औरत को ताक़तवर बनने के लिये ख़ूबसूरती का दामन छोड़ना पड़ेगा. #हवाबदलीसीहै #हरबंस #जनाब #harbans



आज एक दोस्त के बेटे की शादी की बात चल रही थी, तो सभी का अपना अपना तर्क था की लड़की में कौन कौन से गुण होने चाहिये, लेकिन जहाँ सभी सहमत थे वह की लड़की ख़ूबसूरत तो होनी ही चाहिये. बस हमारी सोच की सुई भी यही पर अटक  गयी, की औरत और ख़ूबसूरती इन दोनों का क्या रिश्ता हैं ? और हम आदत से मजबूर चल दिये इसका अवलोकन करने के लिये  ? सोचिये, आप के घर पर कोन कोन सी वस्तु ख़ूबसूरत हैं. जो भी हैं आप उसे आप शो कैश में सजाकर ही रखते हैं और कांच के रूप में एक बाड़ बना देते हैं की इसे कोई देख सके लेकिन छूने की आज्ञा नही हैं. अगर कोई वस्तु ख़ूबसूरत भी हैं और मंहगी भी हैं जिस तरह सोना, चांदी, इत्यादि तो इसे संभाल कर किसी अलमारी में, लोकर के भीतर ताला लगाकर रखा जाता हैं ताकि कोई चोरी ना कर ले जाये. अब जब औरत को ख़ूबसूरत का पैमाना बना दिया गया हैं तो सुरक्षा के माध्यम के तहत पहले तो पिता जी और बाद में पति के रूप में ताला तो लगाया ही जायेगा. अर्थात, एक औरत को ख़ूबसूरती का पैमाना पहनाकर कमजोर कर दिया हैं. ये ऐसी व्यवस्था हैं जहाँ औरत को कमजोर होने का एहसास तो हैं लेकिन वह कारण नही समझ पा रही हैं.

बेटी के जन्म के साथ ही, माता पिता, दोस्त, रिश्तेदार, इत्यादि सब से पहले लड़की का रंग और नैन नक्श देखते हैं. अगर रंग काला हैं तो माता पिता के चेहरे पर चिंता की लकीर दिख रही होती हैं लेकिन अगर रंग गोरा और साफ़ हैं तो अभी से यह कह दिया जाता हैं की किसी सुखी घर की बहु बनेगी. कुछ साल के भीतर ही जब बिटिया ने अभी पूरी तरह से चलना फिरना और बोलना नही सिखा होता तब नाक और कान को छिनवा दिया जाता हैं. यहाँ तर्क दिया जाता हैं की शादी के बाद इसे ख़ूबसूरत दिखने के लिये गहने तो पहने ही होंगे अब उसके लिये कान और नाक को छिनवा रहे हैं. बस बिटिया ने अभी हाई स्कूल में पड़ना शुरू किया ही होता हैं की वही उसे साडी किस तरह पहनते हैं इसकी ट्रेनिंग दी जाती हैं. हमारा सभ्य समाज, बिटिया के पहनावे में टी-शर्ट और जीन्स को पसंद नही करता और इसका तर्क यहाँ हैं की इस तरह के कपडे अंग प्रदर्शन करते हैं. लेकिन साडी के भीतर से दिख रही कमर को ये ख़ूबसूरती का पैमाना कहते हैं. शादी के बाद, पति जी के यहाँ बिटिया को साड़ी जो पहननी हैं. शादी के पहले, बिटिया को क्या पहनना हैं इसमें पिता जी के मापदंड होते हैं और बिटिया की हर सफलता का श्रेय पिता जी को ही मिलता हैं. यहाँ, बिटिया मतलब कमजोर हैं और पिता जी उसकी सुरक्षा के पहरेदार.

