स्पॉटलाइट, बोस्टन के अख़बार की रिपोर्ट पर आधारित फिल्म हैं लेकिन इस तरह की फिल्म कभी भी भारत में नहीं बन पायेगी.



२०१५ मैं आयी फिल्म स्पॉटलाइट, २००२ में द बोस्टन ग्लोब में छपी एक रिपोर्ट को फिल्म के रूप में दिखाती हैं,इस रिपोर्ट के मुताबिक बोस्टन में ही कुछ ८०-९० कैथोलिक प्रीस्ट थे जिन्होंने बच्चो का शारीरिक शोषण किया था. और अपनी धार्मिक छवि के कारण, ये हर बार कानून के हाथों से बच जाते थे. यहाँ फिल्म के माध्यम से, वास्तविकता को पूर्ण रूप से जिन्दा कर दिया गया था, उस हर घटना कर्म को दिखाया गया था की किस तरह द बोस्टन ग्लोब के रिपोर्टर, इस रिपोर्ट के लिये छान बीन करते हैं, किस तरह की तकलीफों से होकर गुज़रते हैं लेकिन पत्रकारिता का धर्म सच को दिखाना और लिखना हैं, जिसे ये पूर्णतः इमानदारी से कार्यवंतिंत करते हैं, यहाँ, ये समझना होगा, की पत्रकारिता भी इंग्लिश भाषा में हो रही थी, जो की अमेरिका की मुख्य भाषा हैं और गुनहगार और रिपोर्टर एक ही धर्म और इसी इंग्लिश भाषा से जुड़े हुये थे, लेकिन पत्रकारिता में कही भी किसी तरह का कोई समझौता नहीं होता, अगर इसी के संदर्भ में हमारे देश की पत्रकारिता को समझना हो, विशेष कर हिंदी भाषा में हो रही पत्रकारिता, जहाँ, ऊपर से नीचे तक, पत्रकारिता में हिंदी भाषी, हिन्दू और उच्च जाती के लोग ही मौजूद हैं.

अगर, हम हमारे देश के ऐसे प्रांत पर ध्यान दे जहां बोलने की भाषा तो हिंदी से अलग हैं लेकिन लिपी के तोर पर, देवनागरी लिपी ही इस्तेमाल होती हैं जैसे उत्तर प्रदेश, उतराखंड, देल्ही, हरयाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, झारखंड, बिहार, इत्यादि में पूर्ण रूप से हिंदी की देवनागरी लिपी ही लिखी जाती हैं, लेकिन यही लिपी देवनागरी, मराठी, मेथली, नेपाली, कोंकणी, सिंधी, संस्कृत, बोडो, भाषा की लिपी के रूप में भी लिखी जाती हैं, अगर आप महाराष्ट्र से हैं, तभी, आप हिंदी भाषा को पूर्ण रूप से पड़ और समझ सकते हैं, मसलन बहुताय, भारत, हिंदी भाषा को पड़ और समझ सकता हैं, यहाँ, इसी लिपी के रूप में संस्कृत भाषा के अंदर हिंदू धर्म के कई वेद और धार्मिक पुस्तक लिखी गयी हैं, इस से अंदाजा लगाया जा सकता है की इस लिपी का हिंदू धर्म से नजदीकी का रिश्ता हैं, अब, जब इसी भाषा में पत्रकारिता होगी तो क्या उन तारों को भी छुआ जायेगा जहाँ बहुताय समाज की आस्था जुड़ी हुई हैं. यहाँ, अख़बार में छपी खबर के नीचे पत्रकार का नाम होता हैं और उसी तरह से मीडिया में चलाई जा रही खबर पर ऐंकर अक्सर शुरुआत में ही अपना नाम बताता हैं, यहाँ बहुत मुश्किल से कोई अल्पसख्यंक या किसी छोटी जाती के रूप में कोई पत्रकार मौजूद होगा, अगर हैं भी, तो उसे किस तरह की पत्रकारिता का विषय दिया गया हैं, ये भी देखना जरूरी हैं मसलन खेल कूद और  सिनेमा ही होगा, मुझे व्यक्तिगत रूप में ऐसा कोई बड़ा अल्प स्ख्यंक या छोटी जात का पत्रकार नहीं मिला जो क्राइम रिपोर्टिंग या इस से भी महत्वपूर्ण राजनीति पर पत्रकारिता करता हो. अगर होंगे भी तो इक्का-दुक्का.

अक्सर, हिंदी भाषा या मीडिया में कश्मीर, पंजाब, उत्तर पूर्वी भारत, इन राज्यों को अलग से ही जगह दी जाती हैं, जिस तरह आज कल हिंदी पत्रकारिता, पश्चिम बंगाल को व्याख्यान कर रही हैं. यहाँ, खबरों को थोड़ा सा ध्यान से पड़ने की जरूरत हैं, शब्दों के भीतर ही, पूरे प्रदेश, समाज, को केंद्र बिंदु बनाकर ऐसा कुछ लिखा होता हैं की एक पाठक के रूप में आप को इसके साथ जोड़ लिया जाता हैं, यहाँ, शब्दों में पत्रकार अपना नाम ना देकर, किसी नेता का भाषण का जिक्र कर देगा या किसी घटना पर अपनी राय रख देगा, अंत आते, वह निष्पक्ष होने की दुहाई भी देगा लेकिन किन शब्दों पर जोर दिया गया हैं, ये देखने की जरूरत हैं, आये दिन इस तरह की खबर छपती रहती हैं, की एक पाठक के रूप में, आप इस तरह की खबरों से बंध के रह जाओ, लेकिन उन हिस्सों में जहाँ बहुताय हिंदू समाज हैं, ज्यादातर खबरों का हिस्सा नहीं बनाया जाता अगर कोई खबर होगी भी तो लूट-पात, चोरी, इत्यादि, व्यक्तिगत अपराध की ना की प्रदेश या समाज के रूप में कोई खबर छपी होगी. अगर, इस तरह की कोई खबर छपती भी हैं, तो उस लेख को थोड़ा सा ध्यान से पड़ना जरूरी हैं, यहाँ सामान्य शब्द होंगे, जिसे आप पड़ कर तुरंत भूलने में ही समझदारी समझेगे.

