आजाद भारत की आज़ाद हवा मे मेरी आज़ाद पतंग नहीं उड़ पायी. कारण थे भष्टाचार और विकास.


आज उत्तरायण है, हां इस पर्व को कही जगह मकर सक्रांति भी कहते है, आज से सूरज महाराज, धरती पर अपनी मौजूदगी थोड़ा समय ज्यादा करना शरू कर देगे और इसी के तहत, ठंड कम होनी शुरू हो जायेगी. और इसी के तहत, पूरे गुजरात में दो दिन पतंग उड़ाये जाते है, इस पर्व को उत्तरायण के नाम से जाना जाता है, सारे ही लोग दो दिनों तक छत पर होते है, पतंग उड़ाने के साथ साथ संगीत भी बजाया जाता है, लोग खुश होते है, हाथ पतंग उड़ा रहे होते है और कदम संगीत पर थिरक रहे होते है, लेकिन आज मैंने बहुत कोशिश की पर मेरी पतंग नही उड़ पायी, आज़ाद भारत में, आज़ाद हवा में, आज़ाद पतंग नहीं उड़ पा रही थी, कई तरह के अवलोकन किये की क्या वजह थी, आप भी सुनेगे तो दंग रह जायेगे मसनल विकास, अमीर होने की चाह, समाज में गरीब और अमीर के बीच का बढ़ रहा अंतर, भृष्टाचार, इत्यादि, बस एक बीनती है की संयम बनाये रखे, ये भी एक कारण था की पतंग ना उड़ने का.

कल शाम को पतंग लेने गये, र दूकानदार से फरमाइश की बेहतरीन पतंगों की, हिदायत भी दी थी की, पुराना पतंग का स्टॉक मत दिखाना, अब जो हर दूकानदार कहता है यहाँ भी सुनने में आया "सर जी, हम सामान अच्छा ही रखते है, नहीं तो ग्राहक लोट कर कैसे आएगा", खेर ये हर दूकानदार कहता है और इससे हम ज्यादा उत्साहित भी नहीं हुये, कुछ 300 रुपये की 60 पतंगे ले आये, और आज जब सुबह छत पर जाकर पतंग बाजी का मजा लेने लगे, तो अनुभव खराब ही रहा, काफी पतंगे उड़ाने के दरम्यान छत से लगकर, घायल हो जाती थी, मतलब इसका कागज फट जाता था, कुछ लगातार ये 5 से 6 बार हुआ. अब कोसना ही था, तभी छोटे भाई ने कहा "ये वही दूकानदार है, जिसके यहां से दिवाली के फटाके लाये थे. वह तो सब ठीक थे." तभी बड़े बेटे नै कहा "कहा चाचा जी, राकेट उड़ता था बस, हवा में जाकर फूटता नहीं था." जो भी हो, कागज में भी मिलावट का सकेत साफ़ नज़र आ रहा था, लेकिन हम सब टहाके लगाकर हस रहे थे, शायद यही था, असली त्यौहार की हम सब आज साथ थे. 

इसी दौरान, एक कटी हुई पतंग पकड़ी जिसमे एक चित्र के रूप में हमारे देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी, उत्तरायण की बधाई दे रहे थे, अक्सर उत्तरायण के समय पतंग एक प्रचार का भी माध्यम होती है, इस तरह कई बार नेतागण,राजनितिक पार्टियां, को ऑपरेट कंपनीया, इत्यादि उत्तरायण में पतंग के रूप में बधाई संदेश देती है. लेकिन हद तब हो गयी, जब इस पतंग ने भी उड़ने से इंकार कर दिया, बहुत कोशिश की लेकिन दुपहर के समय हवा भी कम थी, और ये भी आसमान को छू नहीं पाई. पर थोड़ी देर के बाद मोदी जी के संदेश वाली पतंग उड़ गई, लेकिन आगे चलकर एक केबल टीवी और उसी के साथ इन्टरनेट के केबल में, जो की डिजिटल इंडिया की आज निशानी बन रहा है, उसमे इस तरह उलझी की, ये वही फस गयी और डोरी टूट गयी. आजकल, ये केबल इतने बड़े पैमाने पर बिछा दिये गये है की ना चाहकर भी पतंग इनमे उलझ ही जाते है, कुछ निकल आते है और कुछ वही घायल हो जाते है. अब मोदी जी की भी पतंग वही उलझ कर थोड़ी ऊँचाई तक ही उड़ पा रही थी, यु लग रहा था की मोदी जी की पतंग भी मोदी जी की तरह, डिजिटल इंडिया बनने का संदेश दे रही थी.

