“बेटा, डॉक्टर बनोगे?” बेटे ने कहा “नही पापा, में फ्लाइंग जट बनुगा.”. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans

शाम को पूरे परिवार के साथ शौपिंग मोल में जरूरती चीजों की खरीदी करने गये थे वही मेरे छोटे बेटे साहिबने खिलौने के रूप में डॉक्टर की किट को चुन लिया और घर पर आकर अपने ही टेड़ी का इलाज करना शुरू कर दिया. में देख के खुश हो रहा था और मैने पूछ ही लिया बेटा, बड़ा होकर डॉक्टर बनोगे ?”. उसने तुरंत जवाब नही दिया कुछ सोचने लगा और में दुआ कर रहा था की वह हां कहैं, अपने १२ साल की प्राइवेट जॉब में लगभग हर रोज ऑफ़िस की पोलिटिक्स से त्रस्त रहता हु और अपने बच्चों के लिये यही दुआ करता हु की वह कुछ भी करे लेकिन प्राइवेट जॉब ना करे. इतने में साहिब ने कहा नहीं पापा, में फ्लाइंग जट बनुगा.उसकी मासूमियत की तरह उसका जवाब भी बड़ा मासूम था. अब में सोच रहा हु की क्या मैने गलती कर दी एक छोटे से बच्चे को जीवन के लक्ष के बारे में पूछ के ? या मैने सही किया ? इसी कशमकश में खुद को कसौटी पे परखना शुरू कर दिया.

लक्ष”, ये हर किसी के जीवन में होता हैं कही छुपा हुआ तो कही उग्र रूप से खुद को परिभाषित करता हुआ. हमारे भारतीय समाज में, जीवन का लक्ष या तो खुद ही चुन लिया जाता हैं या फिर कही माता पिता, टीचर, दोस्त, इत्यादि आप को सूचित कर देते हैं के आपके जीवन का लक्ष ये होना चाहिये. ये कितना सही हैं या गलत इसका पता नही लेकिन खुद के द्वारा तय किये गये  जीवन के लक्ष को पाने का अपना ही अलग जुनून और आनंद होता हैं. अमूमन, जीवन का लक्ष चुनने की कोई तय सीमा नही होती सचिन तेंदुलकर को बचपन में ही पता था की उन्हें क्रिकेटर बनना हैं. लेकिन इस लक्ष को पाने के लिये कठिन मेहनत और लगन की ज़रुरत होती हैं. जिस तरह नदी की गहराई किनारे पे बैठकर नही नापी जा सकती हमें खुद नदी में गेहराई तक तैरना पड़ता हैं. उसी तरह लक्ष का पीछा करते हुये बहुत सी कठिनाइयां आती हैं. सही मायनो में ये रुचि की तरह हमें तरंगित करता हैं, हर कार्य इस सपने से जुड़ा होता हैं. इसको पाने की चाहत में हम हर राह पर गिरते हैं लेकिन फिर खुद को सम्भाल कर दोड ने लगते हैं. ये उस मनोरंजन की तरह हैं जिसके लिये हम समय निकालते हैं ना की हमारे खाली समय को एंटरटेन करने के लिये. कुछ ही लोग अपने जीवन के लक्ष को पाने में कामयाब होते हैं और ज्यादातर हम लोग जीवन की लड़ाई में कही ना कही अपने  लक्ष से दूर ही रह जाते हैं लेकिन कही ना कही ये भी हमें गर्व का एहसास करवाता हैं की हमने अपने संकल्प को पाने की कोशिश तो ज़रुर की थी.

सच हैं की लक्ष के बिना जीवन अंधकार हैं. लेकिन अगर इसी का दूसरा पहलू देखे जहाँ कई जिंदगीया को पता ही नहीं होता की जीवन का लक्ष क्या हैं ? उनमे से एक में भी था, मेरा जीवन का एक बहुताय हिस्सा बिना लक्ष के ही गुज़रा हैं. बचपन में किताबे हाथ मे पकडली और कॉलेज तक इनका साथ नहीं छोड़ा लेकिन उसके पश्च्यात क्या ? में उस सड़क के आखरी मोड़ पर खड़ा था जहाँ रास्ता खत्म हो जाता था. इसका एक कारण ये भी था की मुझे किसी ने कभी पूछा ही नही था की जीवन का लक्ष क्या हैं. सच कहूं तो जीवन में इतनी आजादी थी की किसी ने तय भी नहीं किया की मेरे जीवन का लक्ष क्या होना चाहिये. हाँ, थ्री इडियट फिल्म  को सरहाने वाला और उसी से प्रेरणा लेने वाला हमारा आज का युवा कही ना कही मुझ पर हसेगा और कहेगा की ये तो बेतुकी जेनरिक कल्पना हैं की अपने जीवन का लक्ष कोई और तय करे. लेकिन अपने जीवन के बहुत ख़ूबसूरत पलो को  बिना लक्ष के भट कता देख, शायद आज में इमानदारी से कह सकता हु किसी और द्वारा तय किया गया मेरे जीवन का लक्ष ये कही भी गलत ना होता. आखिर कोई अपने जीवन के अनुभव से मेरी किसी ऐसी प्रतिभा को समझ सकता हैं जो मुझे नही दिख रही या कोई अपने जीवन के कडवे अनुभव से मुझे ये बता सकता हैं की हमारे समाज में किस तरह एक मध्यम वर्ग से तालुक रखने वाला इंसान कामयाब हो सकता  हैं. अगर इसे ही दूसरी तरह से समझना हो की हमारे समाज में कामयाबी की परिभाषा क्या हैं. तो मेरे जीवन के अनुकूल मुझे ये कही भी गलत नहीं लगता शायद किसी और द्वारा तय किया गया ही सही अगर जीवन में कोई लक्ष होता तो मेरा जीवन यु भटकता ना, शायद इसकी भी आज कुछ और मंजिल होती.


जीवन में कामयाबी का कोई फौरमूला नही होता, मेरे सरकारी ड्राइवर पिता जी अक्सर कहते थे की जीवन मे कुछ भी करना लेकिन ड्राइविंग की जॉब मत करना. और आज में भी यही चाहता हु की मेरा बेटा कुछ और करे लेकिन प्राइवेट जॉब ना करे. बस फर्क इतना हैं की में मेरे बच्चो से अक्सर ये पूछता रहूंगा की उनके जीवन का लक्ष क्या हैं ? उन्हें कभी भी मजबूर नही करूंगा की वो अपने जीवन के लक्ष को अभी चुने या कुछ सालो बाद. और ना ही अपनी राय को उन पर थोपूँगा लेकिन सूक्ष्मता से ही सही उनके जेहन में ये बात डाल दूँगा की जीवन में लक्ष का होना बहुत ज़रुरी होता हैं. अब मैने अपनी बात साहिब के साथ आगे बड़ाई साहिब, फ्लाइंग जट क्यों बनना चाहते हो ?”. साहिब ने फिर थोड़ा सा सोच कर कहा पापा, में उड़ना चाहता हु. जिस तरह फ्लाइंग जट उड़ता हैं ना उसी तरह”. मेंने फिर कहा उसके  लिये तो तुम्हें उस पेड के पास जाकर दुआ मागनी पडेगी ना. अब वह पेड़ कहा से लयोगे.साहिब नै तुरंत जवाब दिया नही पापा, मुझे नही पता, लेकिन में फ्लाइंग जट ही बनुगा.इस विश्वास को देखकर मैने फिर और कोई सवाल नही पूछा. जय हिंद.