औरत “घर की इज्जत” या गुलाम. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans


हमारा समाज, जहा औरत को देवी के रूप मैं पूजा करता है वही ऐक सामान्य औरत को बड़ी ही दयाहीन मुद्रा मैं रखता है, जहा “सरस्वती” देवी को ज्ञान की देवी माना जाता है वही हमारे घरो मैं ऐक औरत सदस्य से घर के मसलो पे उनकी राय तक नहीं पूछी जाती है शायद यही कारन है की १९९६ से “महिला आरक्षण बिल” ससंद मैं लटका हुआ है जिस के तेहत औरतो का ३३% ससदीय सीटो पर आरक्षण होगा. क्या इसकी वजह औरत को कमजोर करके ताकना तो नहीं ? भारतीय सभय समाज केहता है की उसके यहाँ नारी का विशेष सन्मान है, “विशेष” केहना ही कही ना कही आप की मान्यता ख़तम कर देता है, क्योंकी सर्वोच्च हमेशा सर्वोच्च ही रेहता है, कही भी उसे विशेष कहने की जरूरत नहीं होती, जैसे की हमारे समाज मैं कभी भी नहीं कहा जायेगा की मर्दों का एक विशेष सन्मान है.

जहा “दुर्गा” देवी को महिसासुर के वध के कारन जाना जाता है और ऐक प्रथा के मुताबीक देवी का क्रोध शांत करने के लीये खुद शिव जी को आना पड़ा था. जो नारी खुद अपनी रक्षा कर सकती है और समय आने पे हथीयार तक उठा सकती है वोह इतनी कमजोर क्यों हो जाती है की उसे अपनी रक्षा के लीये अपने भाई को राखी बाधनी पड़ती है, उसे इजाजत नहीं घर से अकले बाहर जाने की ना ही अपने जीवन को अपनी रुची के अनुसार जीने की ? मैं इस सवाल से आज दंग हु की जिस ऐक घर मैं हर रोज “माँ” देवी की महीमा के गुण गान होते है उसी घर मैं ऐक आम औरत इतनी ग्भाराई हुई और भयभीत क्यों है? 2014 की अगर इस क्राइम रिपोर्ट  पे ध्यान दे तो पती और उसके रिशतेदारो द्वारा औरत पे जुर्म के कुल १,१८,८६६ केस है. इसी रिपोर्ट के अनुसार २०१४ मैं हुये कुल ३६,७३५ दर्ज रैप केसो मैं से १९७ पुलिस कस्टडी मैं रिपोर्ट हुये है. ५७,३११ औरतो के अपहरण के मामले है, क्या औरत इतनी कमजोर है की उसे कोई भी और कही भी उठा के ले जा सकता है. क्या समाज का ये अपराधी रूप ही औरत को घर की चार दिवारी और रसोई तक सीमित कर देता है ? कही और कोई सूक्षम कारन तो नहीं जो हमे दिख ना रहा हो लेकीन औरत की गुलामी का महत्वपूरण कारन हो. अगर ऐक नजर मारे तो औरत जो काम सदियों से हमारे देश मैं कर रही है जैसे की औरत खेतो मैं भी काम करती है, पशुयो को भी सम्भालती है, बच्चो की परवरीश भी करती है और रसोई मैं भी खाना बनाती है, अगर घर के किसी मर्द को पानी की प्यास लगती है तो वोह घर की औरत को ही केहता है, ऐक सर्वे के मुताबीक भारतीय औरत भारतीय मर्द से करीबन हर दिन 1 घंटा और ३० मिनिट ज्यादा काम करती है. अब इसे क्या आप औरत की गुलामी कहेगे या मजबूरी.और अगर गुलामी भी है तो कही ना कही अत्याचार भी होगा, इस रिपोर्ट () के मुताबीक ७५-८६% औरते अपने पे होने वाले पारीवारीक जुर्म को जाहीर नहीं करती है. इस रिपोर्ट के मुताबीक ५४% भारतीय मर्द और ५१% भारतीय औरत इस मत  से सहमत है की पती को पत्नी के पीटने का अधिकार है अगर ऐक बहु अपने सास और ससुर की इज्जत नहीं करती. यानी की वोह मर्द जो की नवरात्री मैं माँ के नाम पे वर्त रखता है और कई देवी धामों की बड़ी श्रधा से दर्शन करता है, लेकीन अपनी पत्नी पे जुर्म करते हुये उसे, ऐक औरत मैं देवी नहीं दिखाई देती.

