खालिस्तान #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans

"खालिस्तान" जब कोई गैर सिख इस शब्द को सुनेगा, तब शायद उसके सामने आंतकवाद के रूप में ऐक चिन्ह खीच जायेगा और इसका प्रतीक आम तौर पे गैर सिख के लिये  भिंडरावाला के रूप मैं हीें देखा जाता है. जिसे हमारा न्यूज़ मीडिया  ऐक अत्याधीक क्रोधीत और जुल्मी के रूप में दिखाता है. मै ऐक सिख होने के नातै यहाँ मैं अपनी राय रखना चाहता हु, कही किसी शब्द की रुपरेखा मै अगर कोई भावना को ठेस पोहचा दू तो मुझे माफ़ कर देंना, और आप से यही बीनती है की अगर किसी बात से आप सहमती ना रखते हो तो आप किसी घृणा और अहंकार मे ना आकार उन तथ्यों पे मेरे सच का मार्गदर्शन करे.

"खालिस्तान" मैं दो तरह के शब्दों को जोड़कर बनता है उसमे ऐक है "खालसा" बुहत से विद्ववानों का तथ्य है की ये शब्द अरबीक के ऐक शब्द "खालसा" (खाल-साह) जो की मूल रूप से दूसरे दो शब्दों से उत्पन हुआ है पेहला  "खालिस" है जिसका मतलब खरा / साफ़ / पवित्र (pure) होता है और दूसरा शब्द "खलास" है जिसका मतलब मुक्त / आज़ाद  / स्वाधीन (free) होता है. और अंत का शब्द है "स्तान" इसका मतलब पेरसीन और उर्दू के मुताबिक "का स्थान". ऐक आज़ाद और खरा / पवित्र स्थान का मतलब ही "खालिस्तान" हो सकता है. "खालसा" जिसे सन् १६९९ मैं गुरु गोबिंद सिंह जी नै ऐक नये धर्म "सिख" की नींव रखी और कहा ये जहा मैं ऐकता, समानता और अपने न्यारे पन की वजह से ऐक अलग पेहचान बनायेगा. ये लाखो की भीड़ मै भी अपनी अलग रूप रेखा की वजह से न्यारा पहचाना जायेगा. इसी समय गुरु जी नै सिख को ५ निशानिया बख्सी "केश" सीर से लेकर पैरो तक के बाल नहीं कटवाने, "कंघा" केशो को सवारने के लिये, "कड़ा" जो ताकत को मसलूम और गरीब पे जुर्म करने से रोकता है. "कछयरा" जो अंतर्वस्त्र आपको जो मर्द सिख को किसी परायी औरत से शारीरक सम्भध बनाने से रोकता है और इसी तरह ऐक औरत सिख को पराये मर्द से शारीरक सम्भध बनाने से रोकता है. और अंत में "किरपाण" शस्त्र जो की आप को सदैव अपने पास रखना है और इसका इस्तेमाल सिर्फ अपनी रक्षा और दूसरे पै हो रहे जुर्म को रोकना है. और इस साबित सूरत सिख को "खालसा" के नाम से सन्मानित किया जाता है.

1708 मैं, गुरु गोबिंद सिंह जी नै , सीखो मैं देहधारी गुरुयो की प्रथा को समापत कर , हर सिख को अपना गुरु "गुरु ग्रंथ साहिब जी" को मानने का आदेश दिया. गुरु ग्रंथ साहिब मैं ६ सिख गुरुयो, १५ भक्तो और ११ भट्टो की बानी अंकित है. इन सब को ऐक ही पैगाम है की परमात्मा ऐक है और उसकी रचना अनमोल और हमारी सोच से परे है. गुरबानी किसी भी तरह के अंध विश्वास और जात पात को नहीं मानती. गुरबानी परमात्मा को किसी अकार और जूनी मैं नहीं मानती और परमात्मा को "अकाल" के रूप में शोभीत करती है जो समय के काल से परे है.  इसलिये ही सिख मूर्तिपूजक नहीं है और ना किसी कबर का सजदा करता है, सिख उस हर तथ्य को नहीं मानता जो परमात्मा को कोई अकार या जूनी देता हो. गुरबानी मैं "नाम सिमरन" और गुरु ग्रंथ साहिब की उपशथती मैं सब को जुड़कर संगत के रूप में बैठना ही ऐक मार्ग परमात्मा की भक्ति का है. गुरबानी सारी मानवता को प्रेम , ऐक समानता, और भाईचारे का सन्देश देती है. गुरबानी किसी भी तरह की जात पात, अमीरी गरीबी और इसके अनुसार भेदभाव को नही मानती. गुरबानी हर तरह की नफरत, जुर्म और अहंकार के सुभाव को लानत देती है. और यही वजह है की पूरे सिख इतिहास और सिख राज्य में किसी के साथ भी धर्म और जात पात के कारण कोई जुर्म अंकित नहीं है. सिख "वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह" केहकर कर ऐक दूसरे को संभोधीत करते है. इसका मतलब खालसा वाहेगुरु का है और वाहेगुरु की फतेह है. लेकीन वोह फ़तेह जो गुरु ग्रंथ साहिब मैं बताए गये मापदंडो के अनुसार है और जो सीखी के सिद्धांत के अनुसार है. ऐसे कई अवसर आये इतिहास में जब गुरुयो नै अपनी सँगै संभन्दीयो से नाता तोड़ लिया था जो की गुरु मर्यादा का उलंघन कर रहे थे.

