गुजरात राज्य की राजनीति में नरेंद्र भाई मोदी जी का उदय.



२००१, के आखिर में नरेंद्र भाई मोदी जी, गुजरात राज्य के मुख्य मंत्री बन चुके थे लेकिन अपनी जमीनी सियासत की ना मौजूदगी के चलते, ये गुजरात राज्य में अपनी पहचान बनाने में लगे हुये थे और इसी तरह राजनीतिक लोगो से भी इनकी सार्वजनिक मुलाकात में शालीनता की पहचान थी कही भी किसी भी तरह से विवाद से बचने की कोशिश की जा रही थी, ये अक्सर अपने से बड़े उमरदराज नेता के पैर छूते हुये नजर आते थे इनमें केशुभाई पटेल भी शामिल थे. व्यक्तिगत रूप से इन्हें मैने पहली २००१, अहमदाबाद  में ही गुरु नानक जयंती के दौरान गुरुद्वारा साहिब में देखा था जहाँ ये सिख समुदाय को गुरु पूरब की बधाई देने आये थे और अपने बधाई संदेश में इन्होने बादल परिवार के साथ अपने मधुर रिश्ते का वर्णन भी किया था. शब्दों में सरलता, शालीनता, जज्बात, सूझ बुझ, का पूरा प्रमाण दिया था.

साल २००१, में आये भूकंप के कारण, यहाँ हिंदू-मुसलमान दोनों समुदाय एक-दूसरें की सहायता करने में लगे हुये थे. वैसे, गुजरात के इतिहास में साम्प्रदायिक दंगो का अलग ही इतिहास रहा हैं. मैं भी इसका गवाह रहा हु, बचपन में बाह टूट जाने से, अहमदाबाद के पुराने शहर में इलाज के बाद मैं मेरे माता-पिता के साथ रिक्शे में आ रहा था तभी एक समुदाय का दंगियो का गुट हथियारों से लेस होकर हमारा पीछा कर रहा था लेकिन रिक्शा चालक की सूझ बुझ से हमारा बचाव हो गया. इसी के तहत, खासकर अहमदाबाद शहर में कई ऐसे इलाके हैं जहाँ सडक के दोनों तरफ की आबादी अलग-अलग धर्म से तालुक रखती थी, ये दस्तूर आज भी जारी हैं. यहाँ, दोनों समुदाय व्यवसायिक रूप से साथ में काम करते हैं लेकिन दोनों समुदाय में आपसी विश्वास की कमी थी और आज भी ये विश्वास पनप नहीं पा रहा हैं. यहाँ, छोटी सी चिंगारी भी सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ सकती थी.

२६-फरवरी-२००२, गुजरात के गोधरा शहर में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के कोच को , लोगो के झुंड ने घेर कर आग लगा दी. यहाँ, खबर आ रही थी की पूरी ट्रेन में इसी कोच को जलाया गया जहाँ अयोध्या से कार्य सेवक लोट रहे थे. दूसरे दिन इस घटना कर्म को बहुत ज्यादा उत्तेजित तस्वीर और शब्दों के साथ, खबर बनाकर गुजराती अखबारों में प्रकाशित किया गया. यहाँ, विश्व हिंदू परिषद के नेता के हवाले से खून के बदले खून के नारे छापे गये थे. इसे खबर को और भडकाऊ बनाने के लिये लड़कियों के साथ हुये बलात्कार को सुर्खिया बनाया गया था लेकिन इस खबर का श्रौत क्या था ? इसके बारे में कही भी जानकारी नहीं दी गयी थी.

गोधरा में ट्रेन में लगाई गयी आग, जज्बाती रूप से पूरे गुजरात को घायल कर रही थी. यही, अखबारों के माध्यम से बताया गया की तारीख २८-फेबुअरी-२००२ को विश्व हिंदू परिषद, ने गोधरा में ट्रेन जलाने के विरोध में गुजरात बंध का आह्वान किया था. में व्यक्तिगत रूप से उस दिन ट्रेन में सफर कर रहा था, जब ये ट्रेन सिद्धपुर, उत्तर गुजरात पहुँची तब आग जनी की घटना को ट्रेन के भीतर से देखा जा सकता था, इसी तरह का माहौल गुजरात के विभिन्न शहरों था. अहमदाबाद, पहुच कर देखा की एक रेस्टोरेंट को जला दिया था, यहाँ के लोकल लोग इस आग जनी को देख रहे थे लेकिन जब मेंने एक अजान शख़्स से पूछा की आग किसने लगाई हैं तब जवाब यही था पता नहीं, कुछ लोग बाहर से आये थे. लेकिन, ये आग जनी उन्हीं जगह पर भी हो रही थी जहाँ अल्पसख्यंक समुदाय के लोग व्यवसायिक रूप से जुड़े हुये थे. इस दंगे में एक विशेष घटना हयी थी की इस बार बहुसख्यंक समाज से जुड़ा हुआ दंगियो को झुंड, अल्पसख्यंक बहुताय इलाके मसलन दरियापुर, इत्यादि में नुकसान करने में भी कामयाब रहा था, जहाँ आज तक हुये सांप्रदायिक दंगे में कभी भी बहुसख्यंक समाज नुकसान करने में कामयाब नहीं हो पाया था.

