नोटबंदी की इस भीड़ में, मजदूर, किसान और माँ की व्यथा. और क्यों इस भीड़ ने चायवाले को भगा दिया ? #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans


साँसे चल रही हैं, हम जिंदा हैं,
वक्त तिल मिला रहा हैं, लेकिन हम जिंदा हैं,
हरबंश, पता नही सुकून किस कोने में छुप गया हैं, हम तलाश में हैं, जिंदा हैं,
ना कभी कुछ कहा, ना कभी सुना, दर्द बयां आसुओ से होता रहा, भीगी आँखों से ही सहीहम जिंदा हैं.

०८-११-२०१६ की मध्यरात्रि से ५०० और १००० रुपये के नोटों के चलन को गैरकानूनी करार दे दिया गया हैं. ये मार्ग कितना कामयाब हैं या नही, में इसका विश्लेषण करना नही चाहता, लेकिन उन किस्सों के बारे में ज़रुर कहूंगा जहाँ लाइन में खड़े हुये अजनबी लोगो में दर्द के रिश्ते पनप रहे हैं. कुछ एक समान सी कठनाइया अलग अलग समुदाय के लोगो की ज़बानी देश के कोने कोने में बयाँ हो रही हैं. दर्द की परिभाषा में अल्पसख्यंक और बहुसख्यंक नही होते, इस फैसले से गाड़ी में बैठा व्यापारी भी चिंता की मुद्रा में हैं और सड़क पर रहे एक आम शहरी भी परेशान हैं जो अपनी ही जमा पूंजी, आज बैक से निकालने में कही ना कही असमर्थ हैं.

सोमवार की शाम जब रेलवे स्टेशन से बाहर निकल रहा था, तब कई मजदूर परिवारों को रेल के इन्तजार में खड़े देखा. अंदाजा लगाना मुश्किल नही था लेकिन फिर भी बात करने की कोशिश की तो सुनने में आया की काम तो मिल रहा हैं लेकिन शाम को मजदूरी नही मिलती क्युकी ठेकेदार के पास नकदी ख़तम हो गयी थी. अब इस मंहगाई के दोर में शहर में बिना पैसो के रहना मुश्किल होता जा रहा हैं. गाव में जाकर खेती में मजदूरी के बदले कम से कम अनाज तो मिल ही जायेगा. भूख तो मिटा ही पायेगे. और जब हालात जमीनी स्तर पर सधुर जायेगे तब वापस शहर को लोट आयेंगे.”. स्टेशन से घर आते तक जब निर्माणहीन इमारतो को देख रहा था तो कई जगहों पर काम बंद होने का अंदेशा दिखाई दे रहा था. लेकिन, कही कही ऐसा सुनने में भी आ रहा हैं की बिल्डर ग्राहकों में विश्वास बनाये रखने के लिये मजदूरों को काम करते हुये दिखा रहा हैं बस ग़ोर करने वाली निशानदेही हैं की मजदूरों की संख्या पहले से काफी कम हो चुकी हैं. शायद, ये व्यथा आज हमारे पूरे देश के शहरों में दिखाई दे रही हैं.

किसान परिवार से हु, इसलिये अपने रिश्तेदारो और दोस्तों से बात करने का मौका आम तोर पर मिलता रहता हैं. दर्द में तो किसान पहले से ही था लेकिन इस फैसले से भी उसे कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा हैं. आम तोर पर, किसान दुकानदार से सोदा उधार में ही लेता हैं जिसमें जीवन की ज़रुरत का सामन, पशुयो के चारे के संदर्भ में और खेती के साजो सामन के लिये भी, और ये उधारी फसल के काटने के बाद ही चुकाई जाती हैं. लेकिन आज, दूकानदार समान देने से मना कर रहा हैं क्युकी दूकानदार को आगे से समान उधार नही मिल रहा और वह इसी वजह से आगे भी व्यापारी उधार नही दे पा रहे हैं. यही नहीं पैसो की तंगी के कारण कई अपने ट्रेक्टर की मरम्मत नही करवा पा रहे हैं. इस समय जब धान की फसल कट गयी हैं, तब किसान अपने पानी के ट्यूबेल की मरम्मत भी करवाते हैं, वह भी ठप पड़ी हैं. और इसी वजह से, कही ना कही गाव में खेती से जुड़े रोजगार एक तरह से ठप हो गये हैं. किसान किसी भी तरीके से बीज का बंदोबस्त तो अपने भाई बंधुयो से उधार में भी कर लेता हैं लेकिन फसल पर कई तरीका की दवाइयाँ का छिड़काव होता हैं और उसके लिये भी किसान के पास आज चलन में रेह गये नोटों के रूप में नकदी नही हैं. अमूमन, किसान परिवार में इक्का दुक्का बैंको में खाते होते हैं क्युकी १०-१२ गावो में एक या दो बैंक ही होती हैं जिनमें कर्मचारियों की संख्या ४-५ से ज्यादा नही होती, अब किसान पैसो को बदलाने के लिये लगभग रोज सुबह से लाइन में लग जाता हैं लेकिन नंबर आने तक बैंक में से नकदी खत्म हो जाती हैं. सच कहूं तो किसान पहले ही बदहाल था लेकिन इस फैसले ने उसकी कमर तोड़ दी हैं.

