भारतीय सेना एक आदर्श और कुछ सवाल. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans


1962 मैं सीनों-इंडो वार मैं, सूबेदार जोगिन्दर सिंह और उनकी पलटन अपने स्थान से पीछे नहीं हटे थे. दुश्मन जो की संख्या मैं कही ज्यादा था और अतिआधुनिक हथियारों से लेस था उसने दिन मैं कई बार हला बोला था लेकिन हमारे देश के फौजी अपनी आखिर सांस तक लड़ाई लड़ते रहे थे. और अंत मैं शहादत प्राप्त की लेकिन अपनी जगह से नहीं हीले. फौज के पास हथियारों की कमी थी लेकिन हौसला आसमान पे था. ऐसे बहुत से और भी हमारी सेना के उदाहरण हैं, जो हमें गोरवंती करते हैं. हमारी सेना हमारे लिये हमेशा आदर्श रही हैं, १९७१ की पाकिस्तान के साथ जंग मैं, जब हमारे फौजी सरहद पे लड़ रहे थे, तब हर घर मैं, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा और चर्च मैं उनकी सलामती की दुआ मांगी जाती थी और आज, अब भी, हमें हमारी फौज के लिये उतना ही स्नेह और सन्मान हैं.

सही अर्थो मैं एक फौजी अपने लहू से रक्षा करता है हमारे देश की सीमा की, लेकिन ये भी हकीकत है की एक आम फौजी बड़ी ही दयादीन स्थती मैं रेहता हैं जब वोह बैस या टाउन मैं होता हैं, तो उसके पास इतने संध-साधन नहीं होते के वोह अपने परिवार को साथ मैं रख सके मसलन कुआटर , हमारी सेना मैं ऐसी मूल भूत सुविधायें की कमी हैं. और हर एक – दो सालो मैं यूनिट का मूवमैंट होना ये भी गलत प्रभाव डालता हैं फौजी परिवार पे और उनके बच्चो की पढाई पे. अब बात करते हैं उस फौजी की जो हमारे बॉर्डर पे दिन रात और बारो माह खड़ा है, हर धूप, छाव और बारिश मैं वोह अडिग वही खड़ा हैं. मैं इस जज्बे की दात देता हु.हालात और भी मुश्किल होते हैं, जब हमारा फौजी सबसे उची पहाड़ी की उँचाई पे खड़ा हैं जहाँ ओक्ससीजन भी बड़ी मुश्किल से मिलता हैं जैसे की कश्मीर, सिक्किम और अरुणाचल परदेश की पहाड़िया. और फिर चाहे मई के महीने मैं जैसलमेर के रेगीस्तान की तपती हुई रेत हो, चाहे हालत कैसे भी हो, हमारा देश का जवान अडोल और निडर अपने पथ पे खड़ा हैं, जब जब किसी फौजी की शहादत होती हैं तब तब पूरा देश एक सुर मैं उस परिवार के साथ खड़ा होता हैं जिसने अपना जवान बेटा इस देश पे नोशावर कर दिया. लेकिन एक सच ये भी हैं, की एक फौजी की अधिकांश जिंदगी अपने परिवार से दूर कटती हैं, और ये अकेलापन कभी बड़ा खतरनाक होता हैं. अगर हम तीनों प्रमुख सेनाओं को जोड़ दे जैसे की भारतीय आर्मी, नेवी और ऐरर्फोस तो एक अनुमान के मुताबिक २००९ – २०१३ ( , As many as 597 military personnel committed suicide in 5 years between 2009 and 2013. Disclosing these figures in the Rajya Sabha on Tuesday, defence minister Arun Jaitely said, "The government has taken various measures to create an appropriate environment for defence personnel, so that they can perform their duty without any mental stress." , ) तक, इतनी शहादत नहीं हुई होगी जितनी की आत्महत्या के केस हो गे, कई बार इनके पीछे की वजह छुट्टी का ना मिलना भी होता हैं.

लेकिन फिर ऐसे क्या कारण हैं की बार बार हमारे देश की सेना पे सवाल होते हैं मसलन 2013 की सीऐजी (CAG,, page 2: 1. Shortage of ammunition In disregard of the War Wastage Reserve scales of 40 (I) days, based on which Annual Provisioning of ammunition was carried out by DGOS, indent for procurement of ammunition by AHQ was placed on the basis of ‘Bottom Line’ or ‘Minimum Acceptable Risk Level’ (MARL) requirements which averaged to 20 (I) days. ) की रिपोर्ट जो साफ़ साफ़ केहती हैं की हमारी सेना के पास सिर्फ २० दिनों तक लड़ने के लिये हथियार हैं, जो की अनुमन ४० दिनों तक होने चाहिये. १७० तरह के हथोयारो मैं से १२५ तरह के हथियारों की कमी हैं. टैंक और एयर डिफेंस की भारी कमी हैं (Despite the concept of attaining MARL first, the availability of ammunition as on March 2013 was below MARL, in respect of 125 out of 170 types of ammunition (74 per cent).) . १९६२ की चीन के साथ लडाई मैं, युद्ध के दौरान हमारे जवानों के पास हथियारों और खाने की कमी थी, हमारा लोजीस्टीक सप्लाई सिस्टम पूरी तरह से लडखडा गया था. इसलिये ही, इस युद्ध मैं हमारी सेना को जान माल का भारी नुकसान पड़ा था. और अगर आज हम पर अगर युद्ध थोंप दिया जाये तो क्या होगा ? ये एक सवाल है. देश के किसी भी नागरिक को जवान के हौसले पे किसी भी प्रकार का संदेह नहीं हैं लेकिन जब वोह सरहद पर जायेगा और हथियारों की कमी होगी तब क्या ? लगता हैं की हमने कुछ सिखा नहीं अपनी पहले की गलतियों से.

