किस तरह ८० के दशक से समाचार को बताने का माध्यम बदला हैं. किस तरह आज खबर से बड़ा पत्रकार हो गया हैं. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans


जब से जीवन में होश सँभाला हैं तब से हमारे समाज को और इससे जुड़े हुये हर पैहलू को लगातार बदलता हुआ देख रहा हु. ८० के दशक में ब्लैक न वाइट टीवी और रेफ्रिजरेटर का होना शान की बात मानी जाती थी, वही समय के साथ इस टीवी ने कलर में आना शुरू कर दिया और आजकल पता नहीं इसकी कितनी वैराइटी आ चुकी हैं. टेलीविज़न आज एक सामाजिक प्रतिष्ठा की बात तो नहीं रही लेकिन इसके उभरने के साथ ही समाज में कई और रूप जो इसके साथ जुड़े हुये हैं वह बड़ी प्रबलता से आज हमारे जीवन का अमूल्य हिस्सा बन गये हैं. खासकर न्यूज़ मीडिया, टीवी कै साथ साथ हमारे देश का न्यूज़ मीडिया भी बदला हैं. और आज कही ना कही इस टेलीविज़न ने पत्रकार को खबर से भी बड़ा बना दिया है.

८० के दशक में दूरदर्शन ही एक समाचार का माध्यम हुआ करता था, खासकर हिंदी का समाचार शाम को ८:३० और ८:०० बजे इंग्लिश न्यूज बुलेटिन प्रसारण होता था. इसी बीच प्रणय रॉय का द वर्ल्ड न्यूज वीक हर शुक्रवार को प्रसारित होता था. इन दिनों न्यूज मीडिया का एंकर समाचार की लिखी हुई स्क्रिप्ट को पड़ता हुआ दिखाई देता था. इसी दौरान ९० के दशक में, दूरदर्शन ने अपना नया चैनल मैट्रो को सार्वजनिक कर दिया. और इसी चैनल पे, सुरेंद्र प्रताप सिंह रात को ९:३० बजे अपना न्यूज बुलेटिन आज तक लेकर आया करते थे. इसी कार्यकर्म में न्यूज एंकर द्वारा समाचार की स्क्रिप्ट को पड़ने के अलावा कई तरह के नये शब्दों का इस्तेमाल करना शुरू किया जिस तरह तो ये थी खबरें आज ताज, इन्तजार कीजिये कल तकऔर इसी तरह समाचार कार्यकर्म जो की कही रुखा सुखा दिखता था उसमे एक आम नागरिक की रुचि बडने लग गयी थी. इसी दौरान २००० के आते आते कई निजी न्यूज चैनेलो ने अपना पूरे दिन चलने वाला समाचार कार्यक्रमों को आवंटित करना शुरू कर दिया. इसी समय दौरान भारतीय नागरिक ने समाचारों के बीच कई नये तरह की न्यूज को परिभाषित करते हुये शब्दों को सुना जिस तरह ब्रेकिंग न्यूज़”, “फ़ास्ट न्यूज़”, “सबसे पहले हम दिखा रहे हैं”, “घटना स्थल से सीधा प्रसारण कर रहे हैं”, “सन सनी खबरें”.

सन 80 की 20 मिनट की खबरे 2000 के आते आते 24 घंटे लगातार चलाई जाने लगी. इसी सिलसिले मे न्यूज़ चैनेलो नै कई आम खबरों को खास बना दिया गया और इनका असर भी दिखना भी शुरु हुआ खासकर कुरुक्षेत्र के बोर मे गिरे 5 साल के बच्चे प्रिंस  के साथ इन्ही न्यूज़ चैनलों ने पूरे भारत वर्ष को जोड़ दिया था और तब तक भारत का आम नागरिक प्रिंस के साथ जुड़ा रहा जब तक सकुशल प्रिंस को बाहर निकाला गया. इसी तरह जेसिका हत्याकांड को चर्चा का विषय बनाकर इसी न्यूज़ मीडिया नै दोषियों को सजा दिलाने की मांग उठाई थी. लेकिन कही ना कही इसी दौरान न्यूज़ चैनलों ने आयुषी हत्याकांड मे उस हर दहलीज को लांघ दिया था जिसकी अनुमति एक सभ्य समाज नहीं देता, यहाँ न्यूज़ चैनेल का एंकर आयुषी के फ़ोन के अति व्यक्तिगत संदेशो को भी सार्वजनिक रूप से पड़ने मे हिचकिचा नहीं रहा था. लगातार खबरों को चलाने के दबाव मे इनही न्यूज़ चैनलों ने ज्योतिष राशिफल, फ़िल्मी हस्तियों, टेक्नोलॉजी, नयी गाड़ियो, शेयर बाजार और तो और प्रोपेर्टी के तर्क संगत कयी कार्यक्रमो की नयी तरीके से रुपरेखा दी. इसी बीच बहुत से न्यूज़ चैनेल मध्यरात्रि को टीवी शॉपिंग मे भी कार्यरत हो जाते है.

