लंबी और जलालाबाद, पंजाब की ये दो चुनावी सीट पर हम सबकी नजर हैं, यहाँ से या तो बादल विजयी होंगे या पूर्णतः धारासाही.



पंजाब, भारत का उत्तरी राज्य अगर इसकी आबादी और क्षेत्रफल से इसकी पहचान की जाये तो ये कुछ ३-४%, भारत का हिस्सा होगा, उसी के तहत इसकी लोकसभा में मौजूदगी भी कुछ १३ सासंदों के रूप में ही हैं और इसी के चलते यहाँ चुनाव के दौरान या बाद में होने वाली राजनीति उठा पटक कही भी गंभीरता से राष्ट्रीय मीडिया में या राजनीतिक गलियारों में पहचान नहीं बना पाती और ना ही इस पर राजनीतिक पंडित कोई व्याख्यान करते हैं. लेकिन, अगर यहाँ होने वाली राजनीति को थोड़ी करीब से और इमानदारी से समझा जाये तो ये यकीनन किसी भी बड़े प्रदेश में होनेवाली राजनीति से ज्यादा अपना लोहा मनवा सकती हैं.

मसलन, २००९ के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस राज्य इकाई के नेता कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने अपने बेटे को अपने पुश्तैनी  इलाका पटियाला से ना खड़ा कर भटिंडा से श्री हर सिमरत कौर बादल, जो की शिरोमणि अकाली दल बादल की उमीदवार भी थी और बादल परिवार की सदस्य भी हैं, चुनावी परिणाम आये और श्री हरसिमरत कौर यहाँ से विजयी हुई लेकिन पूरे पंजाब में बादलो की हार हुई थी, मसलन शिरोमणि अकाली दल बादल और भारतीय जनता पार्टी का चुनावी गठजोड़ पूरे पंजाब में बस ५ सीट पर विजय हासिल कर सका बाकी ८ सीट पर कांग्रेस ने अपना विजयी परचम लहराया था. क़यास ये लगाये गये की बादल परिवार ने अपना पूरा ध्यान भटिंडा सीट पर ही केंद्रित कर लिया था और इसी के चलते, इनकी यहाँ जीत हुई पर ये बाकी जगह हार गये. कुछ इसी तरह हुआ २०१४ के लोकसभा चुनाव में जब कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने अमृतसर की सीट से भारतीय जनता पार्टी के क़दावर नेता अरुण जेटली को भारी वोट के अंतर से हराया था लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी को पंजाब में फायदा हुआ और उसने यहाँ ४ सीट से अपनी राजनीतिक विजय की शुरुआत की.

कुछ इसी तरज पर, आज २०१७ के पंजाब राज्य के चुनाव में हो रहा हैं जब कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने लंबी चुनावी हल्के से श्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी और इसी राजनीति बल प्रदर्शन के तहत जलालाबाद से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में लोकसभा सांसद और एक युवा नेता श्री रवनीत सिंह बिटू के नाम की घोषणा की हैं जो की यहाँ से शिरोमणि अकाली दल बादल के उम्मीदवार और पंजाब के उप मुख्यमंत्री और बादल परिवार के सदस्य श्री सुखबीर सिंह बादल को कड़ी चुनौती देगे  यहाँ

एक और चीज यहाँ ज़ेहन में रखना जरूरी हैं की इन दोनों सीट से आम आदमी पार्टी ने अपने सबसे लोकप्रिय नेता को उतारा हैं मसलन लंबी चुनावी सीट से जरनैल सिंह आप के उम्मीदवार हैं, जो पिछले दो देल्ही विधान सभा चुनाव में विधायक चुने गये हैं और इनकी एक सिख के रूप में एक गहरी पहचान तब बनी जब इन्होने २००९ के चुनाव के संबंध में बुलाई गयी एक प्रेस कान्फ्रेंस में सारे मीडिया के सामने श्री पी. चिदंबरम पर जूता फेंककर अपनी नाराजगी कांग्रेस के प्रति जताई थी जो की उस समय देल्ही से सज्जन कुमार जिन पर १९८४ सिख दंगे को भड़काने का दोष लगाया जाता हैं, उन्हें कांग्रेस  चुनावी उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर चुकी थी. इसका नतीजा भी आया की कांग्रेस द्वारा  सज्जन कुमार को लोकसभा टिकट नही दिया गया. इसी तरह श्री भगवंत मान जो की संगरूर से लोकसभा सांसद भी हैं, इनको आप ने जलालाबाद से अपना उम्मीदवार के रूप में उतारा हैं. भगवंत मान, राजनीति में आने से पहले एक हास्य कलाकार के रूप में पंजाब के साथ साथ पूरी दुनिया में अपना लोहा मनवा चुके हैं. इनके व्यंग में कही भी किसी भी रूप में कोई आपत्तिजनक व्यंग ना होकर, उन मुश्किलों पर अक्सर व्यंग किया जाता था जो की हमारे समाज में मौजूद हैं मसलन अशिक्षा, बेरोजगारी, किसान की समस्या, इत्यादि, और इसी के चलते इनकी पंजाब के युवा पर एक खासी पकड़ हैं.