मानवता और हमारे समाज को बुराई की तरफ ले जाता एक ही लालच हैं और एक ही दाग हैं जो हमे कमजोर बनाता हैं, वोह हैं “भ्रष्टाचार”, और कही ना कही यही सोच जब इस पवित्र सेना मैं प्रवेश करती हैं तो कई सवाल छोड़ देती हैं. नहीं तो क्यों, हमारे देश की सेना के पिछले जर्नल ने 14 करोड़ की रिश्वत का इलजाम लगाया था एक रिटायर फौजी अफसर पे. पैर के मोज़े से लेकर बड़े-बड़े टैंकर , सभी के लिये हमारी सेना बाजार से आवंटित करती हैं और बस यही सौदे हैं “भ्रष्टाचार” की जड़. ऐसे कई सौदे खबरों मैं “भ्रष्टाचार” के कारण बने रहे हैं  जैसे की कारगिल ताबूत घोटला , २००७ मैं आया फ्रोजेन मीट का घोटाला, २००७ मैं ही हुआ राशन घोटाला, २००९ का बहुचर्चित आदर्श सोसाइटी घोटाला, ८०-९० के दशक का बोफोर्श घोटाला और २००८ का सुकना जमीन घोटाला. ये चिंता का विषय हैं और हमारी जिम्मेदार सरकार को इस बात की पड़ताल करनी चाहिये की ऐसे कितने रिटायर अफसर है जो किसी ना किसी रूप से भारतीय सेना के माल समान और उनकी देखभाल के सोदो से जुड़े हुये हैं.

कई और भी ऐसे कारण है जहाँ हमारी सेना के सन्मान को ठेस पोहचती है और इसका सबसे बड़ा कारण हमारी कमजोर होती हुई  राजनीति व्यवस्था भी है, क्योंकि आज का मतदाता इतना समझधार हो गया हैं की उसे राजनीति के हर परकार का छल अब साफ़ साफ़ नजर आने लगा हैं और वोह आज , किसी भी राजनीति झासे मैं नहीं आता. आज कल हर मत दार अपना मत देने से पेहले राजनीति पार्टी से सवाल करने लगा हैं की क्या ऐसा कार्य किया हैं इस राजनीति पार्टी ने जो उसका मत इस पार्टी को ही देना चाहिये. अब, हर राजनीति पार्टी इस सकते मैं हैं की आम इंसान का कही इस सिस्टम से विश्वास ना उठ जाये और इस सिस्टम मैं विश्वास बनाये रखने के लिये एक आम आदमी के डर का माध्यम कही ना कही सेना को ही बनाया जाता हैं. जब जब राजनीतिः व्यवस्था चरमराती हैं तब तब उसे विद्रोह की आवाज कहके बड़ी आसानी से राजनीतिक पार्टीया खुद को आम आदमी से दूर कर लेती हैं और उसे सेना के सामने खड़ा कर देती है. और जब जब आम आदमी और सेना आमने सामने आयी हैं तब तब आम आदमी के अधिकारों का किसी ना किसी तरह से सेना द्वारा हनन हुआ है. इस तरह के कानून को संविधान मैं आर्म्ड फोर्सेस (स्पेशल पावर्स) ऐक्ट यानी की ऐऍफ़एसपीऐ (AFSPA) के नाम से व्याख्या दी गयी हैं, जिस के तहत सेना को वोह सारे अधिकार हैं जो उसे युद्ध की रुपरेखा मैं मिलते हैं ओर एक आम जवान उतरदायी होता हैं अपने सेना के कमांड को ना की देश के सिविल कानून को. इसे सबसे पहले १९५८ मैं नागालैंड और आसाम मैं लगाया गया, १९८४ से १९९७ तक पंजाब मैं और १९९० से अब तक इसे कश्मीर मैं लागू हैं. इस कानून के साथ कई विवाद जुड़ जाते हैं और जनता के आक्रोश का कारण सेना बनती हैं ना की राजनैतिक पार्टिया.

अंत मैं एक भुला हुआ किस्सा जरूर सुनायुगा, कुछ सालो पहले कुरशैतर मैं एक छोटा सा बाल जिसका नाम प्रिंस था वोह बोर की पाइप मैं नीचे गिर गया था, हर तरह के पर्यास करने के बाद सेना को मंगाया गया था और सेना ही एक वजह थी की प्रिंस को सकुशल बाहर निकाला गया. ये साबित करता हैं की सेना का मान सन्मान हमेशा से सर्वोच्च था और रहेगा, मैं भी सेना मैं जाना चाहता था और शायद मेरे बेटे भी जाना चाहेगे, बस हमारी सेना को राजनीति पार्टियों की कमजोरी के एक  हल की तरह ना देखा जाये, क्योंकि यही कमजोरी कही ना कही सेना को भी दाग़ी बना देती हैं. हमें हमारी सेना को राजनीति गलियारों से दूर रखना चाहिये, बस इस तरह सेना से जुड़े हुये हर मसले का हल अपने आप निकल आयेगा. जय हिंद.

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