जेनोसाइड के आखिरी चार चरण.


 जेनोसाइड के पहले ४ चरण, समाज में उस मानसिकता को जन्म देने के लिये काफी है जहाँ बहुसंख्यक समाज, अल्प मत के समाज के नागरिक को मानव या इंसान मानने से मना कर देता है और उनके खिलाफ एक विद्रोह के आगाज की हामी भर रहा है. यहाँ बहुसंख्यक समाज का बहुत बड़ा हिस्सा वास्तव में जेनोसाइड की प्रक्रिया में भाग नहीं लेता लेकिन वह भी इस तरह की कट्टर मानसिकता से वंचित नहीं है जिस के तहत वह जेनोसाइड की हो रही घटना के खिलाफ विरोध दर्ज करवाने से (एक तरह से) मना कर देता है. अब जेनोसाइड के आखिरी के चारचरण  जो वास्तव में जेनोसाइड की घटना को अंजाम देते है.

५. ध्रुवीकरण (Polarization): जेनोसाइड के इस चरण तक, समाज को दो भाग में बाँट दिया जाता है और समाज में किसी भी अप्रिय घटना मसलन रवांडा में तत्कालीन राष्ट्रपति का हवाई जहाज़ अकस्मात में मौत जिसकी जवाबदेही हुतू समाज तुत्सी समुदाय पर डालता है , नाजी सरकार द्वारा यहूदी समुदाय को प्लेग की बीमारी फैलाने वाले रेट से जोड़ना और तारीख ९ नवम्बर १९३८ को एक यहूदी नौजवान द्वारा एक नाजी सरकार के वरिष्ठ अधिकारी का कत्ल किये जाना जिसे नाइट ऑफ़ ब्रोकनग्लास के नाम से जाना जाता है, अगर हम १९८४ के सिख विरोधी दंगों पर ध्यान दे तो श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या का होना और २००२ में गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस के एक स्लीपर कोच को आग के हवाले करना, ये सब इस तरह की घटना थी जहाँ बहुसंख्यक समाज इस अपराध के लिये पूरे के पूरे अल्प समाज को जवाबदेह  बता रहा था. और इसके पश्चात, सभी तरह के प्रचार माध्यम रेडियो, टीवी, अखबार, इत्यादि  से समाज के एक समुदाय के खिलाफ नफरत का प्रचार किया जाता है, जहाँ हर तरह के शब्द का इस्तेमाल किया जाता है जिससे समाज के बहुस्ख्यंक समाज के नागरिक को अपने साथ जोड़ा जा सके. सारी घटनाओ के सारांश से ये भी यकीनन है की इस तरह की हर  जेनोसाइड की घटना में राज्य व्यवस्था किसी ना किसी तरह से चरमपंथियों से जुड़ी होती है या सहानुभूति रखती है. और इसी के कारण राज्य की कानून व्यवस्था, जेनोसाइड की घटना को रोकने से (एक तरह) मना कर देती है. मसलन, एक तरह से राज्य व्यवस्था बहुसंख्यक समाज के चरमपंथियों के अधिग्रहण हो जाती है और सबसे पहले बहुसंख्यक समाज के उन उदारवादी नागरिकों को जबरन केद या मार दिया जाता है, जो वास्तव में इस तरह के जेनोसाइड में शामिल ना होकर इसे रोकने का अधिकार और सोच रखते है. इस चरण में, समाज / देश की पूरी कानून व्यवस्था को अपंग कर दिया जाता है.

६. तैयारी (उपक्रम / Preparation): जेनोसाइड के इस चरण में, पीड़ित समाज के नागरिक को उनके जातीय या धार्मिक चिन्ह से पहचान की जाती है, जिससे इन्हे मुख्य समाज से अलग किया जा सके. सरकारी कागज़ या और किसी माध्यम से इनके रहने की सूची जारी की जाती है, मसलन जेनोसाइड के इस चरण में जिस समुदाय को घात लगा कर मारना है उनकी तमाम जानकारी इकट्ठा कर ली जाती है. रवांडा में तुत्सी समाज की पहचान बिना कार्ड के नागरिक के रूप में होती है और यहूदी समाज की पहचान, उनकी पोशाक में मौजूद पीले रंग के सितारे से की जाती है. इन दोनों घटनाओ से ये कहा जा सकता है की जेनोसाइड का चरण २ सांकेतिक पहचान इस चरण से जुड़ा हुआ है, मसलन जेनोसाइड की तैयारी पहले से ही शुरू कर दी जाती है बस समाज में किसी अप्रिय घटना का इंतजार किया जाता है. इसी तर्ज पर १९८४ के सिख विरोधी दंगों में, सरकारी कागज़ो से सीखो के घर की निशान देही की गयी और ऐसा भी कहा जाता है की इस निशान देही के चलते सीखो के घर / व्यवसाय इत्यादि जगह पर विशेष निशान / चिन्ह /रंग लगाये गये वही २००२ के गुजरात दंगों में मुस्लिम बस्ती का हिन्दू बस्ती से अलग होना, इस पहचान को और भी आसान बना देता था.