अब ये मेरी समझ मैं नहीं आ रहा , की क्या देवी सिर्फ पूजा के रूप मैं ही सुशोभीत है क्यों हम हमारी बहु बेटियों को अपनी रक्षा खुद करने की और हथियार उठाने के लीये परैरीत नहीं करते ? शायद अगर औरत स्वाभीमानी हो गयी, तो वोह कई सवाल करेगी जो हमारे पुरशो द्वारा संचालित समाज को स्वीकार नहीं होगा ? और ऐक बहादुर औरत अपनी गुलामी को तोड़कर समाज मैं बराबर का हक़ मागैगी. और रसोई के बर्तनों को छोड़कर वोह सारा काम करना चाहेगी जो हमारा समाज शारीरक दृष्टी से सिर्फ मर्दों से अपेशा रखता है. शायद हमारे सभय समाज को इसी बात की चिंता रेहती है की क्या होगा जब औरत विद्रोह की मुद्रा मे आ गयी ? और उसने गुलामी करने से मना कर दिया ? तो यही बेहतर है की उसे ऐक तस्वीर के रूप मैं देवी बना दो और हकीकत मैं उसे गुलाम बना कर रखो, और जब भी वोह विद्रोह की मुद्रा मैं आये तो उसे उसकी कमजोरी का ऐहसास करा दो. यानी की हम खुद ही जीमैवार है औरत पे घर से बाहर हो रहे जुर्म के लीये, क्योंकी उसको हमने कभी बहादुर बनने ही नहीं दिया और हमेशा अपनी पैर की जूती समझा.

“घर की इज्जत” ये सबसे बड़ा हथियार है औरत को गुलाम बनाने का और घर की चार देवारी मैं रहने वाली औरत भी इससे बड़ी ही सन्मानीत मेहसूस करती है. और फिर इस इज्जत के नाम पे औरत पर वोह सारी पाबंधीया लगा दो जिससे वोह खुल के बोल ना सके, हस ना सके, गुनगुना ना सके, अपनी मर्जी से अपने कपडे ना पेहन सके और हमारी औरत भी कही ना कही इन्ही पाबंधीयो को अपना अधिकार समझ लेती है. और ऐसी गुलामी की दिशा मैं चली जाती है की उन्हे कभी ऐहसास ही नहीं होता की कब उनकी आजादी उनसे छीन ली गयी और कब उन्हे गुलाम बना दिया गया. और इस तरह के हलात हमारे देश के लगभग हर समुदाय मैं है, तो क्या हमने हमारी देश की आधी जनता को पुरश प्रधान समाज के तैहत गुलाम बना के रखा है.

इस रिपोर्ट के मुताबीक वोह समाज और देश कही पिछड़ा हुआ रेह जाता है जहा औरत और मर्द को ऐक समान नहीं देखा जाता, जब की वोह समाज और देश बड़ी जल्दी से तरकी करता है जहा औरत और मर्द को ऐक समान देखा जाता है. इसी रिपोर्ट के मुताबीक अगर औरत खेती के काम मैं मालिकान हक़ से काम करे तो खेती की उपजाऊ ६ से १२% तक बड सकती है.  इसी रिपोर्ट के मुताबीक घर की आमदनी का हक़ अगर ऐक औरत के पास हो तो बच्चो की मोत मैं २०% तक रोकी जा सकती है.

अगर हमे, हमारे समाज को और हमारे देश को तरीकी की और ले जाना है तो सबसे पहले ऐक औरत का विकास करना होगा, उसे तस्वीर मैं ही नहीं बल्की ज़िन्दगी मैं भी ऐक देवी का दर्जा देना होगा, उसे बल देना होगा, शिक्षा का अधिकार देना होगा, उसे प्रोत्साहीत करना होगा हमारी देश की सेना मैं जाने के लीये, दुश्मन से लडने के लीये. उसे घर की चार दीवारों से बाहर लाकर इस विश्व को उसे दीखाना होगा, हमारी औरत की आज़ादी से ही ऐक सुरक्षीत और सभ्य समाज की रचना हो सकती है. नहीं तो हम लाख कोशीश कर ले, हम ऐक महाशक्ती नहीं बन पायेगे. जय हिन्द.

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