२०१७ का पंजाब विधानसभा चुनाव इसी बीच पंजाब मे अकाली दल बादल और भारतीय जनता पार्टी के बिगड़ते और उभरते रिश्ते. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



२०१५ में हरियाणा के मुख्यमंत्री समाहरो के दौरान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी और पंजाब के मुख्यमंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल जी, एक ही मंच पर विराजमान थे लेकिन मोदी जी ने बादल साहिब से एक हद की दूरी बना रखी थी और ना ही इसी दौरान इनके बीच किसी भी प्रकार के स्वाद को देखा गया था. अंदाजा लगाना आसान था की भारतीय जनता पार्टी को ये क़तई पसंद नहीं था का उसके पंजाब का राजनैतिक भागीदार अकाली दल बादल, हरियाणा के चुनावो में उसके विरोधी पक्ष इंडियन नेशनल लोकदल के साथ खड़ा हो. कुछ इसी तरह की दुरी कई ऐसे ओर सार्वजनिक जगहों पर देखी गयी और ये क़यास भी लग रहे थे की पंजाब का ये राजनैतिक गठजोड़ कुछ ही दिनों में बिखर जायेगा. लेकिन आज जब २०१७ में पंजाब के अंदर विधानसभा चुनाव होने हैं तब अक्सर मोदी जी और बादल साहिब को गले मिलता देखा जा सकता हैं. २०१४ से इन्ही रिश्तो में खट्टा-मीठा अहसास बना हुआ हैं.

२०१४ के चुनावो के पहले श्री नवजोत सिंह सिधु जो उस समय भारतीय जनता पार्टी के सदस्य थे अक्सर सार्वजनिक तोर पर श्री बादल की पंजाब सरकार पर कटाक्ष करते रहते थे. और इसी कारण दोनों पार्टियों में एक दूरी चुनावो से पहले ही बनती दिख रही थी. इसी बीच चुनावो के ऐलान के बाद श्री अमृतसर साहिब से भारतीय जनता पार्टी ने श्री नवजोत सिंह सिधु का टिकट काट कर श्री अरुण जेटली को अपना उम्मीदवार बनाया. राजनीति पर नजर रखने वालों का ये दावा हैं की इस उथल पुथल के पीछे अकाली दल की ही मांग थी जो की श्री अमृतसर साहिब को अपनी एक सुरक्षित सीट समझ रही थी. इसी बीच उस समय के पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष श्री प्रताप सिंह बाजवा के कहने पर श्री अमृतसर से कांग्रेस पार्टी ने अपना टिकट श्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह को दिया. और जो नतीजे आये जिसमें कांग्रेस की यहाँ से विजय हुई और इन्ही नतीजो ने भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल बादल के चुनावी गठजोड़ की मिठास को खटास में बदल दिया. ये हार कोई नहीं पचा पर रहा था खासकर जब नरेन्द्र मोदी के रूप में भारतीय जनता पार्टी ने पूरे देश में अपना विजय परचम फैहराया था. और इसी के कुछ महीनों बाद हरियाणा के विधानसभा चुनावो में दोनों दल आमने सामने खड़े थे और श्री नवजोत सिंह सिंधु भारतीय जनता पार्टी के स्टार प्रचारक बने हुये थे और पूरी तरह से हर मर्यादा को भंग कर बादल दल पर प्रहार कर रहे थे. इन्ही चुनावो ने इन बिखरते रिश्तो में आग का काम किया.

२०१४ चुनावो के पहले अक्सर अकाली दल बादल केंद्र की कांग्रेस सरकार पर पंजाब से अपेक्षा का आरोप लगाता था और यही कहते थे की एक बाद केंद्र में अकाली भागीदार की सरकार आ जाये तो पंजाब को उसका पूरा अधिकार मिलेगा. लेकिन २०१४ में कमल के पूरी तरह खिल जाने से भी अकाली दल बादल का चुनावी चिन्ह तकड़ी कही ना कही खुद से हो रही उपेक्षा को तोल रही थी. इसी बीच पंजाब में बंदी सिंह की रिहाई का मामले ने पूरा जोर पकड़ लिया, ये वह बंदी सिंह हैं जो ८० के काले काल में किसी ना किसी गुनाह में आज भी जेल में बंद हैं लेकिन इनकी सजा पूरी हो चुकी हैं. इसी के संदर्भ में उमरदराज बापू सूरत सिंह ने अनिमित भूख हड़ताल की घोषणा कर दी और पूरा पंजाब जज्बाती होकर बंदी सिंह की रिहाई की मांग करने लगा लेकिन अकाली दल बादल जिसकी भागीदार सरकार देहली में इस पर कुछ खास प्रोत्साहन देने वाला परिणाम ना ला सकी.

