जयललिता का स्वास्थ्य या एक साजिश. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



जयललिता , तमिल नाडु की मुख्यमंत्री जो इस समय अपनी सेहद और उसके बाद हुये उनके दुखद देहांत के लिये सुर्खियों मैं बनी हुई हैं, इन्हें, ४ बार पूरण रूप से तमिल नाडु की मुख्यमंत्री बनने का सन्मान हासिल हुआ हैं.  इनके बेबाक अंदाज़ के लिये, इनकी खुले दिल से मैं तारीफ़ करना चाहता हु और हो भी क्यों ना ये पूरे संसार मैं तमिल भाइयो द्वारा अम्माअर्थात माँके रूप से सम्मानित हैं. लेकिन नेता जितना बड़ा होता हैं उसके साथ विवाद भी उतने ही जुड़ जाते हैं. कई बार दो-धारी तलवार पे चलते हुये आप को कई ऐसे कड़े फैसले लेने होते हैं और यही हैं पैमाना जो आप के दोस्त और दुश्मनों को जनम देता हैं.

ये एक अजूबा ही कह सकते हैं, की एक अकेले अपने दम पे लगातार दूसरी बार और कुल  ४ बार तमिल नाडु का मुख्यमंत्री बनना, अगर इनके फिल्मी सफ़र को छोड़ दिया जाये और सिर्फ राजनीति सफ़र पे ध्यान दिया जाये तो काफी उतार चड़ाव से भरा हुआ हैं. १९८२ मैं ये अपनी पार्टी से जुड़ी ऐसा माना जाता हैं की इन्हें राजनीति मैं लाने का श्रेय ऐम. जी. रामचंद्रन को जाता हैं और पार्टी से जुडते ही कुछ ही समय मैं ही, ये पार्टी एक जाना माना चेहरा बन गयी. ये राज्यसभा की मैंबर रही १९८४ से १९८९ तक. इसी बीच १९८७ मैं ऐम. जी. रामचंद्रन का देहांत हो गया और पार्टी दो रूपों मैं बट गयी. एक हिस्से ने जयललिता को नेता चुना और एक नेता ने जानकी रामचंद्रन को, जो की धर्मपत्नी थी ऐम. जी. रामचंद्रन की. जानकी रामचंद्रन ने  १९८८ की विधानशभा मैं अपना बहुमत भी साबित कर दिया था लेकिन राजीव गांधी ने, राष्ट्रपति शासन  लगाकर जानकी रामचंद्रन सरकार को भंग कर दिया. यही से जयललिता की राजनीति सूझ भुझ की प्रतिभा का अंदाजा हो जाता हैं, क्योंकि बाद मैं इनकी पार्टी के दोनों ग्रुप एक पार्टी के रूप मैं संघटित हो गये और जयललिता को अपना नेता चुन लिया गया. और इन्ही राजीव गांधी की कांग्रेस पार्टी के साथ १९९१ के चुनावो मैं जयललिता की पार्टी से गठबंधन किया था, जब ये पहली बार तमिल नाडु की मुख्यमंत्री के रूप मैं चुनी गयी थी. अब आप समझ गये होंगे की जानकी रामचंद्रन कैसे हट गयी राजनीति से, लेकिन उससे पहले बात करते हैं १९८९ मैं जब जयललिता विपक्ष की नेता थी तब DMK काफी क्रोधित रूप से, मैं कहूंगा की काफी विध्वंस करती हुई विधानसभा का रूप देखने को मिला जिस के फल स्वरुप जयललीता विधानसभा मैं घायल हो गयी थी और बाहर जाते उनहोने कहा था की मैं अब इस विधानसभा , मैं मुख्यमंत्री के रूप मैं ही प्रवेश करूंगी”. और हुआ भी यही १९९१ के चुनावो मैं कांग्रेस के साथ गठबंधन मैं बहुमत से तमिलनाडु राज्य की मुख्यमंत्री के रूप मैं विधानसभा मैं प्रवेश किया. लेकिन २०१४ मैं जब कांग्रेस की सरकार केंद्र मैं थी तब जयललिता की तमिलनाडु सरकार ने विधान सभा मैं एक प्रस्ताव पास कर राजीव गांधी के हत्यारों की सजा माफ़ करने का ऐलान कर दिया. जिससे सारी दुनिया अचंभित रह गयी. यही बेबाक पन जयललिता को बाकी नेताओ से अलग करता हैं.

जयललीता, ने अपने पुरी राजनीति समयकाल मैं बहुत से सराहनीय काम किये हैं जैसे की सभी को बहुत सस्ता खाना, शराब के ठेकों का समय सुनिश्चत करना, सार्वजनिक स्थानों पे बच्चो को माँ का दूध पीने के लिये अलग से जगह बनाना, और बहुत से कारज जो उन्होंने अपने जीवन काल मैं किये, लेकिन मैं सिर्फ अपना ध्यान उनके द्वारा लिये गये एक फैसले पे करना चाहता हु जिससे राजीव गांधी के हत्यारों को सार्वजनिक रूप से सजा को माफ़ करना. खास कर उस समय जब एक तरह से कांग्रेस की सरकार हैं केंद्र मैं. और २ साल मैं, पहली बार यानी २०१६ उनका सवास्थ इस तरह बिगड़ जाना.

