नोटबंदी का फैसला और इस पर हो रही मोदी जी की चर्चा कही ना कही उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावो का प्रचार का माध्यम तो नही ? #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans

नोटबंदी की घोषणा के साथ ही ०८-११-२०१६ का दिन भारतीय इतिहास में दर्ज हो गया हैं. अब भविष्य में इस तारीख को हमारे इतिहासकार किस तर्ज पर रेखाकिंत करते हैं, ये देखने लायक होगा. लेकिन आज कही ना कही हर चर्चा में नोटबंदी शुमार हो चुकी हैं, हर सड़क पर, नुक्कड पर, बैंको की लाइन में, सोशल मीडिया में और हमारा न्यूज मीडिया में भी यही चर्चा सर्वोच्च हैं और कही ना कही इसके पक्ष और अपक्ष में हर कोई खड़ा दिखाई दे रहा हैं. सरकार ने ५०० और १००० के नोटों को बदलवाने के लिये ३०-१२-२०१६ तक की तारीख रखी हैं और इसके बाद भी आप ३१-०३-२०१७ तक अपना पहचान पत्र दिखा कर ये नोट बदलाये जा सकते हैं. तो क्या तब तक नोटबंदी इसी तरह चर्चा में बनी रहेगी ? क्या इसी बहस में हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी का जिक्र भी इसी तरह  होता रहेगा ? तो अगर हाँ तो लक्ष्य क्या हैं, कही उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव तो नही ?

राजनीति में कहा जाता हैं की नामी और बदनामी, ये दोनों ही आप का समर्थन करती हैं कुछ इसी तरह हुआ हैं हाल की दिनों में जब ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में चुने गये, विशेषयगो का कहना हैं की ट्रम्प पूरे चुनाव में चर्चा का विषय बने रहे थे फिर चाहे वह हेलरी फ्लिंटन का खेमा हो या ट्रम्प का. कुछ इसी तरह से २०१४ में केंद्र सरकार के चुनावो में श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी सर्वोच्च चर्चा का विषय रहे थे फिर चाहे वह राहुल गांधी की रैली हो या अरविन्द केजेरिवाल की. और इसी तरह कही ना कही इस तरह की चर्चा आज चुनावी मतदाता की मानसिकता को प्रभावित करती हैं. अगर इस रिपोर्ट पर ग़ोर करे जिसमें मैं बताया गया हैं की २०१४ के चुनावो मैं  मोदी जी सर्वोच्च चर्चा में बने रहे थे, इसके पश्चात अरविन्द केजरीवाल जी थे और अंत में राहुल गांधी जी थे. और इसी तरह कुछ  चुनावी नतीजे भी आये की भाजपा ३१% मतों के अनुपात के साथ २८२ सीटो पर विजय हुई वही कांग्रेस १९.३% मतों के अनुपात के साथ ४४ सीटो पर सिमट कर रेह गयी. आम आदमी पार्टी भी ४ सीटो पर विजय हुई ये खासकर इसलिये ज्यादा माईने हैं क्योंकि ये पहली बार चुनावी अखाड़े मैं थी. २०१४ के चुनावो मे शायद पहली बार भारत के इतिहास में किसी राजनैतिक पार्टी ने किसी मार्केटिंग एडवरटाइजिंग एजेंसी की मदद चुनावी प्रचार में ली थी . भारतीय जनता पार्टी के २०१४ के चुनावी नारों को भारत की मशहूर मार्केटिंग एजेंसी ओगिलवी-माथेरस एजेंसी सोहो स्क्वायर ने लिखा था. और शायद पूरे चुनावो में श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी को किस तरह चुनावी चर्चा का विषय बनाये रखना हैं इसकी पृष्टभूमि भी इन्होने ही रखी थी.

और कुछ इसी तरह से आज नोटबंदी और इसके रूप में फिर से श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी चर्चा के विषय बना दिया गया है. तो क्या ये आने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावो के उपल्श में कही कोई चुनावी रुपरेखा तो नही ?. इसके संदर्भ में एक प्रमाण दे सकता हु की ०८-११-१०२६ के पहले उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की पारिवारिक कलह हर जगह चर्चा का विषय बनी हुई थी और इन्ही चुनावो के संदर्भ में श्री अखिलेश यादव जी नै अपनी रथ यात्रा भी शुरु कर दी थी, बहन मायावती जी नै भी अपनी चुनावी रैली कर उत्तर प्रदेश मे चुनावी बिगुल बजा दिया था लेकिन जब से नोटबंदी की घोषणा हुई है तब से कही ना कही इन सारी खबरों पर पूर्ण विराम तो लग ही गया हैं, साथ ही साथ  अब कही भी कोई भी खबर उत्तर प्रदेश के संदर्भ में नही दिखाई दे रही. यहाँ तक की पिछले दिनों देल्ही में हवा प्रदुषण का गिरता प्रमाण सुर्खियों में बना हुआ था लेकिन आज ये भी कही गुम सा हो गया हैं. इसी बीच मोदी जी ने उत्तर प्रदेश में एक रैली में बड़ी ही भावुकता से अपने जीवन को देश के प्रति समर्पित होने का संकल्प दोहराया हैं. सही मायनो में, उत्तर प्रदेश का चुनावी बिगुल बजा चूका हैं और इसी का तात्पर्य हैं की, सिर्फ नोटबंदी और श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी ही बस आज सर्वोच्च चर्चा का विषय बने हुये हैं या बना दिये गये हैं.

इसका प्रमाण सोशल मीडिया पर भी देखा जा सकता हैं जहाँ हर दूसरी पोस्ट में हमें ये सन्देश होता हैं की हमें भी अपना कर्तव्य देश के प्रति निभाना हैं. हमें भी हँसी खुशी बैंको की लाइन में बड़ी ही शांति से खड़े रहना हैं. इसी बीच एक और पोस्ट आती हैं की भारत के २०१९ के चुनावो में आप किसे जीतता हुआ देखना चाहते हैं और इसी पोस्ट में एक तस्वीर श्री नरेन्द्र मोदी जी होती हैं और दूसरी किसी विपक्ष के नेता की. अमूमन इन सभी जगह मोदी जी को पहले से ही विजयी घोषित किया जा चूका होता हैं. और इसी सोशल मीडिया पर आज कल कई नये नये ग्रुप बन गये हैं जो कह रहे हैं की खबरों के लिये न्यूज़ मीडिया मत देखो फेसबुक पर यकीन करो. और इन खबरों में वही दिखाया जा रहा हैं की किस तरह नोटबंदी एक सराहनीय निर्णय है.



हाँ, में भी व्यक्तिगत रूप से स्वीकार कर रहा हु की नोटबंदी एक सराहनीय निर्णय हैं और कही भी इसके कारण थोड़ी सी तकलीफ उठाने में झिझक नहीं रहा शायद यही कारण हैं की पूरा देश एक माला में पिरोहै हुये मनको की तरह एक सुर में जुड़ कर खड़ा हुआ हैं, वैसे भी मध्यम वर्ग को अब सालो से मानो तकलीफ सहने की आदत सी हो गयी हैं, लेकिन जिस तरह से नोटबंदी को नामी और बदनामी के रूप में प्रचार किया जा रहा हैं वह कही ना कही इसके पीछे छुपे कई और चित्रों को व्याखित कर रहा हैं. और इसमें कही ना कही शायद किसी कोने में ही सही लेकिन नोटबंदी के पीछे की मानसिकता उत्तर प्रदेश के चुनावो से भी जुड़ी हुई दिखाई दे रही हैं. जय हिंद.