खेर, पतंग ना उड़ने का एक कारण और भी था, भारत देश का विकास, अब कहेगे, की ये कैसे हो सकता है, हमारे घर के आस पास के घर, दो मंजिला हो चुके है कई कई तो तीन मंजिला है, अब हवा का रुख भी ये रोक लेते है, अगर हवा मिलती भी है तो कुछ ही सीमा मे रहते हुये पतंग को एक हद तक की ऊँचाई तक लेकर उड़ाना भी मुश्किल हो जाता है, खेर इसमे, पतंग को इतने ठुमके मारने पड़ते है की हाथ और कंधा दर्द करने लग ही जाता है. हां, ये ऊँची इमारते, विकास की भी निशानी है और बढ़ रही मंहगाई की भी, जहा घर लेना अब हर किसी के पोहच में नहीं रहा. जमीन महंगी, बढ़ रहा परिवार, तो घर की मंजिल तो बढ़ना तय ही है, खेर राजनीतिक पार्टीया अक्सर इसे विकास का नाम देती है, जो भी हो, आज इसके चलते भी मेरी पतंग नहीं उड़ पा रही थी. 

इसी बीच एक अजीबो गरीब, घटना हुई, पतंग, कीनिया को तोड़कर नीचे सड़क पर जा गिरा, कई, राहगीर इसे देखा अनदेखा कर के चले गये, इसी दौरान, एक व्यपारी, जो की हमारे घर से थोड़ा सा दूर रहता है और सुखी संपन है, उसने झिझकते हुये, इधर उधर देख कर ये पतंग उठाकर, अपने झोले मे डाल दी, इसी दौरान दूर से एक बच्चा भाग कर इस पतंग की आस मे आ रहा था, लेकिन इसके हाथ मायूसी ही लगनी थी. इस पतंग के माध्यम से अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं था, की हमारे देश में अमीर और अमीर क्यों हो रहा है और गरीब और गरीब क्यों ? खासकर, ये बच्चा जो की आज शाम को ये सारी पकड़ी हुई पतंग बेच के, कुछ पैसे कमा लेगा, लेकिन सेठ जी ने यहाँ भी हाथ मार दिया, आज गरीब के पास रोजगार के अवसर और अपने जीवन को बेहतर बनाने के अवसर बहुत कम होते जा रहे है.

लेकिन आज बहुत कुछ अच्छा भी हुआ, मसलन पतंग कम उड़ने से, उड़ रहे पछीयो के घायल होने के नंबर भी कम रहे होंगे, नहीं तो पतंग की डोरी से उलझकर, अक्सर पंछी घायल होते है. दुपहर को, घर के साथ ही सड़क पर लावारिश लटक रही पतंग की डोरी थी, इससे किसी भी दोपहिया वाहन चालक के साथ कोई ना कोई हादसा हो सकता है, लेकिन इसी बीच, दो लड़किया जो की एक्टिवा पर सवार होकर वही से गुजर रही थी, उन्होंने वहां रूककर, बड़ी ही शालीनता से, सारी डोरी को हटाने के साथ साथ हर जा रहे राहगीर को इस तरह से होने वाले हादसों से सचेत भी किया. मैं छत से इस बदलते हुये भारत की तस्वीर देख रहा था. यकीनन, आज समाज की महिला बहादुर होने के साथ साथ समाज मे अपना मुकाम भी बना रही है, ये भारत देश के उज्ज्वल भविष्य के संकेत है. 

आज शाम होते होते, हम सब आस पड़ोस बहुत दिनों बाद एक साथ बैठे थे, यहां भारत बस्ता है, मसलन, हमारे घर के आगे वह उत्तर प्रदेश से है, दूसरी तरफ एक सिंधी परिवार है, बगल मे एक गुजराती जैन परिवार है और पीछे, वह प्रांत राजस्थान से है, तो हो गया ना भारत. उत्तरायण की एक और विशेषता है, इसे हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग बड़े हर्षो उल्लास से मनाते है, पुराने अहमदाबाद शहर में कई ऐसे इलाके है जहा एक तरफ हिन्दू समुदाय है और दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग रहते है, और आज के दिन ये एक ही त्यौहार मे एक साथ सिलकत करते है, याद रहे, पतंग जब कट कर आती है, तब इसका मजहब, जात, पात, कुछ पता नहीं होता और फिर से ये आसमान को छूने लगती है. पतंग, इसकी यही खूबी है, इस पर कोई अपना हक नहीं जमा सकता, ये आसमान में उड़ते हुये परिंदे की तरह आज़ाद है. लेकिन आज मुझे, पतंग उड़ाने में ज्यादा सफलता नहीं मिली, लेकिन बदस्तूर ये कोशिश कल भी, मतलब दिनाक 15जनवरी/2017 को भी जारी रहेगी, और उम्मीद है इस बार मेरी पतंग सबसे उच्ची उडेगी. धन्यवाद.

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