यूनिवर्सिटीमें हुल्लड़ हैं या दो विचारधारा के बीच का घमाशान.


आज पूरे देश में उबाल आया हुआ हैं और इसका पूरा ध्यान देश की यूनिवर्सिटी के भीतर मचे हुये घमाशान से हैं. यहाँ, कभी हैदराबाद में रोहित वेमुला की ख़ुदकुशी होती हैं, कही जे.ऐन.यु, में नारे लगते हुये दिखाई दे रहे जहाँ आवाज सुनाई दे रही हैं लेकिन कोई चेहरा सामने नजर नहीं आ रहा, वही इसी यूनिवर्सिटी में से नजीब नाम के विद्यार्थी का अचानक से गायब हो जाना और अब रामजस कॉलेज जो की देल्ली यूनिवर्सिटी के अधीन हैं, वहां सैमिनार के दौरान हुये हुल्लड़ और बाद में विधार्थियों द्वारा निकाले गये शांति मार्च प्रदर्शन पर हुये हमले में जहाँ पत्थर बाजी एक आतंकवादी हमले की तर्ज पर की गयी, यहाँ पुलिस पर भी आरोप लगा की ये मूकदर्शक बनकर खड़ी रही. यहाँ, पत्थरबाजी का आरोप विधार्थी संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी संगठन (ABVP) पर लगा हैं और इसी संगठन पर आरोप हैं की इन्होने रोहित वेमुला को ख़ुदकुशी के लिये मजबूर किया था. लेकिन २०१४ में भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार बनने के बाद ही क्यों ABVP इतनी आक्रामक हो गयी या इस संगठन पर इतने गंभीर आरोप लगने शुरू हो गये ?

शायद आज बहुत कम लोग जानते हैं की, १९८९ में वीपी सिंह की केंद्र में सरकार बनी थी जिसे भाजपा का पूर्ण समर्थन था. और उसी दौरान, इसी विद्यार्थी संगठन ABVP ने मंडल कमिशन का उग्र विरोध किया था. उस समय भी ABVP के निशाने पर स्कूल, कॉलेज या वह हर संस्थान था जहाँ शिक्षा का ज्ञान दिया जाता था. लेकिन ये विद्यार्थी संगठन, गैर भाजपा की केंद्र सरकार के समय अक्सर अखबार की सुर्खियों से दूर रहता हैं, अब इस कथन से  क्या कयास लगाये जा सकते हैं ? इस विद्यार्थी संगठन ABVP, राजनीति पार्टी भाजपा और आरएसएस का क्या रिश्ता हैं ? यहाँ, ABVP और भाजपा की विचारधारा की जननी के रूप में आरएसएस को देखा जाये तो कही भी कुछ गलत नहीं होगा. अब, यहाँ आरएसएस की विचारधारा को समझने की जरूरत हैं.

आरएसएस, जहाँ ये खुद को राष्ट्रीय सेवक संघ के नाम से अपनी पहचान एक राष्ट्रीय रूप में करवाती हैं वही, इसकी विचारधारा भारत अर्थात हिंदुस्तान में हिंदू संस्कृत के रूप में प्रफुलित करने की हैं. जिस विचारधारा से इसका उत्पन हुआ वह यही कहती हैं की हिन्दुस्तान को बचाने के लिये हमें सर्वप्रथम हिंदू संस्कृत को बचाने की पहल करनी होगी. इसी विचारधारा के समीप ये संगठन अक्सर सार्वजनिक रूप से दूसरे धर्म पर कटाक्ष भी करता रहा हैं जहाँ ये हिंदू धर्म की वकालत करते हैं वही दूसरे धर्म को इसमें समाने में भी यकीन रखते हैं. इसका प्रमाण हैं इसकी सह संगठन संस्था राष्ट्रीय सिखसेवक जिसका मुख्य कर्ता धर्ता आरएसएस ही हैं, यहाँ, सिख धर्म की मर्यादा को किस तरह खंडित किया जा रहा हैं इसका प्रमाण इसकी साइट की मुख्य तस्वीर पर हैं जहाँ आरएसएस का एक सदस्य टोपी पहन कर खड़ा हुआ दिखाई देता हैं, वही सिख मर्यादा में किसी भी तरह की टोपी को पहने की पूरी तरह से मनाही हैं. यहाँ, ये कुछ इसी तरह सिख इतिहास को भारत की सेवा और सुरक्षा से जोड़कर दिखा रहे हैं. यहाँ ये कही कही गुरु ग्रंथ साहिब की गुरबाणी के पावन शब्द का अर्थ भी हिंदू धर्म के शब्दों के अनुसार करते हुये दिखाई देते हैं, जहाँ ये किसी भी तरह से कोई मर्यादा को पार नहीं कर रहे वही शब्दों के भीतर से कई प्रकार के अर्थ का ओझल विवरण कर देते हैं. कुछ इसी तरह, ये मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को भी संचालित करते हैं.  और इस संगठन की वेबसाइट के मुख्य पृष्ट पर ही आर्टिकल ३७० को हटाने की मांग रखी गयी हैं. लेकिन, जब इन्ही की राजनीति पार्टी भाजपा की पूर्णतः बहुमत केंद्र में हैं तो ये आर्टिकल ३७० को क्यों हटाने में असमर्थ हैं, इसका बयान कही नहीं मिला. पूरे विश्व में, आरएसएस ही एक मात्र राष्ट्रीय संघ होगा जो अपनी मुख्य धर्म की विचारधारा के सिवा भी किसी और धर्म की विचारधारा को संग्रहित करके रक्षा करने की छवि का भ्रम समाज में फैला रहा हैं.

