अक्सर जब भी, हमारे देश के तिरंगे को
हवा में मस्त और जलाल से झूमता हुआ देखता हु तब अक्सर मुझे इसकी और मेरी आजादी का
अनुभव होता हैं,
इस अनुभव को और भी नजदीक से जान सका जब एक बार
बाघा बॉर्डर पर शाम की परेड देखने गये थे जहां जमीनी तोर पर हमारे देश की सीमा
ख़त्म हो रही थी. उस तरफ पाकिस्तान शुरू हो रहा था और इस तरफ भारत था. में यहाँ
भारत की ताकत को देख भी रहा था और महसूस भी हो रही थी. तब से मैने हमारे देश को
पिता जी कहकर सम्मानित करना शुरू कर दिया और अक्सर इन्हें पिता जी कहकर ही प्रणाम
करता हु. लेकिन आज जब बच्चो को स्कूल छोड़ कर वापस आ रहा था तो राष्ट्रगान के चलते
सभी खड़े थे और मेरे पैर भी रुक गये, यहाँ मेरी मानसिकता अपने जीवन में उलझी हुई थी
कही भी मेरे साथ मौजूद नही थी लेकिन आज सभी खड़े हैं तो में भी रुक गया.
राष्ट्रगान खत्म होने के बाद बच्चो द्वारा ही स्कूल में भारत माता की जय का नारा
लग रहा था और इसके बाद हर क्लास रूम से इसे दोहराया भी जा रहा था. अब बचपन से ही
नारे के संवाद के जरिये हमारे बच्चो की मानसिकता इस तरह कर दी जायेगी की देश एक
माँ हैं. लेकिन इस मानसिकता का अवलोकन करना मेरे लिये आज जरूरी हो रहा हैं.
माँ ये शब्द हमारे समाज में एक अनोखी पहचान
रखता हैं. इस रिश्ते को बिना किसी शक के रिश्तो की लकीर में सर्वोच्च मान लिया गया
हैं. हर बच्चे के लिये माँ का शब्द भावनाओं से लिपटा हुआ हैं. इस शब्द के तहत हर
बच्चा अपने जन्म से लेकर जीवन के हर मोड़ पर जुड़ा हुआ हैं. एक बच्चे की मानसिकता
की नजरिये से माँ का मतलब जिसने उसे जन्म दिया, अपना दूध पिलाया, हस समय बच्चे के साथ रही, उसे नहलाया, स्कूल भेजा, पडाया, खिलाया, रात को लोरी देकर सुलाया भी, इत्यादि. अगर थोड़े शब्दों में कहा
जाये तो माँ का अधिकार अपने बच्चे पर सबसे ज्यादा माना जाता हैं क्युकी यहाँ माँ
एक जननी भी हैं,
टीचर भी हैं, दोस्त भी हैं, आपका मार्ग दर्शक भी बनती हैं. माँ जो कह रही हैं अमूमन उसे बच्चे के लिये एक
तरह से बिना किसी संदेह के स्वीकार होता हैं. तो इस रिश्ते के तहत कही भी माँ की
प्रमाणिकता पर किसी भी प्रकार का सवाल किया जाना या शक होने की कोई गुंजाइश नही
होती. अगर कोई सवाल करता भी हैं तो इसकी इज्जत हमारा सभ्य समाज नही देता. अब इसी
नजरिये से जब हमारी मानसिकता में हमारा देश को एक माँ की हैसियत दी जा रही हैं तो
कही भी इस पर सवाल करने की आजादी आप से बिना शर्त लैली जाती हैं. यहाँ, तस्वीरों में तो भारत माँ की तस्वीर को हमारे देश के नक्शे के साथ जोड़ कर
दिखाया जाता हैं लेकिन असलियत में यहाँ मालिकाना हक हमारे देश को चलाने वाली
व्यवस्था रखती हैं. थोड़े शब्दों में, आप हमारे देश की व्यवस्था से सवाल नही कर सकते
हैं अगर करेंगे तो इसे एक गुन्हा की तरह देखा जाना लाजमी हैं.