 7. विनाश / संहार (Extermination): जेनोसाइड के इस चरण में, जनसंहार को अंजाम दिया जाता है, अल्प समुदाय के नागरिकों को समूह में कत्ल किया जाता है वास्तव में इस तरह के हत्याकांड को ही जेनोसाइड का नाम दिया जाता है.यहाँ हत्यारों के लिये विनाश है क्युकी ये वास्तव में यकीन नहीं करते की पीड़ित एक मानव / इंसान है. और जब ये राज्य व्यवस्था  द्वारा प्रायोजित किया जाता है तो अक्सर सशस्त्र बल चरमपंथियों के साथ इस हत्याकांड में साथ देते है. यहाँ, पीड़ित समुदाय की जान-माल के नुकसान के साथ-साथ हत्या को इस तरह अंजाम दिया जाता है की पीड़ित समाज दहल जाये और उसकी आने वाली पुश्तै इस जनसंहार को याद रखे इसी के अनुरूप औरतों पर बलात्कार, बच्चों का कत्ल, घर और व्यवसाय की जगह को तहस-नहस करना, इत्यादि निशान देही की जाती है ता की पीड़ित समुदाय भविष्य में इस इलाके को छोड़कर अपना कही और चला जाये. रवांडा में तुत्सी समुदाय का जेनोसाइड कुछ १०० दिन तक चला था जिसमे लाखों-लाखो की तादाद में तुत्सी समुदाय का कत्ल किया गया वही यहूदी समुदाय को व्यवस्थित ढंग से सुनियोजित तरीके से १९३९-४४ के दरम्यान गैस के चेम्बर में बंद करके, मेडिकल परीक्षण करके, इत्यादि तरीकों से जेनोसाइड को अंजाम दिया जिसमे एक अंदाज़ के मुताबिक १.५-२करोड़ लोगो की हत्या की गयी, १९८४ का सिख विरोधी दंगा कुछ ३ दिन तक बिना किसी रोक थाम के किया गया, यहाँ भी हजारों की संख्या में बेकसूर लोगो का कत्ल किया गया और यही कुछ हुआ साल २००२ के गुजरात दंगों में.

८. अस्वीकार (Denial): ये जेनोसाइड का आखिरी चरण है,जो हमेशा एक जनसंहार के बाद होता है और यह आगे के जनसंहार के निश्चित संकेतों में से एक है. जहाँ चरमपंथी किसी भी तरह के जेनोसाइड के अपराध को अस्वीकार करते है, वह कत्ल की गयी लाशों को जलाने के साथ-साथ उस हर सबूत को मिटाने की कोशिश करते है जहाँ से किसी भी तरह के जेनोसाइड के अपराध की पहचान ना की जा सके. मसलन जेनोसाइड के अपराध के बाद हो रही क़ानूनी प्रक्रिया में गवाह को धमकाना, ख़रीद फरोख़ की कोशिश, जांच की प्रक्रिया को किसी ना किसी तरह से बाधित करना, जब तक सत्ता में इनकी सरकार रहती है ये अमूमन कानून की पकड़ से दूर रहते है. रवांडा में तो यूनाइटेड नेशन भी यह मानने को तैयार नहीं था की यहाँ किसी भी तरह का जेनोसाइड हो रहा है इसी तरह से होलोकॉस्ट को भी अस्वीकार किया जाता है.

१९८४ के सिख विरोधी दंगों में आज तक किसी भी नामी व्यक्ति को सजा नहीं हुई, कानूनी प्रक्रिया चल रही है और यहाँ सिख  जेनोसाइड के ३२ साल के बाद भी पीड़ित परिवार न्याय की टकटकी लगा कर बैठे है, इनमें से कुछ अब नहीं रहे होगें और बाकी जो बच गये है उनके लिये न्याय की उम्मीद बेईमानी सी हो गयी होगी और कुछ यही हाल २००२ के दंगों का है. यहाँ, पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ जेनोसाइड हुये, उस राज्य ने या बहुताय समाज ने इसे जेनोसाइड मानने से इनकार कर दिया और किसी अप्रिय घटना के बाद हुये प्रतिकर्म के रूप में इसे परिभाषित किया जहाँ एक पूरा समुदाय ही अपराधी की श्रेणी में खड़ा कर दिया गया हो वहां आप किस तरह किसी व्यक्ति विशेष को सजा दे सकते है, लेकिन न्याय की अनदेखी, पीड़ित समुदाय को जहाँ और ज़ख्म दे रही है वही अपराधी व्यक्ति इसे अपनी जीत समझ रहा है. किसी अपराध पर क़ानूनी सजा का ना होना, यहाँ हकीक़त उस व्यवस्था को बयान कर रही है जहाँ भविष्य में इस तरह के जेनोसाइड को दोहराने की संभावना बढ़ जाती है. धन्यवाद. 

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