“पिंक” फिल्म ने अपनी ख़ूबसूरत कहानी और सराहनीय अभिनय
के लिये दर्शकों से खूब प्रशंसा बटोरी और इसके ख़ूबसूरत निर्देशन का तो में भी
कायल हो गया. पूरी फिल्म में इस बात कर भ्रम बनाये रखा की उस रात उन तीन लडको में
और तीन लड़कियों में आखिर हुआ किया था ? क्या कोई आपसी सहमति थी शारीरिक रिश्ता बनाने में या नहीं ? लेकिन फिल्म में इस बात पर जोर दिया गया की “नोः” या “नहीं” का मतलब “नोः” और “नही” ही होता हैं. अगर कोई लड़की शारीरिक सबंध बनाने से “नही” कह रही हैं तो आप को कोई
अधिकार नही हैं किसी भी तरह की जबरदस्ती करने का. ये एक फिल्म थी लोगो ने तालिया
भी बजाई और शायद फिर इसे भूल गये. लेकिन एक सवाल मेरे मन में ज़रुर आ रहा हैं की
अगर ये हकीकत होती तो किस तरह इस पर लोग अपनी प्रतिक्रिया करते ?
कुछ इसीतरह से २०१२ की
फेब्रुअरी में कोलकत्ता में हुआ,
जहाँ एक औरत को पब के बाहर दो लोगो ने घर तकछोड़ देने की पेशकश की, ये तीनों बस अभी कुछ ही
समय पहले पब के अंदर मिले थे लेकिन गाड़ी चलने के बाद कुछ ही समय दौरान ३ और सख्श
आकर इस गाड़ी में सवार हो गये. और चलती गाड़ी में बंदूक की नोक पर इन पांचों ने इस
महिला के साथ जबरन बलात्कार किया. महिला चिलाती रही “नहीं” “नहीं” वह गाड़ी के दरवाजा खोलने की भी कोशिश कर रही
थी. लेकिन वह हर जगह कमजोर साबित हो रही थी. इस साहसी महिला ने बाद में अपनी पहचान
भी सार्वजनिक कर दी और उस हर दुखांत को इस समाज के सामने पेश किया की किस तरह
हमारे समाज की व्यवस्था उसे इंसाफ दिलाने की बजाय उसे ही गुनहगार के रूप में पहचान
दे रही थी.
उस महिला ने बताया की किस
तरह उसे दरिन्दे बलात्कार के दौरान पिंट रहे थे मानो सालो की कोई जमीनी दुश्मनी हो
जबकि वह सारे इस महिला से अनजान ही थे. और कुछ घंटों बाद कलकत्ता की सड़क पर उस
महिला को चलती गाड़ी में से फैक दिया गया. महिला तीन दिनों तक अपने आप को संजोज्ती
रही और आखिर में हिम्मत कर पुलिस को शिकायत की. और कमजोर को और कमजोर कहने का ताना
बाना यही से शुरू हो गया सबसे पहले तो महिला से पुलिस स्टेशन में ही पूछा गया की
सच में वह शिकायत करना चाहती हैं. फिर पुलिस द्वारा सवाल किया गया की “चलती हौंडा सिटी कार में बलात्कार कैसे हो सकता
हैं ?”. एक और घिनौना सवाल किया
गया की “बलात्कार के दौरान आप
चलती कार में किस पोजीशन पर थी ?”. महिला के कहैं अनुसार उस
समय पुलिस स्टेशन की जेल में ११ साल की लड़की के साथ कथा कथित बलात्कार का आरोपी भी
ये सारी बातों को सुन रहा था. इस बीच महिला का मैडिकल टेस्ट के दौरान डॉक्टर साहिब
ने महिला के टैटू की प्रंशसा कर रहा था.
जब न्यूज चैनलों ने इस
दुखांत को सुर्खियों में दिखाना शुरू किया तब सामाजिक रूप से और ताक़तवर लोगो ने
इस पर अपनी प्रतिक्रिया देनी शुरू की जिसमें सबसे मोहरी थी उस समय वैस्ट बंगाल की
महिला मुख्य मंत्री श्री ममता बैनर्जी ने इस संदर्भ में कहा “सजनो घोटना” अर्थात एक बनाई गयी
काल्पनिक कहानी. इसी बीच एक और महिला नेता
काकोली घोष दस्तीदार ने एक बयान दिया की “अगर आप मुझसे इस घटना कर्म के बारे में पूछेगे, तो में यही कहूँगी की ये एक बलात्कार ना होकर
एक डील थी, जो की किसी कारण ग्राहक
और महिला में गलतफहमी में तबदील हो गयी.” इसका अर्थात महिला पीडिता ना होकर एक सेक्स वर्कर थी. कई और सवाल भी उठे की
इतनी रात तक एक अकेली महिला पब में क्या कर रही थी ? कुछ लोगो ने सलाह भी देनी शुरू कर दी की अकेली महिला को रात
के समय बाहर नही निकलना चाहीये. एक इस तरह का माहौल बना दिया गया था की हमारा सभ्य
समाज इस बहस में उलझ कर रह जाये की क्या बलात्कार हुआ था या नहीं. लेकिन कही भी ये
सवाल नही था की हम क्यों अपनी कानून व्यवस्था को इतना मजबूत क्यों नही बना सकते की एक अकेली महिला रात को बाहर आ
सके ? कोई भी ये दिलासा नही दे
रहा था की हम गुन्हैगारो को इस कथित जुर्म के लिये कड़ी से कड़ी सजा देंगे ताकि
भविष्य में कोई इस तरह का जुर्म करने की हिम्मत ना कर सके. लेकिन इस सब के बीच
पीडिता ने अपनी हिम्मत नहीं हारी और न्याय की पुकार के लिये इस गुनाह को अदालत के
कटघरे में खड़ा कर दिया. और समय रहते गुन्हैगारो को सजा भी मिली लेकिन इसी बीच २०१५
मे पीडिता इस संसार को हमेशा के लिये अलविदा कह गयी.
फिल्म पिंक की नायिका एक
अदालत के भीतर एक द्रश्य में जज साहिब से कहती हैं की “बहुत गंदा लगता हैं जब आपको कोई आपकी मर्जी के बिना छूता
हैं.” लेकिन हमारा सभ्य समाज इस दर्द को नही समझ
सकता. इसी बीच फिल्म में लड़कियों के वकील का किरदार निभा रहा शख़्स कहता हैं “इन लडको को एहसास होना चाहिये की नोः का मतलब नोः होता हैं.
उसे बोलने वाली लड़की कोई परिचित हो,
दोस्त हो, गर्लफ्रेंड हो, कोई सेक्स वर्कर हो या
आपकी बीवी ही क्यों ना हो. नोः का मतलब नोः होता है और जब कोई आप से नोः कहैं तो
आप वही पे रुक जाये.”
लेकिन हमारा परुष प्रधान
समाज इस नोः को सुनने का आदि नहीं लेकिन इसी आदत को कटाक्ष करता हुआ फिल्म के अंत
में वकील का किरदार निभा रहा कलाकार हमारे सभ्य समाज में बलात्कार के अपराधो को
रोकने के लिये ये उपाय कहता हैं “आज तक हम एक गलत डायरेक्शन में एफर्ट करते रहे, हमे अपने लडको को बचाना चाहिये ना की लड़कियों को. क्योंकि
अगर लड़के सुरक्षित हैं तभी लड़कियां सुरक्षित रह सकती हैं.”. जय हिंद.