अरे, सरदार जी हो तो ज़रुर खाते-पीते होंगे.



साल २००४ की दिवाली की रात घर से बाहर किसी सडक पर था, अपनी टैक्सी चलाकर कुछ लोगो को उनकी मंजिल तक पहुंचाने के कर्तव्य निर्वाह पर, यहाँ कुछ विद्यार्थी थे और शायद १-२ सरकारी या गैर-सरकारी कर्मचारी, सुबह होते-होते दीव पहुच गये, होटल में कुछ समय सोने के बाद खाने का समय हो गया. अब, ड्राइवर को सवारी ही खाना खिलाया करती हैं जहाँ ये कम ही पूछा जाता की आप क्या खाओगे, बस फ़रमान होता हैं की इनके लिये ये ला दो, टेबल पर खाना आ गया जहाँ मटन परोसा गया था, देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ और मैने शाकाहारी होने का वास्ता देकर खाने से मना कर दिया. उसके बाद सफ़ेद चने मंगाये गये, जब जाकर मेरा आहार संपूर्ण हुआ, लेकिन नजरे सवाल कर रही थी सरदार जी हो कर मांस नहीं खाते ?”.

ऐसा ही कुछ २-३ साल पहले हुआ जब पडोसी को बताया की में शराब का सेवन नहीं करता, सामने से जवाब आया अरे, सरदार जी तो खाने-पीने वाले होते हैं, आप कैसे “. अब, खाने-पीने का तात्पर्य क्या ? मसलन मांस खाना और शराब का सेवन करने से आप खाने-पीने वाले बन जाते हैं लेकिन एक सरदार जी अपनी मर्जी से साधारण खाने में यकीन रखता हो तो ये शायद समाज को मान्य नहीं होता, फिर वह चाहे नया होटल खुला हो जहाँ मुझे ये ज़रुर बताया जाता हैं  की यहाँ मांसाहारी खाना भी परोसा जाता हैं, फिर वह चाहे रसोई गैस के लिये चिमनी ही क्यों ना खरीदनी हो, मुझे कहा जाता हैं सर, आप ये लेकर जाइये, मीट बनाने में धुँआ बहुत निकलता हैं जिसे निकालने में ये चिमनी कारगर रहेगी.

जीवन के कुछ समय, हरयाणा, गुजरात, महाराष्ट्र, इत्यादि जगह पर रहने को मिला जहाँ शराब के ठेके और मिट, चिकन, मांस बेचने की दुकानें आम हैं, गुजरात यु तो ड्राई स्टेट हैं लेकिन चोरी छुपकर शराब मिल ही जाती हैं, किस तरह, आप ने रईस फ़िल्म तो देखी ही होगी, लेकिन इन प्रांत के नागरिक का अंदाजा खाने-पीने वालों में नहीं लगाया जाता, अब ऐसा क्या हैं की हर आम आदमी मुझे, एक सरदार जी को देखकर, यकीनन ये अंदाजा लगा लेता हैं की ये खाने पीने वालों में से हैं, ये यकीन इतना पक्का होता हैं की आप से बिना पुछे, आप को खाने में मास परोसा जा सकता हैं, लेकिन ये धारणा क्यों हैं ?

पंजाब के प्रति व्यक्ति शराब की खपत सबसे ज्यादा हैं, ये सरकारी आकड़े हर साल बढते भी जा रहे हैं, लेकिन एक आम नागरिक कहाँ इन सरकारी आकडों या अखबार में छपी छोटी सी खबर को पढ़ंता हैं, तो ऐसा क्या हैं की समाज में ये आम धारणा बनी हुई हैं की सरदार जी हैं तो खाते-पीते होंगे. मेरा व्यक्तिगत मानना हैं की इसके लिये पंजाबी भाषा में गायें जाने वाले लच्चर गीत और उनको प्रोत्साहित करने के लिये बनाये गये ५ मिनट का विडियो, सबसे ज्यादा जवाब दार है, जहाँ इनकी लोकप्रियता देश-विदेशों में तो हैं ही लेकिन उन जगह पर भी हैं जहाँ पंजाबी भाषा का ज्ञान बहुत मामूली हैं या बिलकुल नहीं हैं, लेकिन गीत की धुन और विडियो को देखकर गैर पंजाबी भी झुमने लगता हैं.