और इसी बीच समाचार प्रसारण के साथ साथ इन्ही न्यूज चैनलों पर होने वाली बहस जो की राजनीति के साथ साथ हर पहलू पर हो रही हैं उसने समाचार माध्यमो में अपनी एक अलग ही पहचान बना ली हैं. आज, भारतीय मीडिया में कई न्यूज चैनेलो की भरमार हो चुकी हैं इसमें इंग्लिश, हिंदी और प्रादेशिक भाषायो में इसका प्रसारण हो रहा हैं और मीडिया की भाषा में रात के ९ से १० बजे तक के समय को प्राइम टाइम कहा जाता हैं जब दर्शक के रूप में ज्यादातर भारतीय न्यूज मीडिया को देख रहा होता हैं और यही कारण हैं की इस समय को भुनाने में हर न्यूज़ चैनेल अपना पूरा जोर और आजमाइश करता हैं ताकि दर्शक को अपने साथ जोड़ सके. ४०-५० मिनिट के प्राइम टाइम के स्टार्ट होते ही, शुरू के ५ मिनट तक सूट बूट मे सजित न्यूज़ एंकर बहस के मुद्दे को बताते हुये अपनी राय भी बताता हैं और बाद में इसी मुद्दे पर बाकी के मेहमानों को परिचय देता हैं. अमूमन एंकर के माइक की आवाज बाकी के मेहमानों के माइक के आवाज से ज्यादा होती है. यहाँ एंकर उस हर राय को बीच में टोकने की हमेशा जुर्रत करता है जो एंकर की राय से असमर्थ हो और उस हर राय को बढ़ावा देता हैं जो राय एंकर के साथ समर्थन रखती हो. असलियत में आज न्यूज़ चैनेल के प्राइम टाइम का एंकर असल खबर से कही ना कही बड़ा हो गया हैं.

बड़े राजनीति फैसले, क़ुदरती आफतो और भ्रष्टचार के मामला हो, जहाँ इन पर चर्चा राजनीति गलियारों में हो रही होती थी आज यही बहस कही ना कही प्राइम टाइम पर दोहराई जाती हैं. लेकिन प्राइम टाइम की इस बहस में, राजनीति दल से जुडा हुया प्रवक्ता ही जुड़ता हैं ना की सरकार का असल जवाबदेही मंत्री और इसी तरह विपक्ष राजनीति दल का भी कोई प्रवक्ता ही जुड़ता हैं. तो ये बहस कही ना कही राजनीतिक बहस बन कर ही रह जाती हैं. या फिर किसी और पत्रकार को बुलाकर इस बहस को सम्पूर्ण किया जाता हैं. अगर कोई देश की सुरक्षा का मामला हो तो रिटायर्ड अफसर को बहस में शामिल किया जाता है नाकि असल जवाबदेही अफसर को. कई बार तो ब्रेकिंग न्यूज़के मध्यांतर न्यूज़ चैनल अपने अपने संपादको  को ही बहस में शामिल कर लेते हैं. इस तरह की तेज तर्रार बहस जो की एक भ्रम देती हैं की किसी फैसले पर पोहचैगी वास्तव में किसी भी सारांश को नही दिखाती लेकिन कई और तरह की बहसो को जन्म दे दिया करती हैं. इन्ही बहसों के दौरान कई और तरह के विवादों को भी जन्म दे दिया जाता हैं.


आज न्यूज़ चनैलो को देखने वाला दर्शक, न्यूज चैनेलो से ये शिकायत कर रहा हैं की आज असल खबर को सम्पूर्ण रूप से दिखाने की वजह खबर को उलझा दिया जाता हैं इसे कही ना कही बहस का रूप दिया जाता हैं और दर्शकों की राय को इस तरह से बाट दिया जाता हैं की दर्शक भी कही ना इस पर प्रतिक्रिया देता हुआ जाने अनजाने मे इसी बहस का हिस्सा बन जाता हैं. एक और दोष आज दर्शक इन न्यूज चैनेलो पर आरोप के रूप में लगाता हैं की ये न्यूज़ चैनेल बहुत जल्दी खबरों को भूल जाते हैं और जल्द ही पूरी चर्चा का विषय नई खबर को बना लेते हैं उदाहरण के लिये किसी दुखद बलात्कार या हत्या की खबर को एक समय सम्पूर्ण चर्चा का विषय बना लिया गया होता है लेकिन समय जाते ही इसे कही ना कही भुला दिया जाता हैं और नयी खबर को चर्चा का विषय बना लिया जाता हैं. शायद आज भारतीय नागरिक दूरदर्शन के सादगी वाले समाचारों को एक बार फिर से देखना चाहता हैं जहां एंकर बड़ी ही नम्रता से सिर्फ आपको समाचार की जानकारी देता हैं ना की कोई खबर को किसी बहस मे बदल कर दर्शक को उलझा कर रख देता हैं और जल्द ही भूलने को मजबूर कर देता हैं ताकि एक और नई बहस को जन्म दिया जा सके. जय हिन्द.