दादी कहा करती थी की किसी
कारण वश गाय के पैर में चोट लगी थी और वह जहां जहां चरती रही वहा वहा गाय का खून
गिरता रहा और वही से मसूर की दाल हरी हो गयी. अब ये कितना सच हैं या नही पता नही,
लेकिन इसी के कारण हमारे घर में मसूर की दाल
नही बनती हैं. दादी अक्सर कहानिया सुनाया करती थी की “किस तरह एक बार सीता जी ने बड़े से धनुष को एक खिलौने की तरह
उठा कर एक तरफ रख दिया था. और यही देखकर राजा जनक ने ये घोषणा की थी की जो भी
योद्धा इस धनुष को उठा पायेगा, उसका स्वंयवर सीता जी से
किया जायेगा. और इसी के अनुरूप राजा राम ने इस परीक्षा को पार किया और राम-सीता की
जोड़ी बन गयी.” बचपन से ही मेरे लिये राम
जी की छवि मर्यादा पुरुषोत्तम की बनी हुई थी लेकिन आज कल जिस किसी जगह पर उनकी
तस्वीर देखता हु उनके हाथ में धनुष होता हैं और रावण का वध करते हुये ही दिखाई
देते हैं. आखिर क्यों ?
शायद राजा दशरथ ने अपने
पिछले जन्म में सोना दान किया होगा, जिस कारण उनके घर राम जी जैसा सुपुत्र पैदा हुआ और राजा दशरथ के वचन को पूरा
करने के लिये एक भी क्षण गवाये बिना १४ साल का कठोर वनवास स्वीकार कर लिया. और
प्रेम की क़द्र इतनी थी की सबरी के झूठे बेर भी हस्ते हस्ते खा लिये थे. रावण के
साथ युद्ध को रोकने के कई विकल्प उन्होंने किये थे और आखरी विकल्प के रूप में ही
युद्ध को स्वीकार कर रावण का वध किया था. अब इसी की परिकल्पना जब में आज उन लोगो
से करता हु जो श्री राम जी को सर्वोपरि मानते हैं लेकिन उनका जीवन और स्वर इतने क्रोधित
क्यों होता जा रहा हैं ? युद्ध टालना तो दूर,
हर संवाद में मर मिटने की बात क्यों कही जा रही
हैं ?
शायद इसका सच यही कहा जा
सकता हैं की जब से राजनीति में धर्म को शामिल कर लिया गया हैं तब से धर्म की मिठास
उससे कही दूर चली गयी हैं. ये सिर्फ एक धर्म की बात नहीं हैं, हर जगह पूरी दुनिया में धर्म को राजनीति में
शामिल किया जा रहा हैं फिर चाहे वह हिन्दू, इस्लाम, सिख या और कोई धर्म हो.
राजनीति का पहनावा भी धार्मिक रूप के अनुसार किया जा रहा हैं फिर चाहे गांधी टोपी
हो या गोल. और लोगो के जज्बातों को वोट में बदलना इसके लिये राजनीति का सबसे बड़ा
नारा और हथियार यही होता हैं की “धर्म / मज़हब / पंथ खतरे
में हैं.” ये एक आम इंसान को भयभीत
भी करता हैं और समाज को बहुसख्यंक और अल्पसख्यंक में भी बाट देता हैं. लेकिन
राजनीतिक कार्यकर्ता ये भूल जाता हैं की उसकी आस्था के अनुसार जिस भगवान ने या
खुदा ने उसे जिंदगी बख्शी हैं और जीने के लिये सांस, हवा, पानी दिया हैं उसकी रक्षा
वह कैसे कर सकता हैं, खास कर जब जिंदगी का पता
ना हो कब धोखा देगी. लेकिन ये राजनैतिक नारा इतना प्रबल होता हैं की लोगो को पता
ही नहीं चलता की कब इसके बहाव में जज्बाती हो गये हैं और इन्ही जज्बातों की बदौलत
क्रोध का आना तो स्वभाविक हो ही जाता हैं.
अब यहाँ सवाल ये भी हैं
की आखिर क्यों धर्म को राजनीति में शामिल किया जा रहा हैं ? क्यों इंसान उसकी मूलभूत समस्याओं को (भूख, शिक्षा, सुरक्षा) भूल कर इस राजनीति का शिकार हो रहा हैं. राजनैतिक
दल, अगर इसका अर्थ पूरी
दुनिया से जोड़ कर देखा जाये तो भी अपनी करनी से लोगो को प्रभावित नही कर पा रहे
हैं. आज बेरोजगारी, भूख, अशिक्षा, डीप्रैशन, इत्यादि समस्याओं ने इतना
उग्र रूप धारण कर लिया हैं की इनका हल पाना एक तरह से नामुमकिन सा हो चूका हैं.
खासकर जब दुनिया के कुछ ५-१०% धनाढ लोगो ने पूरी दुनिया का लगभग ८०-९०% पूंजी कोअपने अधीन कर रखा हो .
समय समय पर राजनैतिक दलों की इमानदारी पर भी
सवाल उठते रहे हैं और आये दिनों इन पर भ्रष्टाचार से प्रेरित खबरें भी आती रहती
हैं. इन्ही सभी कारणों की वजह एक आम नागरिक का विश्वास राजनैतिक दलों से उठ गया
हैं. और इसी खोये हुये विश्वास को पाने के लिये धर्म सबसे कामयाब तरीका हैं.
क्युकी आज भी बहुताय आबादी अपनी अपनी आस्था और धर्म से बड़ी ही भावुकता से जुड़ी
हुई हैं. अब इन्ही जज्बातों को वोट में बदलने के लिये, राजनैतिक दल इस तरह का माहौल बना देते हैं की जिससे ये
दिखाया जाता हैं की हमारा धर्म / मज़हब खतरे में हैं. अगर अब ना बचा पाये तो हम भी
इसके साथ मिट जायेगे. और, कही ना कही एक आम आदमी
खुद को बचाने के लिये पता ही नहीं चलता की कब इस छल को हकीकत मान लेते हैं.
भारत जैसे देश में, आपको मंदिर में प्रार्थना, मस्जिद में नमाज और
गुरुद्वारे में गुरबानी पड़ने की पूरी तरह आजादी हैं. और कही भी कोई इस तरह का
माहौल नहीं हैं की आप को कोई अपनी धार्मिक गतिविधि में ख़लल डालता हो. फिर किस तरह
से धर्म / मज़हब / पंथ खतरे में आ सकते हैं. दरअसल हमने अपने इष्ट को और अपने अपने
धर्म को पूरी तरह से जाना ही नही और इसी कारण क्रोधित होते हैं अन्यथा आपसी प्रेम
और भाई चार ही हमारे समाज को परीभाषित करता होता. अब आप पर हैं की आप धर्म की रूप
रेखा उसे मानते हैं जो की गीता,
रामायण, कुरान और श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में दर्ज हैं या उसे जिसे
आज कल पूरी दुनिया में राजनैतिक दल परिभाषित कर रहे हैं. जय हिंद.
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