पंजाब की राजनीति में, यहाँ मौजूद डेरा (आश्रम) भी असर करते हैं.



पंजाब,इस प्रांत को  गुरुद्वारा श्री हरमिंदर साहिब के नाम से भी जाना जाता हैं, जिसे आम तौर पर, गैर-सिख गोल्डन टेम्पल के नाम से जानते हैं, इस स्थान पर सिख समुदाय, आस्था से सर झुकाता हैं और इसी के साथ गैर-सिख के लिये ये स्थान आस्था के साथ-साथ इसकी ख़ूबसूरती भी, यहाँ लोगो को आकर्षित करती हैं, और यही श्री अमृतसर साहिब  शहर में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी (एस.जी.पी.सी) का भी दफ्तर हैं, जिसका मुख्य काम एस.जी.पी.सी के अधीन आ रहे गुरुद्वारा साहिब का प्रबंधन को देखना हैं लेकिन ये हम सब भली भात जानते हैं की एस.जी.पी.सी का पंजाब की राजनीति में क्या स्थान हैं, आज की तारीख में एस.जी.पी.सी पर बादल परिवार का दबदबा हैं और एस.जी.पी.सी से जुड़े हुये सदस्य अक्सर शिरोमणि अकाली दल बादल के लिये चुनाव प्रचार में हिस्सा भी लेते रहे हैं, कुछ दिन पहले इस पार्टी के घोषणा पत्र जारी होने के समय सुखबीर सिंह बादल के साथ, एस.जी.पी.सी के पूर्वअध्यक्ष अवतार सिंह को साथ खड़ा देखा जा सकता हैं.

लेकिन आज पंजाब की राजनीति में डैरो ने भी अपना स्थान बना लिया हैं, डेरा, मसलन आश्रम, इसी के अंतर्गत राधा सोअमी व्यास, दिव्य जोती संस्थान नूरमहल और डेरा सचा सौदा, सिरसा ये प्रमुख डेरा हैं जो राजनीति पर अपनी छाप छोड़ते हैं. यहाँ, दिव्य जोती संस्थान जो पंजाब के नूरमहल में मौजूद हैं. इसके सर्वोच्च बाबा आशुतोष की मोत के बाद भी उनके शरीर को फ्रीज में रखा हुआ हैं और इनका तर्क हैं की बाबा जी समाधि में हैं. कुछ इसी तरह डेरा सचा सोदा जो सिरसा, हरयाणा में हैं और पंजाब की सीमा से लगता हुआ एक कस्बा हैं. इस डेरे के प्रमुख संत गुरमीत राम रहीम सिंह, अक्सर विवादों में बने रहते हैं, इन पर सीबीआई की जांच चल रही हैं और अदालत में इनके खिलाफ मुकदमा चल रहा हैं, इन पर बलात्कार से लेकर ४०० सेवक को नपुसंक बनाने के भी आरोप हैं  लेकिन संत गुरमीत राम रहीम सिंह, देश के उन लोगो में शुमार हैं जिन्हें सरकारी खर्चे पर जेड+ सीक्यूरिटी दी गयी हैं. ये ज्ञात रहे, डेरा सचा सोदा, सार्वजनिक रूप से हर चुनाव में किसी ना किसी राजनीतिक पार्टी के साथ खड़ा रहा हैं और इनकी अपील भी काम करती हैं मसलन २००७ के पंजाब राज्य चुनाव में इन्होंनेपंजाब कांग्रेस का साथ दिया था जिस के कारण भठिंडा, बरनाला और संगरूर के क्षेत्र में शिरोमणि अकाली दल के गढ़ में कांग्रेस विजयी रही थी. लेकिन यहाँ, डेरा राधा सोअमी, व्यास का जिक्र करना ज़रुर बनता हैं जो कभी भी किसी विवाद में नहीं रहा और पूरे भारत से, हर वर्ग और समुदाय का नागरिक इस डेरा राधा सोअमी से आस्था के रूप में जुड़ा हुआ हैं.

