सरादार करतार सिंह सराभा, भारत की आजादी के संघर्ष में सबसे छोटी उम्र का आंदोलनकारी, जिसे १९ साल की कम उम्र में फांसी की सजा हुई थी.



भगत सिंह, इस नाम से ही इतना जोश हमारे ज़ेहन में भर आता हैं और साथ ही साथ ये जहाँ सामाजिक क्रांति का प्रेरणा स्रोत भी हैं और वही, सही भाषा में लोकतंत्र, हर नागरिक का एक समान अधिकार की मांग को भी परिभाषित करता हैं. लेकिन शायद एक आम नागरिक इतना ज़रुर जानते हैं, की १३ अप्रैल १९१९ में हुये जलियावाला बाग़ में अंग्रेज सरकार द्वारा किया गया हत्याकांड, भगत सिंह की प्रेरणा स्रोत था लेकिन ये कम लोग ही जानते हैं की सरदार करतार सिंह सराभा, जिन्हें मात्र १९ साल की उम्र में लाहोर जेल में अंग्रेज सरकार द्वारा फांसी की सजा दी गयी थीवह भगत सिंह के प्रेरणास्रोत थे, जिनके बलिदान ने ना सिर्फ भगत सिंह बल्कि उस समय के उत्तर भारत में हजारों की संख्या में क्रांतिकारियों को जन्म दिया था.

लुधियाना से कुछ दूर ही किलोमीटर की दूरी पर सराभा नाम के गांव में, इनका जन्म तारीख २४ मई १८९६ को हुआ था. अभी ये अपने बचपन की उम्र में ही थे जब इनके इनके माता-पिता श्री साहिब कौर और मंगल सिंह, का देहांत हो गया. और इसके पश्चात इनके दादा जी ने इनका पालन पोषण किया था.  अपने जीवन की शुरूआती शिक्षा पूरी करने के पश्चात, पहले इन्हें अपने रिश्तेदार के यहाँ उड़ीसा भेजा गया और बाद में इन्हें आगे की शिक्षा के लिये, इनके दादा जी ने सन फ्रांसिस्को, अमेरिका भेज दिया था. यहाँ, इनका ऐडमिशन यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, बर्कले, जहाँ इन्हें कैमिस्ट्री पड़नी थी. लेकिन, इनके सन फ्रांसिस्को, पोहचते ही, यहाँ के इमिग्रेशन डिपार्टमैंट ने, इनके साथ अपमान जनक सलूक करते हुये कई प्रकार के तीखे सवाल पुछे, जिसके लिये एक १६ साल का लड़का तैयार नहीं था, यहाँ दूसरे भारतीयों से भी इसी तरह का सलूक हो रहा था. यहाँ, इस  घटना ने, करतार सिंह को सोचने पर मजबूर कर दिया, की इस तरह का व्यवहार उनके साथ और बाकी के भारतीयों के साथ क्यों हो रहा हैं ? और किसी ने इसका जवाब दिया क्युकी भारत देश और भारतीय कौम, गुलाम हैं.”.

इस जवाब, ने करतार सिंह को अंदर तक झँझोड़ दिया था. और इसी के तहत इन्होने यूनिवर्सिटी के नालंदा क्लब से जुड़ गये, जहाँ और भी भारतीय विद्यार्थी थे, जिन्हें अपनी गुलामी का पूरी तरह से एहसास भी था और भारत देश और भारतीय कौम की आजादी के लिये कुछ ना कुछ करने का मांदा रखते थे. यहाँ, भी इनको दूसरे दर्जे के शहरी होने का एहसास करवाया जाता था, इसी दौरान करतार सिंह ने फलों को उठाने का काम भी किया, जहाँ इनके साथ जाती वाद भेदभाव हुआ और इन्हें बाकी के गोरे मजदूरों से, भुगतान के रूप में कम पैसे दिये गये, ये सारी घटनाये, करतार सिंह सराभा के अंदर विद्रोह को चिंगारी दे रहे थे, इसी दौरान, भारत की आजादी के लिये १९१३ में, ग़दर आंदोलन की शुरुआत हुई, ये अपनी तरह का पहला आंदोलन था जिसकी नींव विदेश में रखी गयी थी, यहाँ, भारतीय विद्यार्थी इस आंदोलन की सभा में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे, गदर पार्टी का एक ही मक़सद था किसी भी तरह से भारत की सर जमीन से अंग्रेज को भगा देना, यहाँ इनका एक ही नारा था देश की आजादी के लिये, हर तरह से आहूत होना”. यहाँ, गदर पार्टी ने पहले अपना प्रचार पंजाबी भाषा में लिखकर किया. और बाद में, इस प्रचार को हर भारतीय भाषा में लिखने के लिये, करतार सिंह को जिम्मेवारी सोपी गयी, अब इस पार्टी का पत्र पंजाबी, हिंदी, उर्दू, बंगाली, गुजराती और पुश्तो में छपने लगे जिन्हें, दुनिया के कोने कोने में बैठे भारतीयों तक पहुँचाया गया. गदर पार्टी, ये इतनी बड़ी बन गयी थी, की इसकी खबर इंग्लिश के अखबारों में छपनी शुरू हो गयी थी और सरकारी सिस्टम भी इस पर नजर रखने लगा था. यहाँ, कुछ सरकारी जासूस भी इस पार्टी में शामिल हो रहे थे.

