भारत वर्ष, में नाम से पहचान मतलब विशेष का दर्जा और पहचान पत्र से पहचान मतलब, एक सामान्य नागरिक की पहचान.



कल छुट्टी होने से, अपने कागजों को छानना  शुरू कर दिया, यहाँ मेरे कुछ पहचान पत्र भी थे, कुछ अतिसामान्य हैं जैसे कॉलेज के समय का बस रुट,१०-१२ कक्षा, कॉलेज के पहचान पत्र, इत्यादि लेकिन इन सब में  दो चीजें बहुत सामान्य थी मसलन मेरा नाम और एक नंबर, नाम तो सब जगह एक ही था लेकिन नंबर हर जगह अलग-अलग थे. कुछ यही हाल ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट और इसी लिस्ट में आधार कार्ड, जो हाल ही में पहचान पत्र के रूप में शामिल हुआ हैं. अब एक ही शहर या गांव में एक ही नाम के दो शख़्स हो सकते हैं लेकिन पहचान पत्र पर छपा हुआ नंबर, हमेशा यूनिक ही रहेगा. हर जगह नंबर हैं, यही नंबर वोटर लिस्ट की पहचान पत्र में भी भली-भात मौजूद हैं और इसी सिलसिले में हर जगह लगी हुई कतार, बचपन में स्कूल की फीस को भरने से लेकर आज रेलवे की तत्काल टिकट निकालने के लिये, कतार मौजूद हैं, और तो और इस बार दिवाली की मिठाई लेने के लिये भी मिठाई की दुकान के सामने, हम एक कतार में ही खड़े थे. मसलन, एक भारतीय होने के नाते मेरी पहचान एक पहचान पत्र से हैं जिसमें छपा एक नंबर भी हैं  और हर काम के लिये, मुझे एक समान्य नागरिक के रूप में, बिना शिकायत किये एक कतार में ही खड़े रहना हैं.

अब ये नंबर  और कतार तो कम नहीं हो रही लेकिन, हमारी हर सरकार विकास, बेहतर हो रही व्यवस्था और कुशल प्रशासन का ढिंढोरा ज़रुर पिटती हैं. यहाँ, जीडीपी को ७+% से ज्यादा दिखाया जा रहा हैं, मंहगाई कम हो रही, बताई जा रही हैं, मसलन सब अच्छा अच्छा हो रहा हैं, लेकिन मेरी पहचान का नंबर नहीं बदल रहा, शायद ये बदलेगा भी नहीं, अब इस पहचान पत्र में दर्ज नंबर का भी एक अलग ही मजा हैं, ये मुझे सिर्फ एक नंबर के रूप में दिखा रहा हैं और सिरे से मेरी धार्मिक पहचान, लिबास, उच्च जाती, इत्यादि को नकार रहा हैं. मतलब, हमारे भारत देश में, सब एक समान हैं, ना ही कोई हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई, पारसी, जैन, इत्यादि ना होकर एक भारतीय हैं और ना ही पंडित में और एक छोटी जात के व्यक्ति में कोई मतभेद हैं, सुखी और संपन समाज, जहाँ सब एक ही हैं. और इसी सिलसिले में वोटर बूथ पर लगी हुई कतार, जहाँ सभी एक ही तरह का पहचान पत्र से पहचाने जा रहे हैं और इसी सिलसिले में बिना किसी शिकायत के शांति बनाये हुये कतार में, बिना किसी भेद भाव के खड़े हैं.

लेकिन, अंदर वोटर मशीन पर, नेता जी का नाम और उनकी पार्टी का चिन्ह छपा हैं, यहाँ किसी पहचान पत्र और उसका नंबर नहीं, मात्र नाम ही एक पहचान हैं. अब यहाँ, ये भेदभाव क्यों ? नेता जी के नाम से उनकी छवि उभर आती हैं, उनके धर्म और जात का पता चलता हैं, कुछ इसी तरह का संजोग उस हर संवाद से हैं जो सार्वजनिक रूप से समाज में प्रचलित होता हैं मसलन टीवी न्यूज का ऐंकर, समाचार पड़ने से पहले अपना नाम बताता हैं ना की पहचान पत्र या किसी अख़बार की खबर के अंत में छपा रिपोर्टर का नाम, फिल्म शुरू होने से पहले, कलाकारों का नाम दिखाया जाता हैं, उसी तरह से क्रिकेट स्कोर बोर्ड पर हमारे देश के खिलाड़ियों का नाम ही मौजूद होता हैं, नाम उस हर जगह पर मौजूद हैं जहाँ इसे विशेष का दर्जा मिलता हैं  अब ये विशेष, वह हैं जो हमारी सरकारी या देश की व्यवस्था के ऊपरी पायदान पर मौजूद हैं, मतलब ये व्यवस्था को बनाते हैं और इसी व्यवस्था को ये लागू करते हैं, व्यवस्था के ऊपरी पायदान पर मौजूद होने से, इन्हें व्यवस्था के सारे लाभ भी मिलते हैं मसलन नाम, गाडी, घर, इत्यादि. लेकिन, एक सामान्य नागरिक तो अपनी पहचान पत्र मतलब नंबर से ही पहचाना जाता हैं. अगर इसे व्यवस्था द्वारा दिया गया राशन भी इसे लेना हैं तो राशन कार्ड पर नाम, चित्र के साथ मौजूद होना चाहिये, इस पहचान पत्र को बड़ी ही बारीकी से परखने के बाद ही यहाँ राशन मिलता हैं, लेकिन राशन कहा से आया, किसने दिया हैं, उसकी जानकारी दस्तखत मतलब सिर्फ और सिर्फ नाम से ही पता चलता हैं.

