इसरो ने एक साथ ज्यादा सेटेलाईट को अंतरिक्ष में भेजने का विश्व रिकॉर्ड तो बना लिया लेकिन अभी स्पेस तकनीक में इसरो बाकी की दुनिया से बहुत पीछे हैं.



तारीख १५-फ़रवरी-२०१७, में इस रो ने एक साथ स्पेस यान से १०४ सेटेलाईट को एक साथ अंतरिक्ष में भेजा हैं, इस तरह ये एक साथ सबसे ज्यादा सैटलाइट को भेजने का एक विश्वरिकॉर्ड भी बन गया, इससे पहले, ये रिकॉर्ड रूस के नाम था जिसने साल २०१४ में एक साथ ३७सेटेलाईट को एक साथ छोड़ा था. यहाँ, इसरो ने कुल १०४ सैटलाइट को स्पेस में छोड़ा जहाँ एक सैटलाइट बड़ी थी जिसका वजन कुछ ७१४ किलोग्राम था और बाकी के १०३ सेटेलाईट, नानो सैटलाइट मतलब थोड़े वजन या छोटी सैटलाइट थी, इस तरह की सभी ये १०३ सेटेलाईट का कुल वजन ६६४ किलोग्राम था, जो की मुख्य सेटेलाईट से ५० किलोग्राम कम हैं. यहाँ, ये नंबर के हिसाब से तो एक विश्व रिकॉर्ड बन गया लेकिन अगर सभी सेटेलाईट के वजन की बात करे जो कुछ १३७८ किलोग्राम होता ही होता है , लेकिन अगर वजन के हिसाब से इस रिकॉर्ड की तुलना नहीं हो सकती, आज तक की सबसे ज्यादा वजनदार सेटेलाईट का मान तेर्रेस्टार-१ (TerreStar-1) को हासिल हैं जिसका कुल वजन ६९१० किलोग्राम था और इसे २००९ में गयाना स्पेस सेंटर, फ्रांस से छोड़ा गया था, अगर दुनिया की सबसे ज्यादा लंबी सेटेलाईट का विश्व रिकॉर्ड देखे तो, ये शायद स्क्य्तेर्रा (Skyterra) के नाम होगा.

अगर साल, २०१६ की बात करे तो यहाँ, आई.आई.टी. मुंबई के विधार्थोयो ने नानो सेटेलाईट प्रथम को बनाया था, जिसका कुल वजन १० किलोग्राम के आस पास था ओर आकार में ये ३०.५ x ३३.४ x १०.१२ सैंटीमीटर था, जिसे साल २०१६ में इसरो ने बाकी की ७ सेटेलाईट के साथ स्पेस में छोड़ा था. यहाँ ये जानकारी मिली थी की इसरो ने प्रथम सेटेलाईट को बिलकुल मुफ्त स्पेस में छोड़ा था. यहाँ, जब इसरो ने १०४ सेटेलाईट को एक साथ छोडना जहाँ १०३ सेटेलाईट नानो सेटेलाईट थी जहाँ प्रति सेटेलाईट के वजन और आकार के हिसाब से बहुत कम या ना-मात्र का चार्ज इसरो ने इनसे लिया हो, आज इसरो पूरी दुनिया में एक कम लागत वाला सेटेलाईट स्पेस सेंटर बनकर उभर रहा हैं, जहाँ सेटेलाईट को छोडने की लागत बाकी के स्पेस सेंटर से काफी कम आती हैं जहाँ ये नानो सेटेलाईट या छोटी सेटेलाईट के लिये एक लाभ दायक विकल्प हैं.

वही, ६००० किलोग्राम टेरास्टार -१ जैसी सेटेलाईट छोडने के लिये अभी और प्रयास करने होंगे क्युकी अगर इसरो के इतिहास पर नजर मारे तो इसने अब तक सबसे ज्यादा वजनदार सेटेलाईट इन्सट-३डीआर, जिसका वजन २,२११ किलोग्राम था इसे साल २०१६ में स्पेस में छोड़ा था. आज भी इसरो कई माइनो में बाकी के स्पेस सेंटर की तुलना में काफी पिछड़ता हुआ दिखाई दे रहा हैं, मसलन एक अंदाजे के मुताबिक अंतरिक्ष में सेटेलाईट छोडने का बाजार कुछ ६.० बिलियन अमेरिकन डॉलर का हैं, जिसमें इसरो का हिस्सा बहुत कम हैं. 

