आज पंजाब के सामाजिक जीवन, मैं दो तरह के समुदाय आम देखे जा सकते हैं एक कनाडा में रहकर डॉलर कमाने वाले और पंजाब मैं उनके रिश्तेदारो की ऐश आराम की जिंदगी. दूसरी तरफ, करजई होता जा रहा किसान, ख़ुदकुशी के बड़ रहे घटनाक्रम और इसी मदहोशी के नशे में डूब रही पंजाब की जवानी. ये इस तरह के फर्क हैं की एक घर मैं मंहगी से मंहगी गाडी खड़ी होगी और उसी के पडोस में दुख दबी हुई सिल्कती बिलकती आवाज़ आम सुनाई देगी. यहाँ कब्बडी के खेलों पे लाखों खर्च हो जाते हैं लेकिन स्कूल की हालत मदभागी ही बनी रहती हैं.
कहा जाता हैं की गुण मैं अवगुण हैं और अवगुण
मैं गुण, ८० के दशक मैं पंजाब एक काले दोर से गुजर रहा था और रोजगार
के अवसर बस खेती और सेना मैं भर्ती तक ही सीमित रह गये थे, इसी दौरान कई परिवारो ने विदेशों का रुख किया, इस रिपोर्ट के मुताबिक २० लाख से ज्यादा सिखपंजाबी विदेशो मे बस्ते है. लेकिन बहुताय पंजाबी वर्ग, विदेशी शिक्षा के अभाव
में ज्यादातर मजदूर मे या ड्राइविंग के कार्यो में लग गये और अपनी कड़ी मेहनत से
अपने सुख मई जीवन की वहा नींव रखी. इस का एक और रुख भी हैं, वहा की सरकारी की सहायक, रोजगार नीतियां और कानून व्यवस्था. जैसे की
विदेशों मैं अनुमन स्कूल की पढाई, मानवी चिकित्सा, बेरोजगारी बथा, इत्यादि मूलभूत सुविद्याये बिलकुल मुफ्त हैं. यहाँ हर किसी को काम मिल जाता
हैं और कमाई का अनुपात मैं ज्यादा फर्क नही होता. लगभग, परिवार का हर सदस्य काम पे लगा होता हैं.
और ये कमाई का अनुपात और भी बड़ जाता हैं जब
विदेशी मुद्रा का मूल्यांकन भारतीय मुद्रा में होता हैं जैसे की कैनेडियन एक डॉलर का भाब ५० रुपये हैं. और सदियों मैं कनाडा
मैं बर्फबारी की वजह से काम काज लगभग बंद होते हैं और इसी समय ज्यादातर पंजाबी
विदेशी पंजाब का रुख करते हैं, उनके यहाँ २ महीने रुकने का मतलब भारी भरकम
खरीदारी जो की हजारों के एक जोड़ी कपड़ों से बर्तनों तक होती हैं, हर शाम को शराब और शाही खाना होता हैं, दावत मैं विदेशी पंजाबी
की एक अलग ही इज्जत मान होता हैं. मानो एक सेलेब्रेटी लाइफ जी जा रही हो. आम तोर
पे पंजाब का लोकल यूथ इनके चेहरे की चिन्ताओ को नही पड़ पाता जो की कड़ी मेहनत से
लकीरों में खींच गयी होती हैं और ना ही पंजाबी विदेशी अपनी जिंदगी की कठनाइयो को
बयाँ करता हैं शायद उसे डर होता हैं की कही उसकी राजशाही सेवा में कोई कमी ना आ
जाये.
इसी दौरान, छोटा और मध्यमवर्गी किसान
भी चिंता की मुद्रा मैं होता हैं जिसने अपनी फसल के लिये भारी भरकम कर्ज लिया होताहै और
कभी सदियों मैं बारिश या ओले फसल को तबाह कर देते हैं. अमूमन आधे से ज्यादा पंजाबी
किराये पे जमीन लेकर फसल बीजता है क्योंकि पींडी दर पींडी जमीन किसान के हिस्से मै
कम होती जाती है. जब पकी हुई गेहूँ की फसल जमीन पे भीछ जाती हैं मानो फसल नही
किसान की उमीदो की अर्थी हो. इसी तरह गरमीयो मैं, कपास की फसल को सूंडी की
बीमारी लग जाती हैं. कभी कभी तो फसल की लागत भी नही मोड़ पाती. यही नुकसान जो की
अपनी सामजिक और घरेलू जररुतो को पूरा करने नही देता तो असहाय किसान की खुद्कुसी का
कारण बन जाता हैं. इस रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ २०१५ मैं पंजाब के ४४९ किसानो नै
आत्महत्या की है.
मैं पंजाब की विदेशी मानसिकता से आप को इस
उदाहरण से अवगत करवा सकता हु की अगर आप के पास विदेशी पासपोर्ट हैं तो आप किसी से
भी शादी करने के लायक हैं और आपकी उम्र, धर्म, जात पात और जमीन बिलकुल नही देखी जायेगी. बस पासपोर्ट पे विदेश का सिक्का होना
चाहिये. और इसी तरह पंजाब का जवान, विदेशी पंजाबी की चकाचौंध देखकर मोहित हो जाता
हैं और उसका अरमान बस विदेशों मैं जाकर बसने का ही होता हैं. इस रिपोर्ट के
अनुसार, हर साल २०,००० पंजाबी जवान गैरकानूनी जरिये से विशव के अलग अलग ५७ देशो मे
परवेश करता है. वह उस पतगे की तरह होता हैं जिसे रोशनी से इतना प्यार हो
जाता है की उसीमै जल जाता हैं. बहुत कम विदेशों तक पोहच पाते हैं और जो बहुताय रह
जाते हैं वोह मायूस होकर नशे की चपेट में आ जाते हैं. यहाँ जिक्र करने लायक एक और
कारण भी हैं रोजगार की कमी, आज भी पंजाब मैं रोजगार के नाम पर खेती और सेना
में भर्ती ही हैं.