इस साल गुजरात राज्य चुनाव, कुछ हटकर हो सकता है.


तारीख, २५-मार्च-२०१७, को अहमदाबाद की सड़को से होकर गुज़र रहा था, यहाँ थोड़ा सा दूर जाकर सड़क के दोनों तरफ लगे  केसर रंग के झंडे दिखाई देने लगे, मेरे लिये ये एक अचंभा ही था क्युकी पिछले कई साल  से ये रंग सड़को से ग़ायब था, व्यक्तिगत रूप से पिछले १० साल से ज्यादा समय से मैने केसर या हरे रंग को कम ही देखा था. आगे जाकर एक विज्ञापन का बैनर दिखाई दिया जहाँ २६-मार्च-२०१७ को आयोजित हो रहे हिंदू सम्मेलन में सिरकत होने के लिये कहा जा रहा था लेकिन एक और आश्चर्य हुआ जब इस विज्ञापन में हिंदू धर्म में कट्टर नेता की छवि रखने वाले और अक्सर अपने विवादस्पद बयान के चलते सुर्खियों में रहने वाले नेता श्री प्रवीण तोगड़िया जी की तस्वीर, इस आयोजन के चेहरे के रूप में लगी हुई देखी.

साल, २००२ में जब गुजरात राज्य चुनाव में भाजपा की जीत हुई थी उस समय प्रवीण तोगड़िया जी, प्रदेश मुख्य मंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी के साथ अक्सर देखे जाते थे लेकिन पिछले कई साल से ऐसा सुनने में आ रहा था की दोनों नेतागण के आपसी संबंध इतने मधुर नहीं रहे, इसी के चलते श्री तोगड़िया जी, भूतकाल बनते जा रहे थे क्युकी अब ना इनकी तस्वीर किसी अखबार में आ रही थी और ना ही कोई टीवी न्यूज़ चैनल इन्हे कवर करता हुआ दिखाई दे रहा था, ना ही पिछले दिनों कभी भी श्री तोगड़िया जी ने कोई विवादास्पद बयान दिया था, जिसके लिये ये जाने जाते है. मसलन, ऐसा क्या हो रहा है की भूतकाल से निकल कर श्री तोगड़िया जी, अब फिर प्रभावशाली तरीके से कार्यरत होने जा रहे है.

अगर राज्य की मौजूदा स्थिति के बारे में बात करे तो कही भी कोई सांप्रदायिक भावना को ठेस पहुचे, ना तो ऐसी स्थिति है और ना ही कोई माहौल, यहाँ कानून व्यवस्था पूरी तरह से चुस्त है, हर कार्य क्षेत्र ऐसे है जहाँ हर समाज और समुदाय से ताल्लुक रखता हुआ नागरिक कार्यरत है, मसलन ज़मीनी सच्चाई है की आज समाज में एकता है और नागरिक, अपनी निजी जिंदगी में इतना व्यस्त है की उसके पास किसी भी वाद-विवाद में अपनी मौजूदगी पेश करने का समय ही नहीं है. इसी के चलते उम्मीद नहीं है की कही कोई अप्रिय घटना हो सकती है, लेकिन तारीख २५-मार्च-२०१७ (शनिवार), शाम होते-होते गुजरात राज्य के पाटन जिले के एक गांव में सांप्रदायिक घटना की खबर आयी, जहाँ राष्ट्रीय टीवी मीडिया में इस खबर की कही भी पुष्टि नहीं की गयी वही कई अखबारों में अलग-अलग तरह से इस खबर को प्रकाशित किया गया.

लेकिन, हर खबर में एक सच्चाई मौजूद थी की स्कूल में १०वि जमात के दो विधार्थियों के बीच हुई मामूली झड़प ने इस घटना को उत्तेजित स्वरूप दे दिया, जहाँ उग्र भीड़ ने कुछ घरो के साथ-साथ सामने खड़े वाहन को भी जला दिया, इसके चलते पीड़ित को अपना घर छोड़कर दूसरे गांव के घरों में शरण लेनी पड़ी वही ऐसी खबर भी सुनने में आई की इस घटना में एक व्यक्ति की मोत होने के साथ-साथ कई लोगो घायल हो गये. लेकिन एक दशक से ज्यादा समय तक शांत रहने वाला प्रदेश में ये घटना एक सवाल ज़रुर खड़ा करती है की क्या प्रदेश का आपसी भाई-चारा, फिर से उलझता हुआ नजर आ रहा है.