तो जहाँ, इंसान उसके नाम से पहचाना जाता हैं शायद वहां जीडीपी की विकास दर ७+% से ज्यादा की हो, यहाँ आये महीने मंहगाई की दर कम भी होती हो लेकिन, बाकी समाज में हालात कुछ और ही बयान करते हैं. मसलन सितम्बर २०१६ में  रिलायंस जाओ की ४जी सेवा, सार्वजनिक रूप से शुरू की गयी, जिसे पहले ३१-दिसम्बर-२०१६, तक मुफ्त सेवा देने का ऐलान किया और बाद में इस मुफ्त सेवा को बढ़ाकर ३१-मार्च-२०१७ तक कर दिया गया, इस सेवा के लिये उपभोक्ता के पास ४जी का फोन होना चाहिये, जिसकी बाजार में शुरूआती कीमत कुछ ५००० रुपये से शुरू हो जाती हैं, लेकिन फिर भी, १२५ करोड़ के भारत देश में, जियो के आज ७ करोड़ से मात्र कुछ ज्यादा ग्राहक ही बन पाये हैं. निजी तोर पर कुछ दिनों पहले, मुंबई गया था, वहां लोकल ट्रेन के सामान्य कोच में, टैक्सी ड्राइवर, ऑटो रिक्शा ड्राइवर और आते समय ट्रेन के जर्नल कोच में, एक सामान्य नागरिक जिसकी पहचान उसके पहचान पत्र से ही होती हैं उसके पास कोई २जी, ३जी या ४जी फ़ोन नही था, जो था बस, एक सामान्य वोइस कॉल फ़ोन, जिस पर रेडियो भी सुना जा सकता हैं. आज, मुफ्त ४जी की सेवा जिस से मुफ्त इंटरनेट और कॉल भी की जा सकती हैं, इसके लागू होने के ४+ महीने के बाद भी, कुछ ७+ करोड़ नागरिक ही इसका फायदा उठा पा रहे हैं, मतलब आज, एक आम नागरिक के पास उसकी मूलभूत सुविधा की कमी हैं, उसे दो वक्त की रोटी की ज्यादा चिंता हैं ना की मुफ्त ४जी सेवा की. अब, ये कहने की या सोचने का मुद्दा तो नहीं ही होना चाहिये, की हमारा देश किस तरह ऑनलाइन पेमेंट कर सकता हैं या किस तरह केस लेस हो सकता हैं, खैर, इसकी जानकारी तो व्यवस्था के उपरी पायदान पर बैठे, नाम से पहचाने जाते विशेष ही दे सकते हैं.


अंत, में ये समान्य नागरिक जो की अपनी पहचान पत्र से पहचाने जाते हैं, ये मात्र एक गिनती का ही हिस्सा हैं जिस तरह, इस विधानसभा क्षेत्र में कितने नागरिक हैं, इतने वोट इस विधायक को मिले और इतने दूसरे विधायक को, ये विधायक इतने वोट से जीता और फलाना विधायक इतने वोट से हारा, अब चाहे आप सडक पर हैं या किसी महंगी गाडी में हैं, आप इस गणित में, एक नंबर के रूप में ही मौजूद हैं. इससे ज्यादा का अहंकार, एक आम भारतीय नागरिक को नहीं होना चाहिये. अगर, हैं तो ये विशेष नाम के मालिकों द्वारा चलाई जा रही व्यवस्था को नहीं समझ पा रहा. अब में अपने पहचान पत्र पर अपना नाम और उसके साथ मौजूद नंबर को समझ चूका हु, उस व्यवस्था को भी जिस का अधिकार विशेष नाम के मालिको के पास हैं, इसी के तहत ये, उम्मीद भी कम हैं की कुछ बदलाव आयेगा, अगर आया भी तो ४जी जिओ की तरह बस कुछ ही लोगो तक सीमित रह सकता हैं और जिन के पास ये बदलाव नहीं पोहच पायेगा, उनका रुख क्या होता हैं ? क्या वह ताउम्र अपनी पहचान एक पहचान पत्र और उसके नंबर से ही संतुष्ट रहेंगे ? या सामाजिक विद्रोह होने की आशंका बन रही हैं ? अगर जमीनी हकीकत को देखू, तो हाँ, सामाजिक स्तर पर विद्रोह हो सकता हैं, जहाँ हर वर्ग और समुदाय के लोग अपने अधिकारों की मांग को लेकर एक साथ, सडक पर उतर सकते हैं लेकिन विशेष का अधिकार रखने वाली व्यवस्था क्या नया मोड़ लेती हैं ?, इसे देखना और समझना होगा, यहाँ, विशेष और सामान्य के बीच के अंतर को कम करने की जरूरत हैं और इसे समय रहते खत्म करने की मांग हैं, तभी, सही दिशा में, एक लोकतंत्र की स्थापना संभव हैं अन्यथा ये लोकतंत्र एक भ्रम को ही दिखाता रहेगा. धन्यवाद.

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