भारतीय होनै का मान और इसकी व्यवस्था से लगता डर. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans

“तिरंगे” को यु मस्त हवा मैं लहराते हुये देख इस तिरंगे की और खुद की आजादी का ऐहसास होता है, मन गद-गद कर मुस्कराने लगता है, खास कर जब”भारत” की विभिनता को ऐक सुर मैं देखतै है , यहाँ की अलग अलग भाषायै, पहनावे, खान पकान, सभ्यताये, इत्यादी. फिर चाहे वोह इंडिया-पकिस्तान का मैच हो या कोई कुदरती आफता, सारा देश माला मैं पीरयो मनको की तरह ऐक लय और जोश मैं खड़ा होता है. अद्भूत, है खुद को “भारतीय” कहने का अनुभव, इसमे ऐक सन्मान मेहसूस होता है. लेकीन, ऐक देश और भी है इसके भीतर जिसका दायीतत्व है इसकीरखने हमारी देश की व्यवस्था बनाये रखने का, उसी व्यवस्था के कई अंग है जो ऐक भारतीय के अधिकारों का हनन करते है, और इस क्रूरता से डर लगता है क्यों ?

इस व्यवस्था का ऐहम कर्तव्य ऐक आम नागरीक को सुरक्षा देना है लैकीम ऐक आम इंसान डरता है पुलिस के पास जाने से, और पुलिस भी ऐक आम भारतीय की कितनी सुनती है ये इस रिपोर्ट  के  आकडे कहते है की ९-२० ऍफ़औईआर ही भारत मैं लिखी जाती है, ३०% फरियादी ऍफ़औईआर लिखते ही नहीं है, ५०-६१% लोगो की ऍफ़औईआर लिखी ही नहीं जाती, गुनाह के छानबीन का कुल ९४% पुलिस का समय सिर्फ ऍफ़औईआर लिखने और फरियादी से सवाल जवाब करने मैं चला जाता है. लेकीन व्यवस्था के इस अंग का और भी डरावना सच 2014 की इस क्राइम रिपोर्ट मैं दर्ज है. इसी रिपोर्ट के अनुसार २०१४ मैं हुये कुल ३६,७३५ दर्ज रैप केसो मैं से १९७ पुलिस कस्टडी मैं रिपोर्ट हुये है. आज ऐक आम भारतीय और ना ही उसका परिवार अपने आप को बुहत कम सुरक्षीत मेहसूस करता है. इस रिपोर्ट के मुताबीक भारत मैं क्राइम रेट सुरक्षा की द्रष्टी से मामूली रूप से कम है, यहाँ क्राइम रेट ४४.५३% है और सुरक्षा ५५.४७ है. भारत मैं दीन मैं आप ७५% सुरक्षीत है और रात मैं आप लगभग ५०% ही सुरक्षीत है. शायद यही वजह है की देश की राजधानी मैं भी आपको रात को अकले बाहर जाने की सलाह नहीं दी जाती, तो दूर दराज गावो का क्या हाल होगा. अगर ऐक नजर मारे हमारी न्याय पर्णाली की तो वोह भी बुरी तरह से चरमराई हुई है, NJDC की इस रिपोर्ट के मुताबीक कुल 2.25 करोड़ केस पेंडिंग है, इनमे १.५ करोड़ अपराधीक केस पेंडिंग है. इसके पीछे न्यायपालिका का ऐक तर्क ये भी है कई उसके पास जुद्जो की भरी कमी है. अब ऐक आम सरकारी दफ्तर की बात करते है फिर चाहे वोह ड्राइविंग लाइसेंस के लीये दी गयी अर्जी का हो या बिजली के नये कनेक्शन का, हर सरकारी दफ्तर मैं अमोमन सरकारी बाबु आप से यही कहेगा “ जी, इस काम के इतने लगेगे”. मानो देश की मिटी बेचने बेठा है. इन खबरों और २००५ रिपोर्ट के मुताबीक के मुताबीक ६२% भारतीयों अपने किसी सरकारी काम के लीये सीधे तोर पे रिश्वत दी है, और इसी आकलन से २००८ मैं ये आकड़ा कुछ कम यानी की ४०% हो गया. लेकीन अमूमन ऐक भारतीय को सरकारी दफ्तरों मैं रिश्वत और जी हजूरी तो देनी ही पड़ती है.

UNICEF की ऐक रिपोर्ट के मुताबीक भारतीय ५ साल से कम बच्चो मैं  ४६% भारतीय बच्चे कुपोषण की वजह से अपनी उम्र के हिसाब से शारीरीक कद काठी मैं कमजोर है. इसी कुपोषण की वजह ४७% बच्चे अपने समान्य वजन से कम है और कुपोषण की वजह से ही १६% तो बिलकुल कमजोर है. वही २०१५ की इस रीपोर्ट के मुताबीक २ सालो मैं ४०,००० टन अनाज गोदामों मैं सड गया, इसकी वजह व्यवस्था कुदरती आफतो को बताती है लेकीन कई जानकार इसकी वजह अनाज के रख रखाव मैं हो रही खामीया बताते है. २०११ के माध्यम से भारत की कुल आबादी मैं से ७४% नागरीक सिक्षीत थे, लेकीन कही ना कही यही शिक्षा अनुमान पत्रों तक रह जाती है और रोजगार के नये अवसर नहीं तलाश सकती है, शायद हमारी शिक्षा की इसी व्यवस्था के कारण CIA वर्ल्ड फक्ट्बूक की ये रिपोर्ट ( ) के हवाले से भारत की बेरोजगारी की बात करते है और २०१५ मैं कुल आबादी के ८.४% भारतीय बेरोजगार है. २९.८% भारत की आबादी गरीबी रेखा के नीचे बसर कर रही है.

हमारे सविधान के मुताबीक हमारे देश के हर नागरीक को ऐक समान अधिकार है फिर भी कही ना कही इसका हनन वही व्यवस्था करती है जिसे सविधान को लोकतंत्र की मर्यादा मैं लागु करना था. जो भी हो ये व्यवस्था मुझे डरावानी लगती है, मैं तिरंगे को देख के मान महसूस करता हु जिसकी आज़ादी के लीये कई हजारो नै खून बहाया था लेकीन ये व्यवस्था उस खून की और उसके द्वारा दी गयी आज़ादी का कही ना कही हनन करती है. जय हिन्द.

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