माँका भी जिक्र यहाँ करना ज़रुर बनता हैं, कल जब लंच के बाद ATM की लाइन में खड़ा था तब दो अनजान औरतों का दर्द सुनने का मौक़ा मिला जो की छोटे-छोटे बच्चो की माँये भी थी. एक का पति अरब के देश में काम करता हैं और उसकी तनख्वाह ही पूरे परिवार की ज़रुरत का ज़रिया हैं, घर पर सास ससुर उम्र लायक हैं और लाइन में खड़े नही हो सकते. वही विदेशी मुद्रा को ०८-११-२०१६ के पहले ही भारतीय नकदी में बदलाव लिया था. अब घर पर इतने चलन वाले पैसे नहीं हैं की बच्चो के लिये सुबह का दूध आ सके और सास ससुर की दवाई आ सके. ये तो बस वर्षो से की जान पहचान हैं जो की दूकानदार इस मुश्किल घडी में उधार दे देता हैं. और कही ना कही दूसरी माँ भी अपने दर्द की हामी इस माँ के दर्द में बयान कर रही थी. लेकिन उसने एक और दर्द बयान कर दिया की कल उसकी जवान लड़की का एक्सीडेंट हो गया और वह अभी अस्पताल में हैं लेकिन ये माँ भगवान का शुक्रिया कर रही थी की मैडिकल कैशलेस कार्ड होने की वजह से समय पर इलाज का बंदोबस्त हो गया. बस बाकी कामों के लिये घर पर नकदी नहीं हैं. इतने में गार्ड ने कहा की ATM से पैसा ख़तम हो गया हैं. हम सब लोगो में एक और दिन मायूसी छा गयी.

अंत में एक दिलचस्प वाक्य का जिक्र करूंगा जो की सुनने में आ रहा हैं पता नही अफवा भी हो, कही बैंक में लंबी लाइन लगी हुई थी और इसी लाइन में अपना रोजगार ढूढता हुआ एक चायवाला अपनी चाय बेचने आ गया. और वह अपनी चाय की मार्केटिंग भी बड़ी भयंकर रूप से कर रहा था वह कह रहा था हमारी सुपरफ़ास्ट चाय पियो, इससे आप को और दो-तीन घंटे खड़े होने की ताकत मिलेगी.”, लोग पहले ही तिलमिलाये हुये थे और जब ये बोलना बंद ही नही हुआ तो अचानक से भीड़ ने उग्र स्वरूप धारण कर इस पे हल्ला बोल दिया शायद इसे वहा से भाग कर जान बचानी पड़ी. ये वाकया कितना सच हैं या झूठ पता नहीं, लेकिन कही ऐसा ना हो की इस नोटबंदी के फैसले से हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी जो की २०१४ मे अक्सर अपने आप को चाय वाला कहने का जिक्र करते थे कही उन्हें २०१९ के चुनावो में भारी गिनती से नकार दे.

गलत फ़हमी हैं की (सिर्फ) भगवान मंदिर में और खुदा मस्जिद में मिलता हैं,
हरबंश, जरा देख इस नोटबंदी की भीड़ में, दर्द के साये में, मुश्किल घडी में,
किसी की प्रार्थना में कही छुपा हुआ राम मिलता हैं तो कही दुआ में छुपा हुआ खुदा मिलता हैं.