आज जब भारत की रोनक इसके शहर में ही दिखाई देती हैं, विदेशी सैलानी भी, इसे ही देखकर भारत को एक उभरती हुई
विश्व की ताकत बता रहे हैं, तो अमूमन भारत, एक देश की मानसिकता के रूप में जो की इसकी व्यवस्था से होकर गुजरती
हैं वह कही इसी शहर के इर्द गिर्द घूमती हुई दिखाई देती हैं फिर वह चाहे राष्ट्रीय
मीडिया हो या डिस्को पब में थिरकता हुआ युवा. शायद यहाँ एक किसान को समझना मुश्किल
हैं अगर कोई दबी ज़ुबान में किसान की परिभाषा करता होगा भी तो अनपढ़, ग्वार जैसे शब्दों में ही उलझा होगा. लेकिन मेरे पंजाब के गाव में भी
जशन होता हैं जब खेत के कुये यानी की मोटर पर बिजली आती हैं. ये अमूमन दिन में ४-६-८
घंटे के लिये ही होती हैं खासकर जब इसकी जरूरत चावल की खेती में हो तब ये ज्यादातर
गुमशुदा ही रहती हैं अगर कभी ये ८ घंटे से ज्यादा मिल भी जाये तो किसान एक सवाल
जरूर करता हैं “आज उपरवाले को क्या हो गया, इतनी मेहरबानी हम पर कैसे हो सकती हैं ?”. ये बिजली २४ घंटे में कभी भी आ सकती हैं
सर्दी के दिनों में जब गेहूँ की फसल, जिसे कम, लेकिन कुछ अंतराल में पानी ज़रुर चाहिये
तब सर्द की किसी रात में अमूमन पूरा गाव खेतों में पानी लगा रहा होता हैं क्युकी
बिजली जो रात को आयी हैं. लेकिन यहाँ किसान के चेहरे पर रोनक होती हैं. ऐसे तो में
किसान की तकलीफों पर पूरी एक किताब लिख सकता हु लेकिन आज किसान की तकलीफों का ये
मेरा आखरी आर्टिकल हैं और यहाँ में किसान की मानसिकता और निराशा की ही बात करूंगा
जो हमारी व्यवस्था की देन हैं और इसके जख़्म, शारीरिक जख्मो से कही गहरी ज्यादा सवेदना में हैं.
आज भी गेहूँ की फसल हाथों से ही काटी जाती हैं, अगर मशीन से कटवानी हैं तो गेहूँ के फसल की तुड़ी नही बन सकती, अगर फिर तुड़ी वाली मशीन से इसे कटवाना भी हैं तभी तुड़ी ५०% तक कम
निकलती हैं, किसान इस नुकसान को स्वीकार नही कर सकता
इसलिये हाथों से फसल काटने में ही यकीन रखता हैं. इस समय इसके हाथ देखियेगा काले
रंग की गहरी लकीरे जख़्म के रूप में खिंची होती हैं कही कही खून भी सीम रहा होता
हैं लेकिन ये हाथ पर सरसों का तेल लगाकर, घर में रखा कपड़ा बांधकर दूसरी सुबह फिर खेत में कटाई कर रहा होता
हैं. इतनी मुश्किल से पैदा की फसल, जिसे खुले में हर मौसम में उपरवाले, पर भरोसा कर पैदा की, वह कई दिनों तक मंडी में धुल चाट रही होती हैं. मंडी, जहाँ फसल की बोली लगती हैं या यु कहूं की बिकती हैं. मंडी में फसल के
साथ साथ किसान परिवार के एक सदस्य की उपस्थिति दिन-रात वही होती हैं. खाना पीना सब
घर से जाता हैं, कहूं तो मेला लगा होता हैं.जहाँ सरकारी
अफसर इसकी बोली लगाता हैं, किसान यहाँ या तो आढ़तिया या सरकारी
अफसर के अधीन होता हैं. ये अन्नदाता हैं. मेरी गुस्ताखी माफ़ करना पर अमूमन एक छोटा
और मध्मवर्गी किसान हाथ जोड़े ही खड़ा होता हैं. मेरी मासी का लड़का बिजली के करंट
लगने से १० फ़िट उची कोठरी से गिर गया था तो डॉक्टर वहा भगवान था. मोटर का पावर
बढाना हैं तो बिजली घर में रिश्वत के रेट फ़िक्स हैं, मैने २००३ में खुद २२०० रुपये दिये हैं और आज भी लोग दे रहे हैं.
बैंक से कर्जा मिलता हैं लेकिन प्रक्रिया बहुत जटिल हैं, पटवारी से जमीन के कागज़ निकालने में रिश्वत दी जाती हैं, बैंक के मैनेजर की भी यही मांग हैं. सरकारी व्यवस्था हर जगह मुँह फाड़
के किसान को निगलने में कोई शर्म महसूस नही करती. यहाँ आप उस निराशा को समझ सकते
हैं जो अनाज को पैदा कर रही हैं लेकिन व्यवस्था के अधीन हैं. मुझे नही लगता
व्यवस्था की तरफ से कोई भी ऐसी पहल हो जिससे किसान को कोई उम्मीद दिख रही हो.