इसी दौरान पंजाब एक बार फिर दहल गया जब गुरु ग्रन्थ साहिब के पावन अंगों (पेजों) के टुकडे गलीयो में बिखरे हुये पाये गये. इस दुखांत की खबरें आम आने लगी और ये पंजाब में ही अलग अलग जीलो में हो रहा था. भारी मात्रा में लोगो ने इसका विद्रोह किया कही धरने लगाये गये, कही सडक याता यात को ठप किया गया. मानो पूरा पंजाब ही घर से बाहर निकल आया था. ग़नीमत यह रही के पूरी तरह से लोगो ने शांतमयी और अहिंसा के माध्यम से अपना विरोध जाहिर किया लेकिन एक इसी तरह के अहिंसा विरोध पर हुई पुलिस फायरिंग में २ नोजवान मारे गये. जिससे पंजाब के लोगो के जज्बात और भी आहत हुये और इसी के बाद कई जगह से विरोध के उग्र होने की खबरें भी मिली लेकिन अमूमन पूरा विरोध शांतिमयी रहा. लेकिन लोग अपनी अकाली दल बादल सरकार जो की सिख धर्म की पैरवी करने का भ्रम देती थी उस पर सवाल करने लग गये. लेकिन कही भी इस पूरी साजिश का पता करने में पंजाब की अकाली सरकार और केंद्र की भारतीय जनता पार्टी की सरकार नाकामयाब रही. लेकिन थोड़े दिनों के बाद जालंधर में पंजाब आरएसएस के सीनियर मैंबर श्री जगदीश गगनेजा जी की अज्ञात लोगो ने गोली मारकर हत्या कर दी. शायद अभी तक इन हथियारों की खोज नहीं की ज सकी हैं. अब इसे सजोग ही कह सकते है या पता नहीं पर्दे के पीछे का सच क्या है लेकिन इस हादसे के कुछ दिनों बाद से ही गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी के नये मामले नहीं आये.


इस समय दौरान भारतीय जनता पार्टी ने देहली और बिहार में अपने दम पर अकेले विधानसभा के चुनाव लडै भी और भारी सीटो से पराजय का सामना करना भी पड़ा. शायद नरेन्द्र मोदी जी का जादू कम हो रहा था और शायद तभी भारतीय जनता पार्टी को अपने पुराने मित्रों का राजनैतिक मोल का अहसास हुआ और नये सिरे से रिश्तो को परिभाषित करने की कोशिश की जा रही हैं. फिर वह चाहे शिव सेना हो या अकाली दल बादल. लेकिन आज चाहे दोनों दलों के शीर्ष नेता बाहों में बाहे डालकर घूम रहे हैं लेकिन पिछले समय में आये रिश्तो के तनाव ने दूसरी राजनीति पार्टी जैसे कांग्रेस और आप को अपनी पहचान फिर से कायम करने का मौका ज़रुर पंजाब में मिल ही गया. आज पंजाब जब नशे और बेरोजगारी के चलते अपनी निराशा की चरण सीमा पर हैं तब ये देखना अति आवश्यक हो जायेगा की पंजाब में भारतीय नागरिक अपनी राज्य सरकार का दयिअत्त्व किस राजनैतिक दल को देता हैं. लेकिन एक सकेंत ज़रुर जमीनी स्तर पर मिल रहा हैं और शायद उभरते हुये भारत की पहचान भी बन रही हैं की इस बार मतदाता अपनी परेशानियों को ध्यान में रखकर अपना मत देगा ना की धर्म और जात-पात से प्रभावित हो कर.

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