इन दंगो में, हर तरह की लकीर को लाँघ दिया गया था नरोडा पाटिया में सामूहिक कत्ल और बलात्कार, यहाँ एक गर्भवती महिला के साथ ज़ुल्म को इस तरह अंजाम दिया गया जहाँ इनसानियत पूरी तरह से शर्मशार हो गयी थी, यहाँ ऐसे शब्द नहीं हैं जिनमें इस तरह की घटना की निंदा की जा सके, इसी दंगे में गुजरात के एक और शहर वडोदरा में १४ लोगो को जिन्दा जला दिया गया, यहाँ दंगे  में सरकारी व्यवस्था में चुने हुये अल्पसख्यंक नेता और उनके परिवार को भी नहीं छोड़ा गया, यहाँ कही भी देखने को नहीं मिला की पुलिस अपनी जवाब दारी को इमानदारी से निभा रही हैं लेकिन यहाँ ध्यान देना होगा की राज्य पुलिस राज्य सरकार या व्यवस्था के अधीन थी.

इस दंगे, में औरत बच्चो को भी नहीं बख्सा गया. और जिस तरह ज़ुल्म किया गया उसका किसी को भी अंदेशा नहीं था. यहाँ, दंगे के माध्यम से दहशत और खोफ को फैलाना भी एक माध्यम नजर आ रहा था. लेकिन, दंगे पहले भी होता हैं थे लेकिन पुलिस द्वारा सख्ती की वजह से और आँसू गैस को हथियार की तरह इस्तेमाल करके, जल्द ही हालात क़ाबू में ला दिये जाते थे लेकिन २००२ में हुये गुजरात दंगे, दिनों तक नहीं महीनों तक चले थे, रुक रुक कर आग जनी की घटना सामने आ रही थी. इस दंगे, में नरेंद्र भाई मोदी जी पर व्यक्तिगत रूप से इल्जाम लग रहे थे की अगर ये मुख्य मंत्री के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वाह इमानदारी से करते तो ये दंगे इतने बडै पैमाने पर नुकसान नहीं कर सकते थे. यहाँ, ये भी इल्जाम लगे की यहाँ भाजपा की सरकार इस दंगे से राजनीतिक फायदा भी उठाना चाहती थी.

यहाँ,इस बात का ध्यान रखने की जरूरत थी की इस घटना कर्म के एक साल बाद २००३ में गुजरात राज्य के विधान सभा चुनाव आ रहे थे. और २००२ में गुजरात राज्य सरकार जो की पूर्ण बहुमत में थी, लेकिन यहाँ अपने राज्य कार्य काल के ८ महीने पहले, मुख्य मंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी और इनके कैबिनेट ने इस्तीफा देकर विधान सभा को भंग करने का आह्वान किया जिस से अगले राज्य चुनाव का आह्वान उसके निश्चित समय से पहले करवाया जा सके. यहाँ, इस समय भाजपा पर आरोप भी लगा की ये दंगे से आहत हुये जज्बातों को वोट में तबदील करने के लिये, चुनाव जल्दी करवाये जा रहे हैं. और हुआ भी, कुछ इसी तरह  २००२ के राज्य चुनाव में भाजपा को गुजरात राज्य की जनता ने पूर्ण बहुमत देकर विजयी बनाया था.

लेकिन गुजरात राज्य २००२ के दंगे के दौरान और उसके बाद भी श्री मोदी जी पर आरोप लगते रहे की इन्होने दंगियो के बहु सख्यंक गुट को पूरा समर्थन दिया था, यहाँ गुजरात राज्य के साथ-साथ पूरे भारत देश में मोदी जी पर समाज दो गुटों में बट गया था एक वह जो इनका समर्थन करते थे और एक वह जो इनके विरोधी थे. लेकिन, चर्चा का विषय मोदी जी ही बने हुये थे, इसी तरह इन्होने अपनी राजनीति पहचान बना ली थी अब सार्वजनिक भाषण में इनके द्वारा कहे गये शब्दों में व्यंग भी आ गया था और ठिनक भी. अब लोग और नामी नेता सार्वजनिक रूप से इनके पैरो को नमन करते हुये दिखाई देते थे. अब नरेंद्र मोदी जी, का किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम के मंच से श्री नरेंद्र भाई मोदी जी, कहकर स्वागत किया जाता था, अब इनके नाम के साथ गुजराती भाषा के अनुसार बड़े भाई को सम्भोधित करने का शब्द "भाई" जुड़ गया था.


लेकिन, यहाँ, २००२ के विधान सभा चुनाव में भाजपा की विजय तो हो गयी थी परंतु  गुजरात में दंगे होने के बाद भी जिस तरह आम नागरिक के जज्बातों को मत में रूपांतरित किया गया लेकिन इन्हें १९९८ के राज्य चुनाव के मुकाबले सिर्फ १० विधानसभा सीट का ही फायदा हुआ था. यहाँ, भाजपा तो जश्न मना रही थी लेकिन शायद मोदी जी को ये बात समझ आ गयी थी की की अगर गुजरात राज्य की राजनीति का चेहरा बनना हैं तो यकीनन एक बेहतर कार्य शेली के साथ साथ आम नागरिक के जज्बातों से भी जुड़ना होगा तभी साल २००७ के अगली विधान सभा चुनाव में विजय दर्ज की जा सकती हैं

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