२०१७ पंजाब राज्य के चुनाव में कुछ ही दिन शेष
हैं और इस चुनावी दंगल में हर कोई पार्टी बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं, कुछ इसी तर्ज पर हर पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में रोजगार के नये अवसर, सस्ता अनाज,
शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, इत्यादि लोक लुभावने वादों की भरमार हैं. यहाँ चुनाव प्रचार
एक सवारी बस की तरह हैं, जिसकी हर खिड़की से किसी ना किसी राजनीतिक
पार्टी का सर्वोच्च नेता, अपनी जीत की दावेदारी पेश कर रहा हैं, अपने वादों को दोहरा हैं और दुसरो पर कीचड़ उछाल रहा हैं. ये चुनावी बस, अखबारों, टीवी न्यूज मीडिया, डिजिटल मीडिया, इत्यादि से होती हुई एक आम नागरिक तक अपनी पोहच कर रही हैं. लेकिन इस बार एक
सामान्य, पंजाबी नागरिक, किसी भी रोशनी या चकाचौंध से बचने के लिये, ना सिर्फ आख का हाथ से ढक कर बल्कि, हर चुनावी पैंतरे को, एक बुद्धिमान दर्शक के रूप में देख रहा हैं, और उसका सवाल खास कर, शिरोमणि अकाली दल बादल से हैं जो की पिछले १० साल से सकता मैं हैं की इन सब
चुनावी घोषणा को जमीनी हकीकत के लिये पैसा कहा से आयेगा. खास कर, जब सरकारी इमारत को गिरवी रख कर, सरकार अपने काम काज के
लिये पैसा जुटा रही हैं और तो और, सरकार के इस कार्यकाल से ये भी खबर हैं, की राज्य सरकार
कर्मचारियों को तनख्वाह देरी से दी जा रही हैं. लेकिन इसी बीच ये भी इल्जाम बादल
परिवार पर लगा, की उनकी सम्पति अब अरबो तक पोहच गयी हैं.
इस चुनाव में. सवारी बस, फाइव स्टार होटल, रिसोर्ट, टीवी चैनल, शराब, इत्यादि भी चुनावी मुद्दे हैं, इन सभी व्यवसायों में बादल परिवार की मौजूदगी की आंशका हर पंजाबी नागरिक को
भली भाती हैं.
साल २००७, में शिरोमणि अकाली दल
बादल और भारतीय जनता पार्टी की संयुक्त रूप से, बनी लेकिन इसके कुछ समय
पहले, ऑर्बिट नाम की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी पंजाब में रजिस्टर हुई
थी जिसके परोक्ष या अपरोक्ष रूप से बादल परिवार ही मालिकाना हक रखता था. ये कुछ १०सवारी बस से शुरू हुआ व्यवसाय आज पंजाब के ६०% प्राइवेट बस का मालिकाना हक रखताहैं. , इसकी रूप रेखा कुछ इस तरह से रखी गयी, की २००७ में बादल परिवार
के सकता में आने के कुछ ही महीनों बाद मोटर व्हीकल एक्ट १९२४ के तहत कुछ बदलावकिये गये, यहाँ सामान्य बस का टैक्स प्रति किलोमीटर २.५० पैसा से
घटाकर २.२५ पैसे कर दिया गया यानिकी १०% की टैक्स में कमी लेकिन ऐसी बस का टैक्स
७.५० रुपये से कम करके सीधा १ रुपया कर दिया गया, यानिकी ९३% टैक्स की कमी यहाँ, अक्सर उस समय बादल दल के
नेता इसे जनता के हित में लिया गया फैसला बताया करते थे. यहाँ, ऑर्बिट कंपनी की ऐसी बस की बाड़ सी आ गयी थी, में भी व्यक्तिगत रूप से
उस समय पंजाब में ही था और चमचमाती नयी नयी बस में सफर करना किसे अच्छा नहीं
लगेगा. लेकिन, राजस्व घाटा, पंजाब सरकार को हो रहा था, इसी के तहत,
पंजाब के नागरिक को हो रहा था, लेकिन बादल परिवार, इस फैसले से सबसे ज्यादा लाभार्थी थे.
लेकिन, २००७ में मोटर व्हीकल
एक्ट में किया गया बदलाव, इसका लाभ सरकारी रोडवेज़ को नहीं मिल रहा था, यहाँ उस समय कोई भी सरकारी ऐसी बस पंजाब के २ बड़े शहर को जोडती हुई नहीं दिख
रही थी, यहाँ जो बस थी वह या तो ऑर्बिट, डबवाली, हरगोबिन्द ट्रावेल्स की ही बस थी. और इनमें सुखबीर सिंहबादल का मालिकाना हक था , कुछ समय बाद, सरकारी रोडवेज़ की बस आई भी लेकिन इन्हें पंजाब को दूसरे राज्य के शहर से
जोड़ता हुआ रुट दिया गया जहाँ बस रुट में दूसरे राज्य की मौजूदगी होने से प्राइवेट
बस नहीं जा सकती,
लेकिन पंजाब राज्य के सारे लाभार्थ बस रुट पर
धीरे धीरे ऑर्बिट ट्रांसपोर्ट कंपनी या किसी और ट्रांसपोर्ट कंपनी का अधिकार हो
गया जहाँ सुखबीर बादल किसी ना किसी रूप में लाभार्थी थे, पुराने बस रुट मालिकों ने
अपने बस रुट इन नयी ट्रांसपोर्ट कंपनी को बेचना शुरू कर दिया, किस तरह किया इसका एक उदाहरण इंडो-कैनेडियन ट्रांसपोर्ट कंपनी के रूप में हैं, ये कंपनी इंदिरा गांधी देल्ही एअरपोर्ट से पंजाब के हर शहर को जोडती थी और
इसकी सेवा चंडीगढ से भी थी, इसका मुख्य दफ्तर जालंधर में था, इसी के तहत,
बादल सरकार द्वारा पंजाब रोडवेज़ की बस सर्विस
भी एअरपोर्ट से सीधी शुरू कर दी, लेकिन इंडो-कैनेडियन बस के मुकाबले सरकारी बस
का किराया बहुत कम था, पर यका यक २०१२ में सरकारी बस का ये रुट, ये कहकर बंद कर दिया गया, की यहाँ राजस्व को घाटा हो रहा हैं, लेकिन उसी साल इंडो-कैनेडियन ट्रांसपोर्ट कंपनी को बादल परिवार ने खरीद लिया था., खरीद फरोक का सिलसिला
युही जारी हैं, कुछ ही समय पहले इस परिवार ने राजधानी एक्सप्रेस और
होशियारपुर आजाद,
नाम की दो बस ट्रांसपोर्ट कंपनी को खरीद ने से, इनकी बस संख्या में १२० बस की और बढ़ोतरी हो गयी हैं.