में, पंजाब से हु, और पंजाब का काला दोर, अपनी आखो से देखा हैं खासकर १९८६-१९९३ तक, यहाँ उस समय आर्म्ड फ़ोर्स एक्ट लगा होने के कारण, जगह जगह भारतीय फोज के सिपाही बैठे होते थे, आप सवारी बस में जाते हुये, अक्सर सडक पर भारतीय फौज का चलता हुआ काफ़िला देख सकते थे, यहाँ उस समय केसरी रंग की पगड़ी पहनना एक तरह से मना था, अगर आप ने पहनी भी हैं, तो आप से सवाल जवाब ज़रुर होंगे और हो सकता हैं की आप को सरकारी गाडी में बैठा दिया जाये, फिर आप का क्या होगा ये कहना जरूरी नहीं ? हर घर में ये दिशा निर्देश दिये गये थे आप, अगर खेतों में जाते हुये पुलिस या सेना को देख ले तो भागे नहीं, उनसे आख ना मिलाये, चुप चाप सामान्य बन कर चलते रहे, यहाँ हर सिपाही के पास ऐके४७ थी, लेकिन इनमें और आतंकवादी में फर्क था मसलन अगर आप सिपाही की गोली से मारे गये तो शायद ही कोई खबर अख़बार में लगेगी लेकिन अगर आप को एक आतंकवादी ने मारा हैं तो ये अखबार की सुर्खिया बन जायेगी. उस समय पंजाब में बहुत सारे फेंक एनकाउंटर  हुये थे, ये आकड़ा हकीकत में कही ज्यादा खतरनाक हो सकता हैं लेकिन कही भी हिंदी पत्रकारिता में इस तरह की खबर को पहले पेज पर जगह नहीं मिलेगी, लेकिन बिहार के शहाबुद्दीन की खबर इस तरह प्रकाशित की जायेगी की तमिलनाडू के नागरिक को भी पता चल जाये की शहाबुद्दीन कोन हैं.


आज, एक सिख होने के नाते अक्सर १९८४ के दंगो की खबर को खोजता रहता हु और इसी संदर्भ में, कोर्ट में चल रहे कैसो, की जानकारी लेने के लिये, गूगल भी मदद नहीं करता, तो समझ लीजिये अख़बार में कोई खबर नहीं छपी होगी, आज हिंदी भाषी प्रांत में जात-पात के नाम पर, भेदभाव बदस्तूर जारी हैं लेकिन ये खबर अखबार में नहीं लग पाती, ना ही महिला सुरक्षा या बच्चो की सुरक्षा का ज्यादा जिक्र होता हैं, अब ये तो यकीन करना मुश्किल हैं की यहाँ अपराध नही होते होंगे, पर खबर नही बनती होगी. लोकतंत्र को जीवित रखने में, मीडिया का भी एक अहम योगदान हैं, लेकिन अगर इसी लोकतंत्र के रूप में हमारी व्यवस्था फेल हो रही हैं तो यकीन मानिये कही ना कही, हमारा मीडिया या पत्रकारिता, अपने कर्तव्य का इमानदारी से निर्वाह नहीं कर पा रही हैं, मेरा सवाल आज भी इस पत्रकारिता और हमारे देश के अख़बार के पाठक से हैं, १९८४ में ब्लू स्टार के दौरान भिंडरावाला तो मार दिया गया, लेकिन १९८४ के दंगो के मुलजिम क्यों बाहर हैं ? क्या इतने बड़े, दंगे, बिना किसी प्लान के या व्यवस्था की मदद के बिना हो सकते थे ? अगर हाँ, तो ये दंगे, रोज होने चाहिये ? १९८४, में ब्लू स्टार कितना जरूरी था ? उस समय भिंडरावाला पर किस अदालत में राष्ट्र द्रोह का मुकदमा चल रहा था ? मुझे इन सवालों के जवाब किसी भी अख़बार की खबर में नहीं मिलते. शायद, स्पॉट लाइट इस लिये बन पाई की बोस्टन अमेरिका में हैं, यकीन मानिये इस तरह की फिल्म कभी भी भारत में नहीं बन पायेगी, व्यक्तिगत रूप से मैने अब हिंदी अख़बार या न्यूज़ चैनल देखना बंद कर दिया हैं. मुझे अब मीडिया से कोई उम्मीद ही नहीं रही. और भविष्य में भी कोई खबर ईमान दारी से छापी जायेगी, इसकी भी उम्मीद नहीं हैं. धन्यवाद.

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