२०-११-२०१६ के दिन
हुये दुखद रेल हादसे में कई नागरिको की मृत्यु हो गयी. आज टेलीविज़न के दोर में देश
के कोने में ये खबर कुछ ही पलो मे पहुच गयी. लोग दुखी भी थे और सवाल भी था की
क्यों हमारी रेल व्यवस्था इतनी कार्यगत नही हैं की आये दिनों इसमें हादसे होते
रहते हैं. और इसके २-३ दिन पश्चात सोशल मीडिया पे और व्हाट्स एप्प पे एक पोस्ट बड़ी
ही उग्रता से प्रकाश हो रहा था जिसमें कई मासूम घायल बच्चो की तस्वीरे थी और कहा
ये जा रहा था की रेल एक्सीडेंट के दौरान ये बच्चे अपने सगे संबंधीय से बिछड़ गये
हैं. शायद ये जानकर हैरानी होगी को तस्वीरे भी संवाद करती हैं और इसी के कारण मुझे
हमारे देश की व्यवस्था और सरकार पर क्रोध आ रहा था. लेकिन मेरे ही एक सहकर्मी ने
बताया की ये तस्वीरे बनावटी हैं और ये सारे बच्चे सिरीया की लड़ाई में घायल हुये
हैं ना की रेल एक्सीडेंट में. अब ये कितना सच हैं या नही इसका तो पता नहीं लेकिन
सोशल मीडिया जहाँ सब को आजादी हैं अपनी बात कहने की क्या उसका उग्र रूप भी हो सकता
हैं.
सोशल मीडिया अमूमन एक
आम संचार का माध्यम माना जाता था जो आप और आप के जान पहचान के कुछ लोगो तक ही
सीमित था लेकिन इसकी ताकत ने अरब देशों में हुये विद्रोह को एक नयी रूप रेखा दे दी, सारी दुनिया के
बुधिजीव ये देख हैरान थे की ये किस तरह हो सकता हैं ? इसकी उपयोगिता खासकर बड़ जाती हैं
जब आप किसी और समाचार संचार माध्यम से ना जुड़े हो और इसी दौरान जब कोई आप का ही
जान पहचान का व्यक्ति सोशल मीडिया पे कोई ऐसी पोस्ट शेयर करे जिस में खुशी या दर्द
का बयान हो तो. आप अनुमन इस पर शक या सुधा नही करते और इस पर बिना सवाल किये हुये
सच मान लेते हैं. अरब के तानाशाह देशों
में खबरें वही होती थी जो वहा की तानाशाह सरकार दिखाना चाहती थी लेकिन सोशल मीडिया
ने इस दोर को तोड़ दिया और एक माध्यम प्रदान किया जहां लोग बिना किसी विघन के संवाद
कर सकते थे. और यही क्रांति का कारण भी बना.
लेकिन सोशल मीडिया की
शक्ति पर किसी भी तरह से क़ाबू पाना काफी मुश्किल हैं. अगर इस रिपोर्ट पर नजर मारे तो पता
चलता हैं की किस तरह आतंकवादी संगठन ISISI ने युवाओ को अपने साथ जोड़ने के लिये सोशल मीडिया का
साथ लिया. यहाँ, सोशल मीडिया एक माध्यम था जो किसी भी देश की सीमा को
तोडकर किसी और देश के युवा के साथ भी अपना संवाद बना सकता हैं. लेकिन सोशल मीडिया
का एक भयभीत करने वाला रूप सामने आया जब कुछ ही पलो में इसके माध्यम से अफवाह
फैलाई गयी और देखते ही देखते इन अफवाहों ने उग्र रूप ले लिया. इसकी वास्तविकता
सबसे पहले इंग्लैंड में देखी गयी जहाँ एक छोटी सी सोशलमीडिया पोस्ट ने हजारों लोगो को सडको पर खड़ा कर दिया और उनके असंतोष ने एक विद्रोह
का जन्म ले लिया. कुछ इसी तरह २०१२ में उत्तर पूर्वी भारत के नागरिको की डर की वजह
बना जब एक सोशल मीडिया का पोस्ट फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्स एप्प पे थडैले से शेयर किया जा रहा था.और बिना किसी शक के
लोग इस पर यकीन भी कर रहे थे. उन दिनों हजारों की गिनती में उत्तर पूर्वी राज्यों
के नागरिक बंगलौर से पलायन कर रहे थे. कुछ इसी से सबक लेते हुये २०१५ में पटेल
आंदोलन के दौरान हुये हिंसक प्रदर्शन के बाद सोशल मीडिया पर पूरी तरह से रोक लगाने
के लिये गुजरात सरकार ने इंटरनेट सेवाओं पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी. और कुछ इसी
तरह २०१६ में कश्मीर में इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगा दी थी. और ये उपाय कुछ हद तक
कारगर भी साबित हुआ था.
आज बहुत से बुधिजीव इस
बात पर जोर दे रहे हैं की सोशल मीडिया समाज में उग्र स्वभाव को बढावा दे रहै हैं. कही ना कही में इससे सहमत भी हु
खास कर इन बच्चो की तस्वीरों को देखकर में इतना क्रोधित हो रहा था जितना स्वभाविक
में उग्र नही होता हु. लेकिन इसकी हकीकत समझने के बाद सोच रहा हु की ऐसा क्यों और
किस ने किया होगा ? हमारे लोकतंत्र देश
में अमूमन हम आजाद माने जाते हैं और यहाँ किसी भी प्रकार से किसी के भी अधिकार को
हनन करने की आज्ञा हमारा संविधान नहीं देता और ना ही किसी भी प्रकार के आतंकवाद की
यहाँ गुंजाईश हैं, लेकिन हकीकत में ये
स्वर्ग भी नहीं हैं. किसी ना किसी रूप में हर वक्त आप की सोच को बदलने की मुहिम
हमेशा जारी रहती हैं ताकि किसी और के अनुरूप बदलाव आ सके (ये और कोन हैं ? इसे यहाँ समझने की जरूरत हैं ये २०१२ में कोई और था
और आज कोई और हैं.). शायद इसी के अनुरूप हमारे बुजर्गो ने एक कहावत कही थी की “कभी कभी आखे भी धोखा खा जाती हैं”. इसी तरह से सोशल मीडिया के धोखे से बचने के लिये इसे
बंद करना कोई इलाज नहीं हैं. लेकिन अब हमें परखना होगा की जो सोशल मीडिया दिखा रहा
हैं क्या वह सही हैं या नहीं. सोशल मीडिया को थोडा और चतुराई से समझना होगा. जय
हिंद.
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