शराब, ये गैर को अपना बना देती
हैं, होश मैं मदहोश कर देती हैं.
ये विद्रोह की चिनगारी भी लगाती हैं और दुश्मन
को दोस्त भी बना देती हैं.
क्रयी किसे, कहानियों, फ़लसफा हैं इसके, एक पल के लिये ही, गुलाम को बादशाह बना देती हैं,
हरबंश डरता हैं इसकी मदहोशी मैं डूबने से, क्योंकि ये नाम भी हैं और बदनाम भी बना देती हैं.
शराब, इस का नाम भी हैं और
बदनाम भी हैं. मैं इसे पीता भी नहीं, लेकिन इससे नफरत भी नहीं करता की इमानदारी से
इसके बारे मैं बात ना कर सकू. बचपन मैं, पिता जी काफी शौकीन थे
शराब के. पिता जी के हलक के नीचे बस दो ही घुट जाती थी और ३ फिट की दीवार फाँद
जाते थे, मुझे पता था की उनके कौन कौन से टिकाने होंगे और चल पड़ता था
अपनी ताकत साइकिल को लेकर. लेकिन अब मैं इतना जरूर सोचता हु की लोग इससे क्यों
पीते हैं ? क्या वजह हैं ?
एक बार मैं अचंभित रेह गया जब मेरे दो दोस्त जो
अलग अलग धर्मो से तालुक रखते थे. लेकिन दोनों कट्टर धार्मिक विरोधियों को एक साथ
बैठ के शराब को पीता हुआ देखा. और बड़ी जोर जोर से दोनों टह्कै लगा रहे थे. शायद
उनकी अन्दर की ईर्षा और क्रोध को इस शराब ने शांत कर दिया था. क्या वजह थी ? मैं एक ही निष्कर्ष निकाल पाया की हमने जो मोखोटे अपने सार्वजनिक जीवन मैं पहन
के रखते हैं जैसे की शराफ़त, धार्मिक , और भी बहुत से हैं, शराब की मदहोशी कही ना कही इससे हमें आजादी दिलाती हैं और आप को आप से मिलाती
हैं चाहे फिर वोह समाज की नजरों मैं अच्छा हो या बुरा. एक बार और अचंभित रेह गया
की जब मेरा एक बोस जो की एक सरवन जाती से था उस को, उसके ड्राइवर (जो की छोटी
जाती का था) के साथ शराब पीता हुआ देखा. भाई, इस शराब ने तो सारी जात
पात और धर्म के भेद भाव ही मिटा दिये. एक बार सफ़र मैं, मेरे एक दोस्त को एक अनजान हमसफ़र के साथ शराब को पीते हुये देखा. अब शराब की
एक बात और भी अजीब हैं की इसे अकेला कोई पी नहीं सकता, भाई कोई ना कोई तो होना चाहिये इसके साथ टेहके लगाने के लिये. मतलब, मदहोशी के आलम मैं अकेलापन नहीं बर्दाश्त होता. इसे पीकर लोगो को नाचते हुये
देखा, हंसते हुये देखा शायद नकार सकता हु की किसी को रोते हुये
देखा हो. तो क्या शराब हँसना, गुनगुनाना , नाचना सिखाती हैं मानो
जीना सिखाती हैं.
इसका एक और भी पहलू हैं जिस पे ध्यान देने की
जरूरत हैं, की ऐसे कई कारजी पेशे हैं हमारे देश मैं जिसे जुड़ा हुआ
लगभग हर मानुस शराब पिता हैं जैसे की पुलिस, वकील, सरकारी बाबू,
राजनेता, ऐसे बहुत से और भी पेशे
हैं की कोई शायद ही इससे जुड़ा हुआ शराब का शौकीन ना हो. अब क्या वजह हैं ? मेरे कई दोस्त हैं इन पेशो से हैं जीन से बात करने के बाद एक निष्कर्ष तो
निकाल सकता हु की इंसान के अन्दर मानवता की रोशनी तो हमेशा रहती हैं बस इसकी लो
कभी सूक्ष्म, मध्यम या अति उत्तेजित होती हैं, और इन तमाम पेशो मैं अधिकांश कही ना कही यहाँ पे इंसान दूसरे मानुस का परोक्ष
या अपरोक्ष रूप से हनन करता हैं जैसे की रिश्वत, भ्रष्टाचार, अहंकार और जो दर्द बन जाते आम मानुष के. अब ये पेशो से जुड़े हुआ लगभग हर
इंसान कही ना कही उस मानुष की पीड़ा या दर्द समझता हैं और मेहसूस करता हैं. कही ना
कही खुद को दोषी भी मानता हैं, और इसी दोष को भुलाने के लिये शराब पिता हैं.
