साल २०१३, में पहले भाजपा की
केंद्र इकाई में नरेंद्र भाई मोदी जी को शामिल किया गया, उसके पश्चात मोदी जी को भाजपा के
२०१४ लोकसभा चुनाव के मध्यनजर, पहले इन्हें प्रचार अभियान का अध्यक्ष नियुक्त किया
और बाद में सितम्बर २०१३, भाजपा ने २०१४ लोकसभा चुनाव के तहत मोदी जी को अपना
प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया. यहाँ, मोदी जी के २००२-२०१४, (२००१ के साल को छोड़कर)
अगर इनके मुख्यमंत्री के रूप में गुजरात की राजनीति पर पकड़ का अध्ययन किया जाये, तो यहाँ लोकल मीडिया
का बहुत बड़ा हाथ रहा हैं. यहाँ, गुजराती भाषा के प्रमुख २ अखबारों के पास ही गुजराती
मीडिया का एक तरह से मालिकाना हक था. लेकिन, २००३ में गुजरात लोकल मीडिया में
एक मध्यप्रदेश के अखबार का प्रवेश हुआ.
इस अखबार के मुख्य
पब्लिकेशन पर अगर थोड़ा सा ध्यान दे, तो इसकी १९९८ तक कुछ हजार दैनिक कॉपी ही बिका करती थी
लेकिन केंद्र में भाजपा की सरकार बनना और इसके पश्च्यात, ये पब्लिकेशन ने भारत के कई हिंदी
भाषित प्रांत में अपने अख़बार शुरू किये और इसी के तहत, २००३ में इनका प्रवेश गुजरात में
हुआ, लेकिन बहुत से लोगो को ये शंका रही की इस अखबार को मोदी जी, गुजरात मीडिया पर अपना
वर्चस्व करने के लिये लाये थे. इस अखबार ने जब भी मोदी जी का विरोध किया तो
सामान्य से शब्द थे वही इनकी तारीफ़ के पुल बांध दिये जाते थे. यहाँ, आम गुजराती को इस
अखबार से जोड़ने के लिये कई तरीको से प्रलोभन दिया गया मसलन दैनिक अखबार की, हर दिन की कॉपी पर लगा
स्टीकर जोड़ कर इसे महीने के अंत में जमा करने से चायपत्ती, इत्यादि,प्राप्त कर सकते हैं मसलन दैनिक
अखबार एक तरह से मुफ्त में बाटा जाने लगा. स्टीकर इकट्ठा करने से मतलब था की पाठक
अखबार में छपी खबर से जुड कर, इस तरह की मानसिकता को पैदा करे, जिस से गुजरात सरकार
की तारीफ़ की जाये, या मोदी जी के साथ पाठक को जोड़ा जा सके.
इसी अनुभव का इस्तेमाल, मोदी जी ने २०१४ के
लोकसभा के चुनाव में किया, यहाँ अगर कहा जाये की प्रचार माध्यम सिर्फ और सिर्फ
टीवी मीडिया को बनाया गया तो, यकीनन गलत नहीं होगा लेकिन, मीडिया पर ध्यान देने से ज्यादा
इनकी रणनीति पर ध्यान देना होगा. कहा ये जाता, १९९५-२००१, तक जब तक भाजपा गुजरात में थी
लेकिन इस समय तक मोदी जी को गुजरात से वनवास दिया गया लेकिन, अमित शाह, ये इस समय में मोदी जी
के विश्वासी बन गये थे और कहा ये भी जाता हैं की इस समय दौरान, शाह ही मोदी जी को
गुजरात राज्य भाजपा इकाई की हर हलचल की जानकारी देते थे. और इस दलील पर मोहर लगती
हैं जब २००२ राज्य चुनाव में मोदी जी के नाम से जीते गये भाजपा चुनाव के बाद
गुजरात राज्य सरकार में शाह को ग्रहमंत्री बनाया गया. यही विश्वास शाह पर बना रहा, जब २०१४ लोकसभा चुनाव
के अंतर्गत से अति स्वेदन शील उत्तरप्रदेश राज्य में शाह को भाजपा का रणनीतिकार के
रूप में नियुक्त किया गया.
