अर्थव्यवस्था और सम्भावना #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans


कक्षा ११ में गणित पाठयक्रम में एक विषय था सम्भावना”, की अगर बारिश होगी तो रास्ते गीले होंगे. अगर थोड़ा और सरलता से बताना कहूं तो अगर हमारे समाज की सारी सार्वजनिक इकाइयां जैसे पुलिसट्रैफिक पुलिसमुनिसिपल्टीइत्यादि सभी अपने कर्तव्य का निर्भाव करेगे तभी मैं ऑफ़िस जा सकता हु क्योंकि इन्ही सार्वजनिक इकाइयों के कारण आम जन व्यवस्था बनी रह सकती हैंजो मुझे सहाय करेगी ऑफ़िस जाने मैं. एक और उदाहरण दूँगा की जो पुल रास्ते मैं आता हैं और १० साल पहले बना हैंअगर उसमे सीमेंट अच्छी गुणवत्ता का इस्तेमाल किया हैं तभी मैं ऑफ़िस पोहच सकता हुक्योंकि अगर ये गीर गया तो ट्रैफिक के कारण मुश्किल हो जायेगी. एक आखिरी उदाहरण दूँगाकी जो इंसान मुझ से बिलकुल अजनबी हैं और मेरे घर से १० किलोमीटर के अंतराल पे रेहता हैअगर उसकी गाडी जो मुझ से आगे चल रही होगीठीक तरह चलेगी तभी मैं ऑफ़िस पोहच सकता हु अन्यथा गाड़ी ख़राब होने से ट्रैफिक जाम और मैं ऑफ़िस नहीं पोहच पाऊंगा. इन्ही तरह के उदाहरण से मैं यही कहना चाहता हु की हम एक दूसरे पर किस तरह निर्भर हैं जिसका एहसास भी हमें नही होता. इस तरह की निर्भरता कही अच्छी है और कही नहीं. और इसी सदर्भ मेंमैं हमारी अर्थव्यवस्था पे अपनी राय रखना चाहूंगा.

खेती” एक मुख्य व्यवसाय हैं हमारी बहुताय आबादी कालेकिन असल माइनो में ये मानव समाज की मूलभूत जरूरत पूरी करने का एक ऊधम हैं. अगर हम बात उद्योगों की करे जो की एक आम शहर मेरठकानपूरलुधियानाजयपुरनागपुरजामनगरइत्यादि में पाये जाते हैं वोह भी कही ना कही मानव समाज की मूलभूत सुविधायो की मांग को ही पूरा करते हैं फिर चाहे वोह एक चीनी मिल हो या फिर जूते बनाने की फैक्टरीइसी तरह तेल रेफिनारीयाखान पान के साधनकपड़ों की मिलसौंदर्य साधनदूर संचारमोबाइलइंटरनेटखेल साधनखिलौनेमार्ग वाहनहवाई सफ़रइत्यादि ये सारे उद्योग बाजार की मांग के अनुसार फायदे और नुकसान में रहते हैं. और आजकल एक नया ट्रेंड चला हुआ हैं की चाइना से माल मग्वाओ उस पर अपनी कंपनी की मोहर लगा कर बाजार में बैचोयानी की मांग हमारी जनसख्या की और मुनाफा हमारा भी और चीन का भी. यानी की हमारी जनसख्या एक मूल वजह है इन उद्योगों की उत्पाती का और कोई विशेष करण मुझे नजर नही आता.

अब बात करते हैं उस उभरते हुये भारत की जिसे अमूमन हम विकास कहते है जैसे की गुडगाँवबंगलौरहैदराबादइत्यादि जहाँ की सौफ्टवेअर इंडस्ट्री बहुत फुली फली है. सौफ्टवेअर कंपनी के लिये किसी भारीभरकम बेस की नही बस आपको कंप्यूटरउनके सौफ्टवेअर और जानकार लोगो की जरूरत हैऔर यहाँ सौफ्टवेअर इंजीनियर का लागत खर्च बहुत कम हैं विदेश की तुलना मैं. यानी की कुछ पैसो की लागत से आप अपनी सौफ्टवेअर कंपनी खोल सकते है. मुख्य तह सारी बड़ी और छोटी सौफ्टवेअर कंपनियां विदेशों से प्रोजेक्ट लाकर उनका निर्माण भारत मे करती हैं. कुछ इसी तरह से सारे कॉल सेटर KPO, BPO, इत्यादिविदेशों से ही प्रोजेक्ट लाकर उनको भारत से मानवीय सपोर्ट करते हैं. अगर इनकी सफलता की निचली तह तक जाये तब इनकी कामयाबी का एक ही कारण नजर आता हैं वोह हैं रुपये और अमेरिकन डॉलर के बीच का अंतर. यहां भी हम निर्भर हैंविदेशी बाजार परअगर विदेशी मुद्रा कही भी डगमगाई तो हमारी अर्थव्यवस्था डामाडोल हो सकती हैं. इसका उदाहरण हम २००८ मे देख चुके हैं.

अब इन उद्योगों को लगाने की जरुरतमय सामग्री विदेशों से ही आती हैंसौफ्टवेअर इंडस्ट्री के सारे सौफ्टवेअर फिर चाहे वोह औपरेटिंग सिस्टम हो या कंप्यूटर लैंग्वेजसब कुछ विदेशों सेखेती के लिये अच्छी गुणवत्ता के ट्रेक्टर जैसे की फोर्ड विदेशों के ही हैंइसी तरह से किसी चीनी मिल के लिये या फिर तेल रेफिनारी हो इनके भारी भरकम सामग्री विदेशो से ही मंगवाई जाती है. मैह्गी मैह्गी गाड़िया जैसे की हौंडाहुंडईफोर्डइत्यादिविदेशों की कंपनियां हैं. इसलिये हमारा आयत निर्यात से अधिक हैं. अब आप समझ ही गये होंगे की हमारी अर्थव्यवस्था हमारे बाजारों की मांग की आपूर्ति और विदेशों के प्रोजेक्टों पे ही टीकी हुयी है. हमने ऐसा कुछ भी निर्माण नहीं किया की जिस से बाजार मैं एक नया स्थान बनाया जा सके या फिर कोई नया रेवोलुशन आ गया हो. हम बस अपनी जरूरतों को पूरा करने मैं ही लगे हैं और यही हैं हमारी अर्थव्यवस्था. तो बाजार एक संभावना हैं हमारी अर्थव्यवस्था का.

अंत मैं यही कहूंगाकी अगर इसरो को छोड़ दे रो कोई भी ऐसी हमारी इकाई नही है जो पूर्णतः खुद पर निर्भर हो अभी भी हमारा जैट प्लेन तेजस और अर्जुन टैंक को निर्माण की कसौटी पे पूरा उतरने मैं मैं सालो लग गये. हमें जापान की तर्ज पर हमारे खोज और आविष्कार प्रोग्राम को तरजीह देनी होगीइसमें सरकारी और गैर सरकारी दोनों अन्सुश्धानो को बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना होगा ताकि हम नया आविष्कार कर सकेहम खुद पर निर्भर हो सके ना की विदेशों पर और उनकी मुद्रा स्थती पर. इसी तरह हम नयी संभावना की खोज कर सकते हैं की अगर हमें विकास चाहिये तो खुद पर निर्भर होना पड़ेगा नही तो इस तरह की अर्थव्यवस्था और विकास कही ना कही बेईमान सा लगता हैं. जय हिंद.

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