मुंबई, जिसे भारत की आर्थिक राजधानी और अपने गैंग वार के लिये जाना जाता हैं, लेकिन मुझे ये दोनों यहाँ, गैर मौजूद मिले.


भारतीय मीडिया, खास कर टीवी मीडिया, जो हर तीसरे दिन दाऊद की खबर को शुमार करता हैं और इसी बीच जो आज नया ट्रेंड चला है खबर का, विकास, इसी के माध्यम से जीडीपी, विकास दर, भारत विश्व की आर्थिक रूप से उभरती हुई एक नयी तस्वीर. इन्ही दोनों खबरों ने मेरी मानसिकता में इस तरह जगह बना ली हैं, की ना चाहते हुये भी, ये अक्सर मेरे ज़ेहन में घंटी बजाती रहती हैं मसलन नयी गाड़ी एक विकास हैं और एक लिबास के रूप में आतंकवादी का चेहरा,, लेकिन ये घंटिया कुछ ज्यादा ही तेजी से बजने लगी, जब में कल मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर उतरा और आज अपने मित्र के अमेरिका वीजा की प्रक्रिया के लिये जिसमे यहाँ फिंगर प्रिंट के साथ साथ पासपोर्ट की जाँच होती हैं, यहाँ, वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, बांद्रा, मुंबई के सामने भारत की विकास करती हुई सड़क पर खड़ा था क्युकी अंदर जाना मना हैं, लेकिन इस अनुभव ने, मीडिया द्वारा रची गई मुंबई और भारत के विकास की तस्वीर को पूरी तरह से धुंधला कर दिया.

कल जैसलमैल-बांद्रा एक्सप्रेस, से बांद्रा आया था, में ज्ञात करवा दू, की में आज कुछ 16 साल बाद, मुंबई  आया था, लेकिन इस बार अकेले यात्रा की हैं और पिछली बार, एक ग्रुप में था, तो कह सकता हु, की व्यक्तिगत रूप से ये, मेरी पहली मुंबई की, यात्रा हैं, ना कुछ पता था की कहा जाना हैं और किस तरह मुंबई की सड़क पर कदम रखना हैं, लेकिन, लोगो द्वारा की गयी बेमिसाल मदद ने, मेरा रास्ता बहुत आसान बना दिया. एक्सप्रेस ट्रेन ने बांद्रा टर्मिनल पर उतरा लेकिन मुंबई लोकल ट्रेन, बांद्रा स्टेशन से चलती हैं, ये दोनों जगह का सफर कुछ 500 मीटर का होगा, लेकिन टैक्सी ड्राइवर से लेकर, एक आम सड़क पर चलने वाले, आम मुंबईकर ने बड़े स्नेह से रास्ता बताया, यहाँ पूरी तरह सड़क के उस पार मुस्लिम बहुताय आबादी थी और इसी तरह बांद्रा स्टेशन पर, यहाँ कुछ मुस्लिम युवकों ने भी हमारी मदद की मसलन टिकिट कहा से लेना हैं और दादर के लिये ट्रेन कहा से जायेगी, बस कहने के नजरिये में दोनों तरफ "सर" मौजूद था "सर, टिकट कहा से ले ?" जवाब "सर, टिकट विंडो इस तरफ हैं." आगे लोकल ट्रेन से दादर को जाते हुये, ट्रेन के कोच में और पटरी के उस पार, मुस्लिम समुदाय, की पूर्णतः मौजूदगी दिख रही थी इसी के तहत, एक मुस्लिम युवक ने दादर स्टेशन के आने की जानकारी दी. दादर से हमारी पनाहगार तक चलते हुये, कई अजनबियों ने रास्ता बताया, इसमें कुछ मराठी युवक थे, कुछ गुजराती और एक पुलिस कर्मचारी भी था. इसी के तहत आज वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के पास, ज़ैरौक्स / फोटोस्टेट  की दुकान को खोजने में यहाँ भी एक पुलिस कर्मचारी ने, हमारी मदद की, अभी तक एक मुस्लिम, मराठी, उत्तर भारतीय, पुलिस कर्मचारी के रूप में हर मुंबईकर ने हमारी मदद की थी, मुझे यहाँ टीवी मीडिया का दाऊद, फिल्म कंपनी का बड़ा डॉन और छोटा डॉन, वास्तव का रघु और अब तक छप्पन का साधु यादव, इत्यादि फिल्मी किरदार जमीन पर नहीं मिला, यहाँ जो भी किरदार थे वह असली मुबईकर थे लेकिन इन्हें, इनकी सही पहचान में कही भी, हमारा मीडिया और फिल्म, नही दिखाती.