१९१४, में प्रथम विश्व युद्ध में, इंग्लैंड भी शामिल हो गया था जिसके चलते ब्रिटिश सेना और सरकारी सिस्टम खुद को इस युद्ध में बचाने में लगा हुआ था. इसी मौके का फायदा उठाकर, गदरी पार्टी ने अपने पत्र में अंग्रेज के खिलाफ लड़ाई का आह्वान कर दिया और तारीख ५ अगस्त १९१४ को, अपने पत्र में इसकी जानकारी पूरी दुनिया में इस पार्टी के हर सदस्य को दी गयी. यहाँ, तारीख १५ सितम्बर १९१४ को, करतार सिंह अपने साथी सत्येन सेन और विष्णु गणेश पिंगले के साथ अमेरिका को छोड़कर, भारत के लिये रवाना हुये, ये कोलंबो के रास्ते कलकत्ता पहुचे थे. एक, अनुमान के मुताबिक कुछ २०००० भारतीय विदेशों से, इस लड़ाई में हिस्सा लेने के लिये भारत आये थे. यहाँ, करतार सिंह, ने पंजाब के अंदर इस विद्रोह की कमांड को सँभाला, इन्होने विष्णु गणेश पिंगले के साथ भारत के अनेक शहरों में जाकर, गदरी पार्टी का प्रचार किया और एक जमीन को तैयार किया ताकि ब्रिटिश सेना में भारतीय मूल के सैनिक इनके साथ जुड़ सके. इसी बीच, इन्होने अपने लुधियाना जिले में, एक छोटी सी फैक्टरी लगाई जहाँ छोटे किस्म के हथियारों का निर्माण किया जाता था.

एक मीटिंग में, ये तय हुआ की २१ फ़रवरी १९१५ को, मियान मीर और फिरोजपुर की सैनिक छावनी पर हमला बोला जायेगा, यहाँ इसकी पूरी तैयारी चल रही थी लेकिन एक सरकारी मुखबिर जिसका नाम किरपाल सिंह बताया जाता हैं, इस ने इस बात की जानकारी सरकार को दे दी, जिसके तहत, हमले के एक दिन पहले, १९-फ़रवरी-१९१५ को बहुताय क्रांतिकारी गिरफ्तार किये गये, लेकिन करतार सिंह सराभा, यहाँ बचने में कामयाब रहे. यहाँ, बाकी के आंदोलन कारियो ने स्थिति का जायज़ा लेते हुये, फिलहाल देश छोड़ कर विदेश जाने का तय हुआ और जहाँ फिर से एकत्रित होकर एक बार फिर अंग्रेज सरकार पर हमला करने का तरीका खोजा जा सके. इसी के तहत सरदार करतार सिंह सराभा को काबुल में मिलने के लिये कहा गया. लेकिन, काबुल जाने की बजाय, करतार सिंह अपने साथियों को छुड़वाने की फिरात में गिरफ्तार हो गये और इन्हें बाकी के आंदोलन कारियों के साथ लाहोर की जेल भेज दिया गया. यहाँ, इन पर मुकदमा चला जहाँ सरकार के खिलाफ साजिश करने के आरोप में, इन्हें, सजा ए मोत का ऐलान किया गया. और  तारीख १६-नवम्बर-१९१५, को लाहोर की जेल में सरदार करतार सिंह सराभा को फांसी की सजा दी गयी.


यहाँ, सरदार करतार सिंह सराभा, १९ साल की उम्र में फांसी पर झूम  गये थे, शायद ये भारत की आजादी की लड़ाई में सबसे कम उम्र के आंदोलनकारी होंगे जिन्हें, इतनी छोटी उम्र में फांसी दी गयी. यहाँ, गदरी पार्टी या आंदोलन, कामयाब तो ना हो सका, लेकिन किसे पता था, की सरदार करतार सिंह सराभा, भगत सिंह के प्रेरणा स्रोत बन कर, इसी लाहोर की जेल में, तारीख २३-मार्च-१९३१ में फांसी पर झूल जायेगे, जिससे पूरे देश में क्रांति की लहर पूरे जोबन में फिर उठ खड़ी होगी. यहाँ, एक बात का जिक्र ज़रुर करना चाहूंगा की २०१५ में पूरे पंजाब में, सराभा की फांसी की सजा की शताब्दी मनाई गयी थी , लेकिन इसका जिक्र तक कही हमारे राष्ट्रीय मीडिया में नहीं आया, शायद उस समय बिहार प्रांत के चुनाब के चलते पुरी मीडिया वहां की कवरेज कर रहा था, ये एक उदाहरण हैं की किस तरह हम अपने क्रांतिकारियों को भूल गये और इसके साथ-साथ उनके बलिदान और आजादी की लड़ाई को भी भूलते जा रहे हैं, जो कौम या देश अपना इतिहास भूल जाता हैं या उससे किसी भी तरह की छेड़ छाड़ होती हैं, यकीन मानिये वहां पूरी तरह से लोकतंत्र कामयाब नहीं हो सकता, अगर होगा भी, तो वह एक भ्रम की स्थिति ही बन कर रह जायेगा. धन्यवाद.

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