अगर थोड़ा, सा विश्लेषण करे तो इस साल के अंत तक प्रदेश में राज्य चुनाव है जहाँ भाजपा लगातार १९९५ से राज्य की सत्ता पर बहुमत से विराजमान है, वही पिछले ३ राज्य चुनाव श्री नरेंद्र भाई मोदी जी के नाम से जीते गये, लेकिन साल २०१४ में मोदी जी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली की सत्ता पर कायम हो गये वही गुजरात राज्य की डोर श्रीमती आनंदी बहन पटेल के हाथ में सोप दी, यहाँ ये कहा गया की  आनंदी बहन पटेल के नाम से, भाजपा पटेल समुदाय को खुश करना चाहती है. गुजरात राज्य, में पटेल समुदाय वही स्थान रखता है जो जाट हरियाणा में और जट पंजाब में, मूलतः पटेल समुदाय किसान है और खेती से जुड़ा हुआ है लेकिन वक्त रहते पटेल समुदाय ने व्यवसाय में अपने हाथ आज़माया और आज ये गुजरात प्रदेश में व्यवसाय के हर क्षेत्र में मौजूद है फिर वह चाहे कंस्ट्रक्शन का हो या सूरत का मशहूर हिरा व्यापार. आज ये कह सकते है की गुजरात राज्य में पटेल समाज ही ये तय करता है की सरकार किस पक्ष की बनेगी.

लेकिन आनंदी बहन पटेल के बतौर मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान पाटीदार (पटेल) समुदाय ने सरकारी नौकरी और शिक्षण संस्थान में अपने लिये आरक्षण की मांग की, धीरे-धीरे ये आंदोलन उग्र होता गया और इसे शांत करने के लिये सरकार द्वारा बल का भी प्रयोग किया गया, जहाँ इस आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया वही प्रदेश के कई शहरों में कर्फ्यू लगाने की नौबत तक आ गयी, ये पाटीदार समाज का ही असर कह सकते है की समय रहते प्रदेश भाजपा ने  आनंदी बहन पटेल को मुख्यमंत्री के पद से हटाकर श्री विजय रुपानी जी को मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित कर दिया, लेकिन आज भी हालात ऐसे है जहाँ पाटीदार समुदाय से जुडे लोग राज्य सरकार के प्रति अपनी नाराज़गी खुलकर व्यक्त करते है. वही पाटीदार आंदोलन का चेहरा बनकर उभर कर आये श्री हार्दिक पटेल को शिव सेना ने गुजरात राज्य चुनाव के अंतर्गत अपना मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के रूप में पेश किया है. ज्ञात रहे की यहाँ शिव सेना और भाजपा में कोई चुनावी गठबंधन नहीं है और ये परस्पर विरोधी दल के रूप में प्रदेश के चुनाव में होंगे.

जहाँ, पटेल समाज भाजपा राज्य सरकार से खफा है वही २०१४ के बाद लगातार प्रदेश के भीतर से दलित विरोधी अपराध, अक्सर खबर की सुर्खियाँ बनते रहे है. () अब, जहाँ प्रदेश में भाजपा राज्य सरकार से पटेल, दलित, मुस्लिम, इन सभी समुदाय ने एक निश्चित दूरी बनाकर रखी हुई है वही प्रदेश में श्री प्रवीण तोगड़िया का प्रवेश करना वही ०८-मार्च-२०१७ को सोमनाथ यात्रा के दौरान भाजपा राज्य इकाई के पुराने शीर्ष नेता श्री केशुभाई पटेल को भी श्री मोदी जी के साथ देखा जाना, प्रदेश की राजनीति को नयी दिशा दे रहा है. इस साल के अंत तक प्रदेश में राज्य चुनाव होने वाले है जहाँ भाजपा की राज्य इकाई के पास मोदी जी जैसा को कोई भी कदावर नेता मौजूद नहीं है वही विभिन्न समुदायों की नाराज़गी के चलते भाजपा की जीत की राह कठिन ज़रुर होती जा रही है, इसी बीच हो सकता है की प्रदेश की राजनीति में कई नये रिश्तों को जन्म हो और कुछ उग्र नाम चीन व्यक्ति या उत्तेजित शब्द को भाषण में समावेश किया जाये, जो भी हो अगर यहाँ अगले राज्य चुनाव में भाजपा २०१२ के मुकाबले १ भी सीट हारती है तो इसका सीधा असर श्री नरेंद्र भाई मोदी जी की लोकप्रियता से जोड़कर देखा जायेगा और इसी के साथ २०१९ के लोकसभा चुनाव के कयास भी लगाये जाने शुरू हो जाएँगे. धन्यवाद.

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