२०१७ साल की शुरुआत में ही कई राज्यों के चुनाव
का बिगुल बज चूका हैं, चुनाव आयोग ने चुनाव की तारीख का भी ऐलान कर
दिया हैं और साथ ही साथ परिणाम किस दिन आयेगा, इसकी भी जानकारी दे दी
गयी हैं, इसी बीच मीडिया भी अपना किरदार निभा रहा हैं, और इस बार साफ़ साफ़ तस्वीर ना बता कर या किसी विश्लेषण के तहत, मीडिया चुनाव प्रचार का हथियार नहीं बन रहा लेकिन इस बार एक नये प्रयोग के तहत
चुनावी परिणामों को प्रभावित करने की अपनी मनसा नहीं त्याग पा रहा हैं, खासकर उत्तर प्रदेश के चुनाव में, यहाँ हर अखबार एक फिल्मी स्क्रिप्ट की तरह एक
नाटक का व्याख्यान कर रहा हैं और इसी फिल्म की प्रस्तुती समाचार चैनल के माध्यम से
हो रही हैं. इस खबर के या यु कहूं की इस फिल्म के कलाकार हैं ५ यादव, निर्देशक हैं प्रशांत किशोर और निर्माता हैं राहुल गाँधी. जाने अनजाने में ही
सही, आप इस फिल्म के या खबर के दर्शक बन चुके हैं और आप भी कही
ना कही इस पर अपनी राय रख रहे हैं, ये आपकी मानसिकता में भी मौजूद रहेगी जब आप
मतदाता के रूप में अपना मत चुनावी मशीन का बटन दबाकर दे रहे होंगे.
फिल्म क्या हैं, इसे संक्षिप्त में यहाँ
लिखता हु, पिता मुलायम सिंह यादव ने अपनी मेहनत से, समाजवादी पार्टी का निर्माण किया और इसी पार्टी के सर्वोच्च के रूप में कई बार
उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री भी बने, इस कुनबे में मतलब समाजवादी पार्टी मैं परिवार
का ही दब दबा रहा मसलन मुलायम सिंह यादव के भाई शिवपाल यादव, इनके चचरे भाई रामगोपाल यादव, मुलायम सिंह यादव के पहली पत्नी से बेटे अखिलेश
यादव और बिना उपस्थिति के यहाँ मौजूद हैं मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी से संतान
बेटा प्रतीक यादव. इसका पहला अध्याय लिखा गया जब २०१२ में अखिलेश यादव समाजवादी
पार्टी की चुनावी जीत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री बने. और दूसरा अध्याय
लिखा गया साल २०१६ में जब शिवपाल यादव बागी मुद्रा में दिखे, और कही ना कही उनकी छवि इस तरह पेश की गयी के वह उत्तर प्रदेश की सकता पर
बिराजमान होना चाहते हैं, और इसके लिये वह अलग से पार्टी भी बना सकते
हैं. बात मीडिया में आना शुरू हो गयी, मतलब खबर के सिलसिले में फिल्म दिखानी शुरू कर
दी गयी थी. यहाँ,
मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव और शिवपाल
यादव को समझा कर पार्टी में एकजुटता का संदेश दिया. इसी बीच, ०८ नवम्बर २०१६, को प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी जी ने नोटबंदी की
घोषणा के साथ ही,
मीडिया पर नोटबंदी फिल्म का बुखार शुरू हो गया, इसी के चलते ५ यादव की फिल्म को मध्यांतर करके रोक दिया गया.
लेकिन साल २०१७ के शुरू होते और उत्तर प्रदेश
में चुनाव की तारीख की घोषणा के साथ साथ, मध्यांतर के बाद की फिल्म
जल्दी जल्दी दिखानी शुरू की गयी, यहाँ दोनों गुटों ने अपने अपने चुनाव के उम्मीद
वार की अलग अलग लिस्ट जारी कर दी और मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को और
रामगोपाल यादव को पार्टी से निष्कासित कर दिया, लेकिन अभी फिल्म का
ट्विस्ट देखिये,
दूसरे ही दिन इन्हें पार्टी में वापस शामिल कर
लिया गया, लेकिन इस खबर में एक फिल्मी मोड़ आया की अखिलेश यादव ने
पार्टी का अधिवेशन बुलवाकर खुद को पार्टी का अध्यक्ष के रूप में दर्शाया, समाजवादी पार्टी के दफ्तर पर अखिलेश यादव के गुट का कब्जा हो चूका था, लेकिन यहाँ अखिलेश ने फिल्मी संवाद जारी रखा और पिता जी को पार्टी का नहीं
लेकिन अपने जीवन के मार्ग दर्शक के रूप में दिखाया गया. और चुनाव आयोग ने समाजवादी
पार्टी का चुनावी चिन्ह साइकिल का अधिकार भी अखिलेश यादव के गुट को ही दिया, इसी बीच खबर आयी की अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी का चुनावी गठजोड़ कांग्रेस
पार्टी यानी के राहुल गांधी के साथ हो सकता हैं, नजदीकी समय में इसकी
घोषणा भी कर दी जायेगी. इस फिल्म का अंत मार्च महीने में चुनाव परिणामों के साथ हो
सकता हैं. और बाद में समय रहते, ये सभी ५ यादव एक ही कुनबे के सदस्य बन सकते
हैं.
