बंद हैं. आज भारत नही, आप का और और मेरा सांस लेने का अधिकार बंद हैं. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



आज बंद हैं. भारत, हमारा देश बंद हैं. आप आज स्कूल, कॉलेज, दफ्तर ना जाये क्युकी आज बंद हैं. आज ध्यान रहे, किसी बिल्डिंग में लिफ्ट ना चल रही हो और कही भी किसी भी घर में रोशनी ना हो. सड़क पर कोई वाहन ना हो, रेल को भी रुक जाना चाहिये. बंद की मानसिकता का बस नहीं चलता नहीं तो कह दे आज नदी में पानी नहीं बहना चाहिये, होठो पे मुस्कान नहीं होनी चाहिये, पंछी भी गुनगुनाना छोड़ दे, हवा भी लहराये ना, पत्तों के बीच भी कोई संवाद ना हो, क्यूंकि आज बंद हैं. लेकिन में किस तरह आंखें बंद कर लू, में किस तरह सोचना छोड़ दू, में किस तरह साँस लेना छोड़ दू, शायद ये बंद कल खुल जायेगा लेकिन में अगर बंद हो गया तो शायद फिर मुरझा कर खिल ना पाऊंगा.

में इस विश्लेषण में नहीं जाना चाहता की आज क्यों बंद हैं ? किस ने बंद का आह्वान किया हैं ? क्यूंकि अक्सर हमारे देश में जब भी कोई गाव, शहर, राज्य या देश बंद होता हैं तब तब इसके पीछे की मानसिकता राजनैतिक से प्रेरित ही होती हैं, ये लोकतंत्र देश में सक्ता पक्ष को राजनैतिक रूप से घेरने का, विपक्ष का सबसे ताक़तवर हथियार हैं. हमारे देश में पक्ष और विपक्ष अक्सर बदलते रहते हैं लेकिन बंदका आह्वान अमूमन अक्सर युही बदस्तूर चलता रहता हैं. में जातीय तोर पर इस बंद का शिकार अपने बचपन से हो रहा हु फिर वह चाहे १९८४ के दंगो के दौरान का बंद हो, मंडल कमीशन के दौरान स्कूल को बंद करवाना हो, दो समुदायों के बीच तनाव हो, गोधरा में ट्रेन जलाने के बाद का डरावना बंद हो, २००७ में जब संत राम रहीम के कारण पंजाब बंद का आह्वान हो, २००९ में संत गुरु रामानंद का कत्ल के सिलसिले में बंद हो या फिर आज नोटबंदी के सिलसिले में बंद हो. इन सभी दिनों के दौरान, मेरा जीवन भी कही ना कही बंद था और रुका हुआ था. सोच भी रुक गयी थी और सिर्फ डर का एहसास था और शायद ये डर मेरे अकेले का नही पूरे समाज का था..

किस तरह का अनुभव होगा, जब आप उस सड़क पर चल रहे हो जहाँ धारा १४४ को लागू कर दिया गया हो, हर खाखी वर्दी से डर लगता हो, दुपहर के समय वह सारे बाज़ार बंद हो जहाँ अमूमन आप भीड़ के चलते चल भी ना पाते हो. हर दुकान का स्टर बंद होता हैं, कही कोई निगाहे आप को नहीं देख रही होती हैं, कोई छोटू भी चाय की दुकान पर नही होता, ना कोई ऑटो वाला आपके मोहले की आवाज़ लगा रहा होता हैं, रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन, बस बंद होते हैं. ये जो आज सब बंद हैं, कही ना कही मेरी और आपकी जिंदगी का हिस्सा हैं. तो फिर क्या आज जिंदगी को बंद कर दिया गया हैं ? क्या आज सांस लेने को मना किया गया हैं ? क्या आज जज्बातों की धडकन को भी रुकने को कहा गया हैं ? शायद हाँक्योंकि आज बंद हैं. अमूमन इस बंद के दौरान भगवान के घर मंदिर और मस्जिद में भी लोगो की भीड़ कम होती हैं. शायद आज यहाँ भी बंद हैं.

इंसान की मानसिकता हैं की अगर वह किसी और से बात या संवाद ना करे तो वह ज्यादा समय तक जिंदा नही रह सकता या अपना मानसिक संतुलन खो कर खुद से ही बातें करने लग जाता हैं. शायद इसी संवाद को जिंदा रखने के लिये और हमें और हमारे समाज को स्वस्थ रखने के लिये, पारिवारिक और सामाजिक रिश्ते बनाये गये हैं. सोचिये आप अपने दिनचर्या में कितने संवाद बोलते हैं, कितनी बार खुश होते हैं, कितनी बार कल्पना के माध्यम से अपने भूतकाल और भविष्य में जाकर आते हैं, आप की चेतन शक्ति राज्य, देश, ब्रह्मांड की सीमायों को लांघ कर कहा कहा नहीं जा कर आती हैं. कितनी बार आप किसी और को गिराने की तरकीब करते हैं और कितनी बार आप अपने आप को उस फिल्म स्टार से कम नही समझते जिसके आने से आप के शहर के अखबार की सुखिया बन जाती हैं. शायद यही हैं हमारी रोजाना की जिंदगी, लेकिन अब आप ये सोचिये की ये सब कुछ बंद हैं. आप की आखे बस अँधेरा ही देख पा रही हैं, तो यकीनन आप जिंदा नही हैं और एक अर्थी का रूप धारण कर चुके हैं.


अंत में शायद एक झूठा आश्वासन देना चाहता हु की अब ये बंद और नहीं. लेकिन हकीकत में मेरी और आपकी मानसिकता इस तरह को हो चुकी हैं, की कही ना कही इस बंद को स्वीकार करते हैं फिर चाहे बंद के मुद्दे के समर्थन और असमर्थन के साथ ना भी खड़े हो. लेकिन कल को जिंदा रखने के लिये अक्सर कह देते हैं की आज को दफनाने में हर्ज ही क्या हैं ? और सच भी हैं, क्या हर्ज हैं. एक दिन की तो बात हैं. लेकिन अब ये बंद मुझे मेरे शक्तिहीन होने की परिभाषा देता हैं, मुझ में एक विद्रोह की चिनगारी पैदा करता हैं, अब में खुद को और अपनी जिंदगी को यु बंद और रुके हुये नही देखना चाहता. अब में ऐलान करता हु, ना ये बंद मुझे आज मंजूर हैं और ना कल होगा. में जिंदा हु, सांसे चल रही हैं, जब तक अर्थी नही बन जाता तब तक में मुर्दा नही हु. जय हिंद.

No comments:

Post a Comment