहे हैं वही शिरोमणि अकाली दल बादल, जो की खुद को सिख समाज की पैरवी करने का विशवास देती हैं, वह इस पुरी घटना कर्म पर चुप हैं, खासकर जब बादल दल और भाजपा के राजनैतिक गठबंधन की सरकार पंजाब और केंद्र में हैं, और इसी के तहत बादल परिवार की सदस्य और भटिंडा की सीट से चुनी हुई लोकसभा सांसद श्री हरसिमरत कोर केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं वह भी चुप हैं. एक महिला होने के नाते हरसिमरत कोर से पंजाब के एक आम नागरिक को उम्मीद थी की ये गुरमेहर कौर के बचाव में आगे आयेगी. लेकिन राजनीति में परिस्थिति का अवलोकन कर के बयान दिये जाते हैं या यु कहे की पैतरे खेले जाते हैं तो गलत नही होगा. आज बादल दल इस स्थिति में नहीं हैं की इस संदर्भ में किसी भी तरह से सार्वजनिक बयान देकर अपने राजनैतिक भागीदार भाजपा को नाराज करे. परंतु, आज पंजाब में कई ऐसे संगठन हैं जो मीडिया के कैमरे के सामने आकर गुरमेहर कौर की पैरवी कर रहे हैं इनमें से कई ऐसे भी हैं जो राजनीति में अपनी पृष्टभूमि की तलाश कर रहे हैं और यहाँ गुरमेहर कौर के रूप में उन्हें अपनी राजनैतिक नींव बनती हुई दिखाई दे रही हैं.

लेकिन, अगर गुरमेहर कौर की जगह कोई दूसरे प्रांत और समुदाय की बेटी पर इस तरह से कटाक्ष होते क्या तभी पंजाब की राजनीति में इस तरह की बयान बाजी होती ? शायद नहीं. पूरे भारत देश की राजनीति आज धर्मवाद, प्रांतवाद और जातवाद में बट गयी हैं. व्यक्तिगत रूप से. ऐसा देखने में नहीं आया हैं की गुरमेहर कौर या इनके परिवार ने किसी भी तरह से किसी भी सिख राजनैतिक या धार्मिक संगठन से इस मसले पर उनका बचाव करने की मांग की हो. यहाँ, एक शहीद सैनिक की बेटी और परिवार अपनी पैरवी खुद करने में समर्थ दिखाई दे रहा हैं. हां, कई भारतीय फौज के रिटायर्ड सैनिक और अफसरों ने, सार्वजनिक रूप से गुरमेहर कौर का साथ दिया हैं.


लेकिन, इस मसले को जिस तरह से अंजाम दिया जा रहा हैं उस से मैं व्यक्तिगत रूप से आहत हू, मसलन गुरमेहर कौर ने जिन तथ्यों पर अपनी राय रखी हैं उन तथ्यों से ध्यान हटा कर गुरमेहर कौर पर प्रहार किया जा रहा हैं, खास कर यहाँ उनका नाम, जो एक छवि को प्रस्तुत करता हैं और उसी की तर्ज पर उनके द्वारा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के खिलाफ एक जुट होने की मांग का विश्लेषण किया गया. अंत, में एक सवाल कर के अपना ये लेख पूरा करूंगा की क्या अगर गुरमेहर कौर की जगह किसी बहुसख्यंक समाज से नाता रखने वाली विद्यार्थी ने इस तरह अहिंसक आंदोलन में एक जुट होने की मांग की होती तभी उन पर हो रही टिप्पणी में भी भाषा का यही नीचे का स्तर रहता ? क्या हम आज भी, प्रवक्ता के नाम से उसके द्वारा कहे गये कथन का विश्लेषण करेंगे, अगर हाँ, तो अभी हमें इस तथ्य पर सहमत हो जाना चाहिये की संविधानिक लोकतंत्र तो भारत देश में हैं लेकिन सामाजिक लोकतंत्र अभी भारतीय समाज से कोषो दूर हैं. धन्यवाद.

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