यहाँ पर ध्यान देने की
जरूरत हैं, की शिवपाल यादव का जमीनी स्तर पर कोई लोकप्रियता नहीं हैं, इस बात का एहसास
शिवपाल यादव को भी होगा, फिर भी ये अलग पार्टी बनाने का रुतबा रखते हैं ? सोचिये, अगर घर में ही कोई
अपना विश्वासी खल नायक की भूमिका निभा दे तो जज्बात तो नायक के पक्ष में मतलब
अखिलेश यादव के पक्ष में होंगे और खलनायक भी अपने ही परिवार में होने से, किसी भी तरह का भय
परिवार को नहीं होगा. हाँ, अगर खलनायक परिवार से बाहर का होता, तो यकीनन परिणाम कुछ
और होते. पर लिखी गयी खबर और फिल्मी स्क्रिप्ट में किरदार, बनाये जाते हैं, शामिल नहीं किये जाते.
अब इस पूरी फिल्म का जज्बाती फायदा अखिलेश यादव को होगा जो एक बागी के रूप में
अपनी छवि पेश कर सकते हैं और ये सकेंत दे सकते हैं की वह विकास कार्य इसलिये नहीं
कर सके क्युकी खल नायक उन्हें ये कार्य करने में बाधा खड़ी करते थे, लेकिन दूसरा मोका
मिलने पर, वह विकास कार्य ज़रुर करेंगे. और इसका दूसरा फायदा राहुल गांधी को होगा, जो उत्तर प्रदेश से
भारतीय जनता पार्टी को दूर रखकर अपने लिये २०१९ के चुनाव की नींव रख सकते हैं.
अब आप किरदारों से और
निर्माता से तो मिल लिये, लेकिन इस खबर के रचेता या फिल्म के निर्देशक श्री
प्रशांत किशोर का भी जीकर यहाँ होना चाहिये, ये २०१४ चुनाव में भारतीय जनता
पार्टी के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र भाई मोदी जी के मुख्य चुनावी रणनीतिकार थे
और कई जानकार मोदी जी की भव्य जीत का कारण भी श्री प्रशांत किशोर को ही बता रहे
हैं, बाद में ये अमित शाह के साथ आयी रिश्ते में खटास के कारण भारतीय जनता पार्टी
को छोड़, राहुल गांधी के रूप में कांग्रेस से जुड़ गये. बिहार राज्य के चुनाव में
महागटबंधन के रचेता भी यही थे और जीत का कारण भी, लेकिन, उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज
पार्टी और समाज वादी पार्टी के रिश्ते इतने मधुर नहीं थे की दोनों में कोई
महागटबंधन हो सके, तो समाजवादी पार्टी में ही ऐसा कुछ करना था की जज्बात
अखिलेश यादव से जुड़ जाये और उन्हें एक लोक प्रिय नेता के रूप में पेश किया जा सके.
और फिर इस फिल्म, को एक खबर बना कर लिखा जाना, आप कब इसके दर्शक बनकर इसके साथ
जुड़ गये, शायद आप को पता भी नहीं चला होगा.
व्यक्तिगत रूप से में
प्रशांत किशोर की तारीफ़ ही करूंगा, २०१४ के भारत चुनाव, २०१५ के बिहार राज्य चुनाव और २०१७
के राज्य चुनाव यहाँ नारे हैं, खबर हैं और खबर में फिल्म भी हैं, नायक भी हैं और खलनायक
भी हैं, लेकिन सब कुछ टीवी और अखबार में हैं, आप को जोड़ा जा रहा हैं, इस तरह की रणनीति में आप बहस करते
हैं, सोचते हैं, लेकिन दंगे नहीं होते, समाज को बाटा नहीं जाता, ना ही कोई प्रलोभन
दिया जाता हैं. बस खबर और फिल्म, भाई बिना टिकट के में तो इस फिल्म का आनंद लूँगा
लेकिन वोट अपनी सोच और सामाजिक तकलीफों को ध्यान में रखकर कुछ बेहतरी के लिये
दूँगा. आप भी ऐसा ही कीजियेगा. धन्यवाद.
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