भाषा, समाज का आइना होती हैं और इसे जिस तरह से प्रोत्साहित किया जाता हैं उसी तरह हमारे समाज का अक्स बनता हैं, अब जब पंजाबी भाषा के गीत में हनी सिंह गायेगा ५ बोतल वोडका, काम अपना रोज का”, वही गुरदास मान का मशहूर गीत आपडा पंजाब होवे, घर दी शराब होवे”, जहाँ ये घर में निकालने वाली शराब को प्रोत्साहित कर रहे हैं और वही ख्याति प्राप्त पंजाबी गायकी का मशहूर नाम बबू मान जिसकी हर कैसेट के ८ गीत में से एक-एक गीत  नशा, हिंसा और प्यार की बेवफ़ाई को प्रदर्शित करता हुआ मिल ही जायेगा, अब शराब, हिंसा, प्यार में धोखा इनका क्या ताल-मेल हैं, इसे कही लिखने की जरूरत नहीं. इनका पहला गीत था लोका ने पीती तुपका तुपका, में ता पीती बाटिया नाल”, लोगो ने तुपका पी और मैने बर्तन भर-भर के पी. वही इस विडियो में इनके लड़ खड़ातै कदम, बता रहे थे की शराबी कैसा होता हैं. लेकिन इसके बाद शायद पहली बार ये हुआ होगा की पंजाबी गायकी में बबू मान द्वारा मुर्गे को बनाने की तर्ज पर भी गीत गा दिया गया.

आज आलम ये हैं की शराब को पीछे छोड़, पंजाबी गायकी में चिट्टा जैसे नशे के शब्दों ने भी अपनी पहचान बना ली हैं. जहाँ गायक कलाकार दिनों में ही मशहूर होने की इच्छा रखता हो, वहां किसी ना तरह से नशे पर गीत गाना लाजिमी हैं, पंजाब में इन गायक कलाकारों की दीवानगी अपनी चरम पर रहती हैं, लोग इन्हें अपना रोल-मॉडल मानते हैं और इनके द्वारा गीतों के माध्यम से कही गयी बातों को अनुकरण भी दीवानगी की हद तक किया जाता हैं.  आज हालत ये हैं की पंजाब में पानी से ज्यादा शराब को बहाया जाता हैं, यहाँ अगर शादी या और कोई खुशी का मौका हो तो, डी.जे. लगाकर, हाथ में शराब की बोतल लेकर एक आम पंजाबी नागरिक गुरदास मान, बबू मान, हनी सिंह, इत्यादि मशहूर कलाकारों की तर्ज पर खुद को इनकी तरह ही दिखाने  में सम्मान महसूस करता हैं. लेकिन, ये भी हकीकत हैं की आज भी पंजाब के समाज का बहुत बढ़ा हिस्सा शाकाहारी या साधारण भोजने करने में ही यकीन रखता हैं और शराब से कोसो दूर हैं.


आज जहाँ पंजाब को नशे का गढ़ कहा जाता हैं वही इस प्रांत के नागरिक खासकर सरदार जी को खाने-पीने वाला. व्यक्तिगत रूप से खाना पीना हमारी व्यक्तिगत आजादी का माप दंड हैं, यहाँ इसी तर्ज पर मैने शाकाहारी रहने का फैसला लिया हैं और इस फैसले में कही भी ऐसे ज्ञान का योगदान नहीं हैं जो खाने के नजरिये से किसी भी तरह की मानसिकता में होने वाले बदलाव को दर्शाता हो और इसी अनुसार मेरे लिये शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही समान्य और साधारण इंसान हैं, जीवन में कई ऐसे अनुभव भी हुये जहाँ उन लोगो ने साथ दिया जहाँ विचारों में बहुत ज्यादा असहमति थी. इस लेख के माध्यम से में इतना ही कहना चाहता हु की किसी भी तरह के तथ्यों या दिखावे से, हमें किसी समाज या नागरिक के बारे में अपनी राय नहीं बनानी  चाहिये. यहाँ, अमूमन हमारी राय या सोच झूठी भी हो सकती हैं जिस तरह मैं एक सरदार जी होकर पूर्णतः शाकाहारी हु और किसी भी तरह के नशे का सेवन नहीं करता.

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