बिटिया जी की शादी हो गयी, अब वह पत्नी जी, हैं और सुरक्षा का मापदंड पति हैं. यहाँ उसे, होठो की लिपस्टिक से लेकर, पैरो और हाथों के नाखून को भी रंगना होता हैं. कपड़ों में गहरे रंग शामिल हो जाते हैं. मांग में सिंधुर और हाथ में चुँडा, जरूरी होना चाहिये. अगर यहाँ पत्नी जी बाजार में जाये, तो मांग का सिंधुर ये बता देता हैं की ये किसकी पत्नी हैं और इनकी सुरक्षा के लिये पहरेदार हैं. अगर, पत्नी जी, किसी ऑफ़िस में काम करती हैं और पड़ी लिखी भी हैं, तभी यहाँ दबी ज़ुबान में ही सही पति का नाम पत्नी के हर कार्य में जुड़ा होता हैं. मसलन अगर रात को ऑफ़िस लेट तक किसी विवाहित महिला को काम करना पड़ता हैं तो उसे लेने के लिये पति जी ही आते हैं. महिला, को घर से कहा गया होता हैं की कही भी किसी भी जगह कोई कठिनाई हो तो पति जी को सबसे पहले फ़ोन किया जाये.

इसी की मिसाल हमारे एक त्यौहार रक्षाबंधन के जरिये भी देना चाहूंगा जहाँ एक बहन अपनी सुरक्षा के मध्यनजर अपने भाई को राखी बांधती हैं. ताकि भाई से वह अपनी सुरक्षा का वचन ले सके. अब यहाँ अगर बहन छोटी हैं या अपने भाई से कुछ ५-१० साल बड़ी भी हैं तभी अपने छोटे भाई को राखी बांध रही हैं. अब, अन्य त्यौहार जैसे की मकर सक्रांति, होली, दिवाली, इत्यादि इनका इतिहास हैं लेकिन रक्षाबंधन का इतिहास मुझे कही नही मिलता. तो क्या ये मान लिया जाये, की ये त्यौहार भी औरत को कमजोर करने के लिये बनाया गया हैं.

एक दिन रेल मार्ग में आते समय, रेलवे पुलिस के स्टाफ में एक महिला भी मौजूद थी और इसकी वर्दी अपने आप में एक ताकत का प्रदर्शन कर रही थी, कमर के बेल्ट में टंगा हुआ रेवोल्वर, एक ताकत का प्रदर्शन कर रहा था, जिस के तहत पुरी ट्रेन के कोच में कही भी कोई आवाज नही आ रही थी और ना ही कोई नजर इस महिला को ख़ूबसूरती की नजरिये से देख रही थी. जिंदगी में अक्सर कुछ पाने के लिये कुछ खोना पड़ता हैं, यहाँ कही भी कुछ भी मुफ्त नही मिलता. ताकत भी कुछ मांग करती हैं, इस वर्दी की रूप रेखा में कही भी महिला के नाखून, होंठ, चेहरा और इसका रंग, पहनावा, इत्यादि जो की ख़ूबसूरती का पैमाना हैं वह कही भी मौजूद नही थे. ना ही मांग में सिंधुर और मंगलसूत्र था, अंदाजा लगाना मुश्किल था की ये महिला शादीशुदा हैं या अविवाहित. लेकिन इन निशानियो की यहाँ कोई भी जरूरत नही थी, यहाँ महिला खुद को पहचान दे रही थी और खुद की उपस्थति ही परिभाषित कर रही थी. में कह सकता हु, की इस महिला को अपनी सुरक्षा के लिये किसी भी भाई को राखी बांधने की जरूरत नही हैं. ये अपनी सुरक्षा के लिये खुद ही सक्षम हैं.


ताकत के लिये वर्दी, की जरूरत नही हैं. मेरा यहाँ व्यक्तिगत मानना हैं की ताकत और ख़ूबसूरती दोनों कभी साथ साथ नही चल सकते. आज अगर, महिला को खुद की सुरक्षा के मध्यनजर खुद को ताक़तवर बनाना हैं तो ख़ूबसूरती के पैमानों को त्यागना होगा, जिस चाकू से महिला रसोई में सब्जी काटती हैं अगर वह पर्स में मौजूद हो, चूड़ी की जगह एक मजबूत लोहे का कड़ा हाथ में हो और मंगलसूत्र की जगह अगर गले में एक छोटी सी लोहे की चैन हो, जिसे समय आने पर हाथ में घुमाकर एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा सकता हो तो कही भी महिला को अपनी सुरक्षा और पहचान के लिये, अपने पिता और पति का नाम बताने की जरूरत नही, यहाँ वह खुद अपने नाम से पहचानी जा सकती हैं. और अपनी सुरक्षा भी खुद ही कर सकती हैं. जय हिंद.

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