कुछ थोड़े से ऐसे लोग भी इन पेशो से जुड़े हुये होगे जो की अहंकार मैं भी शराब
पीते होगे. शायद ऐसे भी लोग होगे जो उचाईयो को छुना चाह्ते हो इसलीये शराब पीते
होगे. कुछ कीसी और की खुशी की इर्षा मैं भी शराब पीते होगे. कई जगह शराब को रिश्वत
की तरह देना और हर पारवारिक उत्सव मैं शराब को परोसना, ये भी कारन है शराब पीने के. मेरी शादी मैं, मैने मना किया था की शराब
मत परशो लेकीन वहा मेरी माँ नै ही मुझे टोका था की समाज मैं क्या मुह दिखायेगे.
मैं अचम्भीत था माँ का ये जवाब सुन कर, की आप अगर शराब ना भी
पीते हो तो भी एक कारन बन जाते हो इसके सेवन को पर्चलीत करने का.
एक ओर भी दुनिया है
हमारे यहाँ, जो खुद को हमसे अलग करती है और खुद को ज्यादा बुद्धिमान समझती है
“अमीरों” की दुनिया, रोशनी से चमकती दुनिया, ना ही तो यहाँ कोई गम है और ना ही
मधहोसी, फिर भी यहाँ लोग शराब पीते है क्योंकी इस दुनिया मैं शराब को एक शोंक माना
जाता है. हां कुछ अकेलापन यहाँ भी होगा, कुछ शिकायते यहाँ भी होगी लेकिन ये एक सभ्य
समाज है और जहाँ जोर जोर से बोलने की,
गुनगुनाने की, आज़ादी कही ना कही तहजीब के नीचे दम तोड़ देती है लेकिन यहाँ आप
तैह्जीब से शराब पी सकते है. इसके बिलकुल उलट, अगर किसी मेरे गरीब भाई के पास कुछ
१०-२० रुपये होगे तो वह खाना खाने की वजह शराब पीना ज्यादा वाहजीब समझेगा, आखिर
क्यों शराब ना की खाना ? खास कर जब भूखा हो इंसान कई दिनों से ? इंसान के मन की एक
चरणसीमा है जब तक वह अपने आप को दुखी, तनहा, अकेला और समाज के द्वारा त्याग दिया
हुआ मेहसूस कर सकता है. जब ये चरणसीमा हद पार कर जाती है तो इसका दर्द उस भूख से
कही गेहरा है. बस इसी मन के दर्द को शांत करने के लिये और चाहे कुछ ही पल के लिये क्यों
ना हो वह मेरा भाई गरीब भी शराब पीता है, और फिर बादशाह होता है अपनी इस दुनिया
का. शोक, अहंकार और अकेलापन (समाज से त्यागा हुआ इंसान) जब ये कारन बनते है शराब
पीने के तब तब शराब जुर्म को जनम देती है फिर चाहे वह जुर्म कतल का हो या बलात्कार
का.
अंत मैं एक किस्सा जरूर सुनाउगा (बस आप इसकी
तेह तक छान बीन मत करने जाना), ऐक बार एक इंसान को ५०० रुपये की जरूरत थी और वह हर
धार्मिक स्थान पे गया लेकीन निराश ही लोटा, जब शराब के ठेके से रोते हुये जा रहा था तभी ऐक आवाज इस ठेके से आयी और उसे अपने पास बुलाया, पुछा क्या गम है क्यों रो
रहा है, जरूरतमंद ने सब अपना हाल बताया, और उस
ठेके वाले भाई ने जो की शराब पी रहा था तुरंत ५०० का नोट निकाल
कर दे दिया. और कहा आसु पोछ लो. जरूरतमंद दोस्त शराब के ठेके से बाहर आया और आसमान की तरफ देख कर कहा उपरवाले मुझे नहीं
पता था की तू शराब के ठेके पे भी मिलता है. मेरे इस आकलन से आप कतई ना समझे के शराब
को बढावा दे रहा हु या नहीं. शराब पीना ना पीना ये आप का फैसला है, या यु कहू की
आप का अधिकार है तो गलत ना होगा. बस अब चाहे शराब पीये या ना पीये, बस एक गुजारिश
है की आप अपनी और शराब की गरीमा बनाये रखे. जय हिंद.
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