राधा सोअमी डेरा, व्यास, कभी भी सार्वजनिक रूप से किसी भी चुनाव में किसी पार्टी के साथ नहीं खड़ा रहा, मसलन ये राजनीति से दुरी बना कर रखते हैं लेकिन २०१४ में भारतीय जनता पार्टी की लोकसभा में हुई भव्य जीत के पश्चात, पंजाब के मानसा में व्यास डेरा के प्रमुख बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लो और आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत के बीच, बंद कमरे में मुलाकात हुई थी और इसी के अंतर्गत २०१४ के चुनाव से पहले, ये दोनों नागपुर में मिले थे. यहाँ एक आम नागरिक क़यास लगा रहा था २०१४ में भाजपा की जीत में डेरा व्यास की भी कोई भूमिका हो सकती हैं. २०१२, में डेरा व्यास पर ये आरोप भी लगे की इन्होंने, डेरा व्यास के भीतर आ रहे एक सिख गुरुद्वारा साहिब को नष्ट कर दिया था लेकिन सिख धर्म में सर्वोच्च स्थान श्री अकाल तख्त से जत्थेदार गिआनी गुरबचन सिंह ने डेरा व्यास को ये कहकर आरोप मुक्त कर दिया की नष्ट हुई बिल्डिंग में से गुरु ग्रंथ साहिब जी का पावन स्वरूप को सिख धर्म की मर्यादा के अनुसार, दूसरे स्थान पर पहले ही ले जाया गया था. इसके बावजूद, कई सिख संगठन आज भी डेरा व्यास को एक दोषी के रूप में ही देखते हैं. यहाँ ये लिखना जरूरी हैं, की डेरा व्यास के मुख्य संत अक्सर एक सिख के रूप में दिखाई देते हैं लेकिन इनकी धार्मिक मर्यादा सिख धर्म की धार्मिक मर्यादा से अलग हैं मसलन ये खुद को गुरु होने का मान हासिल करते हैं लेकिन सिख धर्म के अनुसार सिर्फ और सिर्फ गुरु ग्रंथ साहिब जी ही, सिख गुरु हैं.

अब, २०१७ के चुनाव में, सरगर्मी पिछले साल से ही सर गर्म हैं मसलन शिरोमणि अकाली दल बादल-भाजपा की पंजाब राज्य सरकार ने अक्टूबर २०१६ में, डेरा व्यास के प्रमुख गुरिंदर सिंह ढिल्लो के व्यक्तिगत नजदीकी रिश्तेदार परमिंदर सिंह सेखो को मुख्य मंत्री श्री प्रकाश सिंह बादल का सलाहकार नियुक्त किया हैंइसी के चलते श्री राहुल गांधी दिसम्बर २०१६ में, डेरा व्यास में एक रात रुके थे, उन्होने राधा सोअमी डेरा में सत्संग भी सुना और दूसरे दिन, डेरा प्रमुख के साथ राहुलगांधी की नाश्ते पर मुलाकात हुई. अक्सर डेरा व्यास प्रमुख, श्री अमृतसर के श्री हरमिंदर साहिब गुरुद्वारा में माथाटेकने जाते हैं, इनकी मुलाकात उन सिख नेताओ से भी अक्सर होती रहती हैं जो वैचारिक रूप से बादल परिवार से मतभेद रखते हैं. मसलन डेरा प्रमुख की आज पूरी पंजाब की सियासत में एक मजबूत पकड़ रखते हैं.


डेरा व्यास के आश्रम, पूरे भारत देश के लगभग हर बड़े शहर में हैं और इनके लाखों-करोड़ो भक्त हैं, जो आस्था के माध्यम से डेरा व्यास और इस के प्रमुख बाबा गुरिंदर सिंह ढिल्लो से जुड़े हुये हैं, इसी के तहत इनकी मौजूदगी, पंजाब के हर शहर, कसबे और गांव में हैं, लेकिन सार्वजनिक रूप से तो ये मुमकिन नहीं की ये डेरा किसी भी राजनीति पार्टी का समर्थन कर के दूसरी राजनीति पार्टी से दुश्मनी मोल ले, लेकिन जिस तरह भारतीय राजनीति में अक्सर इशारो में ही नेता अपनी बात करता हैं और इन्ही इशारो को एक मतदाता समझ भी जाता हैं, अब देखना ये होगा की डेरा व्यास जो की राजनीति से दूरी बनाये रखे हैं लेकिन इशारो में क्या कोई संदेश दे रहा हैं ? ये सवाल, आज पंजाब के हर नागरिक को हैं और भली भात ये समझा जा रहा हैं की किस तरह ये डेरा व्यास आरएसएस और बादल परिवार से नजदीकी बनाये हुये हैं, अब देखना ये होगा की, ये इशारे की राजनीति, चुनावी परिणाम पर क्या असर करती हैं. मेरा, व्यक्तिगत मानना हैं की इस तरह के इशारो का असर राजनीति में ज़रुर होता हैं कभी लाभ दायक और कभी नुकसान भी कर देता हैं. लेकिन, इसका इजहार तो राज्य के चुनावी परिणाम ही तय करेंगे, जिस के लिये हमें ०४-मार्च-२०१७ तक का इंतजार करना होगा. धन्यवाद.

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