आज हालात ऐसे हैं, सरकारी बस को सरकारी स्टैंड पर २-३ मिनिट तक ही खड़ा होने दिया जाता हैं लेकिन
बादल परिवार की बस तब तक खड़ी रहती हैं जब तक इन्हें पूरे पैसेंजर नही मिल जाते.
इसके लिये, दो सरकारी बस के टाइम में एक बादल परिवार की बस का टाइम रखदिया जाता हैं जिसके तहत, पहली सरकारी बस को जल्दी रवाना किया जाता हैं
और बाद में लगने वाली बस को उसके निर्धारित समय के कुछ मिनिट के बाद. इसका खुलासा
एक समय पंजाब रोडवेज़ के ट्रांसपोर्ट मंत्री रहे श्री मोहन लाल ने भी किया था. २०१४, में व्यक्तिगत रूप से मेंने भी, एक नजारा रायकोट के स्टेशन पर देखा, ये बस स्टाप,
भटिंडा-लुधियाना-जालंधर रुट पर पड़ता हैं, और इस रुट की बस यहाँ हर १५ मिनिट के अंतराल पर आती हैं, सवारी उठाने के दबाव में, यहाँ ऑर्बिट बस और उसके कर्मचारियों ने सरकारी
बस का टाइम काटकर अपनी, सवारी भर कर रवाना हुई थी, आज रोडवेज़ के कर्मचारी भी भयभीत हैं, यहाँ इनकी कही भी सुनवाईनहीं हैं और बादल की हर बस के साथ
ड्राइवर-कंडक्टर के सिवा अतिरिक्त २-३ कर्मचारी बस के साथ ही रहते हैं या उस हर बस
अड्डा पर मिल जाते हैं जहां से सवारी ज्यादा उठानी होती हैं. यहाँ, पुलिस भी बादल बस के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायत नहीं दर्ज कर वाती, मोगा में, २०१५ में जिस चलती बस से नाबालिक लड़की को फैका गया था, वह बादल परिवार की ही बस थी, यहाँ, पुलिस ने ऍफ़.आई.आर लिखने
से भी मना कर दिया था, लेकिन बाद में मीडिया के दबाव के चलते, यहाँ पुलिस को कार्यवाई करनी पड़ी थी.
आज बादल परिवार के पास,
गुडगाँव में एक १७ एकड में फैला हुआ आलीशानहोटल हैं , इनकी मौजूदगी टीवी चैनल पीटीसी में हैं,, चंडीगढ से मात्र २० किलो मीटर की दूरी पर,
ऑर्बिट रिसोर्ट के ये मालिक हैं,
यहाँ इनका उस हर लाभार्थ व्यवसाय में या तो
भागीदारी हैं या मालिकाना हक हैं, और तो और, आज नशे से झुझ रहे पंजाब में, इनके रिश्तेदार विक्रम सिंह मजीठिया,
शराब से जूड़ी हुई सराया इंडस्ट्री के मालिक
हैं, ,
आज जब, सरकारी इमारत को गिरवी रखा जा रहा हैं लेकिन बादल परिवार की
सम्पति में बहुत तेजी से उछाल आना, कही ना कही, उस नारे को चोट मारता हैं जिस के तहत,
शिरोमणि अकाली दल बादल,
“राज नहीं सेवा”, का अधिकार माँगा करती थी. पंजाब राज्य की बादल सरकार जो की
पिछले १० साल से सकता मैं हैं, इसे ये भली भाती ज्ञात होगा की किस तरह पंजाब आज आर्थिक रूप
से कंगाल हो चूका हैं लेकिन फिर भी ये पार्टी अपने चुनाव घोषणा पत्र में १० रुपये किलो चीनी,
२५ रुपये किलो घी,
खेती के लिये मुफ्त बिजली,
इत्यादि लोक लुभावने वादे कर रही हैं,
अब ये कितना सच जनता से छुपा रही हैं और कितना
बता रही हैं, इसका अंदाजा तो चुनाव के परिणाम से आना तय हैं, लेकिन अंत में, एक मशहूर गीत के बोल लिखकर अपनी बात खत्म करूंगा “ये पब्लिक हैं, ये सब जानती हैं, ये पब्लिक हैं, अंदर क्या हैं, बाहर क्या हैं, ये सब जानती हैं, ये पब्लिक हैं, ये सब जानती हैं.” धन्यवाद.
No comments:
Post a Comment