दो तरह की सेटेलाईट को अंतरिक्ष में छोडने के प्रेक्षपण, दो प्रकार के होते हैं  व्यवसायिक और गैर-व्यवसायिक, इस रिपोर्ट के मुताबिक, साल २०१५ में कुल सेटेलाईट के भेजे गये प्रेक्षपण में से २६% सेटेलाईट ही व्यवसायिक थे, जहाँ इस तरह के कुल २२ प्रेक्षपण में से ८ अमेरिका, ५ रूस और ६ यूरोप में से भेजे गये थे, वही इसी साल चीन ने कुल १९ व्यवसायिक और गैर-व्यवसायिक प्रेक्षपण अंतरिक्ष में भेजे थे. और इसी साल भारत के इसरो ने कुल ५ प्रेक्षपण अंतरिक्ष में भेजे थे जहाँ सिर्फ २ ही प्रेक्षपण ही  व्यवसायिक थे. यहाँ, भारत ने कुल ६६ अमेरिकन मिलियन डॉलर की आय हुई वही यूरोप को कुल १०६६ अमेरिकन मिलियन डॉलर और अमेरिका को ६१७ अमेरिकन डॉलर की आय हुई थी, यहाँ, भारत का इसरो सबसे नीचे की पायेदान पर था.

यहाँ, इस बात पर ध्यान देना होगा की आज नानो और माध्यमिक तरह की सेटेलाईट को छोडने का प्रचलन बड़ता जा रहा, जहाँ इन्हें भेजने के हिसाब से इसरो एक सस्ता उपाय हैं. लेकिन, आज भी इसरो सिर्फ और सिर्फ PSLV प्रेक्षपण भेजने में ही माहिर हैं जो २००० किलो ग्राम के वजन तक को लेकर जा सकता हैं. और  PSLV प्रेक्षपण, कुछ ३०० से ८०० किलोमीटर की दूरी तक ही अंतरिक्ष में भेजा जा सकता हैं, जबकि GSLV तकनीक को विकसित करना होगा जो कुछ ३००० से ५००० तक के वजन को अंतरिक्ष में लेकर जा सकता हैं और इसकी GSO या GTO रौकेट कैप्सूल, ३६००० किलोमीटर की उँचाई तक अंतरिक्ष में उडान भर सकते हैं. , इस बात का ध्यान रखना होगा की आज तक इसरो ने सिर्फ ३ GSLV प्रेक्षपण ही अंतरिक्ष में भेजे हैं. लेकिन, विश्व में इसरो की GSLV प्रेक्षपण तकनीक, इतनी ज्यादा लोकप्रिय नहीं हैं जितनी यूरोप, अमेरिका और रूस की हैं.

यहाँ, इस रिपोर्ट के मुताबिक २०१५-२०१७ में कुल व्यवसायिक प्रेक्षपण में से ३९% ऐसे प्रेक्षपण होंगे जिनका वजन कुल ५४०० किलोग्राम के आस पास का होगा और कुल ७% ऐसे प्रेक्षपण होंगे जिनका वजन कुछ २५०० किलोग्राम के आस पास का होगा, अगर इस अनुमान के हिसाब से ध्यान दे तो आज भी आय या आमदनी या तकनीक के मामले में, इसरो बाकी के स्पेस सेंटर से बहुत पीछे हैं, तारीख १५-फरवरी-२०१७, को भी जिस प्रेक्षपण के जरिये, इसरो ने १०४ सेटेलाईट को अंतरिक्ष में भेजा हैं, उसके लिये PSLV प्रेक्षपण का उपयोग किया गया जो कुल १५०० किलोग्राम तक के वजन को अंतरिक्ष में लेकर जा सकता हैं और सारी १०४ सेटेलाईट का वजन कुछ १३६० किलो ग्राम ही था.

यहाँ, अंत में एक सच्चाई को समझने की जरूरत हैं की हमने सिर्फ और सिर्फ सबसे ज्यादा सेटेलाईट को एक साथ अंतरिक्ष में भेजने का विश्व रिकॉर्ड तो बना लिया हैं, लेकिन आज भी हम अंतरिक्ष में भेजने वाले सेटेलाईट अंतरिक्ष की तकनीक में दुनिया से बहुत पीछे हैं फिर वह चाहे सेटेलाईट या प्रेक्षपण के वजन का मापदंड हो या फिर लंबी उँचाई तक अंतरिक्ष प्रेक्षपण को भेजने का मापदंड हो मसलन ३०००+ किलोमीटर से ज्यादा. आज हम इस विश्व रिकॉर्ड पर एक तरह से खुद को सम्मानित तो महसूस कर सकते हैं लेकिन आज भी बाकी की दुनिया हमसे तकनीक के माध्यम में बहुत आगे हैं, और इसके लिये इसरो और भारत सरकार को निरंतर और पर्याप्त कोशिश जारी रखनी होगी जिससे नयी तकनीक का भी भारत में विकास हो सके और आय से भी इसरो, खुद पर निर्भर हो पाये. यहाँ, इस बात को समझना होगा की DRDO और इसरो जैसे सस्थानो पर सरकार खेती, शिक्षा, सुरक्षा, से कही ना कही बजट काट कर इन सस्थानो में लागत लगाती है, तो एक जनमानुस को इनसे परिणाम की अपेक्षा भी है, जिसे इन सस्थानो को इमानदारी से समझना भी होगा और विश्व स्तर के परिणाम भी देने होगे. धन्यवाद.



No comments:

Post a Comment