अब इतनी कठोर मेहनत, इसका उदाहरण भी दूँगा जब पानी, खेतों के नाले से होकर गुज़रता हैं तब इसका रुख मोडने के लिये मट्टी
की बाड़ करनी पड़ती हैं, यह मट्टी गीली हैं और जब इसे आप कसिये
से काटकर एक जगह से उठाकर दूसरी जगह रखते हैं तब आप की शारीरिक ताकत की परीक्षा
होती हैं. इतनी कठोर मेहनत जहाँ किसान की शारीरिक शक्ति दम तोड़ रही होती हैं. में
ये कल्पना के माध्यम से नही कह रहा, खुद किया भी हैं देखा भी हैं. इसी के तहत, नशा जीवन में आ ही जाता हैं. यहाँ किसान एक दलील देता हैं, की मेरा शरीर एक मशीन हैं और उसे खोराक की जरूरत हैं अन्यथा मुझसे
काम नही होगा. शराब, यहाँ हर घर में प्रचलित हैं. कोई यकीन
माने या ना माने, शराब हर घर में खुद की ही निकाली जाती
हैं या दो तीन पांच लोग मिलकर इसमें अपना अपना हिस्सा डाल लेते हैं. शराब, हर तरह के खेती के काम के बाद हर मजदूर को खेतों में परोशी जाती हैं
फिर वह चाहे फसल की लगाई हो या कटाई. कटाई के समय, कुछ और नशे भी इसमें शामिल होते हैं अफीम, भूकी, इत्यादि. ये आम हैं, किसान या खेत का मजदूर इसे सेवन करने में कोई कोताही नही करता, अगर आप कोई नसीयत देना चाहे तो एक बार हाथ में दाँती लेकर गेहूँ की
कटाई ज़रुर करे. मेरी यहाँ एक व्यक्तिगत सोच हैं, और मुझे हक दिया जाना चाहिये की में अपनी बात रख सकू, जिस तरह से इस तरह के नशो का प्रचलन आम हैं. वहा शायद ही कोई और नशे
के खिलाफ कोई रोका टोकी हो और इसी के चलते आज हेरोइन, मैडिकल दवाई, इत्यादि नशे आम प्रचलित हैं. हर गाव में
अगर आबादी १००० के आस पास भी हैं तभी १-२ मैडिकल स्टोर तो होगे ही. और इन मैडिकल
स्टोर का पता हमारी व्यवस्था को नही होगा ये कहना मुश्किल हैं. जनाब, ये उड़ता पंजाब नही हैं, ये वह रुका हुआ पंजाब हैं जिसने पीछे अँधेरा देखा हैं और आगे भी कोई
उम्मीद नही हैं. लेकिन खुद को बचाने के लिये आज ये उड़ना चाहता हैं. इस व्यवस्था से
दूर भागना चाहता हैं. इसी के चलते, आज किसान अपनी आने वाली पींडी को खेती से दूर रखना चाह रहा हैं फिर
उसे चाहे जमीन को ही क्यों ना बेचना पड़ जाये लेकिन एजेंट को पैसे देकर अपने बेटे
को विदेश भेजना इसका मक़सद बन गया हैं. मेरे ही गाव में, किसानों के कई घर हैं जहाँ विदेश जाने के तहत अब ताला लगा हुआ हैं.
ये तादाद बड़ रही हैं, मेरा यकीन मानिये, कोई विदेश जाकर वापस अपने गाव खेती करने नहीं आयेगा.
मेरे गाव में अगर कहूं तो २-३ किसान ही ऐसे होंगे जिनके पास जमीन
ज्यादा होने से वह खेती के व्यवसाय को आज मुनाफे के रूप में देख रहे हैं अन्यथा
बाकी सारे किसान कोई अन्य रोजगार के उपाय करने में ही बुद्धिमानी समझ रहे हैं.
मेरे पंजाब को देखते हुये कह सकता हु के वह दिन दूर नही जब गाव के बहुताय घरों में
ताले लगे होंगे और सुखी जमीन हमारी व्यवस्था को मुँह चिड़ा रही होगी. इसी के तहत, व्यवस्था भूखे पेट की दुहाई भी ना दे पायेगी क्युकी उसने ना ही किसान
को प्रोत्साहित किया और ना ही कोई सहारा दिया. शायद ये लाचार और शर्म से मुँह झुका
कर खड़ी होगी. लेकिन इसमें मैं भी और आप भी गुन्हेगार हैं, जिसने व्यक्तिगत कोशिश नही की किसान की व्यथा बताने की, में कुछ कह चूका हु और अब आपकी बारी हैं. लिखिये और हमें बताइये अपने
प्रांत में किसान के हलात क्या हैं ? जब मिलकर आवाज उठायेगे तभी कोशिश कामयाब होगी. अन्यथा, गुन गुनाइये, सांसे चल रही हैं, हम जिंदा हैं. व्यवस्था सुन रही हो, हम जिंदा हैं. जय हिंद.
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