भारतीय मतदाता को प्रभावीत करता हमारा भारतीय न्यूज मीडिया.


भारतीय लोकतंतर” दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंतर शायद ये हमें हकीकत से भ्रमित  करता हैं क्योंकि इसकी पैरवी करने वाली सरकार और उसके लिया दिया गया मत जैसे की अमूमन ६०-५०% भारतीय नागरीक ही अपना मत का उपयोग चुनाव मैं करते हैं और उसमे से बहुत से मत अपने धरमसमाज और जात-पात से प्रभावित होते हैं. और अब तो कही ना कही बड़ी ही सूक्ष्म रूप जिसका हमें ज्ञान भी नहीं होता हमारे मत के अधिकार को हमारा न्यूज मीडिया भी प्रभावित करता हैं. और इसीलिये मैं ज्यादातर भारतीय मत करते है ना की अपने अधिकारों के लिये और ना ही अपनी समस्याओं के लिये. फिर तो निश्चित रूप से ही ये भारतीय लोकतंतर” भ्रमित ही करता हैं.

चुनाव के समयराजनीति पार्टियों का सबसे बड़ा माध्यम आम मतदार तक पोहचनै के लिये न्यूज मीडिया” ही हैं. ये न्यूज चैनल या न्यूज मीडिया बड़ी ताकत रखते हैंएक तरह से ये देश मैं ऐसा माहौल बनाते हैं  की हर चौराहे के मोड़ पे उस विषय की ही चर्चा छीड जाती हैंइसी का उदाहरण हैं आम आदमी पार्टी का निकल कर आना. अब बात करते हैं की ये किस तरह से चुनाव मैं काम करते हैं अगर आपको याद हो तो २००९ मैं चुनाव के समय  एक धुधली सी CD आयी थीजिसमें चेहरा बिलकुल साफ़ नहीं था लेकिन आवाज़ मैं भयंकर परकार का आक्रोश था और जो हर सीमा लाँघ रहा था जिसे चुनावी आचरण कहा जाता हैं. मीडिया हाउस इसे वरुण गांधी के नाम से दिखा रहे थे और इसे बार बार चलाया जा रहा था. जो की उस समय भाजपा के पीलीभीत से प्रत्याशी थे. इसी CD के संदर्भ मैं वरुण गांधी को तत्कालीन उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार ने जेल भेज दिया था जिन्हें बाद मैं कोर्ट नै रिहा भी कर दिया था. इसी CD के सदर्भ मैं और न्यूज़ मीडिया पे कई बहसे छेड़ी गयीऔर अलग अलग पार्टी के नेता ने इस पे अपना बयान दियेऔर पूरे चुनाव परिकर्म मैं इस CD का मुदा छाया रहा. और जब चुनाव के नतीजा की घोषणा हुई तो मनमोहन जी एक बार फिर से प्रधानमंत्री होने जा रहे थे और उनको कमजोर कहने वाली भाजपा के प्रत्याशी लालकृष्ण अडवानी विपश मैं बैठने वाले थे. अगर मैं ये कहूं की कही ना कही इस CD ने हमारा मत देने के अधिकार को प्रभावीत किया तो गलत ना होगा.

वही २०१४ चुनावो की घोषणा से ठीक पहले गोवा मैं एक बहुत बड़ा पत्रकार पकड़ा गया और उसका मीडिया हाउस सवालो के कट हरे मैं खड़ा था. उस समय गोवा मैं भाजपा की सरकार थी और कही ना कही इस बार दबी ज़ुबान मैं मीडिया हाउस को एक  जवाब था की इस बार कोई धुधली CD ना चलाये. लेकिन इस बार न्यूज मीडिया नरेंद्र मोदी को बड़ी तब्जो दे रही थी जो की भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थेउनकी हर महाकुम्भ चुनावी रैली को भारतीय न्यूज मीडिया हर कोने से कवर कर रहा था मानो कोई इंडिया पाकिस्तान का मैच होउनके हर जुम्बले को बड़ी बड़ी हेड लाइन बना कर दिखा रहा था जैसे की अच्छे दिन”, “नमो”, “विकास”, “रोजगार”, “सुरक्षा”, इस तरह का माहौल बना दिया गया था की अगर भाजपा की चुनावी रैली आसाम मैं भी होती हैं तो कही दूर जयपुर मैं हर कोई टीवी सेट के सामने बेठा था. और इस बार भाजपा नै अपनी मीडिया पे होने वाली चर्चा को चाय पे चर्चा” का नाम दिया थाजिससे हर आम मानुष इसका हिस्सा बन सकेमीडिया हर चीज को इसी चुनाव से जोड़ कर दिखा रहा था चाहे फिर वोह लखनऊ के ऐक ढाबे पे नमो” नाम से रोटीयो पे स्टैंप चिन्ह लगाया जाना ही क्यों ना हो. इस रिपोर्ट  मैं बताया गया हैं की २०१४ के चुनावो मैं न्यूज मीडिया ने अपने टेलीकास्ट मैं सबसे ज्यादा  ३३.२१% मोदी जी को दिखाया है१०.३१% अरविन्द केजेरिवाल और ४.३३% राहुल गांधी को दिखाया हैं. और चुनावी नतीजे भी कुछ इसी तरह से आये की भाजपा ३१% मतों के अनुपात के साथ २८२ सीटो पर विजय हुई वही कांग्रेस १९.३% मतों के अनुपात के साथ ४४ सीटो पर सिमट कर रेह गयी. आम आदमी पार्टी भी ४ सीटो पर विजय हुई ये खासकर इसलिये ज्यादा माईने हैं क्योंकि ये पहली बार चुनावी अखाड़े मैं थी. २०१४ के चुनावो मे शायद पहली बार भारत के इतिहास में किसी राजनैतिक पार्टी ने किसी मार्केटिंग एडवरटाइजिंग एजेंसी की मदद चुनावी प्रचार में ली थी . भारतीय जनता पार्टी के २०१४ के चुनावी नारों को भारत की मशहूर मार्केटिंग एजेंसी ओगिलवी-माथेरस एजेंसी सोहो स्क्वायर ने लिखा थाऔर शायद पूरे चुनावो में श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी को किस तरह चुनावी चर्चा का विषय बनाये रखना हैं इसकी पृष्टभूमि भी इन्होने ही रखी थी.

२००९ मैं आयी मनमोहन सरकार का पतन २०१४ चुनावो मैं हो गया और २०१४ मैं आये मोदी जी भी अपने २ साल के कार्यकाल मैं उस हर शब्द से घीरे हुये है जो की वोह अपनी चुनावी रैलियों मैं बोला करते थे जैसे की अच्छे दिन”, आज आम आदमी ना ही अपनी सुरक्षा की दृष्टि से और ना ही अपने जीवन मैं आये किसी बदलाव की वजह से वोह किसी भी परकार के अच्छे दिन” नहीं देख पा रहा और खुद को दुखी और ठगा हुआ मेहसूस करता हैं. लेकिन क्यों क्योंकि अधिकांश भारतीय मतदाता न्यूज़ मीडिया के अपरोक्ष चुनावी प्रचार मैं बैह गया था और जज्बात कुछ समय तक ही आप को उम्मीद के भरोसे रख सकते हैं लेकिन जब हकीकत का सामना होता हैं तो सच्चाई  अमूमन सोच को विपरीत दिशा मैं ले जाती हैं. अगर हमारे मतदाता नै अपना मत अपने अधिकारों के लिये और अपनी समस्याओं के लिये दिया होता तो आज चुनाव परिणाम कुछ और भी हो सकता था.

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