इस संगठन की पूरे भारत में जगह जगह पर शाखा हैं, ये सही मायने में कितनी हैं इसका प्रमाण तो नहीं मिला लेकिन हजारों की संख्या में हैं. यहाँ, युद्ध स्तर पर इनके सदस्यों की ट्रेनिंग की जाती हैं. जहाँ व्ययाम से लेकर शस्त्र विधा तक में यहाँ सदस्य को निपूर्ण किया जाता हैं, इस तरह की ट्रेनिंग के पीछे आरएसएस का तर्क आत्म निर्भरता और स्वय खुद की सुरक्षा करने से हैं. वही इन सभी शाखा में आरएसएस की विचारधारा की मानसिकता को भी प्रफुलित किया जाता हैं. मसलन आरएसएस के अनुसार, भारतीय राष्ट्रीयता की विचार धारा, समाज की सामाजिक विचार धारा और यहाँ आरएसएस आदर्शवादी को पैदा करती हैं जो अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये सदा तत्पर रहता हैं.

लेकिन, एक बात ग़ोर की जा सकती हैं की यहाँ आरएसएस के सदस्य के रूप में या इनकी संस्था में पदोदित अधिकारी या सदस्य एक पुरुष ही देखने को मिलेगा, व्यक्तिगत रूप से मेंने कभी भी इनकी शाखा में कभी कोई महिला सदस्य को नहीं देखा. आज, समाज की सामाजिक आजादी के लिये एक महिला को शारीरिक रूप से आत्म निर्भर होना अति आवयशक हैं. इसी उपेक्ष में अगर आरएसएस का सही मायनों में व्याख्यान करना हो तो आरएसएस एक विचारधारा हैं जहाँ हिंदू धर्म को समाज में इसकी रचना के अनुसार प्रचलित करने की मानसिकता पूरी ताकत से प्रबल हैं. और इसी मानसिकता में पुरुष प्रधान समाज और जाती-वाद भी शामिल हो जाते हैं वही दूसरे धर्म की विचारधारा को भी अपने अनुसार पेश करने की कोशिश दिखाई देती हैं.


अब यूनिवर्सिटी, स्कूल, कॉलेज या शिक्षा के सारे संस्थान यहाँ, व्यक्तिगत विचारधारा प्रफुलित होती हैं, यहाँ शिक्षा के माध्यम से एक विद्यार्थी अपनी व्यक्तिगत आजादी की भी पहचान करता हैं वही इस आजादी को खंडित करने वाली विचारधारा से भी परिभाषित होता हैं. असलियत में एक विचारधारा तो हैं जो एक इंसान को आजाद और गुलाम की शक्ल देती हैं, यहाँ १९३१ में अंग्रेज की केद में भगत सिंह भी एक आजाद विचारधारा का मालिक था वही आज भी कई ऐसे उदाहरण हैं जो सदियों से चली आ रही जात-पात, भेद भाव, स्त्री शोषण, इत्यादि से कट्टरता के साथ बंधे हुये हैं. आज भी इन्ही यूनिवर्सिटी में जहाँ हुल्लड़ हो रहा हैं वह असलियत में दो विचारधाराओं के बीच की लड़ाई हैं एक वह जो खुद को आजाद घोषित कर चुकी हैं और सामाजिक आजादी के लिये समाज के बनाये हुये हर नियम की परख कर रही हैं और एक वह विचारधारा हैं जो सदीओ से भारतीय समाज की सामाजिक स्थिति का वर्णन करती हैं. आज, सैकडे की तादाद में विद्यार्थी सडक पर हैं और लाखों की तादाद में लोग अपने घर बैठ कर इस पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं. मैं भी व्यक्तिगत रूप से इस आंदोलन से सैकड़ो किलोमीटर की दूरी से भी जुड़ गया हू लेकिन मुझे और आपको ये तय करना हैं की हम किस विचारधारा से सहमत हैं.

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