कल, जब मुंबई आ रहे थे, तब छोटे भाई ने एक लोकल न्यूज पेपर खरीद लिया, जिसके भीतर कही, एक खबर छपी थी की, मुंबई और अहमदाबाद के बीच का प्रस्तावित बुलेट ट्रेन का प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पा रहा हैं यहाँ जो कारण लिखा गया था उस के तहत महाराष्ट्र राज्य सरकार, अपने हिस्से का पैसा इस प्रोजेक्ट में अभी तक पूरी तरह से आवातींत नहीं कर पाई हैं, अब यहाँ ये खबर ओझल थी, की इस प्रोजेक्ट में केंद्र सरकार और गुजरात राज्य सरकार अपना हिस्सा आवातींत कर पाई हैं की नहीं ? ये सवाल था, खैर अगर इसे आज एक उदाहरण की तरह लेकर चले तो, पता चलता हैं कि जीडीपी की 7+% से ज्यादा की  विकास दर कही ना कही कागजों में ही मौजूद हैं या किसी चुनावी सभा में इसका समावेश किया जाता हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयान कर रही थी. खास कर, जब मुंबई को देखा, जिसे हमारे देश की आर्थिक राजधानी कहा जाता हैं, वहा नजारा कुछ अलग ही था, कल जब बांद्रा टर्मिनल से बांद्रा स्टेशन जा रहे थे तो सड़क के उस पार, तीन-तीन मंजिला खोली थी, और ऊपर वाली खोली पूरी तरह क्या छत, दरवाजा, खिड़की, दीवार, सब लोहे की सीट की बनी हुई थी, पता नहीं, किस तरह यहाँ जिंदगी बसर होती होगी, उसी दौरान आज, जब दादर से वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, एक टैक्सी से पोहचा तो, नजारा उस चमक को नहीं दिखा रहा था जो अक्सर हमारे न्यूज पेपर के पेज नंबर ३ पर छपी हुई तस्वीर दिखाती हैं, यहाँ एक मजे की बात नजर आयी, एक तरफ वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की चमक थी और उसके साथ की सड़क पर एक पुरानी गाड़ियों की कबाड़ी नजर आ रही थी, यहाँ हर तरह की गाडी एक कबाड़ के रूप में खड़ी थी और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के बाहर धूप में खड़े हमारे तरह हर उम्र दराज भारतीय, अपने नंबर आने का इंतजार कर रहे थे, शायद हम वह भारतीय हैं, जो भारत को छोड़ विदेशों में जाने की चाह रखते हैं, लेकिन एक खास बात थी की बहुत से लोग हमारी तरह गुजरात से आये हुये थे. अब भाई, जब हमारे देश के प्रधान मंत्री जो की पहले गुजरात राज्य के मुख्य मंत्री हुआ करते थे, अपने प्रधान मंत्री कार्यकाल में पूरा विश्व घूम चुके हैं तो हम भी उनके चरण निशानों पर ही चलेगे, बस फर्क ये होगा की वह विकास को कागज से बाहर नहीं ला पाये जिसके कारण आज हमें रोजगार की तलाश में, देश छोड़ने के लिये मजबूर होना पड़ रहा हैं.


मेरी, मुंबई यात्रा एक तरह से अच्छा अनुभव ही रहा यहाँ ना तो मुझे दाऊद और छोटा राजन का डर मिला और ना ही हमारे देश का विकास, जिसे मीडिया दिखाता हैं लेकिन यहाँ जो कुछ मुझे मिला वह थी कतार स्टेशन पर रेलवे की टिकट लेने की कतार से लेकर, रेल में चढ़ना, उतरना, पनाहगार में जगह के लिये आवेदन देना और तो और वर्ल्ड ट्रेड सेंटर में भी कतार में खड़े होना, लेकिन हमारा मीडिया बस दाऊद और विकास ही दिखाता हैं ना की ये कतार, जिसमें पिछले 69 साल से भारत देश के हर कोने में, बस ये कतार ही दिखाई देती हैं, में उम्मीद करता हु, आने वाले समय में, हमारा मीडिया इस कतार को भी एक सच्चाई के रूप में दिखायेगा. धन्यवाद.

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