अब मैं भिंडरावाला की बात करता हु ( मैं कही भी अपने तथ्यों से आप को भरमीत नहीं करना चाहता बस आप को ऐक सिख के नजरीये से सच केहना चाहता हु.) लेकिन पहले कुछ बाकी की घटनायो पै नजर मार लेते है की 1947 की आज़ादी के बाद अगले 18 सालो तक सिख अपने लिये ऐक अलग राज्य की मांग करते रहे और जब मिला १९६६ मैं मिला तो चंडीगढ़ को पंजाब से दूर रखा गया. १९८४ के समय भारतीय संविधान के मुताबिक हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई का अलग कोड था लेकीन सिख की पेहचान संविधान के अनुसार ऐक हिन्दू के रूप में ही होती थी. फिर पानी का मसला था जहाँ पंजाब की अनदेखी हो रही थी. इसी बीच सारी सिख राजनीतिक पार्टीया ऐक मांगपत्र पर राजी हुई जिसे आनंदपुर resolution के नाम से जाना जाता है, ये रेसोलुशन मैं कुछ ऐसी मांगे थी जो की पंजाब राज्य को orternee अधिकार देती थी, ( इनमैं से कुछ मांगो से मैं भी सरोकार नहीं रखता हूं.) और जब इन मांगो नै जोर पकड़ा तो सारी राजनीतिक पार्टीया पीछे हट गयी और इसका मुख्य चेहरा बनकर भिंडरावाला उभर आया. इस पूरे समय दौरान भिंडरावाला पै ऐक पोलिस केस हुआ जिसके लिये भिंडरावाला नै खुद 20 सेप 1982 को सरेंडर कर दिया था. 1984 जून के ब्लू स्टार आपरेशन तक भिंडरावाला को किसी भी अदालत ने भगोड़ा या अपराधी या देशद्रोही घोषित नहीं किया था. हाँ इसी बीच भिंडरावाला के आस पास ऐसे दो तीन प्रसंग हुये जो की उन्हे शक की निगाह मैं ला देता है, लेकीन ये कतही माप दंड नहीं हो सकता किसी नागरिक को आंतकवादी कहने का. इसी बीच उन्हे सुब्रमनियन स्वामी भी कई बार मिलै थे. इसी तरह फ़ारूक़ अब्दुल्ला और कई हिन्दू संत भी मिले थे. भिंडरावाला, ऐक धार्मीक प्रचारक भी थे और उनकी सभा हर आम सिख संगत के साथ होती थी. उन तक हर ऐक आम इंसान और पत्रकार की पोहच थी. शायद भारत की उस समय की सरकार ही उनसे मिलना नहीं चाहती थी. और नतीजा ब्लू स्टार और इस का दोषी बना दिया गया सिर्फ भिंडरावाला, क्योंकी सरकार की खादी मैं भी इतनी चमक है की ऐक आम नागरिक की आँखे उसे देख नहीं पाती फिर दाग कैसे बर्दाश्त होगा इस खाखी को?

अब जब खालिस्तान की व्याख्या होगी तब वहा सर्वोपरी गुरु ग्रंथ साहिब की गुरबानी और सिख सिद्धान्त ही होंगे. और मेरे लिये खालिस्तान का मतलब कोई जमीन क्षेत्र से नहीं है ना की किसी बटवारे से, मेरा खालिस्तान का मतलब मेरी धार्मीक आज़ादी और ऐक समान सभी को मानवता की नजर से देखना, शायद कुछ ऐसा ही परिभाषित है "स्वराज" , हमारा संविधान भी हमे ऐक समान अधिकार देता है लेकीन कही ना कही उसे लागु करने वाली हमारी देश की लोकतांत्रिक प्रणाली फ़ैल हो जाती है. अंत में इसका ऐक उदाहरण जरूर पेश करूँगा , केहर सिंह जीसे इंद्रा गाँधी के कत्ल मैं फाँसी की सजा हुई थी, उनके केश के पैरवी करने वाले वकील रामजेठ मलानी का बयान है की कोर्ट के सामने कोई भी ऐसा सबूत पेश नही किया गया जो की साबित करता हो की केहर सिंह गुन्हेगार है और फिर भी उसे फांसी की सजा दी गई. और इसी बयान मै रामजेठ मलानी कहते है की बेअंत सिंह जो की इंद्रा गाँधी का कातिल था. उसने फायरिंग के बाद अपने हथियार फैक दीये थे लेकीन फिर भी उसे वही गोलियों से छलनी कर दिया गया, जीसकी इजाजत हमारा संविधान नही देता. जय हिंद.

No comments:

Post a Comment