कांग्रेस या गांधी परिवार, अगर कांग्रेस को सीधे रूप से गांधी परिवार कहा जाये तो गलत ना होगा, इतिहास गवाह हैं की जिस जिस ने कांग्रेस पे या गांधी परिवार पे परोक्ष या अपरोक्ष, रूप से हमला किया हैं उस का अंत काफी दयनीय रहा हैं. इस तरह के हमले दो लोगो द्वारा किये गये, एक वोह जो राजनीति कारणों से जुड़े हुये थे और एक वोह जो किसी ना रूप से गांधी परिवार द्वारा बनाये गये इस सिस्टम के विरोध मैं खड़े थे जैसे की भिंडरावाला और LTE का प्रभाकरण , दोनों का अंत इस तरह से विध्वंस किया गया की सदियों तक कोई और ज़ुबान ना खुले गांधी परिवार के खिलाफ. भिंडरावाला, के अंत मैं हम सब जानते हैं की गांधी परिवार किस तरह से जुड़ा हुआ था लेकिन LTE प्रभाकरण, तो एक दूसरे देश श्रीलंका मैं था. लेकिन वोह राजीव गांधी के कत्ल का मुख्य दोषी था और उसका अंत उसी समय हुआ जब सोनिया गांधी एक रूप से भारत की केंद्र सरकार मैं थी. आज भी, जब भी श्रीलंका का कोई भी बड़ा नेता भारत आता हैं वोह विशेष रूप से सोनिया गांधी से मिलने जाता हैं. अब, बात करते हैं उन लोगो की जो किसी ना किसी रूप से कांग्रेस या गांधी परिवार को राजनीति मैं चुनौती दे रहे थे. सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री दोनों बड़े नेता थे, लेकिन उनका अंत आज भी एक सवाल हैं की असल मैं हुआ क्या था ? जीतेंद्र प्रसाद, २००० मैं कांग्रेस की अध्यक्षता के लिये सोनिया गांधी के सामने लडै थे लेकिन  २००१ मैं किसी बीमारी के कारण उनकी मोत हो गयी, और तब से, सोनिया गांधी निर्विरोध कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी जाती हैं और उसके बाद शायद किसी मैं हिम्मत नहीं जीतेंद्र प्रसाद के रूप मैं उनके सामने खड़े होने की.

अब, २०१४ मैं जो भी राजनीति कारण रहे हो लेकिन जयललिता ने परोक्ष रूप से इसी कांग्रेस को या सही मायने मैं गांधी परिवार को चुनौती दे दी जब उन्होंने राजीव गांधी के कातिलो को सार्वजनिक रूप से क्षमा दान दे दिया. इतनी गुस्ताखी कैसे वोह भी एक ऐसी ताकत से जो हमारे देश मैं परोक्ष रूप से सर्वोच्च हैं. और २०१५ मैं जयललिता को बंगलौर, कर्नाटक की अदालत पे पेश होना और कुछ दिन जेल मैं रहना. इसी समय, कर्नाटक मैं कांग्रेस की राज्य सरकार का होना. कुछ ना कुछ साजिश तो हैं, जो की अचानक से जयललिता का सवास्थ इस तरह बिगड़ गया. एक बात और अचंभित करती हैं की केंद्र सरकार की तरफ से अभी तक कोई भी ऐसी पहल नहीं हुई जिस से माना जाये की उन्हें जयललिता की चिंता हैं, खास कर जब जयललिता ने २०१२ मैं नरेन्द्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री के राज्य अभिषेक मैं हिस्सा लिया था. एक और बात खल रही हैं की इसी दौरान देश का न्यूज़ मीडिया जयललिता के स्वास्थ के बारे मैं कुछ भी नहीं दिखा रहा, मानो एक तरह से जयललिता की उपस्थति को नकार रहा हैं. ये भी एक सवाल हैं, की देहली चुप क्यों हैं जयललिता पे ?


जो भी, हो कुछ ना कुछ साजिस तो हैं की जयललिता जी एका एक इस तरह बीमार हो गई की और उनका स्वास्थ्य एक सवाल बन गया. और आज वह इतिहास का हिस्सा बन गयी है. चाहे जयललिता जी हमारे बीच मे आज नहीं रही लेकिन उनकी बेबाकी नै उस हर किसी को झकझोडा है जो राजनीती मे अपने आप को सर्वोच्च माना करते थे और है भी. शायद आज भी उन्हे जयललिता के नाम से ही डर लगता होगा. इस बहादुर नेता को में व्यक्तिगत रूप से श्रद्धांजलि देता हु. जय हिंद.

No comments:

Post a Comment