लेकिन इस नजरिया का एक और पहलू भी हैं यहाँ माँ
का मतलब एक औरत हैं और औरत हमारे सभ्य समाज में कितनी सुरक्षित हैं ये कही भी
लिखने की जरूरत नहीं हैं. सरकारी रिपोर्ट हर साल यही कह रही हैं आये साल औरत पर
होने वाले अपराधो की संख्या बडती जा रही हैं. यहाँ अपना एक व्यक्तिगत उदाहरण भी
देना चाहता हु ताकी अपने तथ्य से इमानदारी कर सकू की मेरे लिये देश एक पिता क्यों
हैं ? १९८६-८७ में इंद्रा गांधी की हत्या के बाद अक्सर हम पंजाब
से बाहर सहमे रहते थे इसी के तहत पिता जी हमें यानी के मेरी माँ को और हम दोनों
भाइयो को हमारे पंजाब के गाव में छोड़ गये थे. गाव के ही सरकारी स्कूल में दाखिला
भी करवा दिया था. मेरे दादा-दादी उम्र लायक थे और घर पे रखी हुई भैसों का चारा
खेतों से मेरी माँ ही लाया करती थी. अक्सर में भी मेरी माँ के साथ होता था और
हमारे साथ हमारा सीरी चीना भी होता था. खेतों में जाते वक्त और आते वक्त माँ दाँती
(जिस से खेतों में चारा काटा जाता हैं. ) उसे हाथ में इस तरह पकडती थी की हर किसी
आने जाने वाले को इस बात के अंदेशा रहे की मेरी माँ के हाथ में दाँती हैं. तब में
यही समझता था की मेरी माँ इसे चारा काटने के औज़ार के तरीके लेकर जाती थी लेकिन आज
समझ पा रहा हु यहाँ ये एक सुरक्षा का हथियार था. लेकिन किससे सब तो अपने थे.
इसी दौरान बगल के घर से अक्सर जोर जोर से
चमकीले के गीत बजाये जाते थे. चमकीला, एक पंजाबी गीतकार था और उसके उन बोलो को यहाँ
लिख रहा हु जिसे अक्सर पडोस में बजाया जाता था. “साली, तेरी बहन कंडम हो गयी” और इसी गीत मे आगे महिला गीतकार कहती हैं “मार ना होर try
वे हांडै जीजा” . १९८६ में जब भारत देश
एक सभ्य समाज की रूप रेखा में पहचाना जाता
था, तब ये गीत हमारे पंजाबी समाज को मुँह चिड़ा रहा था. हमारे घर
में मेरी माँ, हम दो बच्चे, बड़े दादा-दादी जी. और सुबह से शाम ये बजता हुआ
गीत जो हमें ना चाहते हुये भी सुनना पड़ता था. हद तब हो गयी जब एक दिन पापा छुट्टी
पर आये और वह भी पडोस में जाकर इसी गीत पर बहक रहे थे. कुछ समय बाद हम पंजाब से
वापस अहमदाबाद आ गये. लेकिन यहाँ इतवार को जब पापा की छुट्टी होती थी तभी यही गीत
हमारे घर में बजाया जाता था.
इसी गीत को एक परुष सुन भी रहा हैं और नाच भी
रहा हैं और इसी के जरिये वह औरत को मानसिक रूप से परेशान कर रहा हैं. अब जब औरत
फिर वह चाहे किसी भी रिश्ते के रूप में हो माँ, बहन, बेटी, पत्नी, दादी, इत्यादि लेकिन ना तो वह
हमारे देश में, गाव में, शहर में और तो और घर में सुरक्षित ना थी और ना
ही हैं ये जमीनी हकीकत कल भी थी और आज भी
हैं. लेकिन वही परुष को पूरी आजादी हैं. तो फिर देश एक ताक़तवर पुरुष की रूप रेखा
में एक पिता ही होना चाहिये. ना की एक असुरक्षित औरत की रूप रेखा में माँ होना
चाहिये. इसी संदर्भ में जब हम हमारे देश की व्यवस्था की बात करे तभी इस पर पुरुष
प्रधान समाज का ही अधिकार हैं. फिर वह चाहे महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में लटका
कर क्यों ना रखना हो. जब हमारा समाज और व्यवस्था एक पुरुष प्रधान हैं तब देश को
पिता ही कह कर प्रणाम करना चाहिये ना की माँ की रूप रेखा में इसके चरण छुये जाने
चाहिये. जय हिंद.
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