गुरमेहर कौर का विरोध क्यों हो रहा हैं ? क्या इस पर राजनीति नहीं हो रही ?



कुछ दिनों पहले रामजस कॉलेज में एक सैमिनार के दौरान हुई पत्थर और हुल्लड़ बाजी होने के बाद विधार्थी और टीचर सडक पर आ गये, कही मार्च निकालने का आह्वान  किया गया तो कही सोशल मीडिया पर इसे चर्चा का विषय बना दिया गया, हर जगह से इसके विरोध और प्रतिरोध के सुर उठने शुरू हो चुके थे, इसी बीच सोशल मीडिया पर गुरमेहर कौर, दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा द्वारा एक कैम्पेन सोशल मीडिया पर चलाया गया जहाँ दिल्ली के छात्रों को इस हुल्लड़ के खिलाफ एक जुट होने की अपील की गयी थी, यहाँ इस वक्त तक गुरमेहर कौर की पहचान सिर्फ और सिर्फ उनके नाम से ही थी. लेकिन जैसे-जैसे ये कैम्पेन लोकप्रिय होता चला गया वैसे-वैसे कई जाने-माने व्यक्तियों ने व्यंग्मयी अंदाज में गुरमेहर कौर पर सवाल उठाने शुरू कर दिये. अब, गुरमेहर कौर की पहचान कई मीडिया हाउस बता रहे थे और इसी संदर्भ में गुरमेहर कौर का एक पुराना विडियो निशाने पर आया जहाँ वह हिंदुस्तान और पाकिस्तान की मैत्रिमय रिश्ते की वकालत करती हुई नजर आ रही हैं.

व्यक्तिगत रूप से, कई ऐसी तस्वीर देखी जहाँ कई विद्यार्थी हाथ में हाथ से लिखा हुआ पर्चा लेकर दिखाई दे रहे थे, जहाँ रामजस कॉलेज में हुई हुल्लड़ बाजी के खिलाफ एक जुट होने की मुहिम का आगाज किया जा रहा था, मुझे नहीं पता था की ये कोई कैम्पेन का हिस्सा हैं और ना ही बहुताय सोशल मीडिया के यूजर्स को पता था की ये कैम्पेन किसने शुरू किया हैं. शायद ना ही कोई इस बारे में जानने के लिये उत्सुक था, यहाँ रामजस कॉलेज में हुई हुल्लड़ बाजी ही एक मुद्दा था. लेकिन, कुछ वक्त गुज़रते ही, कई मीडिया हाउस और सोशल मीडिया पर ये चलन शुरू हो चूका था की गुरमेहर, कारगिल में शहीद कैप्टेन मंदीप सिंह की बेटी हैं. और इसी सिलसिले में इनके द्वारा काफी समय पहले पोस्ट किया गया विडियो भी लोगो के निशाने पर आ चूका था जहाँ ये पाकिस्तान और भारत की मित्रता का आह्वान करती हुई नजर आ रही हैं, इस विडियो में एक जगह, गुरमेहर का कहना हैं की उनके पिता को पाकिस्तान ने नहीं मारा बल्कि युद्ध ने मारा हैं.

सबसे पहले, क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने इस पर चुटकी ली और उनका कहना था की उन्होने २ तिहरा शतक नहीं बनाये बल्कि उनके बेट ने बनाये हैं. इसी सिलसिले में,फिल्मी अदाकार रणदीप हुडा भी इस पर चुटकी लेते हुये दिखाई दिये. और ये सिलसिला चलता गया कही बबीता फोगट और ओलिंपिक पदक विजेता, योगेश्वर दत्त भी इस पर अपनी प्रतिक्रिया देने लगे, जो कही ना गुरमेहर पर कटाक्ष कर रहे थे जहाँ कौर उनके पिता जी का युद्ध में मारे जाने का वर्णन कर रही हैं. यहाँ, इनका विरोध करने पर, ये सवाल भी उठा की बोलने की आजादी सभी को हैं और हम सभी वाद-विवाद से अपना विरोध और प्रतिरोध का इजहार कर सकते है, लेकिन यहाँ इस पूरे घटनाक्रम के कई पहलू हैं गुरमेहर, पाकिस्तान, रामजस कॉलेज और हरयाणा के रोहतक जिला से तालुकात रखने वाले नामी व्यक्ति वीरेंद्र सहवाग, रणदीप हुड्डा और बबिता फोगट.

