हमारे प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी द्वारा
०८-११-२०१६ की मध्यरात्रि से ५०० और १००० रुपए के नोटों का चलन गैर कानूनी
करार दे दिया गया है. इसे कई वजह से काले धन के खिलाफ की गयी मुहिम के तोर पर भी
और नकली नोटों के चलन पर लगाम लगाने हेतु भी देखा जा रहा है. अगर व्यंग के माध्यम
से कहू तो दरअसल, मोदी जी नै लालकृष्ण अडवाणी के जनम दिन पर उन्हें कालेधन पर
क़ाबू पाने के ऐसा निराला तरीका बताया की जिसे २००९ के चुनावो मैं अडवाणी जी भुना
नहीं पाये थे, खेर इसके बाद मोदी जी जोश मैं हैं और अडवाणी जी चुप हैं. लेकिन इस
एकाएक घोषणा की कुछ वजह भी रही हैं की विरोध के सुर कुछ दिनों से उसी तरह नकेल कस
रहे थे जिस तरह सर्जिकल ऑपरेशन के पहले हलात थे, उसको चुप करवाने
के लिये मोदी की का ये शानदार उपाय था. और आप यकीन रखिये इस तरह की घोषणाये कुछ
कुछ अन्तराल तक सुनायी देती रहेगी जब तक उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव नही हो
जाते है. उदाहरण के लिये इस घोषणा के बाद इस तरह की मार्केटिंग की पिच तैयार की
गयी जिस पर सभी मीडिया कर्मियों नै अपनी देश भवती दिखाते हुये, ५०० और १०००
रुपये की गेंद फैकी और मोदी जी हर इस तरह की गेंद को स्टेडियम के पार भेज रहे थे.
ये सिलसिला कुछ दिनों तक युही चलेगा और हमारा देश भक्त मीडिया बाकी किसी मुद्दे पर
हमारा ध्यान नही जाने देगा. लेकिन मैं कुछ उन कारणों के बारे में बात करना चाहता
हु की किस तरह मोदी जी के इस सराहनीय निर्णय से हमारी अर्थ व्यवस्था पर अनैतिक
फर्क पड़ेगा.
मैं अपनी बात शुरु करने से पहले उस सोच को जरूर कटाक्ष करना
चाहूंगा जो खुद को सर्वोपरि मानती हैं और अणु बम्ब के बनने के संदर्भ में कहती हैं
की ये प्रेरणा महाभारत के अर्जुन के ब्रह्मस्थ से ली गयी है. हम अपनी सोच में इस
तरह क़ाबिले तारीफ़ हैं की इसके अहंकार के सिवा और कुछ नही दिखाई देता. आप से
बिनती हैं की की इस घमंड के चश्मे को उतारकर देखे तो हमारी अर्थव्यवस्था दो तरह से
बटी हुई हैं एक वोह जो हमारे देश और नागरिको की जरूरतों से जुड़ी हुई हैं इसमें
खेती, अनाज, पैर का जूता, सर का तेल, पेट्रोल, इत्यादि व्यवसाय
और उससे जुडे उद्योगों का जिक्र होता है. और दूसरी अर्थव्यवस्था जो की कुछ पिछले
सालो से बाजार में आयी हैं में इसे सरल भाषा में विदेशों का सपोर्ट सिस्टम कहता
हु. इसी की रूप रेखा मैं वोह सारी सौफ्टवेअर कंपनियां, काल सेंटर, केपीओ, बीपीओ,इत्यादि आते हैं
जो की यहाँ बैठ कर विदेशों की अर्थव्यवस्था में अपना महत्वपूर्ण योगदान कर रहे
हैं. अगर इसका उदाहरण देना हो तो रात को जागता गुडगाँव के रूप में दे सकता
हु जहाँ काल सेंटर की भरमार हैं और ये भारतीय रात मे कार्यरत होते हैं जो की
अमेरिका में दिन हैं. इस सपोट सिस्टम की अर्थव्यवस्था का मूलभूत कारण अमेरिकन डॉलर
और भारतीय रुपये के बीच का बड़ा अंतराल हैं, आजकल एक अमेरिकन
डॉलर का भाव भारतीय ६६ रुपये हैं. इसका एक और महत्वपूर्ण कारण विदेशी पूंजी भारतमें लाने पर भारी मात्रा में टैक्स पर दी गयी छुट हैं.
किसी भी सौफ्टवेअर कंपनी में काम करने के लिये आपको किसी
कंप्यूटर लैंग्वेज (ये सारी कंप्यूटर लैंग्वेज विदेशों में ही बनती हैं हम बस यहाँ
कोड ही करते हैं, अगर हकीकत कहूं तो लकीर के फ़क़ीर हैं.). में कोड करना आना
चाहिये या कॉल सेंटर के लिये इंग्लिश लैंग्वेज का विदेशी तरीके से बोलना आना
चाहिये. बस, आप काम कर सकते है इसके इलावा सौफ्टवेअर कंपनी के लिये कुछ
कागजी विधा के सर्टिफिकेट होना भी अनिवार्य हो जाता हैं. एक बात ग़ोर करने लायक
हैं की ये सारी बड़ी या छोटी कंपनियां किसी भी तरह से रिसच्र या डैवलपमेंट पर खर्च
नही करती अगर करती भी हैं तो नाम मात्र. सच कहूं, तो इसमें काम
करने वाला कर्मचारी काफी हद तक अपनी कंपनी पर ही निरभ्र रहता हैं.
अब जब मोदी जी का ये सराहनीय निर्णय जब पूर्णतः लागू होगा
तो काले धन पर लगाम लगेगी (कितनी लगेगी ये कहना अभी वाजिब नही होगा.) और
भ्रष्टाचार पर भी रोक लगेगी. और खुद जिस तरह प्रधानमंत्री जी ने कहा की इस निर्णय
से महगाई पर भी लगाम हो पायेगी. इन्ही सब उपायों से भारतीय रुपया अमेरिकन डॉलर के
मुकाबले और मजबूत होगा और हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था का विदेशी सपोर्ट सिस्टम कही
तिल मिला जायेगा. यही वजह रही की इस ऐलान के दूसरे ही दिन हमारा स्टौक मार्किट मेंभारी गिरावट देखी गयी.
अब हमने खुद का विकास तो किया नही ना हमारे देश ने अपने
नागरिक का, अमूमन हमारा प्राइम टाइम न्यूज मीडिया हमारी कठनाइयो से
ज्यादा हमें पाकिस्तान से होने वाले खतरे से ही आगाह करता हैं, वोह सच दिखता नही
और हमने कभी सोचा नहीं तो. बस सोचिये, अगर अमेरिकन डॉलर
भारतीय रुपए के मुकाबले १० रुपए भी गिरा तो काफी लोगो की जॉब जा सकती हैं और अगर
ये आधार २० रुपए तक गिरा तो यकीन मानिये नोकरिया जाने का हाहाकार मंच सकता हैं. तो
इस भ्रम की अवस्था में अगर आप भविष्य में किसी पुराने मित्र को जो की सौफ्टवेअर
इंजीनियर था उसे आप सडक पर सब्जी या तेल बेचते हुये पाये तो घबराइयेगा नही बस उस
अर्थव्यवस्था को ताना मारियेगा जिसने सपोर्ट सिस्टम को पैदा किया ना की खुद पर
निर्भर होने का विकास किया. जय हिंद.
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