२०१४, के चुनाव में भाजपा एक
अलग ही रूप में दिख रही थी, लग नहीं रहा था की प्रचार के माध्यम से पुरानी हो
चुकी भाजपा में अचानक से नया रूप ले लिया था, यहाँ प्रचार में सोशल मीडिया, डिजिटल मीडिया इत्यादि
के साथ, भारत के चुनाव के इतिहास में पहली बार टीवी मीडिया का इस्तेमाल गम्भीरता से
किया गया. इस समय, केंद्र सरकार में कांग्रेस पार्टी का घोटालों के आरोप
से घीरे होना वही २००४-२०१४ तक भारत देश के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी, का केंद्र की राजनीति
से किनारे का ऐलान, ये साबित कर रहा था की इस चुनावी मैदान में मोदी जी
ही एक खिलाड़ी हैं और जिनकी जीत यकीनन तय मानी जा रही थी. इसी के तहत, गुजरात राज्य के चुनाव
में जिस तरह से अक्सर मोदी जी आतंकवाद या आतंकवादी का नाम लिया करते थे, इस तरह के शब्द जो
किसी विवाद को जन्म दे सकते हैं वह इस लोकसभा चुनाव प्रचार में नामौजूद ही रहे.
लेकिन, मोदी जी अक्सर भारत को गुजरात मॉडल की तर्ज पर नयी रूप रेखा देंगे इसका आह्वान
ज़रुर किया करते थे. यहाँ, एक आम नागरिक के लिये ये गुजरात का विकास का नारा भी
हो सकता हैं लेकिन एक जानकार के लिये इसका क़यास २००२ के गुजरात दंगे से हो सकता
था.
यहाँ, नये शब्द और नारे “सब का विकास”, “सब का साथ”, “घर घर मोदी”, “अब की बार अच्छे दिन
आयेंगे”, “नमो”, इत्यादि अक्सर मोदी जी की चुनावी रैली में लगा करते थे. टीवी चैनल का कैमरा इस
रैली को हर कोण से कवर कर रहा था और १-१ घंटे तक, बिना किसी रुकावट के, अमूमन टीवी का हर
न्यूज चैनल मोदी जी के भाषण को लाइव दिखा कर, पूरे भारत के नागरिक को मोदी जी के
साथ जोड़ा जा रहा था. वही डिजिटल मीडिया द्वारा, ३डी स्क्रीन के माध्यम से आम लोगो
तक पहुच बनाई जा रही थी. चाय पर चर्चा, इस तरह के प्रचार माध्यम से आम नागरिक, ग्रहणी, मोदी जी के साथ संवाद
कर सकते थे, वही इस चुनाव में सोशल मीडिया को पूरी तरह से अपनाया गया जहाँ, भारतीय युवक, विद्यार्थी, से मोदी जी जुड़ रहे
थे.
इस चुनाव में, मोदी हर जगह और जुबान
से जुड़े थे, यहाँ कही इनकी जीत के क़यास लगाये जा रहे थे और कही ये सवाल भी था की इतना
ज्यादा प्रचार मतदाता के मत को भाजपा की जीत में बदल पायेगा. यहाँ हर चर्चा और
विषय में मोदी जी का शुमार हो रहा था, चर्चा इस हद तक थी की मोदी जी के चुनाव में विरोधी
पक्ष अपनी उपस्थिति भी दर्ज नहीं करवा सका और नतीजा भी इसी तर्ज पर आया जहाँ इस
चुनाव मैदान में सिर्फ ऑफ़ सिर्फ मोदी जी और इनकी पार्टी भाजपा विजयी हुई थी, ये जीत इतनी बड़ी थी की
आजाद भारत के इतिहास में पहली बार किसी गैर कांग्रेस पार्टी ने केंद्र की सत्ता
में बहुमत प्राप्त किया था वही कांग्रेस पहली बार ५० से भी कम सीट जितने में
कामयाब हो सकी. इस जीत में सबसे बड़ा रोल, अमित शाह का रहा जहाँ भाजपा ७०+ सीट जितने में ही
कामयाब रही. यहाँ, मोदी जी भारत के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ लेने
की तैयारी कर रहे थे वही कांग्रेस और भाजपा विरोधी दल, जिनका सूपड़ा साफ़ हो चूका था वह
अंदाजा भी नहीं लगा पाये की की किस तरह मोदी जी अपनी सूझ बुझ से यहाँ विजयी हुये
थे.
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