एक खुशहाल और शांतमयी गुजराती समाज. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans


अभी अभी केंद्र सरकार ने पेट्रोल की कीमतों मैं बढ़ोतरी कर दी लेकिन अमूमन इस तरह के मुदो पर हल्ला गुल्ला करने वाला हमारा न्यूज मीडिया इस मुद्दे पे कही शांत दिखाई दे रहा हैंलेकिन एक आम भारतीय की तरह मैं अपने सीर पे हाथ रख कर बैठा थाभाईथोड़ी सी मंहगाई से भी घर का बजट डगमगा जाता हैं. इसी बीच मेरे एक गुजराती सहकर्मी ने कहा चिंता क्यों करता हैंहरबंसखर्चो के बारे मैं ज्यादा मत सोचो ये तो बढते ही रहते हैं. हम अपनी कमाई बडा लेंगे.” शायद इस तरह का जवाब एक छैल छबीला गुजराती ही दे सकता हैं. यहाँ गुजरात मैं पिछले ३८ सालो से रहते हुये काफी कुछ जाना हैं एक खुशहाल और शांतमयी गुजराती समाज के बारे मैं.

गुजराती समाज के अभिप्राय मैं अगर एक उदाहरण देना हो तो सबसे बड़ी मिसाल नवरात्रि” का पर्व के रूप मैं दिया जा सकता हैं जो की अभी अभी समाप्त हुआ हैं. ये त्यौहार अमूमन ९ दीन तक मनाया जाता है कभी कभी गृहों के हिसाब से ये ८ या १० दीन भी हो जाता हैंइसके पहले दीन शाम को अंबा माँ” की मूर्ति को मंदिर मैं से बाहर लाकर खुले जगह पे सजा कर रखा  जाता हैं (और नवरात्रि के आखिर दिन शाम को, “माँ अंबा” की मूर्ति को वापिस मंदिर मैं सजा कर रखा जाता हैं). इस पर्व के दौरान हर रात को लोग भक्ति वाद मैं इसके (माँ अंबा” की मूर्ति)  आस पास एक गोल चक्कर मैं गरबा करते हैं. हर कोई औरतमर्दबच्चे और बुजुर्ग इस प्रसंग मैं हिस्सा लेते हैंहर गाव मैं और हर शहर मैं हर १००-२०० मीटर अन्तराल पेनवरात्रि का पर्व हर मंदिरसोसाइटीपार्टी प्लौटहर जगह मनाया जाता हैं. पूरे तरीके से गुजराती नागरी-को द्वारा इस पर्व का संचालन किया जाता हैं. ये पर्व इतने बड़े पैमाने पे मनाया जाता हैं की प्रशासन के लिये हर जगह पुलिस का बंदोबस्त करना लगभग नामुमकिन हो जाता हैं. और फिर भी पूरे नवरात्रि के पर्व दौरान कोई भी बड़ी अप्रिय घटना नहीं होती और ना ही कोई पुलिस कम्प्लेन होती हैं जो खबरों की हैडलाइन बन जाये.

अगर आप के पडोस मैं कोई गुजराती परिवार रहता हैं तो निश्चित रहीये आप को कभी भी उनके घर से जोर जोर से बोलने की या लड़ने की कभी भी कोई आवाज़ नही आयेगी. गुजराती नागरीक मैं मानो खुद परमेश्वर ने इतना संतोष भर दिया हैं की आप को कभी भी इनके चेहरे पे कोई भी चिंता की निशानी नहीं दिखाई देगी. फिर चाहे उनके घर मैं आमदनी ज्यादा हो या कमपूरा परिवार शाम को फर्श पे बेठ कर साथ मैं खाना खाता हुआ मिलेगा और हँसी के टहाके उनके घर से आयेंगे. घर मैं कोई भी प्रसंग हो या कोई भी महत्वपूर्ण निर्णय लेना होपूरा परिवार के साथ सलाह मशवरा करके ही निर्णय लिया जाता हैं. शायद यही संयम और संतोष एक वजह हैं की गुजराती समाज व्यापर में बहुत कामयाब हैं. और इनकी खुशहाली का कारण एक ये भी हैं की ईर्षा और नफरत का प्रमाण गुजराती समाज मैं बहुत कम हैंसामाजिक प्रेम ज्यादा हैं. शायद यही इनसानियत प्रेम था जिसने १९८४ मैं किसी भी सिख को गुजरात मैं कोई खरोंच तक नही आने दी जबकि पूरा देश उस समय दंगो मैं जल रहा था.

आम तौर पे गुजरात की मिसाल औरत की आजादी के रूप मैं दी जाती हैं की यहाँ रात मैं एक अकेली औरत भी सड़क पे चल सकती हैं जो की हमारी देश की राजधानी मैं भी मुमकिन नहीं हैं. यहाँ रात मैंआप आम तौर पे देख सकते हैं अकेली औरत को शौपिंग करते हुयेगाडी चलाते हुयेएक आम जिंदगी जीते हुये. आकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं इस रिपोर्ट (http://ncrb.nic.in/index.htm -> क्लीक (Crime in India) -> Tables -> 5.1) के मुताबिक २०१५ मैं गुजरात मैं औरतों पे हुये अपराध पंजीकरण औसतन २.४% हैं अगर इसकी तुलना देश में कुल हुये औरतों पे हुये अपराध पंजीकरण से किया जाये. खास कर ये औसत हमारे देश की राजधानी मैं गुजरात से दुगना यानी की ५.२% हैं. गुजराती समाज गुजराती औरत को पूरी आजादी देता हैंफिर चाहे वोह घर मैं हो या समाज मैंगुजराती औरत आज काम करती है और अपने जीवन के फैसले लेने मैं बहुत आजाद हैं अगर इसकी तुलना हम हमारे देश के बाकी हिस्सों की औरत से करे.

अंत मैं इसकी एक वजह तो समझ आती हैं की गुजरात मैं शराब बंधी” या नशा बंधी” हैंयहाँ आप को शराब के ठेके नहीं मिलेगे जो की उत्तर भारत मैं हर सड़क पे मिल जाते है. लेकिन एक और वजह समझ आयी जब कल मैं सड़क पे एक समाजवादी को सून रहा था जो दो लोगो को शांत करता हुआ क़ह रहा था भाईहमें मार दहाड़ पसंद नहीं हैंये गांधी का देश हैं और यहाँ हर मसले का निर्णय अहिंसा के दायरे मैं ही किया जाता हैं.” शायद गुजरात की खुशहाली का सबसे बड़ा कारण अहिंसा वादी सोच का होना हैं तभी तो यहाँ बारडोली और दांडी मार्च जैसे बड़े अहिंसा आन्दोलन देश की आजादी के दोरान कामयाब हुये थे. जो भी होअगर आज मैं गुजरात की मिसाल इनसानियत के उस दीवे की तरह देना चाहता हु जिसके प्रकाश मैं हर चेहरे की खुशी का मोल अनमोल हो जाता हैं. जय हिंद.

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