अब इन दोनों सीट पर त्रिकोण जंग लाजमी हैं, लेकिन अब यहाँ एक और पार्टी शिरोमणि अकाली दल (मान) अपना नाम दर्ज करवाने में लगी हुई हैं और इसी के तहत राजनीति गणित इधर उधर हो सकता हैं, शिरोमणि अकाली दल (मान) के सर्वोच्च नेता श्री सिमरजीत सिंह मान हैं, जिन्होंने १९८४ में हुये ब्लू स्टार ऑपरेशन के विरोध में अपनी डीएसपी की नौकरी से इस्तीफा देकर, सिख राजनीति के साथ साथ पंजाब की राजनीति में अपना कदम रखा और इसी के तहत १९८४ से लेकर १९८९ तक, ये जेल में भी रहे और १९८९ में लोकसभा सीट तरन तारन से और १९९९ में लोकसभा सीट संगरूर से सांसद के रूप में चुने गये. लेकिन किरपान पहने के कारण इन्हें लोकसभा के भीतर जाने से रोका गया और इसी के तहत इन्होने लोकसभा ना जाने का फैसला लिया था. इनकी पक्कड़ सिख वोट पर गहरी हैं, इन दोनों सीट पर जहाँ सिख आबादी ९०% तक हैं और यहाँ पर खड़ा किया गया मान दल का उम्मीदवार, चुनावी गणित में अपना प्रभाव डाल सकता हैं.

अब कुछ घटना कर्म इन दोनों सीट पर हो रहे हैं मसलन कुछ दिन पहले सुखबीर सिंह की गाडी पर पथराव हो गया और कुछ चंद रोज पहले, एक शख़्स द्वारा लंबी के ही एक चुनावी सभा में श्री प्रकाश सिंह बादल पर अपनी जूती फैक कर अपना विरोध दर्ज करवाया. इस शख़्स का नाम गुरबचन सिंह के रूप में सामने आया हैं और ये रिश्ते में, सिख नेता श्री अमरीक सिंह अजनाला के भाई हैं. इन्होने बादल की तरफ जूती फेंकने की वजह श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी को बताया जो की पिछले समय पंजाब के बहुत सारे इलाकों में हुई थी और बादल सरकार इस कथित गुनाह के दोषियों को पकड़ने में तो नाकामयाब रही हैं लेकिन गुरु ग्रन्थ साहिब की बेअदबी के विरोध में चल रहे अहिंसक विरोध पर पुलिस द्वारा की गयी गोली बारी से, आज जन विद्रोह बादल को झेलना पड़ रहा हैं. अब चर्चा ये हैं, की शिरोमणि अकाली दल (मान) गुरबचन सिंह को लंबी से अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती हैं, अगर ये सच हुआ तो ये भी, शंका दर्ज की जा सकती हैं की बादल पर जूती फेंकना एक राजनीति स्टंट था लेकिन यहाँ पर गुरबचन सिंह के उम्मीद वार होने से सिख वोट की गिनती पर विपरीत असर पड़ने के आसार होंगे.


अब ये कहना मुश्किल हैं, की इन दोनों जगह पर शिरोमणि अकाली दल (मान) अपने कोन से उम्मीद वार का नाम ऐलान करती हैं. पर जो भी यहाँ से उम्मीदवार होगा वह यकीनन चुनावी गणित पर असर डालने के साथ-साथ नतीजा भी बदल सकता हैं. यहाँ ये लिखना जरूरी नहीं पर, कांग्रेस के कैप्टेन अमरिंदर सिंह और शिरोमणि अकाली दल (मान) के सिमरजीत सिंह मान का पारिवारिक रिश्ता हैं. तो यहाँ ये देखना होगा की, मान दल द्वारा खड़े किये गये यहाँ उम्मीदवार किस की सहायता करते हैं ? जो भी, हो आज पूरे पंजाब में बस इन दोनों सीट की चर्चा हैं, हो सकता हैं यहाँ से बादल जीत जाये लेकिन इसकी कीमत बाकी की जगह हार कर चुकानी पड़ सकती हैं. और अगर बादल यहाँ से हार गये, तो यकीनन शिरोमणि अकाली दल बादल राजनीतिक रूप से धारासाही हो सकता हैं, ये इतना बड़ा नुकसान हो सकता हैं की, इन्हें खड़े होने में कई साल लग सकते हैं. यहाँ चुनावी लड़ाई मुश्किल नजर आ रही हैं. लेकिन पंजाब की जनता किस नतीजे की घोषणा करती हैं इसके लिये, मुझे और आपको मार्च तक का इंतजार करना पड़ सकता हैं. धन्यवाद.

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