गुरमेहर कौर अभी २० साल की युवा हैं कॉलेज की विद्यार्थी हैं, इन्होने अपने पिता जी को २ साल की उम्र में ही खो देने का गम झेला हैं, अब इन्हें पूरा अधिकार हैं अपनी अभिव्यक्ति का इजहार करने का की ये पाकिस्तान या युद्ध के बारे में क्या सोचती हैं.
पाकिस्तान, ये हमारा पड़ोसी मुल्क अक्सर हमारे निशाने पर रहता हैं और यही हालात पाकिस्तान में है जहाँ अक्सर पाकिस्तानी मीडिया में भारत विरोधी जिक्र होता रहता हैं. लेकिन दोनों ही देश के बाकी अपने पड़ोसी देशों से भी ज्यादा मधुर रिश्ते नहीं हैं मसलन, भारत का चीन के साथ १९६२ का युद्ध और इसी सिलसिले में चीन लद्दाख और अरूणाचल प्रदेश के कई हिस्सों पर अपनी दावेदारी को पेश करता रहा हैं. और भारत की बांग्लादेश के साथ भी कई बार बड़ी छोटी सैनिक मुठभेड हुई हैं, क्या अगर यहाँ पाकिस्तान के सिवा किसी और देश के साथ भारत के युद्ध का वर्णन किया जाता तभी, गुरमेहर पर इस तरह से कटाक्ष किये जाते. क्या पाकिस्तान का विरोध मतलब इस्लाम का विरोध हैं उसी तर्ज पर पाकिस्तान का भारत विरोध क्या हिंदू धर्म का विरोध हैं, यहाँ कई मायनों में भारत-पाकिस्तान का मतलब हिंदू-इस्लाम इन दोनों समाज की आपसी रंजिश के रूप में भी दिखाई देता हैं.
रामजस कॉलेज आज कुछ १०० साल पुराना कॉलेज हैं यहाँ किसी तरह गांधी जी और आंबेडकर भी इस कॉलेज से जुड़े हुये हैं, कॉलेज का प्राचीन इतिहास, यहाँ हर सामाजिक या राजनीतिक मसले पर अपनी राय रखने की आजादी देता हैं फिर वह चाहे आपतकाल के दौरान उस समय की सरकार का विरोध करना ही क्यों ना हो.

अब, इस पूरे प्रकरण में वीरेद्र सहवाग, रणदीप हुड्डा और बबीता फोगट का शब्दों या व्यंग के माध्यम से गुरमेहर कौर का विरोध करना की उनके पिता को पाकिस्तान ने नहीं बल्कि युद्ध ने मारा था, अगर इन तीनों व्यक्तियों की बात करे तो ये अपने-अपने क्षेत्र में अपना-अपना लोहा मनवा चुके हैं. अब, ये जिस कामयाबी के शिखर पर हैं वहा कही भी इनकी क्षमता या सोच पर कही भी किसी को कोई प्रश्न नहीं हो सकता, तो इन्होने क्यों गुरमेहर का विरोध किया ? पिछले समय नरसिंह पंचम यादव सुर्खियों में बने हुये थे, कोई मैडिकल टेस्ट इन्हें ड्रोपिंग का गुनहगार बता रहा था तो कोई निर्दोष. इसी तरह पिछले समय में एक बीएसएफ के एक जवान द्वारा सेना में दिये जाने वाले खाने की गुणवत्ता पर सवाल उठाये, ऐसे कई मसले हैं जहाँ एक आम भारतीय अपनी एक राय रखता था, लेकिन इस तरह के मसलो पर कही भी सहवाग, हुड्डा और बबीता ने अपनी कोई प्रतिक्रिया सार्वजनिक रूप से नहीं दी, लेकिन जिस तरह से गुरमेहर का विरोध कर रहे हैं, ये कही भी जज्बाती बयान नहीं लगते. थोड़ी सी, अगर इन तीनों के बारे में जानने की कोशिश करे तो ये तीनों हरयाणा के रोहतक जिला से हैं, इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस के हुड्डा परिवार का दबदबा रहा हैं, कही गुरमेहर पर कटाक्ष इनकी भाजपा के प्रति इमानदारी हैं और इसी संदर्भ में २०१९ की लोकसभा सीट पर अपनी अपनी उम्मीदवारी की दावेदारी तो नहीं.


आज राजनीति, में धर्मवाद, भाषावाद, प्रांतवाद, अपना अपना स्थान बना चुके हैं और राजनीति अक्सर चर्चा में रहने का ही नाम हैं, लेकिन जिस तरह से गुरमेहर कोर द्वारा युद्ध पर सवाल उठाये गये हैं, उस पर राजनीति नहीं होनी चाहिये, आज हम जो भी गुरमेहर कौर पर सवाल कर रहे हैं एक बार ये सोचना चाहिये की जब किसी शहीद की पार्थक देह उसके घर पर लायी जाती हैं तो वहा का माहौल क्या होगा ? क्या यहाँ कोई भी परिवार युद्ध की हिमायत करेगा ? शायद नहीं, आज हमें गुरमेहर कौर के साथ मिलकर युद्ध के खिलाफ मुहिम में आगाज करना चाहिये ना की इस पर राजनीति होनी चाहिये. धन्यवाद.

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